Newslaundry Hindi
#बजट 2019: मासूम-सा मोर नाचा तो कबूतर निकला
हिंदी फिल्मों की एक खासियत है, अगर फिल्म बेकार भी हो, तो कभी-कभी उसमें गाने लाजवाब होते हैं. कुछ साल पहले एक फिल्म आयी थी ‘एक थी डायन’. फर्स्ट हाफ काफी अच्छा था और सेकेंड हाफ बेकार. इस फिल्म में गुलज़ार का लिखा एक गाना था, याराम. इस गाने की एक लाइन कुछ ऐसी है- “कोई ख़बर आयी न पसंद तो एंड बदल देंगे”. प्रिय पाठक, आप भी सोच रहे होंगे कि मैं कहां गाने की बात लेकर बैठ गया.
खैर, बात ये है कि मोदी सरकार का भी बुरी ख़बरों के प्रति यहीं रवैया है. जैसे कि दो दिन पहले ख़बर आयी कि 2017-18 में बेरोज़गारी 45 साल में सबसे ऊंचे स्तर पर चली गई. इस खबर के आने बाद सरकार ने यह करार दिया कि वह रिपोर्ट केवल एक ड्राफ्ट रिपोर्ट थी और उस रिपोर्ट से अपने हाथ धो लिए.
ऐसा ही कुछ रवैया वित्तमंत्री पीयूष गोयल के बजट भाषण में नज़र आया. जैसे कि उन्होंने नौकरियों की बात लगभग नहीं की. पूरे भाषण में पांच जगह पर “जॉब्स” शब्द का काफी अस्पष्ट तरीके से ज़िक्र किया गया. जिस देश के 1-1.2 करोड़ युवा हर साल नौकरी की खोज में जुटे रहे हैं और उन्हें नौकरियां मिल नहीं रही, अगर उस देश का वित्तमंत्री नौकरियों की बात नहीं करेगा, तो कौन करेगा? अमिताभ बच्चन?
फिर रही किसानों की खस्ताहाल तबीयत की बात. इसका भी कोई ज़िक्र नहीं था. हालांकि हर सीमांत और छोटे किसान को 6,000 रुपए साल में देने की बात की गयी. लेकिन देश के ज़्यादातर हिस्सों में लैंड रिकॉर्ड्स की हालत काफी ख़स्ता है. तो फिर ये कैसे होगा, इस पर वित्तमंत्री ने कुछ नहीं कहा. या फिर अनौपचारिक (असंगठित) क्षेत्र में काम करता हुआ व्यक्ति, एक और सरकारी पेंशन योजना का हिस्सा बनने के लिए, यह कैसे साबित करेगा कि वह अनौपचारिक क्षेत्र में काम करता है.
गोयल ने देश को यह भी बताया कि बीजेपी के राज में मुद्रास्फीति काफी कम रही है, जो कि एक हद तक सही बात है. लेकिन पूरी तरह सही नहीं. मुद्रास्फीति गिरने की सबसे बड़ी वजह है खाद्य पदार्थों के दामों का गिरना. और इन गिरते हुए दामों से किसानों का काफी ज़्यादा नुकसान हुआ है. पर यह बुरी खबर है. इसलिए गोयल ने इस बात का ज़िक्र अपने भाषण में कहीं नहीं किया.
गोयल ने देश को यह भी बताया कि पिछले कुछ सालों में वॉइस कॉल्स और डाटा के दाम बहुत गिरे हैं. यह बात बिल्कुल सही है. पर इसमें सरकार का क्या हाथ था? यह तो केवल निजी क्षेत्र में मची स्पर्धा का नतीजा है.
आपको यह जानकार भी ख़ुशी होगी कि पिछले पांच सालों में भारत में हवाई सफर करने वालों की संख्या दोगुनी हो गयी है. गोयल ने देश को यह बताया कि यह कई नए एयरपोर्ट खोलने की वजह से हुआ है. नए एयरपोर्ट खोलना सराहनीय है. पर उन्होंने यह नहीं बताया कि इन छोटे एयरपोर्ट से कितने लोग हवाई सफर करते हैं. उन्होंने यह भी नहीं बताया कि ज़्यादातर लोग अब भी बड़े शहरों के बीच में ही हवाई सफर कर रहे हैं.
दिलचस्प बात यह है कि गोयल ने ट्रेनों का बहुत कम ज़िक्र किया. हवाई सफर करने वालों से ट्रेनों का क्या नुकसान हो रहा है? या फिर ट्रेनों की सेकंड क्लास डिब्बों की हालत, जिसमें भारत का आम आदमी सफर करता है, इतनी खस्ताहाल क्यों है? इन सब बातों का ज़िक्र नहीं किया गया.
और क्या कहूं. ओह हां, मेक इन इंडिया. अपने भाषण के लगभग अंत में, गोयल ने विज़न 2030 की बात की. मेक इन इंडिया के द्वारा “जॉब्स क्रिएट” करना भी विज़न का एक हिस्सा है. पर मेक इन इंडिया तो 2015 में लांच हो गया था, और फिर ठप भी हो गया. सुनने में बहुत अच्छा लगता है, मेक इन इंडिया. पर ये होगा कैसे. ये क्यों नहीं हो रहा है. इन चीज़ों पर गोयल ने कोई बात नहीं की. अब केवल मेक इन इंडिया बोलने से मेक इन इंडिया होने लगता तो क्या बात होती.
और अंत में, गुलज़ार ने कमीने फिल्म का टाइटल गाना भी लिखा है. उस गाने में एक लाइन है, ‘मासूम सा कबूतर नाचा तो मोर निकला.’
मोदी सरकार का बजट कुछ उल्टा था. मासूम सा मोर नाचा तो कबूतर निकला.
Also Read
-
Two years on, ‘peace’ in Gaza is at the price of dignity and freedom
-
4 ml of poison, four times a day: Inside the Coldrif tragedy that claimed 17 children
-
Delhi shut its thermal plants, but chokes from neighbouring ones
-
Hafta x South Central feat. Josy Joseph: A crossover episode on the future of media
-
Encroachment menace in Bengaluru locality leaves pavements unusable for pedestrians