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झारखंड: पत्थलगड़ी के इलाके में राजद्रोह का कानून बना चुनावी मुद्दा

कीनु मुंडा, जो खुंटी के बिरसा कॉलेज में तृतीय वर्ष के स्नातक छात्र हैं, झारखंड के उन 71,000 मतदाताओं में शामिल हैं जिन्होंने इस चुनाव में पहली बार मताधिकार का इस्तेमाल किया है. पांचवें चरण के मतदान में उन्होंने अपना वोट डाला है.

पांचवें चरण के मतदान से नौ दिन पहले 27 अप्रैल की देर रात, पुलिस ढढगामा गांव में मुंडा के घर पर पहुंची और कॉलेज के छात्र को उसके बड़े भाई बहादुर और बसिंह के साथ हिरासत में ले लिया. उन्हें दो दिन बाद 29 अप्रैल को रिहा कर दिया गया.

घर वापस आते ही, मुंडा चुपचाप अपने परिवार की झोपड़ी के आंगन में खड़ा हो जाता है, क्योंकि उसे हिरासत में पीटा गया था और अभी भी चोटों के कारण वह बैठ नहीं सकता था. कीनु के सबसे बड़े भाई बहादुर मुंडा कहते हैं कि पुलिस ने उन्हें ये नहीं बताया कि किस कारण से हमें हिरासत में लिया गया था. “27 अप्रैल की रात करीब 11 बजे हमारे दरवाजे पर एक जोरदार धमाका हुआ और एक पुलिसवाले ने हमें जगाने के लिए खिड़की से टॉर्च का इस्तेमाल किया. पुलिस वाला मेरे भाइयों को दूसरे कमरे से ले गया जहां वह सो रहे थे. इसके बाद पुलिस उन्हें और एक अन्य पड़ोसी को पास के चंडीडीह गांव में ले गयी, जहां उन्होंने क्षेत्रीय पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा के ग्राम प्रतिनिधि सगु मुंडा को हिरासत में लिया,”

बहादुर मुंडा बताते हैं कि ‘खुंटी पुलिस स्टेशन में दो लोगों ने कीनु को पकड़ा, जबकि एक तीसरे ने उसको पूरी ताकत के साथ पीटा.’ मारने के बाद पुलिस ने उन सभी पर आरोप लगाया कि वे 13 अप्रैल को ढढगामा में एक हत्या में शामिल थे. लेकिन उन्होंने इस आरोप से इनकार किया है.

जेएमएम के सागु मुंडा, जो मध्य-आयु वर्ग के आदमी हैं, बताते हैं कि “स्टेशन हाउस अधिकारी ने उनसे पूछा कि क्या उन्होंने कोई राजनीतिक बैठकें की हैं. पुलिस अधिकारी ने कहा कि उन्हें जानकारी मिली है कि मैं उनके गांव के निवासियों को मतदान नहीं करने के लिए और लोकसभा चुनावों का बहिष्कार करने के लिए कह रहा था. मैंने इससे इनकार किया.” थाने में 22 घंटे तक बंधक रखने के बाद उन्हें घर जाने की अनुमति दी गयी.

सागु  मुंडा (बायें) और बहादुर मुंडा  (दायें) 

झारखंड की राजधानी रांची से 50 किलोमीटर दूर खुंटी में पत्थलगड़ी आंदोलन के स्थल पर ढढगामा और चंडीडीह गांव स्थित हैं. खुंटी बिरसा मुंडा की जन्मभूमि है, जिन्होंने 19वीं सदी में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों के ख़िलाफ़ छापामार प्रतिरोध का नेतृत्व किया था. यह जयपाल सिंह मुंडा का घर भी है, जो 1946 में संविधान सभा में चुने जाने के बाद आदिवासियों का प्रतिनिधित्व करते थे.

भारतीय जनता पार्टी के 2016 में सत्ता में आने के दो साल के अंदर इन्होंने भूमि किरायेदारी कानूनों में संशोधन करने की कोशिश की जो आदिवासियों को ज़मीन और वन संपदा पर विशेषाधिकार देते थे. इन्होंने कॉरपोरेट और इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी परियोजनाओं के लिए भूमि कार्यकाल कानूनों को बदलकर लगभग 25 लाख हेक्टेयर ऐसी ज़मीन चिन्हित की, जिसमें चरागाह, तालाब, चराई भूमि आदि शामिल हैं. इन नीतियों के ख़िलाफ़ आदिवासी किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. साथ ही खुंटी में एक महत्वपूर्ण सवाल ये भी है कि अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए निर्वाचन क्षेत्र को आरक्षित किया जाये.

ऐतिहासिक संरक्षण जरूरी

संविधान की पांचवीं और छठीं अनुसूचियों के तहत जनजातीय क्षेत्रों के लिए विशेष सुरक्षा प्रदान की गयी है, जिससे आदिवासी समुदायों को ऐतिहासिक भेदभाव का सामना नहीं करना पड़े. खुंटी जैसे पांचवी अनुसूची वाले क्षेत्रों में गैर-आदिवासियों को आदिवासी भूमि और संपत्ति की बिक्री और हस्तांतरण पर पूर्णत: प्रतिबंध है.

1908 में, झारखंड का छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट (सीएनटी), जिसे बिरसा मुंडा के विद्रोह के दबाव में अंग्रेजों द्वारा पारित किया गया था, छोटे कृषकों की भूमि के लिए और अधिक सुरक्षा प्रदान करता हैं. खुटकट्टी में किसी बाहरी को ज़मीन खरीदने का अधिकार नहीं है.

रघुबर दास सरकार ने पहली बार 2016 में सीएनटी अधिनियम में संशोधन करने की कोशिश की, जिसके बाद राज्यपाल ने प्रस्तावित संशोधनों को वापस कर दिया, जिसमें आदिवासी किसानों द्वारा कई आंदोलनों के बाद अगस्त 2017 में गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए खेत का उपयोग करने की अनुमति दी गयी, जिसमें एक बुजुर्ग किसान अब्राम मुंडू भी शामिल था. मुंडू को खूंटी में पुलिस ने गोली मारी थी.

किसानों के विरोध के बावजूद, सरकार ने टेनेंसी एक्ट को बाइपास करने के तरीके खोजे. साल 2017 में, एक संशोधन के माध्यम से सरकार ने कई परियोजनाएं बनायी, जिन पर भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम- 2013 के सामाजिक प्रभाव मूल्याकंन की आवश्यकता, भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम में निष्पक्षता और पारदर्शिता का अधिकार लागू नहीं होता.

गांव में महत्वपूर्ण स्थानों पर मील के पत्थर को चिह्रित करने, पत्थल या पत्थर को उकेरने की मुंडा परंपरा की तर्ज़ पर, 2017-18 में हजारों उत्तेजित आदिवासी किसानों ने पत्थलगड़ी समारोहों में भाग लिया. गांव के प्रवेश द्वार पर आदिवासियों ने पत्थल या स्मृति चिन्ह स्थापित किये, जिन पर उन्होंने आदिवासियों के लिए संविधान की पांचवी अनुसूची के विशेष प्रावधानों को उकेरा गया था. किसानों ने ग्राम सभा को संप्रभु प्राधिकरण के रूप में घोषित किया और कहा कि प्रशासनिक या पुलिस की गतिविधियों को ग्राम सभाओं में परामर्श के बिना नहीं किया जा सकेगा.

राज्य की हिंसा

झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास ने दावा किया कि किसानों को माओवादियों और अपराधियों द्वारा अफीम की खेती करने के लिए उकसाया गया है और उन्होंने पत्थलगड़ी आंदोलन को कुचलने की बात भी की.

पिछले साल फरवरी और जुलाई के बीच, पुलिस ने 18 ग्राम सभाओं के प्रमुखों के ऊपर आपराधिक शिकायतें दर्ज़ कीं, साथ-ही-साथ 3,300 से अधिक अज्ञात आदिवासी किसानों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 124(ए) के तहत राजद्रोह का केस दर्ज़ किया. यह कानून अंग्रेजों के दौर से चला आ रहा है, जिसके तहत 3 साल तक की जेल का प्रावधान है. मार्च 2018 में दर्ज़ एफआईआर का रिकॉर्ड बताता है कि किसानों पर संविधान की गलत व्याख्या करने और गांवों से पुलिस और अर्धसैनिक शिविरों को हटाने की मांग के लिए राजद्रोह और दंगा करने का आरोप लगाया गया था.

ढढगामा और चंडीडीह से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित घाघरा गांव पत्थलगड़ी समारोह का आख़िरी स्थल है. आदिवासी क्षेत्रों पर संवैधानिक प्रावधानों और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों की मुनादी करता, हरे रंग का एक विशालकाय नक्काशीदार पत्थर गांव की ओर जाने वाले एक धूसर रास्ते के पास गड़ा हुआ है. पिछले साल जून महीने में समारोह के दिन आदिवासी ग्रामीणों को पुलिस ने हिरासत में लेने की कोशिश की थी, जिसके बाद पुलिस और गांव के निवासियों के बीच झड़प हो गयी थी, जिसमें एक किसान की मौत हो गयी.

नाराज़ किसानों ने खुंटी से आठ बार के सांसद रहे भाजपा के करिया मुंडा के घर चंडीडीह तक पांच किलोमीटर की पैदल यात्रा की थी, लेकिन जब वे वहां नहीं मिले तो उन्होंने करिया मुंडा के आवास से तीन सुरक्षा गार्ड और एक पुसिलकर्मी को अगवा कर लिया. उन्होंने सुरक्षाकर्मियों को एक सामुदायिक भवन में रात भर रखा और अगले दिन उन्हें रिहा किया.

इस घटना के बाद सरकार ने अन्य गांवों, घाघरा, उदुबुरु और केवड़ा पर हिंसक छापों के जरिये जवाब दिया, जिसके कारण सैकड़ों किसान अपने घरों से भाग गये और हफ्तों तक जंगल में छिपे रहे.

उस घटना के नौ महीने बाद जब देश और खुंटी जिला चुनाव के दौर में है, तब घाघरा के निवासियों में गुस्सा और गहरी बेचैनी दिख रही है. ढढगामा और चंडीडीह के युवकों के हिरासत में लिए जाने से उनके अंदर डर और चिंता पहले से काफ़ी ज़्यादा बढ़ गयी है.

“सुरक्षाकर्मियों ने हमारे घर के दरवाजे और जानवरों के बाड़े को तोड़ दिया. जब सुरक्षा बलों के लोगों को हम लोग नहीं मिले, तो उन्होंने हमारे मवेशियों की पिटाई की. हमारे मकान तोड़ दिये,” जूलियन (बदला हुआ नाम) बताती हैं. वे कहती हैं, “हम अपने घर से भाग गये और कुछ दिनों के लिए जगंलो में जा कर छिप गये, जिस कारण समय पर धान की रोपायी भी नहीं कर सके.” वह बताती हैं कि छापे के बाद परिवार ने जो अधूरी मरम्मत की थी, उसे भी पूरा नहीं कर पाये और एल्यूमीनियम के बर्तनों को भी क्षति पहुंचायी गयी है.

पुलिस ने पिछले सप्ताह फिर से दो लोगों को गिरफ़्तार किया है. लक्ष्मण मुंडा का कहना है कि ढढगामा और चंडीडीह के कीनु मुंडा और उनके भाई सागु मुंडा की पिटाई के बाद भी दमन जारी है.

कुछ किसान नाराज़ थे कि उनके प्रतिनिधि उनकी आवाज़ को उठाने में असमर्थ सिद्ध हुए हैं. “सुरक्षाकर्मियों ने हमारे यहां दिन, शाम और रात को छापे मारे. क्या करिया को ये बात पता नहीं थी?,” इग्नेसियस मुंडा हमसे बताते हैं. वे अपने सांसद से नाराज़ हैं, जो उनके घर से महज़ पांच किलोमीटर की दूरी पर रहते हैं. मुंडा कहते हैं, “वह जानते (सांसद) थे कि पुलिस हमारे ऊपर अत्याचार कर रही है और हमारे घरों पर छापा मार रही है, लेकिन उन्होंने कुछ नही कहा, बस चुप रहे.”

देशद्रोह का आरोप

इस चुनाव में, भाजपा ने करिया मुंडा की जगह अर्जुन मुंडा को दे दी है. अर्जुन मुंडा तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं.

वहीं झामुमो, कांग्रेस, झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) और राष्ट्रीय जनता दल के महागठबंधन ने कांग्रेस के पूर्व विधायक कालीचरण मुंडा को मैदान में उतारा है. उनके भाई नीलकंठ मुंडा वर्तमान में राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री हैं और खुंटी से बीजेपी के विधायक हैं.

पिछले महीने, अप्रैल में, प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस को अपने चुनावी घोषणापत्र में राजद्रोह कानून को रद्द करने के वादे के लिए हमला किया था. मोदी ने कहा था कि यह “टुकड़े-टुकड़े” गिरोह को बढ़ावा देगा.

घाघरा में, कुछ सबसे गरीब आदिवासी परिवारों के लोगों पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया है, जिनमें ग्राम प्रधान करम सिंह मुंडा, किसान बिरसा मुंडा और बिक्रम मुंडा शामिल हैं. घाघरा के आदिवासी परिवारों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक वकील धनिक गुरिया कहते हैं, “वर्तमान में, 22 लोग खूंटी जेल में हैं, जिनमें घाघरा गांव के सबसे ज्यादा शिक्षित व्यक्ति करम सिंह मुंडा भी हैं, जो पिछले साल से जेल में हैं.”

गुरिया कहते हैं, “आदिवासी स्वायत्तता के संविधान में दिये गये प्रावधानों से खुदे पत्थर देशद्रोह कैसे है?” उन्होंने कहा, “ये लोग एक अलग राज्य बनाने की कोशिश नहीं कर रहे थे, वे कानून लागू कराने की मांग कर रहे थे.”

किसान अमित अग्रवाल, जो देशद्रोह के आरोपी किसान, पावेल टुटू का प्रतिनिधित्व करते हैं, कहते हैं कि राज्य के कानून विभाग ने एक अप्रैल को खुंटी के 20 आदिवासी किसानों पर राजद्रोह के आरोप को मंजूरी दी थी. “किसानों पर संविधान की गलत व्याख्या करने और विकास कार्यों में बाधा पहुंचाने के कारण देशद्रोह का एफआईआर किया गया. मान लीजिये कि पत्थर गाड़ना अपराध होता तो भी, ये सामान्य एफआईआर थे, जिनमें कहीं पत्थर गाड़ने वाले का नाम नहीं बताया गया और न ही किसी गवाह का.”

राजनीतिक प्रभाव

करिया मुंडा के नाम 1989 से खूंटी में हुए आठ संसदीय चुनावों में से सात चुनाव जीतने का उल्लेखनीय रिकॉर्ड है. अपवाद 2004 का है जब वह कांग्रेस की सुशीला केरकेट्टा से हार गये थे. केरकेट्टा का 2009 में निधन हो गया. फिर 2014 में करिया मुंडा 36.53 प्रतिशत मतों के साथ जीते. 2014 के चुनाव में भी 66 फीसदी मतदान हुआ था. यह 1999 के बाद से सबसे ज़्यादा था.

लेकिन क्या पत्थलगड़ी आंदोलन से इस बार भाजपा के वोट शेयर पर असर पड़ेगा?

भाजपा के उम्मीदवार और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा का कहना है कि “ये सब चीज़ें पार्टी की जीत की संभावनाओं को प्रभावित नहीं करेंगी. हम उन लोगों की पहचान करेंगे, जिन्होंने निर्दोष आदिवासी किसानों को ऐसा करने के लिए उकसाया. हम देशद्रोह के प्रत्येक मामले की बारीकी से जांच करेंगे और खूंटी के स्थानीय निवासियों पर किसी प्रकार का केस नहीं चलाया जायेगा.”

झारखंड कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ अजय कुमार कहते हैं कि झारखंड में भाजपा के ख़िलाफ़ आदिवासी और मूल निवासियों के बीच काफ़ी ज़्यादा रोष है. ये चुनावों को प्रभावित करेगा. एक पूर्व पुलिस अधिकारी कुमार कहते हैं कि कांग्रेस ने पत्थलगड़ी गांवों में सरकार की कार्रवाई को ज़ोरदार विरोध किया था. पत्थलगड़ी आंदोलन के दौरान सरकार की कार्रवाई ने गरीब परिवारों के आदिवासी युवाओं को बुरी तरह से प्रभावित किया है. सरकार ने पत्थलगड़ी पर फेसबुक पोस्ट लिखने के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ भी के मामले दर्ज़ किये हैं.

27 अप्रैल को कीनु मुंडा और अन्य लोगों की हिरासत और पुलिस की पिटाई पर सवालों का जवाब देते हुए ग्रामीण विकास मंत्री और खुंटी से भाजपा के विधायक नीलकंठ मुंडा कहते हैं, “पुलिस प्रशासन अपना काम कर रहा है. मुझे एक उदाहरण दिखायें, जहां भाजपा ने किसी भी किसान की ज़मीन को गलत तरीके से लिया हैं.” तोरपा में ज़रूर इसका ज़िक्र है, जहां आदिवासी किसानों के परियोजना के लिए 14 एकड़ चारागाह देने से इनकार करने के बाद भी भाजपा सरकार ने एक बिजली सब स्टेशन का निर्माण किया है. ग्रामसभा प्रस्ताव में 130 में से 84 घरों ने परियोजना के लिए ज़मीन देने से इनकार किया था. मुंडा कहते हैं कि “क्या वे बिजली और सड़कें चाहते हैं या नहीं?” मुंडा के अनुसार खुंटी में भाजपा जीतेगी.

खूंटी के पुलिस अधीक्षक आलोक कहते हैं, “पुलिस ने सुनिश्चित किया है कि आदिवासियों में भरोसा बहाली के जरिये चुनाव बहिष्कार को रोका जाये.” वे 27 अप्रैल की रात पांच आदिवासी पुरुषों के हिरासत में लिए जाने के बारे में पूछे जाने पर प्रतिक्रिया देने से मना कर देते हैं और फोन काट देते हैं.”

सरना संग्राम समिति की संयोजक दुर्गावती ओडिया कहती हैं, “हमने पूरा ज़ोर लगाया है और हर दिन समझदार हो रहे हैं.” ओडिया ने पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ मिलकर काम किया है और साल 2015 तक बीजेपी के लिए प्रचार भी करती रही हैं, जिसमें करिया और नीलकंठ के लिए प्रचार भी शामिल था. खुंटी और रांची में पुलिस ने 2016 के बाद से ओडिया को तीन आपराधिक मामलों में नामज़द किया है, जबसे उन्होंने टेनेंसी कानून को लेकर सरकार के विरोध में किसानों को संगठित करने का काम किया है. 23 अक्टूबर, 2016 को रांची के मोहराबादी में एक विरोध प्रदर्शन की योजना बनायी गयी थी, लेकिन पुलिस ने किसानों को खुंटी से रांची तक की 40 किमी की यात्रा करने से रोक दिया था.

हिरासत में लिए गये किसानों ने जब साइको गांव में पुलिस को घेर लिया तो पुलिस ने भीड़ के ऊपर 11 रांउड फायरिंग की, जिसमें एक किसान अब्राम मुंडा की मौत हो गयी और तीन अन्य घायल हो गये.

(पुलिस की गोली से मारे गये किसान अब्राम मुंडू)

पुलिस द्वारा तोरपा और खुंटी में दर्ज़ की गयी शिकायत में ओडिया सहित 19 लोगों को नामज़द किया है, साथ ही 7,000 से 8,000 अज्ञात ग्रामीणों के ऊपर मामला दर्ज़ किया गया है. इसमें से एक आरोप लोकसेवक को अगवा करने और हमला करने का है. ओडिया कहती हैं, “अगर हम सवाल करते हैं कि हमारे खेत क्यों नष्ट किये जा रहे हैं तो सरकार गोलियों और देशद्रोह के मामलों से जवाब देती है.”

वह आगे बताती हैं कि पिछले तीन साल के लगातार दमन के बाद अब जब चुनाव हो रहे हैं तो प्रशासन की जबर्दस्ती हमारे साथ फिर से बढ़ गयी है.

ओडिया कहती हैं कि “अर्जुन मुंडा एक अनुभवी व अच्छे उम्मीदवार हैं. किसी भी अलग स्थिति में हम उन्हें स्वीकार कर लेते.” लेकिन ओडिया चुनाव के बाद एक बार फिर मोदी के प्रधानमंत्री बनने की बात सोचकर चिंतित होती हैं. ओडिया चिंता के सुर में कहती हैं, “हमको डर है कि अगर हम यहां अर्जुन मुंडा को वोट देते हैं, तो ऊपर में नरेंद्र मोदी फिर चमकेगा.”