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रिपोर्टर की कल्पना में द प्रिंट ने बनाया मोदी को सेक्स सिंबल!

नरेंद्र मोदी को ग्रामीण औरतों के सेक्स सिंबल के रूप में स्थापित करने की कोशिश करती द प्रिंट की स्टोरी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है. फेसबुक, ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर यूज़र्स ने इसे भ्रामक, तथ्यहीन, सनसनी फैलानेवाला और मनगढ़ंत बताया है. कुछ यूज़र्स ने इसे प्रायोजित तो कुछ ने इसे घटिया पत्रकारिता के स्तर को छूता सेक्सुअली ऑब्सेस्ड करार दिया है.

द प्रिंट के एडिटर इन चीफ शेखर गुप्ता द्वारा इसे ट्विटर पर शेयर करने के बाद ज़्यादातर यूज़र्स हमलावर हो गये और उनके ऊपर उंगली उठाने लगे. इसके अलावा, कुछ पत्रकारों ने इस स्टोरी का स्क्रीनशॉट फेसबुक पर शेयर करते हुए इसे वेब जर्नलिज्म का “सरस सलिल” वर्जन करार दिया.

इस ख़बर का स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए द प्रिंट के पूर्व पत्रकार अमित विसेन ने इस संस्थान को छोड़ने के फैसले को सही ठहराया और लिखा “ऐसे संस्थान से भगवान दूर रखे… ऐसे मामले में आस्तिक बनना ठीक है.”

हरियाणा, बिहार, यूपी और मध्य प्रदेश की “पांच-छह” महिलाओं की बातचीत के हवाले से “द प्रिंट” की संवाददाता ज्योति यादव ग्राउंड रिपोर्ट के नाम पर जो सामग्री लायी हैं, क्या वो सच में ऑनलाइन जर्नलिज्म में सॉफ्ट पोर्न और क्लिक-बेट को संभावना को पोषित करने जैसा है?

क्या ज्योति यादव इस रिपोर्ट में मर्द की स्टीरियोटाइप छवि को ग्रामीण महिलाओं के हवाले से 68 साल के मोदी को सेक्स सिंबल में तब्दील कर देती हैं? या ज्योति की स्टोरी में सबसे पहले समाज द्वारा गढ़े गये स्ट्रॉन्ग, महिलाओं का रक्षक और एंगर से भरपूर एक ‘सो कॉल्ड मर्द’ की छवि में मोदी को फिट किया जाता है. इसके बाद स्टीरियोटाइप जवाबों के हवाले से अंत आते-आते ज्योति यादव मोदी को सुरक्षा का एहसास दिलानेवाले पति की तरह पेश करके उन्हें ग्रामीण महिलाओं की मनोकामना घोषित कर देती हैं?

स्टोरी में महिलाओं से बातचीत के आधार पर ज्योति नरेंद्र मोदी के गुणों का क्रमवार ब्योरा देती हैं-

  1. प्रभावशाली और आत्मविश्वासी
  2. साफ़-सुथरे कपड़े पहननेवाला
  3. सबको ठीक कर देने की क्षमता
  4. बुरे लोगों के ख़िलाफ़ एक्शन लेने की क्षमता.

यह कक्षा-4 की स्कूल डायरी में वर्णित अच्छे बालक के मर्द बनने के बाद के वर्जन जैसा है. गुणों के इस क्रमबद्ध ब्यौरे के बारे में जब ज्योति से पूछा गया, तो उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि मोदी के इन गुणों के बारे में महिलाओं ने उन्हें ख़ुद बताया है.

शराब न पीना, मारपीट न करना, दूसरी लड़की को घर न लाना, इन जवाबों को रिपोर्टर ने मोदी को मिल रहे फेवर की तरह देखा है.

रिपोर्ट में, ज्योति महिलाओं से सवाल पूछती हैं कि “क्या वो मोदी से शादी करेंगी?” और हां, नहीं व पता नहीं के तीन विकल्पों के बीच दो-चार महिलाओं के आधे-अधूरे उत्तर का साज़-बाज़ करके संभावनाओं के हवाले से मोदी को “अल्फा मेल” कटेगरी के सेक्स सिंबल में तब्दील करने की कोशिश करती हैं.

स्टोरी में आजमगढ़ की “कविता” के हवाले से मोदी के मर्दों की तरह चलने की बात है, तो हरियाणा की दीपिका नारायण के हवाले से हरियाणा में पसंद किये जानेवाले ‘माचो मैन’ की इमेज में मोदी को फिट करने का प्रयास भी है.

स्टोरी के आखिरी पैराग्राफ़ में ज्योति लिखती हैं, “पीएम मोदी की कंगना रनौत, अनुष्का शर्मा, प्रियंका चोपड़ा से लेकर इवांका ट्रंप के साथ तस्वीरें आयी हैं, इन तस्वीरों में मोदी सहज नजर आते हैं.”

ग्रामीण महिलाओं के सेक्स सिंबल के रूप में पेश करते हुए इवांका ट्रंप के साथ मोदी की सहजता का समांतर स्थापित करने का क्या अर्थ है? क्या सच में प्रियंका और इवांका के साथ सहजता से फोटो में दिखने का असर उन ग्रामीण महिलाओं पर भी पड़ा है? सवाल ये भी है कि कितनी ग्रामीण महिलाएं इवांका ट्रंप को जानती हैं?

इसके बारे में ज्योति ने हमें बताया कि ये उन्होंने अपनी ऑब्ज़र्वेशन लिखी है, ग्रामीण महिलाओं को इवांका के बारे में नहीं पता होगा.

नरेंद्र मोदी के लिए राखी सावंत और मल्लिका शेरावत ने भी अपनी इच्छा का इज़हार किया था. राखी सावंत ने मोदी को ब्वॉयफ्रेंड बनाने की इच्छा ज़ाहिर की थी और मल्लिका शेरावत ने कामुक अंदाज़ में मोदी को बर्थडे विश किया था और परफेक्ट बैचलर कहा था.

दरअसल, राखी और मल्लिका मोदी ब्रांड का अपने प्रचार के लिए इस्तेमाल करती रही हैं. उनकी असल में मोदी में कितनी रुचि होगी, इसका कोई पुख्ता सबूत नहीं है. ब्रांड मोदी की छवि का असर पुरुषों और महिलाओं दोनों पर है. मोदी के विरोध को देश के विरोध की तरह गढ़ दिया गया है.

मोदी 18 घंटे काम करते हैं, आराम नहीं करते, वो ताकतवर नेता हैं, इस छवि से उच्च-मध्यम वर्ग की पत्रकार रुबिका लियाकत इतनी प्रभावित होती हैं कि इंटरव्यू के दौरान उनसे पूछती हैं, “मोदी जी कौन सा टॉनिक इस्तेमाल करते हैं?”

ज़ाहिर है, ग्रामीण हो या शहरी, हर वर्ग की महिलाओं तक ब्रांड मोदी के विज्ञापन का असर पहुंचा है. ऐसे में ग्रामीण अंचल की महिला अगर रिपोर्टर के सवालों पर आधा-अधूरा सकारात्मक जवाब दे देती है, तो इसके निहितार्थ-स्वरूप मोदी को ग्रामीण महिलाओं का सेक्स सिंबल बताना कहीं रिपोर्टर की अपरिपक्वता तो नहीं है?

फिर इसी तर्क के आधार पर, क्या शहरी औरतों और फिर पूरे देश की महिलाओं के सेक्स सिंबल के रूप में मोदी को स्थापित करने की कोशिश नहीं की जा सकती है? क्योंकि बहुत-सी ऐसी शहरी औरतें भी मिल सकती हैं, जो मोदी के उपरोक्त गुणों को पसंद करती हों.

रिपोर्टर आगे बताती हैं कि “संयुक्त परिवार से जुड़ी इन औरतों से ‘सेक्स पार्टनर’ के बारे में नहीं पूछा जा सकता, क्योंकि जवाब नहीं मिलेंगे.” जिस सवाल को पूछा नहीं गया और जिसका जवाब मिलने की संभावना नहीं थी, उस तथ्य को एक्स्ट्रापोलेट करके रिपोर्टर ने मोदी को “सेक्स सिंबल” घोषित करनेवाली प्रश्नवाचक हेडलाइन तक पहुंचा दिया.

जब सेक्स सिंबल के बारे में ज्योति से पूछा गया कि ग्रामीण महिलाएं इससे क्या समझती होंगी? तो ज्योति ने इस आर्टिकल के ही लेखक से सवाल कर लिया कि आप क्या समझते हैं सेक्स सिंबल से?

जब मैंने कहा कि सिर्फ़ पंसद को ही सेक्स सिंबल से नहीं जोड़ा जा सकता, तो उन्होंने कहा, “सेक्स सिंबल का मतलब है डिज़ायरेबल, दीपिका पादुकोण अगर सेक्स सिंबल हैं, तो नरेंद्र मोदी क्यों नहीं हो सकते?”

जब मैंने दोबारा और स्पष्ट उत्तर पाने के लिए कहा कि सेक्सुअली डिज़ायरेबल होगा तभी सेक्स सिंबल कह सकते हैं, तो उन्होंने कहा कि “पसंद करना भी सेक्स सिंबल होता है.” यहां शब्दों के चयन में ज्योति थोड़ी अस्पष्ट दिखती हैं.

ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के हिसाब से सेक्स सिंबल होने के लिए सेक्सुअली अट्रैक्टिव होना पहली अनिवार्यता है.

अब स्टोरी के पीछे की कहानी पर आते हैं.

स्टोरी के छठें पैराग्राफ़ में रिपोर्टर ने बिहार के सासाराम की कंचन मोदी (बदला नाम) से बातचीत का ब्यौरा दिया है. जब इस बारे में ज्योति से पूछा गया कि ये बातचीत कब और कैसे हुई थी? तो इसके जवाब में ज्योति ने बताया कि ये बातचीत पुरानी है, जो पिछले साल उन्होंने की थी.

सवाल ये है कि इस स्टोरी को करने का आइडिया रिपोर्टर के दिमाग में कैसे आया होगा? और ग्राउंड रिपोर्टिंग का पहला बुनियादी नियम है कि रिपोर्टर अपने साथ पूर्वाग्रह लेकर नहीं जाता. रिसर्च और सर्वे के दौरान पूर्वाग्रहों से बचने के दूसरे बुनियादी नियम हैं. सैंपल साइज़ के हिसाब से ये न तो रिसर्च स्टोरी है, न ही सर्वे.

जब इस बारे में ज्योति से पूछा गया तो उन्होंने न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि ये कोई सर्वे नहीं है. लेकिन उन्होंने इसके लिए 40-50 महिलाओं से बातचीत की है. सिमोन द बोउवार कहती हैं, “औरत पैदा नहीं होती, बनायी जाती है” और ज्योति यादव मोदी को इन्हीं “बनायी गयी औरतों” का सेक्स सिंबल बना रही हैं. जिनकी नज़र में विज्ञापनों की मदद से गढ़ी गयी 56 इंच के सीने वाली मोदी की छवि पुरुषों के लिए गढ़ी गयी पितृसत्ता की परिभाषा में फिट बैठती है.

रिपोर्टर अपनी स्टोरी में इस बात का ज़िक्र भी करती हैं कि “पितृसत्तात्मक समाज की औरतों को अथॉरिटी वाले व्यक्ति पसंद आने की संभावना होती है, क्योंकि वो उसी तरीके से पली-बढ़ी होती हैं.”

लेकिन रिपोर्टर स्टोरी में पितृसत्ता के बारे में कही गयी अपनी ही बात के हवाले से उत्तरों का विश्लेषण नहीं करतीं, बल्कि मोदी को सेक्स सिंबल बनाने वाली सनसनीखेज़ घोषणा को वैध ठहराने की कोशिश में आगे बढ़कर दूसरे तर्क गढ़ने लगती हैं. इस बारे में ज्योति ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया, “अगर कोई रीडर डंब है, तो मैं उसे हर लाइन नहीं समझा सकती.”

जब हमने ज्योति से पूछा कि क्या उन्होंने किसी लोकल या नेशनल पॉलिटिशियन का नाम भी नरेन्द्र मोदी के साथ ऑप्शन में रखा था? इस बारे में ज्योति ने हमें बताया कि उन्होंने सिर्फ नरेंद्र मोदी के बारे में पूछा था और कोई ऑप्शन नहीं दिया था. दूसरे ऑप्शन न देना भी रिपोर्टर के स्टोरी आयडिया को स्पष्ट करता है.

हर चीज़ की हॉट फोटो गैलरी बना देनेवाली पत्रकारों की जमात ने असम की विधायक अंगूरलता से लेकर डिंपल यादव की फोटो लगाकर सैकड़ों वायरल कंटेंट बनाएं हैं. हॉट पॉलिटिशियन में सचिन पायलट से लेकर अल्का लांबा तक का नाम है.

हरियाणा की महिलाओं से बातचीत करते हुए रिपोर्टर अगर वहीं से शुरू हुए “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” पर भी थोड़ी बात करतीं, तो पता चलता कि मोदी को “अच्छे पति” की नज़र से देखने वाली महिलाओं के विचार में वो कितने “अच्छे पिता” साबित हो सकते हैं. सेक्स सिंबल का पता नहीं, लेकिन मोदी के काम के बारे में महिलाओं की सोच क्या है, इसका जवाब भी मिलता.

अब एडिटोरियल फिल्टर की बात करते हैं.

क्या द प्रिंट के संपादक वेबसाइट पर छप रहे कंटेंट को शेयर करने से पहले पढ़ते हैं? क्या उन्होंने क्लिक-बेट पत्रकारिता के अपने निहितार्थ निकाल लिए हैं? या फिर ‘बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा’ वाली फिलॉसफी में यकीन कर लिया है. सेक्स और मोदी जैसे कीवर्ड ऑनलाइन ज्यादा सर्च किये जाते हैं, इसका मतलब ये नहीं कि दोनों का कॉम्बिनेशन परोस दिया जाये.

इससे पहले द प्रिंट की एक ख़बर में मोदी की स्किन 60 साल बाद (यानी जब मोदी 128 साल के होंगे) कैसी होगी, यह बताया गया था. अब मोदी को ग्रामीण महिलाओं के सेक्स सिंबल के रूप में दिखाया जा रहा है.