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क्षेत्रवाद की राजनीति के सवाल पर क्यों तिलमिलाए मनीष सिसोदिया?
दिल्ली का लोकसभा चुनाव छठवें चरण में 12 मई को होना है. चुनाव के इसी मौसम में हमारी मुलाकात दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से हुई. देखा जाये तो दिल्ली के इस लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का बहुत कुछ दांव पर लगा है. पार्टी सिर्फ दिल्ली, हरियाणा और पंजाब की कुछ सीटों पर चुनाव लड़ रही है. ऐसे में चुनाव के नतीजे उसकी भविष्य की योजनाओं पर दूरगामी असर पैदा करने वाले होंगे.
आम आदमी पार्टी का मुख्य चुनावी अभियान इस बार दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलवाना है. दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा एक ऐसी गेंद है जिसे समय-समय पर अलग-अलग पार्टियां अपनी सुविधा के हिसाब से उछालती और लपकती रही हैं. दिल्ली देश की राजधानी है लिहाज़ा इसके पूर्ण राज्य की राह में कई तरह की जटिलताएं हैं. आप की मौजूदा स्थिति को देखते हुए दिल्ली को पूर्ण राज्य की मांग निकट भविष्य में भी पूरी होने की संभावना नगण्य है. 30 के आस-पास लोकसभा सीटों पर लड़ रही आप का मुख्य चुनाव अभियान एक काल्पनिक परिस्थिति पर निर्भर है. पार्टी का मानना है कि आगामी सरकार गैर भाजपा गठबंधन की सरकार होगी. और उसके पास अगर दिल्ली की सात सीटें होती हैं, तो वह पूर्ण राज्य के बदले में अगली बनने वाली सरकार को समर्थन देगी. देखना होगा कि यह काल्पनिक स्थिति चुनाव बाद कितना साकार रूप लेती है.
पार्टी के भविष्य के सवाल को इस लिहाज़ से भी देखा जा सकता है कि नामांकन की तारीख से एक दिन पहले तक वह कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन की प्रक्रिया में थी. इससे एक सहज अटकल को बल मिलता है कि जिस पार्टी को दिल्ली की जनता ने विधानसभा में 67 सीटें दी, उस आम आदमी पार्टी में आज दिल्ली में अकेले चुनाव लड़ पाने का आत्मविश्वास क्यों नहीं है.
पार्टी के घोषणापत्र में कहा गया है कि आगामी सरकार बनने के बाद वह दिल्ली विश्वविद्यालय और तमाम दूसरे शिक्षण संस्थानों में 85 फीसदी सीटें दिल्ली के लोगों के लिए आरक्षित करेगी. एक पार्टी जो राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा भरोसा, बड़े आंदोलन से शुरू हुई थी वह चुनाव से ठीक पहले किसी क्षेत्रीय दल की भाषा में बात कर रही है, क्षेत्रीय अस्मिता को उभारने की कोशिश कर रही है.
मनीष सिसोदिया ने इन तमाम सवालों पर विस्तार से अपना और पार्टी का पक्ष रखा. वीडियो देखें.
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