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आगरा: पानी में फ्लोराइड और फिज़ाओं में देशभक्ति
लोकसभा चुनाव का महासमर दूसरे पड़ाव पर पहुंच चुका है. जिन 97 सीटों पर दूसरे चरण में मतदान होना है, उनमें विश्वप्रसिद्ध ताजनगरी आगरा की सीट भी शामिल है. यहीं हमारी मुलाक़ात भाजपा कार्यकर्ताओं के एक झुंड से होती है, जिसके अगुवा लोगों से कह रहे थे, “क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने उरी आतंकी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक किया और पुलवामा आतंकी हमले के बाद एयर-स्ट्राइक से पाकिस्तान को सबक सिखाया.”
आगरा के राजा की मंडी रेलवे स्टेशन के बाहर मौजूद ये बीजेपी कार्यकर्ता लोगों के बीच प्रधानमंत्री के कामों को गिना रहे थे. उनके हाथों में एक पर्चा था जिसपर लिखा था- ‘क्यों चाहिए मोदी सरकार’. इस पर्चे में नरेंद्र मोदी के 25 कामों का ज़िक्र है, जिसमें पहला प्वॉइंट सर्जिकल स्ट्राइक और एयर-स्ट्राइक ही है. इसके अलावा, विदेशों में भारत का मान बढ़ाने का ज़िक्र, सामान्य वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण देने और कुंभ के दौरान सफाईकर्मियों के पैर धोने जैसी उपलब्धियों का ज़िक्र था.
बीजेपी कार्यकर्ताओं को सुन रहे कुछ लोग उनकी बातों से सहमत होते हैं और मानते हैं कि नरेंद्र मोदी को दोबारा पीएम बनाना चाहिए. वहीं कुछ लोग दबी ज़बान से कहते हैं कि ये जो काम गिनाये जा रहे हैं, उससे हमें क्या मिला? स्टेशन के बाहर ही नारियल का ठेला लगाने वाले दिनेश कुमार बताते हैं, “साल 2008 से 2014 तक हर चुनाव में मैंने बीजेपी को ही वोट दिया, लेकिन इस बार मैं गठबंधन को वोट दूंगा. प्रधानमंत्री खुद को चाय बेचने वाला कहते हैं, लेकिन आगरा में रेहड़ी पट्टी वालों को पुलिस ने मारकर सड़क से हटा दिया. जिस जगह पर मैं दुकान लगा रहा हूं वो किसी और की जमीन है. जब हम अपनी शिकायत लेकर सांसद राम शंकर कठेरिया के पास गये, तो उन्होंने हमारी बात ही नहीं सुनी.”
पास में हस्तरेखा देखकर भविष्य बांचने वाले अखिलेश तिवारी प्रधानमंत्री मोदी के मुरीद नज़र आते हैं. वे कहते हैं, “ये मत सोचिये कि मैं पंडित होने के कारण यह कह रहा हूं. मुझे लगता है कि एयर-स्ट्राइक के बाद मोदीजी की लोकप्रियता बहुत बढ़ गयी है. लेकिन मैं तो एयर-स्ट्राइक से पहले से ही मोदीजी के भाषण का मुरीद हूं. इतना बेहतरीन बोलने वाला कोई नेता नहीं हुआ. आगरा में उन्होंने क्या किया ये हमें पता नहीं, लेकिन देश का मान मोदी ने विदेशों में बहुत बढ़ाया है. उतना शायद किसी दूसरे पीएम ने कभी नहीं बढ़ाया. भारत आज विश्वशक्ति बनने की राह पर है. यह सब मोदीजी की वजह से ही मुमकिन हुआ है.”
स्टेशन रोड पर ही मिठाई की दूकान चला रहे मुकुल गोयल कहते हैं, “मोदीजी ने कुछ सही तो कुछ ग़लत फैसले लिए. नोटबंदी और बिना तैयारी के लगायी गयी जीएसटी ने हम व्यापारियों की कमर तोड़ दी. हमें भी नुकसान हुआ.”
अचानक से मुकुल गोयल रिपोर्टर का नाम पूछते हैं और नाम जानने के बाद निश्चिंत होकर कहते हैं, “मोदीजी ने मुसलमानों के ख़िलाफ़ ट्रिपल तलाक जैसे फैसले लिए, पाकिस्तान पर खुलकर कार्रवाई की. पहले भारत पर हमले होते थे, तो भारत चुप रहता था. लेकिन भारत अब चुप नहीं रहता. बदला लेता है. पहले विदेशों में लिखा होता था ‘डॉग एंड इंडियन्स आर नॉट अलाउड’, लेकिन अब विदेशी हमारा स्वागत करते हैं.”
जब रिपोर्टर ने पूछा कि ये सब आपको कैसे पता चला, तो वे कहते हैं कि “टीवी पर हम यह सब देखते हैं. प्रधानमंत्री के स्वागत के लिए विश्व के बड़े-बड़े नेता आगे आते हैं. बीजेपी आगरा से एक्स-वाई-जेड किसी को भी खड़ा कर दे, तो भी हम वोट बीजेपी को ही देंगे. हमें सांसद की नहीं, पीएम की चिंता है.”
हमारी कोई सुनता क्यों नहीं?
आगरा में पीने का पानी एक बड़ी समस्या है. खारे पानी और पानी में बढ़ते फ्लोराइड की वजह से लोग बीमार पड़ते हैं, लेकिन उन्हें कोई सुनने वाला नहीं है. आगरा दुनिया भर में मशहूर है. देश-विदेश से लोग यहां ताजमहल देखने आते हैं, लेकिन ताजमहल से महज़ दस किलोमीटर दूर एक ऐसी सच्चाई से हमारा सामना होता है, जो आगरा के विश्वप्रसिद्ध होने के दावे को मुंह चिढ़ाता है.
पानी में बढ़ते फ्लोराइड की वजह से आगरा के बरौली अहीर ब्लॉक के पचगांय, पचगांय खेड़ा और पचगांय पट्टी समेत कई गांवों में लोग विकलांग हो गये हैं. 30 से 35 साल की उम्र में लोगों के हाथ-पैर की हड्डियां टेढ़ी हो गयी हैं, दांत टूट गये हैं या कमज़ोर हो गये है. दिव्यांग हो चुके लोग घिसट-घिसटकर जिंदगी काट रहे हैं.
कप्तान नाम के ग्रामीण गुस्से में कहते हैं, “हमारे गांव में न कोई नेता आता है और न कोई सरकारी अधिकारी. गांव में एक अस्पताल है, लेकिन वहां कभी कोई डॉक्टर नहीं आता है. मीडिया वाले साल में एकाध बार आ जाते हैं. फोटो खींचते हैं, वीडियो बनाते हैं और स्थिति बेहतर होगी कहकर चले जाते हैं.”
अपनी दिव्यांग हो चुकी पत्नी की तरफ इशारा करते हुए नाराज़ कप्तान गुस्से में बोलते जाते हैं. कप्तान दोपहर में खेत से लौटे हैं. वो कहते हैं, “ये मेरी पत्नी पूजा है. शादी के वक़्त बिलकुल आपकी और मेरी तरह चलती थी. शादी के बाद यहां आयी. यहां के ख़राब पानी ने इसे लंगड़ा बना दिया. अब ये उठ भी नहीं पाती है. घिसटकर चलती है. हमारा कोई बच्चा भी नहीं है.”
अपने छोटे-से घर के बाहर कप्तान नहाने की तैयारी कर रहे हैं. बगल में उनका भतीजा जो महज़ पांच-छह साल का है, खेल रहा है. उसकी तरफ इशारा करते हुए कप्तान कहते हैं, “इसे देखिये, मेरे भाई का लड़का है. जब पैदा हुआ तो एकदम ठीक था, लेकिन अब चल नहीं पाता है. इसके मां-बाप ने इलाज पर बहुत पैसे खर्च किये, लेकिन कुछ भी असर नहीं हुआ. अब तो इलाज भी कराना छोड़ दिया है. जब इलाज का कोई असर नहीं होता, तो पैसे क्यों बर्बाद करे कोई.”
आगरा से महज़ कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित होने के बावजूद यहां आने वाला रास्ता बेहद ख़राब है. पचगांय पट्टी गांव में जाने के लिए पक्की सड़क तक नहीं है. नहर से उतरकर मिट्टी की सड़क से हम इस गांव में पहुंचे थे. गांव के पहले ही स्कूल है. स्कूल के बगल में एक स्वास्थ्य उपकेंद्र है. जिसे देखकर खंडहर ही कहा जा सकता है. ग्रामीण बताते हैं कि यहां डॉक्टर तभी आते हैं, जब शहर से कोई जांच करने वाला आता है.
यहां कब से फ्लोराइड की समस्या है? इस सवाल पर पचगांय पट्टी के बुजुर्ग कालीचरण ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “1960 के आसपास से यहां फ्लोराइड का असर दिखने लगा था. पहले असर बहुत कम होता था. लेकिन धीरे-धीरे यह विकराल रूप लेता गया और आज ये हम लोगों को लंगड़ा और बीमार बना रहा है.”
कालीचरण ठीक से चल नहीं पाते हैं. बैठने के बाद उनसे उठा नहीं जाता है. वे हमें अपना घर व अपनी पत्नी को दिखाने ले जाते हैं. कालीचरण की पत्नी लौंगश्री के दोनों पैर ककड़ी की तरह टेढ़े हो चुके हैं. बुजुर्ग लौंगश्री घिसट-घिसटकर चलती हैं. एक तो बढ़ती उम्र का असर, दूसरा फ्लोराइड की मार ने लौंगश्री की ज़िंदगी को बदहाल कर दिया है. वो अपनी टूटी आवाज़ में कहती हैं, ”पहले तो हम सही थे. पानी से ऐसा हुआ है. पहले दर्द हुवा. दवाई करायी गयी पर कोई फ़र्क़ नहीं हुवा. हम गरीब आदमी इतने पैसे कहां से लावें. हार के दवाई लेना छोड़ दिया. शौच जाने में दिक्क्त होती है.”
40 वर्षीय मारा सिंह अपने टूट चुके दांतों को दिखाते हुए कहते हैं, “हमारी कोई नेता सुनता नहीं है. हम लोग विकलांग हो रहे हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है. यहां ज़्यादातर लोग जूते बनाने का काम करते थे. नोटबंदी के बाद यहां काम बहुत कम हो गया है. बीच में तो काम ही नहीं मिलता था, लेकिन अब काम थोड़ा बहुत आ रहा है. आज लोग देश के नाम पर वोट मांग रहे हैं. जब पेट में खाना नहीं होगा, तब देशभक्ति कैसे करेंगे.”
स्थानीय मुद्दे गायब
आगरा के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और आरटीआई एक्टिविस्ट नरेश पारस कहते हैं, “इस चुनाव में स्थानीय मुद्दों पर कोई भी बात नहीं कर रहा है. यहां कोई मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ रहा है, तो कोई मायावती और अखिलेश यादव के नाम पर. यहां सालों से एयरपोर्ट बनाने की मांग की जा रही है. पिछले चुनाव में इसको लेकर वादा भी किया गया था, लेकिन आज इस पर कोई बात नहीं कर रहा है. सालों से मांग हो रही थी कि यहां इलाहाबाद हाईकोर्ट का बेंच बनाया जाये, लेकिन अब तक नहीं बन पाया है. यहां के लोगों को किसी भी काम के लिए इलाहाबाद जाना पड़ता है. आगरा में सबसे बड़ी समस्या पीने के पानी की है. यहां का पानी काफ़ी प्रदूषित हो गया है. लोग पानी पीकर बीमार हो रहे हैं, लेकिन लोगों को साफ़ पानी उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है. देशभक्ति के नाम पर वोट मांगा जा रहा है. जब इनके लिए कोई काम नहीं होगा, तो फिर देशहित किस काम की होगी.”
आगरा में होटल चलाने वालों की राय है कि एयरपोर्ट आ जाने के बाद यहां के काफ़ी लोगों को फ़ायदा पहुंचेगा. बीजेपी ने वादा किया था कि एयरपोर्ट का निर्माण जल्द होगा, लेकिन आगरा से दूर जेवर में एयरपोर्ट बन रहा है. अभी ताजमहल देखने आने वाले विदेशी पर्यटक दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरते हैं. वहां से बस से आगरा पहुंचते हैं और दिन भर घूमने के बाद शाम में वापस दिल्ली लौट जाते हैं. अगर आगरा में एयरपोर्ट बन जाये तो पर्यटक सीधे यहीं आयेंगे, जिससे आगरा को आर्थिक रूप से काफ़ी फ़ायदा होगा. पिछले हर चुनाव में आगरा में एयरपोर्ट बनाने की चर्चा होती थी, लेकिन इस चुनाव में तो कोई भी दल इस मसले पर बात करने को ही तैयार नहीं है.
राम शंकर कठेरिया के जाने से कोई असर नहीं
साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में आगरा से बीजेपी के राम शंकर कठेरिया चुनाव जीते थे. कठेरिया को 5,83,716 वोट मिले थे. वहीं बीएसपी के नारायण सिंह सुमन को 2,83,453 और समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार महाराज सिंह धनगर को 1,34,708 वोट मिला था. इसबार बीजेपी ने राम शंकर कठेरिया का टिकट काट दिया और यूपी सरकार के मंत्री एसपी सिंह बघेल को मैदान में उतारा है. वहीं यूपी में सपा, बसपा और आरएलडी के गठबंधन से मनोज कुमार सोनी चुनाव लड़ रहे हैं. बीजेपी ने कठेरिया को इटावा से उम्मीदवार बनाया है. कठेरिया के टिकट कटने से बीजेपी के लोगों में खासी ख़ुशी नज़र आती है. बीजेपी के एक बुजुर्ग कार्यकर्ता बताते हैं, “राम शंकर कठेरिया ने बीजेपी से कार्यकर्ताओं को दूर कर दिया. वो किसी की सुनते तक नहीं थे. कार्यकर्ताओं को भगा देते थे. इस वजह से लोग धीरे-धीरे उनसे दूर होते गये. अगर उनका टिकट नहीं कटता, तो बीजेपी को यहां नुकसान हो सकता था. पार्टी ने उनका टिकट आगरा से काटकर बेहतर ही किया.”
बीजेपी ओबीसी मोर्चा के उत्तरी मंडल के अध्यक्ष सुनील राठौर चुनावी मुद्दों के बारे में बात छिड़ने पर कहते हैं, “हमारा सबसे बड़ा मुद्दा देशहित ही है. हमारे पीएम मोदी ने विदेशों में जो देश का नाम रोशन किया है, हम उसी नाम पर लोगों से वोटिंग के लिए कह रहे हैं. लोग हमसे खुश भी हैं. आगरा से बीजेपी जीते, इससे ज़्यादा लोगों में भावना नरेंद्र मोदी को दोबारा पीएम बनाने की है.”
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