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पश्चिमी यूपी: क्या नाराज़ गन्ना किसानों के कोप का शिकार होगी भाजपा?
साल 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने किसानों से बड़े-बड़े वादे किये थे, जिसमें से प्रमुख था फसल का उचित मूल्य देना और समय पर भुगतान करना. पिछले पांच सालों में किये गये वादों के इसी क्रम में गन्ना किसानों को वादा किया गया था कि मिलों में गन्ने की डिलीवरी देने के 14 दिनों के अंदर ही पूरा भुगतान किया जायेगा. दुख दूर होने की आस में किसानों ने न केवल साल 2014 में मोदी सरकार बनवायी,बल्कि साल 2017 में उत्तर प्रदेश में योगी सरकार भी बनवायी. लेकिन हुआ कुछ नहीं. हाल में, ‘इंडियन एक्सप्रेस‘ में प्रकाशित एक रिपोर्ट में सामने आया था कि गन्ना किसानों का 10,000 करोड़ से ज़्यादा का भुगतान बकाया है. इसका लगभग 45 फ़ीसदी (4,547.97 करोड़) हिस्सा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उन किसानों का है, जो 11 अप्रैल को पहले फेज़ के चुनावों में आठ निर्वाचन क्षेत्रों में से छह में वोट देने जायेंगे.
‘देखिये, मोदी जी ने वादा किया था कि 14 दिनों के अंदर किसानों को उनके गन्ने का भुगतान हो जायेगा,लेकिन पिछले नवंबर से अब तक सिर्फ़ 14 दिन का ही भुगतान हुआ है. वो भी तब हुआ, जब हमने महीने भर शामली मिल के बाहर प्रदर्शन किया. गन्ना मंत्री सुरेश राणा हमारे ही जिले से हैं, लेकिन उसने हमें बर्बाद कर दिया. एक महीने तक हमलोग प्रदर्शन करते रहे, लेकिन पूछने तक नहीं आया.‘ यह कहना है,मुज़फ़्फ़रनगर से शामली-कैराना जानेवाली सड़क के किनारे अपनी बुग्गी को खड़ा कर भैंसे को पानी पिला रहे सुरेंद्र मलिक का.
जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव के दिन क़रीब आ रहे हैं, पश्चिमी यूपी में राजनीतिक हलचल बढ़ती जा रही है. तमाम राजनीतिक दल वोटरों को लुभाने के लिए तरह तरह के वादे कर रहे हैं. पश्चिमी यूपी के कई जिलों में किसानों, खासकर गन्ना किसानों की भूमिका उम्मीदवारों को जिताने और हराने की रही है. इस बार भी तमाम राजनीतिक दल किसानों के वोट पर नज़र गड़ाये हुए हैं, लेकिन किसान भी ‘हिसाब‘ करके वोट करने के मूड में नज़र आ रहे हैं.
बीजेपी को दिखायेंगे नज़ारा
सबसे पहले हमारी मुलाकात हुई भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश संगठन मंत्री, सतीश रायल से. मुज़फ़्फ़रनगर के अपने ऑफिस में साफ़ कुर्ता पजामा पहने सतीश रायल बैठे हुए हैं. सामने किसानों के बड़े नेता रहे बाबा महेंद्र सिंह टिकैत की तस्वीर और उनके द्वारा इस्तेमाल किया गया गमछा और टोपी टंगी हुई है. सतीश पिछले साल दिल्ली में हुए किसानों के उस आंदोलन का हिस्सा थे, जिसपर दिल्ली-गाज़ियाबाद बॉर्डर पर पुलिस ने डंडा बरसाया था. जिसके बाद किसानों के इस आंदोलन ने आक्रामक रुख ले लिया था. पुलिस ने किसानों पर वाटर कैनन से पानी फेंका था और लाठियां भी बरसायी थीं.
सतीश कहते हैं, ‘2014 में मुज़फ़्फ़रनगर से ही बीजेपी की जड़ बनी थी और हम यहीं से मिटायेंगे. बीजेपी को इस बार घास से सुई ढूंढ़नी पड़ेगी. हम लोग शांति से अपनी बात कहने गये थे. हमें दिल्ली आने नहीं दिया गया. हम अछूत थे क्या? उनके लिए किसान की कोई औकात नहीं है, तो हम इस बार उनको अपनी औकात दिखायेंगे. हम बीजेपी को नज़ारा दिखाने का काम करेंगे.‘
हालांकि, मुज़फ़्फ़रनगर से बीजेपी उम्मीदवार और पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान उस घटना को मामूली घटना बताते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहते हैं कि किसानों पर हुए लाठीचार्ज पर कोई भी सहमत नहीं हो सकता, लेकिन वह घटना कोई बड़ी घटना नहीं थी. इस तरह की छोटी घटनाएं होती रहती हैं. मुज़फ़्फ़रनगर के किसान बीजेपी के साथ हैं.
अगर मुज़फ़्फ़रनगर लोकसभा सीट की बात करें, तो यह जाट और मुस्लिम बहुल लोकसभा क्षेत्र है. यहां दोनों ही मज़हब के लोग मुख्यतः गन्ना की खेती करते हैं. 2014 लोकसभा चुनाव से पहले हुए सांप्रदायिक दंगे ने जिले की राजनीति को हिंदू-मुस्लिम के बीच बांट दिया और जिसका परिणाम हुआ कि बीजेपी के संजीव बालियान लगभग चार लाख वोटों से जीत गये. लेकिन इस बार स्थिति बदली हुई है. संजीव बालियान के सामने इस बार राष्ट्रीय लोक दल के अजीत सिंह हैं. अजीत सिंह और उनके पिता पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की छवि एक बड़े किसान नेता की रही है. हालांकि अजीत सिंह 2014 में चुनाव हार गये थे.
शामली रेलवे स्टेशन के बाहर शामली चीनी मिल पर सैकड़ों किसान अपने ट्रैक्टर और बुग्गी पर गन्ना लेकर खड़े हुए हैं. यहां हमारी मुलाकात करोता महाजन गांव के रहने वाले किसान काला से हुई. काला केंद्र की मोदी सरकार और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार से बेहद खफ़ा नज़र आते हैं. वे कहते हैं, ‘ये शायद पहला चुनाव है, जब सरकार ने गन्ने के मूल्य में वृद्धि नहीं की है. इससे पहले लगभग हर चुनाव के समय गन्ने का रेट बढ़ता था. एक तो गन्ने के मूल्य में वृद्धि नहीं हुई, वहीं दूसरी तरफ़ समय पर पैसे नहीं मिल रहे हैं. अगर इन नेताओं को समय पर पैसे न मिले, तो क्या भूखे रह सकते हैं? हमारे जीवन का आधार गन्ना से मिलने वाला पैसा ही है. पांच महीने से गन्ने का भुगतान नहीं हुआ. हम अपने बच्चों को कैसे पढ़ाएं और क्या खिलाएं? दूसरा, ये आवारा गायों और सांडो ने परेशान कर रखा है. हमारे इधर बड़े सांडो को मोदी और छोटे सांडो को योगी कहकर बुलाया जा रहा है. लोग आवारा पशुओं से परेशान हैं.’
पिछले दिनों कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया था कि यूपी के गन्ना मिलों पर किसानों का लगभग दस हज़ार करोड़ का बकाया है. सर शादीलाल गन्ना मिल, शामली के किसान संगठन के पूर्व चैयरमैन सतेंद्र कांग्रेस के इस दावे से इत्तेफ़ाक़ रखते हुए कहते हैं कि यह आंकड़ा ज़्यादा हो सकता है, क्योंकि सिर्फ़ शामली गन्ना मिल में ही हर महीने 150 करोड़ का गन्ना आता है.
राष्ट्रीय लोकदल से जुड़े स्थानीय किसान अशोक कुमार राणा बताते हैं कि मंसूरपुर, खतौली और मोरना मिल ही समय पर भुगतान कर रहे हैं. इसके अलावा जितने मिल हैं, उसमें कहीं तीन महीने तो कहीं चार महीने से किसानों का पैसा फंसा हुआ है. अगर हम बैंक से लोन लेते हैं, तो हमें हर दिन का ब्याज देना होता है. लेकिन यहां हमारे पैसे मिल वाले महीनों तक रखते हैं और फिर भी एक रुपये ब्याज नहीं देते हैं. चीनी मिल मालिकों की ज़िंदगी में मिठास ही मिठास और हमारी ज़िंदगी में नीम ही नीम है.
खतौली चीनी मिल पर ट्रैक्टर पर गन्ना लेकर अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे किसान रामरत्न मोदी और योगी सरकार की तारीफ़ करते नज़र आते हैं. रामरत्न कहते हैं कि गन्ने का भुगतान ज़रूर समय पर नहीं हो रहा, लेकिन ये सरकार लगातार कोशिश कर रही है. इसके अलावा, इस सरकार के आने के बाद से बिजली काफ़ी देर तक रह रही है, जिससे किसानों को लाभ हो रहा है. सरकार हर साल किसानों को आर्थिक मदद भी दे रही है. फसल बीमा योजना से भी लोगों को लाभ हो रहा है.
रामरत्न की बातों पर उनके साथ में ही खड़े किसान सवाल उठाते हैं और उनके बीच बहस शुरू हो जाती है. रामरत्न के दावों पर सवाल उठा रहे एक किसान कहते हैं कि ‘इस सरकार ने उर्वरक डाई अमोनियम फास्फेट ( डीएपी) का रेट बढ़ा दिया. जो पहले 500 रुपये कांटा मिलता था, वो अब 1485 रुपये का हो गया है. किसान एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहते हैं कि प्रति क्विंटल गन्ने पर 336 रुपये का खर्च आता है और इसके अलावा प्रति क्विंटल 9 रुपये किसानों का किराये के रूप में भी खर्च होता है और सरकार 325 रुपये प्रति क्विंटल पर गन्ना खरीद रही है. ये काम किया है योगी और मोदी ने?
6 हज़ार देकर लुभाने की कोशिश
कैराना का कंडेला गांव. हुकुम सिंह के प्रभाव से यहां के तमाम लोग बीजेपी को वोट देते रहे हैं. हुकुम सिंह के निधन के बाद उनकी बेटी मृगांका को लोकसभा उपचुनाव में टिकट दिया गया और वो हार गयीं. इस बार मृगांका का टिकट कट गया है और प्रदीप चौधरी को बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया है. जिसके बाद से इस गांव के लोगों में नाराज़गी है. गांव के किसान यशपाल राणा कहते हैं कि सरकार ने किसानों के लिए बातों के अलावा कुछ नहीं किया. आमदनी दोगुनी करने का वादा था और गन्ने की दर में एक रुपये की वृद्धि नहीं हुई. अगर गन्ने की कीमत में वृद्धि नहीं हुई, तो हम गन्ना किसानों की आमदनी दोगुनी कैसे हो सकती है? ख़रीदारी में तो सरकार ने ज़रूर कोई वृद्धि नहीं की, लेकिन बीज और खाद के दाम ज़रूर बढ़ गये. अब कीमत नहीं बढ़ी और खर्च बढ़ गया. किसान तो परेशान होगा ही.
कैराना में सपा-बसपा और आरएलडी गठबंधन की उम्मीदवार तबस्सुम अपने चुनावी मुद्दों पर बात करते हुए कहती हैं, ‘कैराना में किसान सबसे ज़्यादा गन्ने की खेती करते हैं. लेकिन यहां गन्ना किसानों का समय पर भुगतान नहीं हो रहा है. जबकि खुद पीएम मोदी ने समय पर भुगतान कराने का वादा किया था. इस सरकार ने किसानों के साथ अन्याय किया है और हम किसानों तक यह बात पहुंचा रहे हैं. किसान समझ गये हैं कि जुमलों वाली इस सरकार में उनका भला नहीं हो सकता है.‘
आवारा पशु बने परेशानी
उत्तर प्रदेश में आवारा पशु किसानों के लिए परेशानी का सबब बन गये हैं. आवारा पशुओं का झुंड रात में जिस खेत में घुस जाता है, उस खेत को तहस-नहस कर देता है. परेशान किसान दिन में खेती-बाड़ी करते हैं और रात में फसलों की पहरेदारी. खेत ही आजकल किसानों के लिए अस्थायी ठिकाना हो गया है. पिछले दिनों कई खबरें आयीं, जिसमें किसानों ने परेशान होकर आवारा पशुओं को किसी स्कूल के अंदर बांध दिया था.
सहारनपुर में चाय की दुकान पर राजनीतिक चर्चा के दौरान दो किसान आपस में बात करते हुए कहते हैं कि बीजेपी पिछले लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में गाय-गाय करती नज़र आ रही थी, लेकिन इस बार बीजेपी का कोई भी नेता गोवंश का नाम नहीं ले रहा है. जब रिपोर्टर ने इसका कारण जानने की कोशिश की, तो उसमें से एक किसान जयदेव कहते हैं कि दरअसल यहां किसानों को आवारा पशुओं ने परेशान कर रखा है. बीजेपी के लोग जानते हैं कि गोवंश की रक्षा की बात करने पर किसानों में नाराज़गी बढ़ जायेगी और फिर वो वोट नहीं करेंगे.
जयदेव अपने हाथ में उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार की 22 महीने में जारी रिपोर्ट कार्ड को दिखाते हैं, जो बीजेपी की प्रचार गाड़ी अभी-अभी उन्हें देकर गयी है. उसमें सरकार ने दावा किया है कि गोवंश संरक्षण के लिए करोड़ों रूपये खर्च हो रहे हैं. सरकार के इस दावे पर जयदेव कहते हैं कि ‘जब सरकार इतना खर्च कर रही है, तो ये पशु हमारे खेतों में क्यों आ रहे हैं? योगी सरकार की गोवंश नीति के कारण ही प्रदेश के किसानों का बुरा हाल है.’
भारतीय किसान यूनियन की चुप्पी
लगभग हर चुनाव में भारतीय किसान यूनियन खुलकर किसी न किसी दल को समर्थन देता रहा है, लेकिन इस बार किसान यूनियन खामोश है. अभी तक उसने किसी भी दल को समर्थन देने का फैसला नहीं किया है. हालांकि, आरएलडी प्रमुख और मुज़फ़्फ़रनगर से लोकसभा उम्मीदवार चौधरी अजीत सिंह महेंद्र सिंह टिकैत के गांव सिसौली में उनके घर एक रात रुके थे और उनके साथ राकेश टिकैत भी मौजूद थे. जिसके बाद स्थानीय लोगों में चर्चा है कि किसान यूनियन खुलकर तो नहीं, लेकिन दबी ज़बान में सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन को समर्थन दे रहा है. गठबंधन इस बात का प्रचार भी कर रहा है.
न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत करते हुए भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख राकेश टिकैत कहते हैं, ‘हम इस बार किसी भी दल को समर्थन नहीं कर रहे हैं. पूर्व में हमने जब भी खुलकर किसी भी दल को समर्थन किया है, उससे हमारा यूनियन कमजोर हुआ है. हमारे यूनियन में हर दल को वोट करने वाले किसान जुड़े हुए हैं. उन्हें हम किसी एक दल को वोट करने के लिए कहते हैं, तो वो हमारी मंशा पर शक करते हैं. उन्हें लगता है कि हमारी कुछ मिलीभगत है. इसलिए हमने इस बार किसी भी दल को समर्थन देने से इनकार कर दिया है. बीजेपी सत्ता में है, तो उनकी किसान विरोधी नीतियों के कारण हमने विरोध किया है. आगे भी जो पार्टी सत्त्ता में आयेगी, हम उससे किसानों के हक़ के लिए लड़ते रहेंगे.’
गन्ने की खेती का गढ़ कहे जानेवाले पश्चिमी यूपी के लगभग सभी जिलों में 11 अप्रैल को चुनाव है. अब देखना होगा कि 23 मई को जो नतीजे आयेंगे, उसमें किसान किसका मन मीठा करते हैं और किसका नीम.
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