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पीएसीएल चिटफंड घोटाला: बेगुनाह सज़ायाफ्ता
“गांव जाने पर लोग गाली देते हैं, मारने को दौड़ते हैं. किसी रिश्तेदारी में भी नहीं जा सकता. उनकी निगाहें भी सवाल करती हैं. लोग जमीन पर कब्जा करने की धमकी दे रहे हैं. मेरी मोटरसाइकिल छीनकर ले गए,” यह कहते-कहते अलीगढ़ के रजनीश गोस्वामी रोने लगते हैं.
रजनीश गोस्वामी पर्ल एग्रोटेक कोरपोरेशन लिमिटेड (पीएसीएएल) के कमीशन एजेंट रहे हैं. इन्होंने करीब सौ लोगों को सदस्य बनाया था. जिनका लगभग 80 लाख रुपए कंपनी बंद होने के बाद फंस गया है. लोग अपने पैसे के लिए रजनीश पर दबाव बना रहे हैं, लेकिन सेबी, सुप्रीम कोर्ट और पीएसीएल के भंवर में फंसे रजनीश अपने ग्राहकों को कोई जवाब देने की स्थिति में नहीं हैं.
रजनीश की तरह द्वंद्व में फंसे लोगों की संख्या लाखों में है. ये लोग देश के अलग-अलग राज्यों में फैले हुए हैं. पीएसीएल कंपनी के एजेंट रहे लोग सिर्फ इस गुनाह के चलते छिपने, घर छोड़ने पर मज़बूर हैं क्योंकि उन्होंने पीएसीएल में बतौर कमीशन एजेंट नौकरी की. जिन लोगों का पैसा पीएसीएल में फंसा है उनके लिए कंपनी से जुड़ने का एकमात्र जरिया ये एजेंट ही थे. लिहाजा लोग इन एजेंटों की गाड़ियां छीन ले रहे हैं. कइयों की पिटाई भी की गई. इनके खेतों पर कब्जा करने की धमकियां दी जा रही हैं. कुछ ने आत्महत्या भी कर ली.
पीएसीएल और इसका धंधा
इसे भारत की सबसे बड़ी चिट-फंड लूट कहा जा सकता है. 57,800 करोड़ रुपये भोले-भाले निवेशकों को फर्ज़ी सपने दिखाकर ठग लिया गया. 1982 में बनी कंपनी है पीएसीएल. इसके तहत कई कंपनियों का निर्माण हुआ.
1997 में सेबी ने इस कंपनी के कामकाज को संदेहास्पद मानते हुए इस पर केस दर्ज किया था. 2003 में राजस्थान हाईकोर्ट से कंपनी सेबी के ख़िलाफ़ केस जीत गई. 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाई कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया और सेबी से कहा कि वह जांच करे. सेबी ने जांच में पाया है कि बग़ैर क़ानूनी अनुमति के इस कंपनी ने सामूहिक बचत योजना चलाई और करीब 5 करोड़ 60 लाख साधारण लोगों के पैसे हड़प लिए. इस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस आरएम लोढा कर रहे हैं. उन्होंने सेबी को आदेश दिया था कि इस कंपनी के प्रमोटरों ने आस्ट्रेलिया में कई संपत्तियां बनाई हैं, उन पर दावा कर निवेशकों को पैसा लौटाया जाए.
पीएसीएल के पीड़ितों के पक्ष में लड़ने वाली संस्था आल इन्वेस्टर सेफ्टी आर्गेनाइजेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष पृथ्वीराज यादव न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, “पीएसीएल कंपनी ने राजस्थान सरकार से मान्यता लेकर पूरे देश में 17 सालों तक ज़मीन खरीदने और बेचने का काम किया. जिसमें राजस्थान समेत देश के कई राज्यों के लोगों ने पैसा लगाया. कंपनी लोगों से जमीन पर पैसे लगवाती थी और उसके बाद तय समय पर ग्राहकों को ब्याज समेत पैसे लौटा देती थी.
कागजों पर कंपनी जमीन देने की भी बात करती थी, लेकिन किसी ने जमीन नहीं लिया. पीएसीएल में लगभग 12 प्रतिशत ब्याज मिलता था तो लोगों ने लालच में खूब पैसे लगाए. कंपनी साल 2013 तक सभी ग्राहकों को नियत समय पर ईमानदारी से पैसे देती रही, लेकिन सेबी ने 22 अगस्त, 2014 को कंपनी का कारोबार बंद करा दिया तब से हमारे करोड़ों रुपए फंसे हुए हैं.”
जब सेबी ने पीएसीएल के कारोबार पर रोक लगा दी तो दोनों के बीच सुप्रीम कोर्ट में केस चला. आल इन्वेस्टर सेफ्टी आर्गेनाइजेशन भी इस मामले में पक्षकार बना. मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व न्यायधीश जस्टिस लोढ़ा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया. इसमें तय हुआ कि पीएसीएल की संपत्तियों को बेचकर ग्राहकों को पैसे वापस दिए जाएं. कमेटी ने 2 फरवरी, 2016 को सेबी को इस संबंध में निर्देश दिया था, लेकिन आज तीन साल गुजर जाने के बाद भी लाखों पीड़ित न्याय की उम्मीद में भटक रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के तीन साल पूरा होने पर 2 फरवरी को देश भर से पीएसीएल के पीड़ित हज़ारों की संख्या में दिल्ली पहुंचे. जिससे भी हमने बात करने करने की कोशिश की वो बातचीत के दौरान अक्सर रोने लगता था. बिहार के नालंदा जिले से आईं बेबी देवी कंपनी की ग्राहक और एजेंट दोनों रही हैं. उन्होंने बेटी की शादी के लिए पांच लाख रुपए जमा किए थे जो उन्हें 2015 में ब्याज समेत मिलने वाला था, लेकिन अब वो सारा पैसा डूब गया है.
बेबी कहती हैं, ‘‘मैं अपना मन मार भी लेती, लेकिन जिन ग्राहकों के पैसे जमा करवाई हूं वो भी मुझे गाली देते हैं. एक ने लाठी से मारकर मेरा हाथ तोड़ दिया. हम लोगों को क्या जवाब दें. उनके पैसे हमने जमा कराये हैं तो वो मांगेगे ही. कई बार आत्महत्या करने का मन करता है, लेकिन सामने बेटियों का चेहरा आ जाता है.’’
आल इन्वेस्टर सेफ्टी आर्गेनाइजेशन के अनुसार पीएसीएल पर लगभग 57,800 करोड़ रुपए का उधार है. सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश के 65 लाख, उसके बाद बिहार के 40 लाख, पंजाब के 30 लाख, राजस्थान के 45 लाख, मध्य प्रदेश के 40 लाख, छत्तीसगढ़ के 35 लाख, गुजरात के 30 लाख, कर्नाटक के 35 लाख, महाराष्ट्र के 55 लाख, हरियाणा के 35 लाख, दिल्ली के 10 लाख, उत्तराखंड के 20 लाख, झारखंड के 20 लाख, जम्मू-कश्मीर के 5 लाख, तमिलनाडु के 15 लाख, असम के 15 लाख, केरल के 15 लाख, गोवा के 5 लाख, हिमाचल प्रदेश के 20 लाख, आंध्र प्रदेश के 15 लाख, पश्चिम बंगाल के 15 लाख, तेलंगाना के 10 लाख, ओडिशा के 10 लाख और त्रिपुरा के 5 लाख लोगों ने पीएसीएल में पैसे लगाए थे. (ये सभी संख्या अनुमानित है)
दिल्ली के रहने वाले हातिम अली न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, “पीएसीएल के बंद होने से देशभर में लगभग 75 लाख लोग बेरोजगार हो गए. हम अपनी बेरोजगारी का रोना नहीं रो रहे, लेकिन हमने जिनका पैसा लगाया था, उसमें हमारे घनिष्ठ रिश्तेदार, दोस्त-यार और पड़ोसी थे. हम चाहते है कि हमारा पैसा मिल जाए, लेकिन हमसे मजाक किया जा रहा है. तीन साल बीत गए, कुछ लोगों को मामूली पैसे वापस मिले है बाकी लोग इंतजार ही कर रहे हैं.”
पीड़ितों का कहना हैं कि कोलकता में शारदा चिटफंड घोटाले को लेकर हंगामा जारी है, लेकिन पीएसीएल चिटफंड स्कैम की तरफ किसी की नजर नहीं है. पीएसीएल के पीड़ितों को उनके हाल पर छोड़ दिय गया है. मीडिया भी अब उनसे मुंह मोड़ चुका है.
जब सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर है, सेबी को पीएसीएल की संपत्ति बेंचकर लोगों के पैसे वापस करने है फिर देरी क्यों हो रही है? इस सवाल के जवाब में पृथ्वीराज यादव कहते हैं, “पीएसीएल की संपत्ति पर सबकी गिद्ध दृष्टि है. लोढ़ा कमेटी ने झारखंड के एक बड़े अधिकारी राकेश कुमार को नोडल अधिकारी बनाया था. उन्होंने पीएसीएएल की एक बड़ी संपत्ति को सेबी के अधिकारियों के साथ मिलकर सस्ते में बेंच दिया. हमने इस पर आपत्ति दर्ज कराई, जस्टिस लोढ़ा को पत्र लिखा उसके बाद उन्हें हटा दिया गया.”
पीएसीएल के कर्मचारियों ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को समर्थन दिया था. पृथ्वीराज यादव बताते हैं कि हमने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत बीजेपी के कई नेताओं से मिलने की कोशिश की लेकिन किसी ने हमें वक़्त नहीं दिया, इसके बाद हमने कांग्रेस को समर्थन पत्र सौंपा. लोकसभा चुनाव तक अगर हमें पैसे नहीं मिलते है तो हम उन पार्टियों का पक्ष लेंगे जो सत्ता में आने के बाद हमें पैसे दिलाने का वादा करेंगी.
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