Newslaundry Hindi
क्वीन हरीश: ऐसे भी कौन जाता है?
हरीश का शो शुरू होने वाला था. हम सब स्टेज के पीछे शो से पहले उससे मिलने गये. हमारे एक दोस्त को ठंड लग रही थी. उसने एक सुंदर सा शॉल निकालकर दिया. उस शॉल के बारे में बताया और कहा कि इसे रख लो यह मेरी तरफ से गिफ्ट है. हम क्वीन हरीश की बात कर रहे हैं. वो ‘क्वीन’ जो अपनी जादुई लचक से लाखों दिलों पर जादू करके इस रविवार की सुबह एक भयानक हादसे में दुनिया छोड़ गया.
आम तौर पर जैसलमेर घूमने आने वाले लोग यहां के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों को देखकर लौट जाते हैं. सोनार किला, गड़ीसर तालाब, बड़ाबाग और सम के धोरे. मैं अपने दोस्तों को अपनी तरफ से ये जगहें कभी नहीं दिखाने ले जाता. उन्हें बोल देता हूं कि पहले जो आपको पता है या इंटरनेट पर जो देखकर आये हैं वो घूम लीजिये, फिर मैं आपको अपना जैसलमेर दिखाता हूं. इन पर्यटन स्थलों पर लोक कला और लोक गीतों के कार्यक्रम होते हैं वो बहुत ही नकली होते हैं. तेज शोर से भरे. इसलिए मैंने हमेशा इन जगहों पर जाने से परहेज ही किया है. लेकिन मेरे इस परहेज को हरीश ने तोड़ दिया. उसके शो में सब चीज़ें थीं, बच्चों से लेकर नब्बे साल के बुजुर्ग तक के लिए. मैंने उस दिन एक बुजुर्ग दम्पति को भावुक होते हुए देखा था. शो के दौरान बाहर से घूमने आये उस पर्यटक जोड़े का हाथ पकड़कर स्टेज पर ले आया. दोनों खूब नाचे. ऐसा लगा जैसे सालों बाद नाच रहे हों वो.
उसके बाद से मैं अपने दोस्तों को उसके शो में ले जाने लगा. अभी गये दिसंबर ही मेरे कुछ दोस्त लंदन से आये थे. जो ऊपर शॉल वाली बात का ज़िक्र किया मैैंने, वह उसी दिन की बात है. उसने अपनी कला से सबको बांध दिया. हम सब दोस्त खूब नाचे. मेरे दोस्तों पर हरीश का जादू चल गया था. उन्होंने शो के बाद कहा कि हम फिर मिलेंगे कल दिन में हरीश से. दूसरे दिन हम सब ने साथ में लंच किया. वो जल्दी में था, लेकिन फिर भी समय निकालकर आया. खूब सारी बातें की. अपनी कहानियां सुनायी और हम सबसे गले मिलकर चला गया वो.
हरीश पारंपरिक कालबेलिया चकरी, घूमर के साथ ही बॉलीवुड, बैले डांस में पारंगत था. घुटने के बल घूमते हुए दर्शकों को चकित करने के साथ ही अपने शो में वह दर्शकों को खूब मज़े लेकर हंसाता भी था. सर्दियों के दिनों में जैसलमेर में होने वाला उसका शो हाउसफुल रहता था. जैसलमेर के कई पर्यटन आकर्षणों में एक ‘द क्वीन हरीश शो’ भी था. वो अपने शो के बीच में पूछता था क्या आप में से कोई जानता है राजस्थान में मेहमान को क्या कहते हैं? कोई पर्यटक चिल्लाकर जवाब देता ‘पावणा. वह जवाब देने वाले पर्यटक से नाम और शहर का नाम पूछता था . फिर बताता कि पावणा का एक और मतलब हमारे यहां होता है जवांई. तो इस हिसाब से आप हमारे जैसलमेर के जवांई हुए और क्वीन हरीश हुई आपकी साली. तो अब फलां शहर से आये जीजाजी के साथ क्वीन हरीश करेंगी एक रोमांटिक डांस. पूरा सभागार उन रेतीले धोरों के पर्यटकों के हंसी से खिलखिला उठता था. उसके बाद वह सारे बच्चों को मंच पर बुला लेता था. उसका यह शो भारत-पाकिस्तान के अंतर्राष्ट्रीय सीमा से बस कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर होता था. हमेशा अंत में वह सीमा पर जवानों को सलाम करना नहीं भूलता था.
मेरी हरीश से पहली पहचान 2014 में हुई थी. उन दिनों मैं ‘आई लव जैसलमेर’ एनजीओ में काम कर रहा था. गड़सीसर तालाब के किनारे हमने वृक्षारोपण किया था. मैं रोज़ दोपहर बाद गड़सीसर चला जाता था. वहां की बंगलियों में हरीश अपनी शिष्याओं को डांस स्टेप्स सिखा रहा होता था. मैं किनारे बैठकर देर तक उसे देखता रहता. उसकी तस्वीरें खींचने लगता तो वह मेरी ओर देखकर मुस्कुरा देता था.
हरीश बहुत ही प्यारा इंसान था. मैं कभी मंच पर नहीं जाता हूं, लेकिन वो ले गया मुझे. एक दफा उसने नाचते हुए मेरी तरफ इशारा किया, लेकिन मैंने गुस्से में आंखें दिखाते हुए कहा कि नहीं मैं नहीं. लेकिन वो आया, मुझे हाथ पकड़कर ले गया और नचाया भी. मेरे साथ फोटो खिंचाते हुए कहा, तुम भी सेलेब्रिटी हो तुम्हारी गर्लफ्रेंड को फोटो दिखाकर ब्लैकमेल करूंगा तुम्हें. एक कलाकार से कहीं अधिक एक प्यारा व संवेदनाओं से भरा हुआ इंसान था वो.
हरीश जब घुटनों के बल जब नाचते हुए घूमता तो आप पलकें भी नहीं झपका पाते. यह अतिशयोक्ति नहीं है, सच में इतना ग़ज़ब नाचता था वो. उसके शरीर और हर अंग की लचक देखकर हर कोई दंग रह जाता था. उसने खुद में क्वीन की आत्मा को इतना उतार दिया था कि जब तक पता नहीं चले कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा पाता था कि वो क्वीन हरीश ही नहीं बल्कि हरीश कुमार भी है.
उसने सब अपने दम और अपनी मेहनत से हासिल किया था. हरीश किसी पारंपरिक लोक कला से जुड़ी जाति से भी नहीं था. वो सुथार जाति से था जो लकड़ी का काम करते हैं. हालांकि उसकी जाति खोजना बेमानी ही होगा क्योंकि नाम उसका हरीश था और जाति थी उसकी क्वीन. जब वो छोटा था तभी कैंसर ने उसकी मां को छीन लिया. थोड़े दिनों बाद ही उसके पिता भी दुनिया छोड़ गये. अब खुद की व दो बहनों की जिम्मेदारी उसी पर थी. किसी चाहने वाले ने उसे पर्यटकों के लिए महिला के भेष में नृत्य करने की सलाह दी. पेट पालने के लिए शुरू किये इस काम से धीरे-धीरे वो पूरी तरह जुड़ गया. उसने राजस्थान के उस क्षेत्र में पुरुष होने के बावजूद एक महिला की पहचान अपनायी, जहां हर बात में बेटियों को मारने का ज़िक्र आता है.
हरीश के लिए इस समाज में महिला की पहचान लेकर जीना बहुत मुश्किल था. उसे बहुत ताने सहने पड़े. लोग पूछते ये वैसे ही है क्या? ये हिजड़ा है क्या? वो इन तानों और ताने देने वालों से दूरी बनाकर अपने नृत्य में ही रम गया. उसे कई बार घर के लोगों ने भी कहा कि यह काम छोड़ क्यों नहीं देते हो. आप सोचिये, कितना संघर्ष करके उसने अपनी इस पहचान को आज इस मुकाम तक पहुंचाया था कि उसके जाने के बाद हर आंख नम है.
वो स्टेज पर होता तो क्वीन हरीश होता था, लेकिन सामान्य जीवन में वह बाक़ी लोगों की तरह ही रहता था. पत्नी व दो बच्चों का उसका प्यारा छोटा-सा परिवार है. शहर में अपने दोस्तों से वह हरीश कुमार के रूप में मिलता था. कई बार जैसलमेर की गलियों में कोई उसे देखकर पहचान जाता कि ये क्वीन हरीश ही है तो दंग रह जाता.
जैसलमेर के रेगिस्तान से निकलकर अमेरिका, यूरोप, आस्ट्रेलिया, जापान, रूस जैसे पचास से ज्यादा देशों में उसने अपना शो किया. वह जहां जाता लोग उसके दीवाने हो जाते. हरीश के देश-विदेश में करीब 15000 शिष्य थे. ज्यादातर लोग उससे डांस स्टेप्स सीखने जैसलमेर आते थे. कई बार वह खुद क्लास लेने जापान जैसे देशों की यात्राएं करता था. सैकड़ों उसके ऐसे शिष्य थे, जिन्होंने पूरी तरह क्वीन हरीश शैली को ही अपना लिया. हरीश मशहूर टीवी शो इंडियाज गॉट टेलैंट के सेमीफाइनल तक पहुंचा. कई डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का हिस्सा बना. बंगाली, मराठी, तेलुगू फिल्मों में काम किया. हाल ही में आयी प्रकाश झा की फिल्म जय गंगाजल में उसने एक आईटम नंबर ‘नज़र तोरी राजा’ किया था. विल्स फैशन वीक का शो स्टॉपर बना था वह.
तमाम तकलीफें झेलने के बाद अब उसने वो मुकाम हासिल किया था कि लोग उसे गर्व से देखते थे. लेकिन इतनी कम उम्र में वो चला गया. जाने के बाद भी वो ट्विटर पर ट्रेंड कर रहा था. एक दोस्त ने ठीक ही कहा कि ‘जाते-जाते भी ट्रेंड कर गयी ट्रेंडी क्वीन’.
Also Read
-
Adani indicted in US for $265 million bribery scheme in solar energy contracts
-
What’s Your Ism? Kalpana Sharma on feminism, Dharavi, Himmat magazine
-
Progressive legacy vs communal tension: Why Kolhapur is at a crossroads
-
BJP’s Ashish Shelar on how ‘arrogance’ and ‘lethargy’ cost the party in the Lok Sabha
-
‘Ludicrous statements’, ‘smear campaign’: MEA slams Canadian media report on Nijjar killing