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जहां नरेंद्र मोदी ने की थी किसानों से चाय पर चर्चा, वहां दोगुनी हुई किसानों की आत्महत्या
”मैं अपने आप को, नरेंद्र मोदी को आपकी हाजिरी में संकल्पबद्ध करना चाहता हूं. मैं खुद इस संवेदना के साथ, एक जिम्मेदारी के साथ, देश में जो भी इस विषय (कृषि) के जानकार हैं उनकी मदद लेकर कोई ऐसे स्थायी समाधान खोजूं ताकि अब मेरे देश में किसी गरीब किसान के बेमौत मरने की नौबत न आए और आप परिवारजन जो यहां बैठे हो, जिन्होंने किसी न किसी को गंवाया है, मैं आज आपके पास आया हूं. आप मुझे आशीर्वाद दें और शक्ति दें, ताकि मैं कुछ ऐसे काम कर सकूं कि आपके बाद कभी भी किसी को भी इस संकट से गुजरना न पड़े.”
ये बातें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में किसानों के साथ ‘चाय पर चर्चा’ के दौरान कही थी. उस वक्त नरेंद्र मोदी बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे. इस चर्चा के दौरान किसानों से बात करते हुए नरेंद्र मोदी कई बार बेहद भावुक हुए. उन्होंने किसानों के बीच बैठकर उनका दर्द सुना और सत्ता में आने के बाद उसे दूर करने का वादा किया.
बीजेपी और नरेंद्र मोदी को महाराष्ट्र के लोगों ने आशीर्वाद और शक्ति दोनों दिया. महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से 24 सीटों पर बीजेपी ने अपने उम्मीदवार खड़े किये और 23 पर उसने फ़तह हासिल की. बीजेपी की सहयोगी पार्टी शिवसेना 20 सीटों पर चुनाव लड़ी और उसे 18 सीटों पर जीत नसीब हुई. कांग्रेस और एनसीपी क्रमशः दो और चार सीटों पर सिमटकर रह गई. केंद्र में ही नहीं महाराष्ट्र में भी बीजेपी की लम्बे समय बाद राज्य की सत्ता में वापसी हुई.
लेकिन इससे किसानों के हालात में कोई बदलाव नहीं हुआ. उनकी स्थिति दिन-ब-दिन ख़राब ही होती गई. एक आरटीआई के जवाब में महाराष्ट्र सरकार ने किसानों की आत्महत्या के संबंध में जानकारी दी है. सूचना के अनुसार, 2014 के बाद महाराष्ट्र में किसान आत्महत्या के आंकड़े भारत में दिन-ब-दिन और गहरा रहे हैं. ये आंकड़े कृषि संकट की एक भयावह तस्वीर पेश करते हैं.
आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या दोगुनी हो गई है. आरटीआई कार्यकर्ता जितेंद्र घाडगे ने किसानों की आत्महत्या को लेकर एक आरटीआई दायर किया था. इस आरटीआई का जवाब बेहद चौंकाने वाला था. आंकड़ों पर गौर करें तो 2011-2014 में 6,268 किसानों ने आत्महत्या की थी वहीं 2015 -18 के बीच यह आंकड़ा निराशाजनक रूप से बढ़कर 11,995 (लगभग दोगुना) हो गया.
आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार साल 2014 में 2,039, 2015 में 3,263, 2016 में 3,052, 2017 में 2,019 तो 2018 में 2,761 किसानों ने फसल की बर्बादी और कर्ज अदा कर पाने की असमर्थता के चलते अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली.
पांच डिवीजन में बंटे महाराष्ट्र में 2014 से 2018 के बीच सबसे ज्यादा किसान आत्महत्याएं उस इलाके में हुईं, जहां बैठकर पीएम मोदी ने देशभर के किसानों का दुख-दर्द साझा किया था. अमरावती डिवीज़न जिसमें पांच जिले आते हैं, बीते चार सालों में 5,214 किसानों ने आत्महत्या की है. नरेंद्र मोदी ने अमरावती डिवीज़न में आने वाले जिले यवतमाल में किसानों के साथ चाय पर चर्चा की थी.
किसानों की आत्महत्या के मामले में दूसरे नंबर पर औरंगाबाद डिवीज़न है. यहां पर 2014 से 2018 के बीच 4,698 किसानों ने आत्महत्या की है. बाकी डिवीजन में 2014 से 2018 तक आत्महत्या करने वालों किसानों की संख्या की बात करें तो कोंकण में 15, नासिक में 2,147, पुणे में 391 और नागपुर में 1,571 किसानों ने आत्महत्या की है.
आत्महत्या के बाद परिजनों को मुआवजा
किसानों की आत्महत्या की स्थिति में महाराष्ट्र सरकार परिजनों को मुआवजा देती है, लेकिन यह आरटीआई बताती है कि आत्महत्या के शिकार ज़्यादातर किसान परिवारों को मुआवजा भी नहीं मिला है. आंकड़ों के अनुसार 2014 से लेकर 2018 तक 8,249 किसानों के परिजनों को मुआवजा दिया गया. यानी 5,035 किसानों के परिजनों को किसी न किसी वजह से मुआवजा देने लायक नहीं समझा गया.
जितेंद्र घाडगे के अनुसार महाराष्ट्र सरकार ने मुआवजा देने के कुछ नियम तय कर रखे हैं. नियम के अनुसार उन मामलों में ही आत्महत्या करने वाले किसानों के परिजनों को मुआवजा मिल सकता है जिन्होंने सरकारी बैंक से कर्ज लिया हो. निजी बैंक, कॉपरेटिव बैंक और साहूकारों से कर्ज लेने के बाद आत्महत्या करने वाले किसानों के परिजनों को सरकार मुआवजा नहीं देती है.
अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के पूर्व अध्यक्ष और महाराष्ट्र में लम्बे समय से किसानों के लिए संघर्ष करने वाले विजय जावंधिया न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में बताते हैं, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों का वोटबैंक की तरह इस्तेमाल किया है. प्रधानमंत्री चुनाव प्रचार के दौरान घूम-घूमकर किसानों की आमदनी बढ़ाने की बात कर रहे थे, लेकिन पांच साल तक सत्ता में रहते हुए उन्होंने कुछ नहीं किया. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दिया कि फसलों की खरीद के वक़्त लागत से 50 प्रतिशत देना मुश्किल है. बाद में एक और नया शिगूफा छोड़ा गया कि किसानों की आमदनी को साल 2022 तक डबल कर देंगे.”
विजय जावंधिया आगे कहते हैं, “नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव 2014 से पहले देश के हर सभा में कहते थे कि मनमोहन सरकार की नीति ‘मरे जवान-मरे किसान’ है पर हमारी सरकार आएगी तो हमारी नीति ‘जय जवान-जय किसान’ होगी. मोदी सरकार ने भी बाकियों की तरह किसानों को सिर्फ ठगा है. किसान आज भी बदहाल हैं. उसकी स्थिति और ख़राब ही हुई है.”
चुनाव के दौरान बीजेपी ने किसानों के लिए एक वीडियो जारी किया था जिसमें तब के बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी बोलते नजर आते हैं. बीजेपी के यूट्यूब पर मौजूद इस 41 सेकेंड के वीडियो में नरेंद्र मोदी, किसानों की आत्महत्या पर चिंता जाहिर करते हुए तत्कालीन मनमोहन सरकार की आलोचना करते नजर आ रहे है.
लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान किसानों के हित की बात करने वाली बीजेपी क्या अपने शासन के दौरान किसानों के लिए कुछ किया, ये सवाल जब हमने सालों से किसानों के हक़ में आवाज़ उठा रहे वरिष्ठ पत्रकार पी साईंनाथ से पूछा तो उन्होंने कहा, “आए थे आमदनी दोगुनी करने, आत्महत्या दोगुनी कर गए. इस सरकार ने किसानों को ठगा ही है.”
हालांकि पी साईंनाथ महाराष्ट्र सरकार द्वारा दिए गए आंकड़े पर भी सवाल उठाते हैं. वो कहते हैं, “राज्य सरकार ने जो आंकड़े जारी किए हैं वो सही नहीं हैं. मुआवजा देने के लिए कम नाम दर्ज होते है. एनसीआरबी पिछले तीन सालों से किसानों के आत्महत्या से जुड़े आंकड़े जारी नहीं कर रहा है. एनसीआरबी जो आंकड़ें जारी करता है वो ज्यादा सही आंकड़ा होता है.”
किसानों की आत्महत्या के सम्बंध में पांच फरवरी को लोकसभा में कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने लिखित में बताया कि 2015 के बाद से एनसीअरबी ने किसानों की आत्महत्या के आंकड़े जारी नहीं किए हैं. राधामोहन सिंह ने इसी क्रम में बताया कि एनसीआरबी के आंकड़ें के अनुसार देशभर में 2014 में जहां 12,360 किसान और खेतिहर मज़दूरों ने आत्महत्या की वहीं 2015 में ये संख्या 12,602 रही थी.
किसानों के आत्महत्या के आंकड़े सरकार क्यों जारी नहीं कर रही है, इस सवाल के जवाब में किसान नेता योगेंद्र यादव न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में बताते हैं कि महराष्ट्र में सालों से किसान आत्महत्या कर रहे हैं. अगर उनकी संख्या में इजाफा हुआ है तो निश्चय ही पूरे देश में भी आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या में इजाफ़ा हुआ होगा. अब तक की सबसे बड़ी किसान विरोधी मोदी सरकार शायद इसी कारण किसानों के आत्महत्या के आंकड़े जारी नहीं कर रही है. अगर आंकड़े जारी हो गए तो सरकार पर सवाल उठेंगे.
विदर्भ में ज़्यादातर किसानों को इससे नहीं होगा कोई फायदा
विजय जावंधिया बताते हैं कि चार सालों तक मोदी सरकार किसानों को बरगलाती रही है. किसान परेशान होकर सड़कों पर उतरे तब उन्हें आश्वासन देकर लौटा दिया गया. महाराष्ट्र में और दिल्ली में किसानों ने जबरदस्त प्रदर्शन किया. मोदी सरकार ने किसानों की मांगों पर ध्यान ही नहीं दिया. कर्ज माफी पहले केंद्र के जिम्मे हुआ करता था, लेकिन इस सरकार ने इसे राज्य के जिम्मे छोड़ दिया है. जब पांच राज्यों में हुए चुनाव में बीजेपी को नुकसान हुआ और तीन राज्यों की सत्ता हाथ से चली गई तब लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले केंद्र की बीजेपी सरकार को किसान याद आए और फिर उन्हें छह हजार रुपए देने का फैसला लिया गया. इस योजना का लाभ विदर्भ में बहुत कम किसान उठा पाएंगे क्योंकि यहां ज्यादातर किसानों के पास 5 एकड़ से ज़्यादा ज़मीन है और योजना की शर्तों के मुताबिक़ इसका लाभ उसे ही मिले सकेगा जिसके पास 5 एकड़ से कम ज़मीन है.
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