Newslaundry Hindi
रमेश बिधूड़ी का आदर्श गांव जहां लड़कियां पढ़ने नहीं जाती, पानी भरने जाती हैं
दक्षिण दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में स्थित भाटी कलां गांव दक्षिण दिल्ली की आलीशान कॉलोनियों के एक सिरे पर बसा एक विरोधाभास है. यहां पहुंचने के लिए कोई भी सार्वजनिक परिवहन की सुविधा मौजूद नहीं है. यहां पीने के पानी के लिए जद्दोजहद ऐसी है, जैसी किसी रेगिस्तानी इलाके में हो सकती है. दोपहर के तीन बजे चिलचिलाती धूप में जब हम इस गांव में पहुंचे तो बड़े-बड़े घरों के बाहर महिलाएं सर पर पानी की बाल्टी लिए नज़र आयीं. कोई पानी भरने जा रही थी, तो कोई पानी भरकर आ रही थी.
वहीं पर हमारी मुलाक़ात एक बुजुर्ग महिला से होती है. महिला से हम बातचीत करने की कोशिश करते हैं, तो वो नाराज़ हो जाती हैं और कहती हैं, “न्यूज़ में दिखा देंगे बाकी कुछ नहीं होने वाला है. देख पानी तो है ना ये गांव में. सब नेता बन-बन बैठ जावें. पूरे दिन बालकन ने पानी भरे, उन्हें स्कूल कब भेजे. स्कूल दूर है. लड़कियों ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाती. सुबह से शाम तक यहां वीरवानियों (महिलाओं) का यहीं काम है.”
हैरान करने वाली बात ये है कि यह गांव सामान्य गांव नहीं है. यह दक्षिणी दिल्ली से भारतीय जनता पार्टी के सांसद रमेश बिधूड़ी का गोद लिया हुआ आदर्श गांव है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर रमेश बिधूड़ी ने दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर स्थित इस गांव को 2014 में गोद लिया था. तब सांसद ने ग्रामीणों से कई वायदे किये थे. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार साल 2014 में ही गांव को मॉडल गांव के रूप में विकसित करने के लिए दिल्ली के तत्कालीन चीफ सेक्रेटरी डीएम सपोलिया ने एक स्टडी करायी थी. गांव में सभी सुविधाएं देने के लिए योजना भी तैयार की गयी थी. लेकिन आज लगभग पांच साल बाद भी ये गांव मूलभूत सुविधाओं से दूर है.
भाटी कलां के निवासी हेमचंद्र बताते हैं, “रमेश बिधूड़ी के गोद लेने के बाद गांव में कुछ भी बदलाव नहीं आया. न यहां पानी की सुविधा है, न स्कूल की सुविधा है. जब गांव को गोद लिया तो हमने सोचा कि गांव में स्कूल हो जाएगा तो बच्चे पढ़ने बाहर नहीं जाएंगे. गांव में इंसानों का और जानवरों का भी अस्पताल होगा, लेकिन धीरे-धीरे सारी उम्मीदें टूट गई. बिधूड़ी ने इस गांव को गोद लेकर सिर्फ दो काम कराए हैं. एक एटीएम लगा है और दूसरा दो छोटी-छोटी सड़कें बनी है. इसके अलावा गांव में कोई काम नहीं हुआ है.”
भाटी कलां गांव गुर्जर बाहुल्य गांव है. यहां लगभग दो हज़ार वोटर हैं. गांव में बड़े और पक्के मकान हैं. इसको लेकर गांव के रहने वाले सतीश तंवर बताते हैं, “बड़े घर देखकर आपको लग रहा होगा कि यहां सब पैसे वाले लोग हैं. लेकिन ऐसा नहीं है. गांव के ज़्यादातर लोगों ने अपनी ज़मीन बेच दी है. जमीन बेचने के बाद लोगों ने घर बना लिए. आज इस गांव के ज़्यादातर युवा गुरुग्राम, दिल्ली और फरीदाबाद में गाड़ी चलाने का काम करते हैं. गांव में बहुत कम सरकारी नौकरी करने वाले युवा हैं. जो बेरोज़गार हैं, वो पशुपालन करते हैं. हर घर में चार से पांच भैंस हैं. इन भैंसों को पिलाने के लिए हमारे यहां पानी तक नहीं है. जब हमारे ही लिए पानी नहीं है, तो हम जानवरों को कैसे पानी पिलायेंगे.”
दिनभर पानी भरना ही महिलाओं का नसीब है
दोपहर चार बजे के क़रीब गांव में महिलाएं और लड़कियां हाथ में और सिर पर बाल्टी लिए नज़र आती हैं. गांव के बुजुर्ग कहते हैं, “यहां इनका दिनभर का यही काम है. सुबह हमलोग काम पर जाते हैं. पशुओं के लिए चारे के इंतजाम में लगते हैं और महिलाएं पानी भरने में लग जाती हैं.”
गांव के एक छोर पर लगे पानी के एक पंप के पास दसेक के क़रीब महिलाएं और लड़कियां खड़ी थीं. यहां पर खड़ी सातवीं की एक छात्रा बताती हैं कि सुबह से वो दस बाल्टी पानी ढो चुकी है. रात तक पांच से छह बाल्टी पानी और उसे ढोना होगा. लड़की के मुताबिक़ यही उसकी दिनचर्या है.
यहां पानी भरने आयी 10वीं तक पढ़ाई करने वाली रूचि पहले बात करने से कतराती है. फिर चेहरे को दुपट्टे से ढकते हुए कहती है, “10वीं तक पढ़ाई के बाद पढ़ाई रोक दी घर वालों ने. यहां आसपास में कोई स्कूल ही नहीं है. गांव में पांचवी तक ही स्कूल है. आगे की पढ़ाई के लिए बाहर जाना पड़ता है. बाहर जाने के लिए कोई सुविधा नहीं है. गांव की ज़्यादातर लड़कियों की पढ़ाई घर वाले पांचवी के बाद ही रोक देते हैं. बाकी कुछ परिवार वाले डेरा तक पढ़ने के लिए तो भेज देते हैं, लेकिन उसके आगे नहीं जाने देते. गांव से आने-जाने के लिए कोई सवारी नहीं है. पढ़ाई छोड़ हम दिनभर पानी भरते रहते हैं. हम लोग सुबह छह बजे से 12 बजे तक लगातार पानी भरके ले जाते हैं. उसके बाद खाने-पीने के बाद आराम करके तीन बजे से फिर पानी भरना शुरू कर देते हैं.”
गांव के ही रहने वाले राम बताते हैं कि “पहले पानी मिलता था, लेकिन जबसे आम आदमी पार्टी से करतार सिंह विधायक बने तो सोनिया विहार से आने वाला पानी रुकवा दिया. उन्हें लगता है कि हमने उन्हें वोट नहीं दिया है. सोनिया विहार का पानी बंद करके यह पंप लगा दिया. पंप में पानी रो-रोकर आता है.”
इस आरोप पर आम आदमी पार्टी के विधायक करतार सिंह तंवर कहते हैं, “गांव के जिस भी व्यक्ति ने आपसे ऐसा बोला है वो बीजेपी का होगा. भाटी कलां से मैं हमेशा जीतता रहा हूं. जहां तक पानी की बात है, तो भाटी गांव दो हिस्से में बंटा हुआ है. छोटे भाटी में तो सोनिया विहार का पानी पहुंच रहा है, लेकिन दूसरे वाले हिस्से में नहीं पहुंच पा रहा क्योंकि वो ऊंचाई पर है. पानी की समस्या न हो इसके लिए हमने वहां पंप लगवाया है. आने वाले समय में पानी की समस्या को लेकर और इंतज़ाम करेंगे.” रमेश बिधूड़ी के गोद लेने के बाद गांव में क्या बदलाव आया, इस सवाल पर करतार सिंह तंवर कहते हैं कि “उन्होंने गांव के लिए कुछ भी नहीं किया है. गांव गोद लेकर बस लोगों को सपने दिखाये गये.”
हमें बेघर कर दिया लेकिन कोई काम नहीं हुआ
गांव में अस्पताल भी बनना था. इसके लिए यहां ग्रामसभा की ज़मीन पर सालों से रह रहे लोगों के घरों को फरवरी 2017 में तोड़ दिया गया, लेकिन वहां कोई भी कोई काम नहीं हुआ. अपने टूटे घर को दिखाते हुए रणवीर कहते हैं, “हमारे घरों को आनन-फानन में तोड़ दिया गया. कहा गया कि इस पर कॉलेज का निर्माण होगा, अस्पताल बनेगा लेकिन आप देख लो कुछ भी नहीं हुआ है. इलाज के लिए हमें चार-पांच किलोमीटर दूर फतेहाबाद जाना होता है. फतेहाबाद में भी एमसीडी का छोटा-सा अस्पताल है. कोई बड़ी बीमारी हो जाये तो एम्स, नहीं तो सफदरगंज अस्पताल जाना पड़ता है. वहां कितनी भीड़ है, आपको भी पता है.”
रणवीर एक खुले ग्राउंड की तरफ इशारा करते हुए बताते हैं कि “ये पार्क बनाया गया है. ये आपको पार्क लग रहा है?” रणवीर के मुताबिक़, “जंगल को साफ़ करके उसे पार्क का नाम दे दिया गया है. उसमें न तो बैठने का इंतज़ाम है, न ही बच्चों के खेलने का. गांव में ज़्यादातर लोग खुले में शौच करने जाते हैं. जिन लोगों के पास थोड़ा पैसा है, उन्होंने अपने घरों में शौचालय बनवा लिया है. लेकिन जिनके पास रहने का ठीक घर नहीं है, वो लोग जंगल में शौच के लिए जाते हैं. गांव में एक भी सरकारी शौचालय नहीं बना है.”
क्या कहते हैं सांसद रमेश बिधूड़ी?
ग्रामीणों की शिकायत और गांव का जायज़ा लेने के बाद हमने दक्षिणी दिल्ली से सांसद रमेश बिधूड़ी से बात की. बिधूड़ी कहते हैं, “गांव गोद लेने का मतलब होता है वहां अवेयरनेस फैलाना. इसके अलावा हमने गांव में स्ट्रीट लाइट लगाया है, सड़कें बनवायी हैं. पीने के पानी की बात तो दिल्ली सरकार से पूछिये. जल बोर्ड के प्रमुख अरविंद केजरीवाल हैं. वो गांव के लोगों को पानी नहीं देना चाहते, तो हम क्या कर सकते हैं. हम स्कूल बनवाना चाहते थे, लेकिन केजरीवाल सरकार ने ग्राम सभा की ज़मीन नहीं दी. अभी चार महीने पहले हमें ज़मीन मिली है. हम जल्द ही वहां स्कूल का निर्माण करायेंगे ताकि हमारी बेटियां पढ़ाई कर सकें. अभी पढ़ाई नहीं करने की वजह है कि चार किलोमीटर दूर डेरा में स्कूल है. आप जानते है कि दिल्ली में क्या माहौल है. अगले छह महीने में दिल्ली को अरविंद केजरीवाल से मुक्ति मिल जायेगी तो हम भाटी गांव और दिल्ली का बिना किसी रोकटोक के विकास कर पायेंगे. अभी हम कुछ भी करना चाहते हैं, तो केजरीवाल उसमें रोड़ा बन जाते हैं.”
‘हमें गांव की नहीं देश की चिंता है’
रमेश बिधूड़ी को एकबार फिर बीजेपी ने दक्षिणी दिल्ली से अपना उम्मीदवार बनाया है. वहीं, आम आदमी पार्टी की तरफ राघव चढ्ढा और कांग्रेस की तरफ से ओलंपिक मेडल विजेता बॉक्सर विजेंदर सिंह मैदान में हैं.
गांव के लोग बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी से खफ़ा हैं, लेकिन उन्हें ही वोट देने की बात करते नज़र आते हैं. गांव के बुजुर्गों का कहना था कि रमेश बिधूड़ी उनकी ही बिरादरी (गुर्जर) से हैं. पास के गांव में उनकी ससुराल है. ऐसे में गांव के लोग मानते हैं कि वो बिरादरी और रिश्तेदारी का मामला है. कल को हमें कोई ज़रूरत होगी तो बिरादरी और रिश्तेदारी की शर्म करके तो हमारे साथ खड़ा होगा.
वहीं नौजवान राष्ट्रवाद और नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए रमेश बिधूड़ी को एमपी बनाने की बात करते हैं. गांव के युवा मोहित तंवर कहते हैं, “रमेश बिधूड़ी ने गांव में कोई काम नहीं कराया, लेकिन हमें सांसद से मतलब नहीं है. वोट मोदी को ही देंगे. गांव के चक्कर में देश का नाश नहीं होने देंगे. बीजेपी से कुत्ता भी खड़ा हो जाये. कुत्ते को वोट देंगे ताकि मोदी पीएम बन सकें.”
दिल्ली में छठें चरण में 12 मई को मतदान होना है.
Also Read
-
NL Hafta: Decoding Bihar’s mandate
-
On Bihar results day, the constant is Nitish: Why the maximiser shapes every verdict
-
Missed red flags, approvals: In Maharashtra’s Rs 1,800 crore land scam, a tale of power and impunity
-
6 great ideas to make Indian media more inclusive: The Media Rumble’s closing panel
-
Friends on a bike, pharmacist who left early: Those who never came home after Red Fort blast