Newslaundry Hindi
“मेरे ख़िलाफ़ साज़िश करने वाले नहीं चाहते कि देश में कोई सवाल करे”
लोकसभा चुनाव में बिहार का बेगूसराय संसदीय सीट देश भर में इन दिनों सबसे ज़्यादा चर्चा में है. इस सीट पर राजनीतिक हलकों से लेकर मीडिया के लोग तरह-तरह के कयास बहुत पहले से लगाते आ रहे हैं. कन्हैया कुमार को चुनाव में उतारकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) भी बिहार में ‘क्रांति’ की उम्मीद लगाये बैठी है, क्योंकि कभी ‘लेनिनग्राद’ कहे जाने वाले इस जिले में आज कम्युनिस्ट पार्टी का एक विधायक भी नहीं है. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि बेगूसराय में ‘लाल झंडे’ की अलख जगाने वाले कॉमरेड चंद्रशेखर के जाने के बाद, पहली बार यहां के लोगों में इतना जोश दिखा है. चंद्रशेखर बिहार विधानसभा में पहुंचने वाले राज्य के पहले कम्युनिस्ट नेता थे. चंद्रशेखर भी कन्हैया के गांव बीहट के ही थे. जातीय समीकरणों से लबालब बिहार की राजनीति में बेगूसराय की चर्चा ने सबका ध्यान खींचा है. साल 2014 में सीपीआई यहां तीसरे स्थान पर रही थी. लेकिन इस बार पार्टी अपनी वापसी की आस में है. कन्हैया कुमार मानते हैं 2014 का चुनाव पोलेराइज्ड चुनाव था, इसलिए पार्टी को नुकसान पहुंचा था, लेकिन इस बार समीकरण अलग हैं. तमाम मुद्दों पर बेगूसराय लोकसभा सीट से सीपीआई उम्मीदवार कन्हैया कुमार से बातचीत…
आपको नहीं लगता कि मीडिया बेगूसराय को बहुत ज़्यादा रोमांटिसाइज़ कर रही है? मुद्दों पर न जाकर, कन्हैया को छू रही है?
मीडिया क्या कर रही है, वह तो मेरे हाथ में नहीं है. इस पर हम अपना ओपिनियन देकर कर भी क्या लेंगे. हम जो कहेंगे, वह मीडिया नहीं करेगी. जो मीडिया यहां आ रही है, हमारा काम है कि हम उनसे मुद्दों पर बात करें. हमारे लिए यही ज़रूरी है. मीडिया को कोसने से अच्छा है कि हम अपना ध्यान इस पर दें कि जितना स्पेस मीडिया में बचा हुआ है, उतने ही स्पेस का इस्तेमाल लोगों के मुद्दों को उठाने के लिए किया जाये और देश में जो एक झूठतंत्र गढ़ा जा रहा है, उसको तोड़ने और जनता की सच्चाई सामने लाने में अपनी भूमिका निभायें.
आपकी रैलियों में अच्छी ख़ासी भीड़ आ रही है. जितनी मीडिया बनारस में नहीं है, उससे ज़्यादा फोकस बेगूसराय की सीट पर है. इसे कन्हैया कुमार कैसे देखते हैं? क्या सीट के हाई-प्रोफाइल हो जाने का दबाव है?
हमारे ऊपर कोई दबाव नहीं है, क्योंकि हम उस तरीके से सोचते ही नहीं हैं और हमारा वह नज़रिया ही नहीं है. हम लोगों को भीड़ नहीं मानते हैं और चाहते भी नहीं हैं कि लोकतंत्र भीड़तंत्र में बदले. लोग आ रहे हैं, अच्छी बात है. लोगों का उत्साह है, लोगों का समर्थन मिल रहा है, अच्छी बात है. लेकिन हम उन्हें भीड़ या वोटबैंक के रूप में नहीं देख रहे हैं. हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि जो लोग आये हैं और जो उनके बेसिक मुद्दे हैं, उसके साथ उन्हें राजनीतिक रूप से जागरूक बनाया जाये व उनकी राजनीतिक चेतना से कैसे सीखा जाये. ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ हमारे पास ही ज्ञान है और उनके पास ज्ञान नहीं है. उनके जो अनुभव हैं, उससे हम सीखें और जो हमारा अनुभव है, वह उनसे साझा करें. मीडिया को बेगूसराय को हाई-प्रोफ़ाइल बनाना है, तो बनाये, लेकिन यहां के बेसिक मुद्दों को हम पकड़ कर रखना चाहते हैं. मीडिया में भी हम इन्हीं पर बात कर रहे हैं.
बेगूसराय में मुद्दे क्या हैं, आप पिछले 1-1.5 साल से घूम रहे हैं, आप जनता के सामने किन सवालों को हल करने का वादा कर रहे हैं?
बेगूसराय में अगर आप मुख्य सड़क को छोड़ दें, तो अच्छी सड़कें नहीं हैं. आप जिस सड़क (राष्ट्रीय राजमार्ग-31, बेगूसराय) पर चल रहे हैं, उस पर भी बहुत दुर्घटना होती है. इसके अलावा, जो इसे जोड़ने वाली सड़कें हैं, उसकी हालत बहुत ज़्यादा ख़राब है. यहां कोई अच्छी स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध नहीं है. एक सरकारी अस्पताल है, अभी कुछ दिनों से नये डीएम के आने के बाद उसकी हालत में थोड़ा सुधार हुआ है, लेकिन कोई स्तरीय इलाज वहां अभी-भी संभव नहीं है. कोई ख़तरनाक बीमारी हो जाये तो उसका इलाज यहां नहीं हो सकता है, उसके लिए बाहर ही जाना पड़ता है. कोई रिसर्च इंस्टीट्यूट नहीं है, एक रिसर्च इंस्टीट्यूट 1996 में खुला था- मक्का अनुसंधान केंद्र, उसकी भी हालत ख़राब ही है. प्रोफ़ेशनल कोर्सेस नहीं होते हैं, कुछ कॉलेज हैं तो उनकी स्थिति बेहद ख़राब है.
मैं यही पूछने वाला था, बेगूसराय के किसी कॉलेज में पढ़ाई नहीं होती है, लैब धूल फांक रहे हैं, बछवाड़ा प्रखंड में एक भी कॉलेज नहीं है, वहां तो सीपीआई के विधायक भी रह चुके हैं. इन मुद्दों पर आप क्या करेंगे?
जब आप बछवाड़ा घूमेंगे, तो सीपीआई के विधायक के नाम वाले इतने शिलापट्ट आपको मिल जायेंगे कि उन्होंने क्या काम किया है, इसका पता चल जायेगा. बछवाड़ा में एक इलाका है- चमथा, दियारा क्षेत्र. पहले वहां पहुंचना भी मुश्किल था. पंचवर्षीय योजना में वहां कनेक्टिविटी बनवायी गयी, वहां पर बिजली के लिए पावरग्रिड की स्थापना करवायी. अब वहां कॉलेज भी है. लेकिन बात यही है कि जो काम करने वाले लोग हैं, अगर उनके काम के मूल्यांकन के आधार पर वोटिंग हो, तो स्वाभाविक रूप से राजनीति की दशा और दिशा बदलेगी और समाज को इससे लाभ होगा. लेकिन दिक्कत ये है कि काम के आधार पर वोटिंग होती नहीं है, अंततः जाति के आधार पर लोग वोट कर देते हैं. इसकी वजह से विकास के जो काम हैं या जो सामान्य काम होने चाहिए, उसको करने का मोटिवेशन लोगों के अंदर से जाने लगता है. जो मुद्दे हम आपको बेगूसराय के बारे में बता रहे हैं, वे हमें जनता से ही पता चले हैं. जब उनके बीच हम घूमते हैं, तो वे अपना अनुभव और दुख-तक़लीफ़ हमसे साझा करते हैं, उसी से हमें सब मालूम चलता है. और आप ठीक कह रहे हैं कि कॉलेजों में पढ़ाई-लिखाई की हालत बहुत ज़्यादा ख़राब है.
आपने कहा कि काम से वोट नहीं मिलता है. बेगूसराय में भी जाति की बाइनरी में मुद्दों को समेटा जा रहा है, मीडिया यहां आकर सिर्फ़ भूमिहार-भूमिहार कर रही है, क्या यही सच्चाई है?
देखिये, इसी झूठतंत्र के ख़िलाफ़ तो लड़ना है. यह जो वोटबैंक की पॉलिटिक्स है, इसी पॉलिटिक्स को काउंटर करके, मुद्दों पर आधारित राजनीति को स्थापित करने की ज़रूरत है. हम इसी कोशिश में लगे हुए हैं.
आप बार-बार बोलते हैं कि आपकी लड़ाई महागठबंधन यानी तनवीर हसन से नहीं है. लेकिन, पिछली बार उनका वोट शेयर सीपीआई से दोगुना था, आप इस सच्चाई को कैसे दरकिनार कर सकते हैं?
यहां भी सच के एक पहलू को देखा जा रहा है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि उनको लगभग 3,70,000 वोट मिले थे. लेकिन जब आप डिटेल में जायेंगे, तो परिणाम कुछ और ही नज़र आयेगा. एक बात तो ये है कि हर बार का चुनाव अलग होता है. पिछली बार का वोट ठीक पिछली बार की तरह ही पड़ेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं होती है. आप देखेंगे कि विधानसभा चुनाव में स्थिति अलग होती है और लोकसभा चुनाव की अलग हो जाती है.
तो इस बार बेगूसराय में क्या अलग होने जा रहा है?
अगर आप यहां की बात करेंगे, तो सातों सीट (विधानसभा की) महागठबंधन के पास थी. उसमें से 5 सीट आरजेडी और कांग्रेस के पास है. लेकिन क्या उस 5 सीट को आरजेडी और कांग्रेस सिर्फ़ अपना बता सकती है? उसमें तो जेडीयू का भी वोट शामिल है. तो यह बात सीपीआई के साथ भी लागू होती है. सीपीआई भी जेडीयू के साथ थी (2014 लोकसभा चुनाव में). इसके साथ और भी कई सच हैं और कई बातें हैं, जिन्हें छुपाया जा रहा है. आज बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र में 7 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. इनमें से दो विधानसभा क्षेत्र ही साल 2009 से पहले (परिसीमन से पहले) बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र में थे, जबकि 5 विधानसभा क्षेत्र बलिया लोकसभा क्षेत्र में थे. बलिया लोकसभा क्षेत्र का जब इतिहास उठाकर देखेंगे, तो सिर्फ़ 2014 को छोड़कर हर बार सीपीआई जीती है या दूसरे स्थान पर रही है. तो इस बार उसका भी अपना एक आधार होगा. तनवीर हसन जी को मिले वोटों की बात करें, तो आप जानते हैं कि 2014 का चुनाव पूरी तरह से पोलेराइज्ड चुनाव था. हिंदू-मुसलमान का चुनाव बना दिया गया था, कहने को मोदी लहर थी, लेकिन ग्राउंड पर चुनाव हिंदू-मुसलमान के आधार पर हुआ था. तो, वोट का जो पोलेराइजेशन उस बार उनके साथ था, वह इस बार उनके साथ नहीं है. और दूसरी अहम बात यह है कि उस वक़्त सीपीआई भी अपनी उम्मीदवारी को लेकर बंटा हुआ था, इसलिए देखेंगे कि जो उसका मिनिमम वोट शेयर है, वो जेडीयू के साथ गठबंधन में होने के बावजूद नहीं मिला था. इसका मतलब है कि सीपीआई के सपोर्ट बेस से भी तनवीर जी को वोट मिला था, क्योंकि मोदी vs एंटी मोदी का चुनाव बना था और उसके कोर में हिंदू-मुसलमान का नैरेटिव था. आज की तारीख़ में भी यह नैरेटिव है और एक तरह से इस बार भी पोलेराइज्ड चुनाव ही होगा, लेकिन जो वोटर पिछली बार जिन वजहों से तनवीर जी को वोट किये थे, इस बार वे वजहें उनके पास नहीं हैं, और उनके पास इस बार विकल्प भी मौजूद है. तो अगर अंकगणितीय कैलकुलेशन को देखेंगे, सीपीआई बहुत आगे है.
आप बता रहे हैं कि पिछली बार उम्मीदवारी को लेकर पार्टी के अंदर दो मत था. क्या इस बार आपकी उम्मीदवारी को लेकर पार्टी में एकमत था? कुछ लोगों ने कहा कि सीधे दिल्ली से आया हुआ उम्मीदवार है.
बेगूसराय में ऐतिहासिक रूप से पहली बार ऐसा हुआ है कि सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया है. कोई दूसरा उम्मीदवार ही नहीं है. आप जब लोगों से बात करेंगे, तो कोई नहीं कहेगा कि बाहरी उम्मीदवार है. आज की तारीख़ में सबसे ज़्यादा कहा जा रहा है- यहां का लड़का है, यहां का बच्चा है. यही तो एक कैंपेन है, जो हमको लेकर लोग कर रहे हैं. बल्कि हमसे ज़्यादा लोग कर रहे हैं. ‘नेता नहीं बेटा’ कैंपेन असल में लोगों का कैंपेन है. हम लोगों की भावनाओं को ही अपने कैंपेन में जगह दिये हैं. बाहरी उम्मीदवार होने का आरोप मेरे ऊपर बिलकुल नहीं है.
आपके नामांकन में आपके संघर्षों (फरवरी 2016 का घटनाक्रम) के दिन के साथी भी पहुंचे थे, लेकिन उमर और अनिर्बान नज़र नहीं आये? क्या मीडिया ने उनकी जो छवि बनायी है, इसी कारण वे नहीं बुलाये गये?
नहीं-नहीं, ऐसा कुछ नहीं है. जो लोग आये, उनके पास समय था, इसलिए वो आ गये. बहुत सारे लोग नहीं भी आये. बहुत सारे लोग व्यस्त थे, वो नहीं आ पाये. ऐसा नहीं है कि हम सारे लोगों को ज़बरदस्ती फोन करके बुला रहे हैं. आप हमारे घर पर जायेंगे, तो बहुत सारे लोग रहते हैं, जिन्हें हम नहीं जानते हैं, जिनसे हम पहली बार मिल रहे हैं. वे सभी अलग-अलग जगहों से पता लेकर आये हैं. यह नैरेटिव जानबूझकर खड़ा किया जा रहा है. मेरे ख़्याल से, यह सवाल उमर से पूछना चाहिए, वही सही आदमी है.
महागठबंधन की तरफ़ से सीपीआई (एमएल) के उम्मीदवार राजू यादव आरा से चुनाव लड़ रहे हैं. क्या कन्हैया उनके प्रचार में जायेंगे?
यह बताइये, हम पहले अपना प्रचार करेंगे कि किसी और का प्रचार करेंगे. ये जिम्मेवारी तो महागठबंधन के लोगों पर थी कि यहां पर (बेगूसराय में) महागठबंधन बनायें. अगर वो महागठबंधन बनाते, तो हमारे पास समय बचता. इस समय का उपयोग हम देश के दूसरे लोकसभा क्षेत्रों में करते. मोदी सरकार का जो विश्वविद्यालयों और असहमति के ऊपर हमला था, उस पर जाकर हम सवाल पूछते. मतलब, ऐसी स्थिति बना दी गयी है कि पहले एक साज़िश रची जाये और फिर उस साज़िश को आधार बनाकर अनावश्यक विवाद खड़ा किया जाये. पहले तो गठबंधन नहीं बनने दिया जाये, गठबंधन नहीं बना तब यह सवाल पूछा जाये कि गठबंधन क्यों नहीं बना. गठबंधन बन रहा हो, तो ये पूछा जाये कि आप चंदू के ख़िलाफ़ जाकर प्रचार करेंगे. ये तो पूरी तरह से एक साज़िश है और मैं समझता हूं कि ये जो साज़िश करने वाले लोग हैं, उनको देश की बिलकुल चिंता नहीं है. वह चाहते हैं कि इस देश में न कोई बोले, न सवाल करे. जो लोग आज हमारे ख़िलाफ़ दुष्प्रचार कर रहे हैं, उनकी अपनी क्या भूमिका रही है इस सरकार के ख़िलाफ़ लड़ाई में? इन लोगों की मंशा सिर्फ़ ये है कि एक व्यक्ति जो लड़ रहा है, उसकी लड़ाई को कैसे कमजोर किया जाये.
कन्हैया, अब आप पब्लिक फिगर हैं. देश के सभी हिस्सों में आपको सुना जा रहा है. आपने चंदे की अपील की, चंद दिनों के भीतर 70 लाख खाते में आ गये. आपको फिल्मी सितारों का भी साथ मिल रहा है. क्या बाक़ी दलों की ही तरह अब सीपीआई में भी चेहरे की राजनीति (व्यक्तिवाद) की शुरुआत हो गयी है? जैसे हरेक दल का एक विजिबल फेस है- भाजपा के लिए मोदी, कांग्रेस के लिए राहुल गांधी, आप के लिए केजरीवाल, जदयू के लिए नीतीश आदि.
यहां बात चेहरे की नहीं है. जो लोग सपोर्ट कर रहे हैं, आप उनकी रेंज को देखिये. 100 रुपये चंदा भी लोग दे रहे हैं. आपको फ़िल्मी सितारे दिख रहे हैं, लेकिन 100 रुपये देने वाला ग़रीब आदमी नहीं दिख रहा है. चेहरे की राजनीति तो आप कर रहे हैं. आपको चमकता हुआ चेहरा ही दिखता है जो हमारे सपोर्ट में आया है, लेकिन मैला-कुचैला कपड़ा पहना हुआ ग़रीब आदमी जो हमारे समर्थन में आया है, आप उसे नहीं देख रहे हैं. अगर बात चेहरे की राजनीति की होती, तो ऐसा नहीं होता. आप चंदे की बात कर रहे हैं, अगर कॉरपोरेट से हम 70 लाख रुपये ले लेते तो आपका सवाल जायज़ होता, लेकिन जब 100 रुपये और 50 रुपये का चंदा भी लोग दिये हैं, तब भी आप कह रहे हैं कि यह चेहरे की राजनीति है. दूसरी बात यह कि क्या कम्युनिस्ट पार्टी और अन्य पार्टियों के आंतरिक निर्णयकारी प्रक्रिया को हम नहीं देखेंगे? क्या कम्युनिस्ट पार्टी में कोई सुप्रीमो है? जब मैं सुप्रीमो नहीं हूं, तो मुझे उनलोगों के साथ टैग करके रखना, मैं समझता हूं अपराध है.
हर नेता लोगों की समस्याओं को दूर करने की बात करता है, ग़रीबी दूर करने की बात करता है, लोग आपको ही क्यों चुनें?
हम यह नहीं कह रहे हैं कि लोग मुझे ही चुनें. आप मेरी सभाओं में घूमकर देखिये, हम वोट नहीं मांगते हैं. आप इस बात की पड़ताल करके देख लीजिये. लोग अगर भरोसा करेंगे तो बनायेंगे (सांसद), नहीं करेंगे तो नहीं बनायेंगे. जो लोग सांसद नहीं बने हैं, उनकी समाज में कोई भूमिका नहीं है क्या? गांधी जी कब सांसद हुए थे?
चुनावी नतीजों के बाद, परिणाम जो भी हो, क्या आप छात्रों को पढ़ायेंगे?
परिणाम हम सोच ही नहीं रहे हैं. जो काम हम कर रहे हैं, वह करते रहेंगे. वह काम हम आज तक नहीं छोड़े हैं और न कभी छोड़ेंगे. हमारा काम है- पढ़ाई और लड़ाई. पढ़ाई भी करते हैं, लड़ाई भी करते हैं. आगे भी पढ़ाई करेंगे और लड़ाई भी करेंगे. और जब पढ़ते हैं तो लोगों को पढ़ायेंगे भी, लड़ते हैं तो लोगों को लड़ना भी सिखायेंगे. सीधी-सी बात है.
Also Read
-
India’s lost decade: How LGBTQIA+ rights fared under BJP, and what manifestos promise
-
Another Election Show: Meet journalist Shambhu Kumar in fray from Bihar’s Vaishali
-
‘Pralhad Joshi using Neha’s murder for poll gain’: Lingayat seer Dingaleshwar Swami
-
Corruption woes and CPIM-Congress alliance: The TMC’s hard road in Murshidabad
-
Know Your Turncoats, Part 10: Kin of MP who died by suicide, Sanskrit activist