Newslaundry Hindi
आईआईएमसी: तेरी दो टकियां दी नौकरी, मेरा लाखों का औसत आए
निजी कॉलेजों द्वारा कोर्स पूरा होने के बाद लाखों रुपये की प्लेसमेंट का सपना दिखाना और एडमिशन के लिए आकर्षित करना बहुत पुराना खेल हो चुका है. अब तो टीवी चैनलों पर पत्रकार बनाने और लाखों कमाने के बेसिर-पैर वाले विज्ञापन भी खूब देखने को मिलते हैं.
लेकिन यहां मामला विज्ञापनों से आगे बढ़ चुका है. अब इस तरह के विज्ञापन की बजाय शिक्षण संस्थाएं सीधे ख़बरें छापने-छपवाने लगी हैं. ऐसी ही एक ख़बर प्रतिष्ठित पत्रिका इंडिया टुडे की अंग्रेज़ी वेबसाइट पर 18 मई को प्रकाशित हुई. इसका शीर्षक था- ‘ब्रेकिंग न्यूज़ । बेस्ट कम्युनिकेशन कॉलेज इन इंडिया । आईआईएमसी’.
आईआईएमसी यानी इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन. यह एक सरकारी संस्थान है जो भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन संचालित होता है. इसे डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्ज़ा देने की योजना भी है. यहां स्नातक पास छात्रों को हिंदी पत्रकारिता, अंग्रेज़ी पत्रकारिता, रेडियो व टीवी पत्रकारिता और विज्ञापन एवं जनसंपर्क जैसे विषयों में डिप्लोमा कोर्स करवाया जाता है. इसकी एक शाखा उड़ीसा के ढेंकनाल में भी है.
ख़ैर, यहां हम उस ख़बर की बात करते हैं जो इंडिया टुडे ने प्रकाशित की और हमारा ध्यान अपनी ओर बरबस ही खींच लिया. इंडिया टुडे के रिपोर्टर कौशिक डेका के नाम से छपी इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि साल 2018 में आईआईएमसी से निकले छात्रों को औसत 13 लाख रुपये का वेतन मिला. यानी 2018 में आईआईएमसी से निकले छात्रों को प्रति माह औसतन लगभग एक लाख आठ हजार रुपये वेतन मिल रहा है. यही वो बात थी इस रिपोर्ट की जो आंखों से होकर दिमाग के रास्ते दिल में उतर जाना चाहती थी, पर उतर न सकी. दिमाग में ही कहीं अटक कर रह गई. क्यों? इसी क्यों का जवाब खोजने के लिए हमने आईआईएमसी के कुछ दरवाजों को खटखटाया.
पत्रकारिता के नये-नवेले रंगरूटों को एक लाख रुपये से ज़्यादा की सैलरी, मानो अच्छे दिन तो सिर्फ आईआईएमसी के आए हों. सच्चाई की तलाश में हमने साल 2018 में आईआईएमसी से निकले उन्हीं छात्रों से बात करने की कोशिश की जिनके दम पर ये स्टोरी खड़ी थी.
साल 2018 में आईआईएमसी कैंपस प्लेसमेंट में अभिनव पाठक को 18 हज़ार रुपये प्रति महीने की तनख्वाह पर ईटीवी भारत में नौकरी मिली थी. हमने उनसे 13 लाख रुपये औसत सालाना तनख्वाह के बारे में पूछा तो उन्होंने जो कहा, उसकी अविकल प्रस्तुति यहां दी जा रही है- “यह कोरा झूठ है. आधे से ज़्यादा छात्रों को 20 हज़ार रुपये की नौकरी भी नहीं मिली. आप जोड़ लीजिये यह सालाना कितना हुआ. हम हिंदी पत्रकारिता में 60 छात्र थे, जिनमें से 25 छात्रों को ईटीवी ने 18 हज़ार रुपये के मासिक वेतन पर रखा था. इसके अलावा मेरी क्लास में 35 हज़ार रुपये से ज़्यादा वेतन की नौकरी किसी को भी नहीं मिली. अब पता नहीं इंडिया टुडे ने इतना बड़ा झूठ क्यों छापा. संस्थान में लगातार फीस बढ़ रही है. हर साल छात्र इसके ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे हैं. पर उसकी बात कहीं नहीं होती.”
अभिनव जैसी ही मिलती-जुलती प्रतिक्रिया हमें उनके कुछ अन्य बैचमेट्स से भी मिली. साल 2018 में कैंपस से चुने गये छात्रों की सैलरी के कुछ आंकड़े हमने इकट्ठा किये हैं, वो आपके सामने यहां प्रस्तुत हैं-
25 छात्र – ईटीवी भारत – 18 हज़ार रुपये मासिक वेतन
3 छात्र – नवभारत टाइम्स ऑनलाइन – 30 हज़ार रुपये
2 छात्र – नवभारत टाइम्स अखबार – 20 हज़ार रुपये
4 छात्र – रोर मीडिया – 22 हज़ार रुपये
3 छात्र – डिज़ाइन बॉक्स – 22 हज़ार रुपये
4 छात्र – एबीपी न्यूज़ – 25 हज़ार रुपये
7 छात्र – आईपैक – 35 हज़ार रुपये
यानी, सबसे अधिक सैलरी जिन 7 छात्रों को मिली, वो आईपैक नामक चुनावी शोध संस्था से जुड़े हैं. यह संस्था मशहूर चुनाव प्रबंधक प्रशांत किशोर ने स्थापित की है. बहरहाल इन छात्रों का कुल सालाना वेतन चार लाख बीस हज़ार रुपये था. दूसरे स्थान पर नवभारत टाइम्स ऑनलाइन की नौकरी थी, जिसने अपने यहां तीन छात्रों को तीन लाख साठ हज़ार रुपये सालाना वेतन पर रखा. एवरेज सैलरी 13 लाख तो दूर, हमें एक भी छात्र ऐसा नहीं मिला जिसे 13 लाख रुपये के वेतन वाली नौकरी मिली हो.
हमने इस ख़बर को लिखने वाले इंडिया टुडे के पत्रकार कौशिश डेका से 13 लाख औसत सैलरी के स्रोत के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, “देखिये, मैं ख़बर के बारे में जानकारी नहीं दे सकता. एवरेज सैलरी का पता मुझे एक एजेंसी से मिला था.” जब हमने उनसे एजेंसी का नाम पूछा तो उन्होंने फोन काट दिया.
डेका ने तो हमें एजेंसी का नाम नहीं बताया लेकिन स्टोरी से साफ होता है कि इंडिया टुडे ने यह सर्वे मार्केटिंग एंड डेवलपमेंट रीसर्च एसोसिएट्स (एमडीआरए) के साथ मिलकर किया है. हमने एमडीआरए के रीसर्च ऑफिसर राजन चौहान से इस सर्वे से जुड़े आंकड़ों के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, “ये सभी आंकड़े हमें आईआईएमसी से मिले थे. हमने उनके द्वारा दिया गया आंकड़ा ही प्रदर्शित किया है.”
आईआईएमसी से पढ़ाई करने वाले दीपांकर का कहना है, “13 लाख का पैकेज? पत्रकारिता में इतना ज़्यादा पैसा एक फ्रेशर को कौन देता है. आईआईएमसी के बारे में इंडिया टुडे ने गलत जानकारी दी है. सच्चाई ये है कि दैनिक जागरण जैसे संस्थान छात्रों को 12-13 हजार रूपये महीने का ऑफर देकर गये थे. 13 लाख रुपये टॉप पैकेज भी रहा होगा इसमें मुझे संदेह है.”
आईआईएमसी के कई एल्युमनाई टीवी टुडे में काम करते हैं, लिहाज़ा अगर वे एक बार उन्हीं से इस दावे को क्रॉस चेक कर लेते तो सच्चाई का पता चल सकता था. अपनी ख़बर में इंडिया टुडे का एक और दावा है कि “इस साल 85 प्रतिशत छात्रों का प्लेसमेंट हो चुका है”. एक सच्चाई यह है कि संस्थान के छात्रों ने इस साल प्लेसमेंट के लिए खुलेआम विरोध प्रदर्शन किया है.
दीपांकर के मुताबिक पिछले चार-पांच सालों में संस्थान की फीस तेजी से बढ़ी है. इस साल रेडियो एंड टीवी जर्नलिज्म की फीस बढ़कर 1 लाख 66 हजार हो गयी है. आईआईएमसी बाकी पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले संस्थानों से अच्छा है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन इसकी फीस आम लोगों की पहुंच से बाहर हो चुकी है.
हमने इस सिलसिले में आईआईएमसी के एडीजी मनीष देसाई से भी बात की. उनका कहना था- “यह गलती से छप गया होगा. 13 लाख पिछले साल एक स्टूडेंट की सैलरी थी. यह हाइएस्ट सैलरी हुई, एवरेज नहीं.”
जब हमने उनसे कहा कि 13 लाख सैलरी तो 2018 बैच में किसी को नहीं मिली थी. इस पर वो थोड़ा नरम होते हुए बोले, “इसके आसपास ही मिली थी एक स्टुडेंट को.”
जब हमने उनसे छात्रों के 85 प्रतिशत प्लेसमेंट के दावे के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, “यह सही बात नहीं है. पिछले साल 69 प्रतिशत छात्रों का प्लेसमेंट हुआ था.”
इंडिया टुडे ने अपनी इसी ख़बर में देश के 10 शीर्ष मीडिया, पत्रकारिता और संचार संस्थानों की सूची भी जारी की है. इस सूची में भी आईआईएमसी को शीर्ष पर रखा गया है. इसके चयन का तरीका क्या है, इसे लेकर कोई स्पष्टता नहीं है.
Also Read
-
Two years on, ‘peace’ in Gaza is at the price of dignity and freedom
-
4 ml of poison, four times a day: Inside the Coldrif tragedy that claimed 17 children
-
Delhi shut its thermal plants, but chokes from neighbouring ones
-
Hafta x South Central feat. Josy Joseph: A crossover episode on the future of media
-
Encroachment menace in Bengaluru locality leaves pavements unusable for pedestrians