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योगी के पिछवाड़े और राहुल की मरी हुई बिल्लियों से निर्मित द प्रिंट की उत्तर आधुनिक हिंदी
डिस्क्लेमर: इस स्टोरी का मकसद न तो योगी आदित्यनाथ का मज़ाक उड़ाना है, ना ही राहुल गांधी का, और द प्रिंट का तो बिल्कुल भी नहीं. स्वस्थ मन से ग्रहण करें.
तकनीक ने ज़िंदगी आसान की है लेकिन बहुतों की ज़िंदगी दुश्वार भी की है. डेस्क पर काम करने वाले पत्रकार ऐसे ही जीव कहे जा सकते हैं. एक वाकया लखनऊ का है.
एक अंग्रेजी के अखबार जिसने अपना हिंदी संस्करण भी शुरू किया था, उसने अपने हिंदी के रिपोर्टरों को अंग्रेज़ी में भी ख़बर भेजने का जिम्मा सौंपा दिया. एक रिपोर्टर ने अंग्रेज़ी में निम्न टाइटल के साथ स्टोरी फ़ाइल की जो कि डेस्क पर आज भी तफरीह का सबब है.
“स्कर्ट इज़ अबव डेंजर लेवल”. दरअसल रिपोर्टर ने नए-नए आये गूगल ट्रांसलेशन का प्रयोग किया था. उसकी हिंदी स्टोरी का टाइटल था– घाघरा खतरे के निशान से ऊपर.
कल से द प्रिंट हिंदी के कुछ आर्टिकल का स्क्रीन शॉट वायरल हो रहा है. यह आर्टिकल मशहूर पत्रकार और द प्रिंट के संस्थापक संपादक शेखर गुप्ता के अंग्रेजी में लिखे आर्टिकल का हिंदी अनुवाद है. अटकल और अनुमान है कि हिंदी का जो स्क्रीन शॉट वायरल हो रहा है वह गूगल देवता के ऊपर ट्रांसलेटर की अतिशय निर्भरता और भरोसे का परिणाम है. अनुवादक की लापरवाही की वजह से अर्थ का अनर्थ हो गया है.
बीते 26 जनवरी को शेखर गुप्ता ने ‘6 फैक्टर्स दैट विल डिटरमाइन हू विल बी इंडियाज़ नेक्स्ट पीएम एंड हू वॉन्ट’ शीर्षक से लेख लिखा था. इसका हिंदी में भी अनुवाद उनकी हिंदी वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ. अनुवादक ने पहली गलती शीर्षक के अनुवाद में ही की है. अनुवादक शीर्षक का अनुवाद करते हुए लिखते है- 6 फैक्टर्स, जो तय करेंगे कौन होगा भारत का अगला प्रधानमंत्री या नहीं. जाहिर है हिंदी का व्याकरण अंत इस तरह से करने की अनुमति नही देता. अगर सही या सही के आस-पास के अनुवाद की बात करें तो यह कुछ-कुछ ऐसा हो सकता था- ‘6 बातें जो तय करेंगी कि भारत का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा और कौन नहीं.
इसी लेख में आगे शेखर गुप्ता लिखते हैं, Unlikely, but you can never rule that out, even if it means the hatchet being buried later in Yogi Adityanath’s back.
इसका वाक्य के साथ अनुवादक ने ज़्यादा अनर्थ किया है. अनुवादक ने इस वाक्य का अनुवाद करते हुए लिखा- ‘भले ही इसका अर्थ हो कि कुल्हाड़ी को बाद में योगी आदित्यनाथ के पिछवाड़े ही दफन करना पड़े.’ बाद में जब इसका स्क्रीन शॉट सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो सुधारा गया है. लेकिन सुधार के बाद भी अभी भी यह गलत ही जा रहा है. अगर हम लेख को ठीक से पढ़े तो उसका अर्थ ये निकलता है कि अगर दूसरे टर्म के लिए मोदी को मायावती को साथ लेना पड़ा तो वे योगी आदित्यनाथ को नज़रंदाज़ करने का खतरा उठाते हुए भी मायावती के साथ अतीत की कड़वाहट को भुला देंगे.
ऐसा नहीं है कि द प्रिंट हिंदी ने पहली दफा कोई गलत अनुवाद किया है. इससे पहले भी 23 जुलाई 2018 शिवम विज ने Can Rahul Gandhi put 292 dead cats on the table? शीर्षक से लेख लिखा है. इस लेखक में शिवम विज लिखते हैं कि- To make any significant impact this election, Rahul Gandhi needs to put 292 dead cats on the table.
इस वाक्य का अनुवाद करते हुए अनुवादक ने लिखा है कि इस चुनाव पर अपना कोई अहम प्रभाव डालने के लिए राहुल गांधी को ऐसे 292 मुर्दा बिल्लियों की जरूरत है जिसके बारे में जनता सब कुछ भूलकर हर हाल में विचार करने पर मज़बूर हो जाए.
हमने इस वाक्य को गूगल ट्रांसलेटर में डाला तो हमें पता चला की अनुवादक ने यहीं से अनुवाद उठाया है. कायदे से इस वाक्य का अर्थ होना चाहिए- ‘अगर चुनाव में बेहतर करना है तो बचे हुए 292 दिनों में राहुल गांधी को हर दिन एक नए मुद्दे की ज़रूरत पड़ेगी.’
अनुवाद की गड़बड़ी को लेकर लोगों के कई नज़रिए हो सकते हैं. कुछ लोग इसे शुद्धतावादी आग्रह कह सकते हैं, लेकिन भाषा के साथ इस तरह की छेड़छाड़ वो भी पत्रकारिता के माध्यम में चलते-फिरते नज़रंदाज़ नहीं की जानी चाहिए. ज्यादा नहीं 15 साल पहले तक लोगों को भाषा की जानकारी और सुधार के लिए जनसत्ता पढ़ने की सलाह दी जाती थी. संयोग से जनसत्ता का संबंध उसी संस्थान से है जिसके संपादक लम्बे अरसे तक शेखर गुप्ता रहे हैं. शेखर गुप्ता यदाकदा खुद को एचएमटी यानी हिंदी मीडियम टाइप कहते रहे है, उस शेखर गुप्ता से इतनी उम्मीद ज़्यादा तो नहीं है.
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