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बलात्कार के बाद जन्मी बच्ची की कीमत 15 हजार?

शाम का वक्त और सर्द हवाहों के बीच प्रतिमा (बदला हुआ नाम) के शरीर से लिपटी एक पतली सी चादर उसकी कंपकपाहट को कम नहीं कर पा रही है. वो जलावन के लिए घर के बाहर बिखरे पड़े झुरियों को अपने बच्चों के साथ समेट रही है. पूछने पर कहती है, “फागुन की रात थी. बारह बज रहा था. मैं चीखी-चिल्लाई और रोई भी. लेकिन किसी को मेरी चीख सुनाई नहीं दी.”

रांची से 25 किलोमीटर दूर अनगढ़ा प्रखंड का नारायण सोसो आदिवासी बहुल्य गांव है जहां की औरतें मर्दों के बराबर ही मजदूरी कर लेती हैं. प्रतिमा इसी गांव की है, लेकिन परिवार से अलग-थलग पड़ी उसकी जिंदगी अछूत मालूम पड़ती है.

प्रतिमा के मुताबिक एक साल पहले फागुन की एक रात उसके साथ कुछ लोगों ने बलात्कार किया, जिसके बाद वो प्रेग्नेंट हो गई. लेकिन उसकी तमाम गुहार को उसके अपनों ने ही दबा दिया. परिवार, पड़ोसी, ग्रामीण और मुखिया लगभग सबके संज्ञान में बात आई, लेकिन किसी ने भी उसकी बात का भरोसा नहीं किया.

बाद में कुछ लोगों की मदद से बात थाने तक पहुंची भी तो पुलिस ने यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया है कि उन लोगों ने (पीड़ित और आरोपी पक्ष) मिल बैठकर मामले को सुलझा लिया है तो पुलिस अब क्या कर सकती है?

पीड़िता पर लांछन

पीड़िता की उम्र 40 के आस-पास है. वो एक आदिवासी विधवा है. चार साल पूर्व पति की बीमारी के कारण मौत हो गई,जिसके बाद से वो दिन में दिहाड़ी मजदूरी कर अपनी छोटी सी झोपड़ी में गुजर-बसर करती थी.

उस रात और क्या हुआ था, ये बताते हुए वो बिलखने लगती है. रुंधे गले से बोलती है, “बाहर चार लोग खड़े थे और दो जन भीतर मेरे साथ जबरदस्ती कर रहे थे. सुबह लोगों को बताया तो उन्होंने अनसुना कर दिया गया. बाद में मैंने ये भी कहा कि मैं पेट से हो गई हूं, तो कुछ ने उल्टा मुझपर ही लांछन लगाया, कुछ ने कहा गलती हो गई छोड़ दो.”

प्रतिमा के घर सामने भुटका मुंडा का घर है. इन्हीं की पत्नी को घटना की सुबह सबसे पहले प्रतिमा ने सूचना दी थी.
भुटका मुंडा ने हमें अपने घर के अंदर बुलाकर कहा, “अंदर आइए. मेरी पत्नी से वो बताई थी. उसके साथ गलत हुआ.

हमलोग इसमें कुछ बोलेंगे तो उसके परिवार वाले हमसें झगड़ा करने लगेंगे. इसलिए आप उसके परिवार से ही बात कीजिए.”

पीड़िता की पैरवी करने वाली गांव की महिलाओं का भी यही कहना है. इनके मुताबिक परिवार वालों ने पीड़िता पर घटना के बारे में चुप रहने का दबाव बना रखा है.

परिवार, पुलिस और प्रश्न

इस घटना को लेकर आरोपी का पक्ष और पीड़िता के परिवार के तरफ किए गए प्रयासों से कई प्रश्न खड़े होते हैं, और मालूम होता है कि मामले को दबाया गया.

हुंणडरू फाल की तरफ जाने वाली सड़क के दोनो तरफ बसे इस गांव में लगभग सौ घर की आबादी है. सड़क से सटे दाई ओर वार्ड सदस्य शांति देवी का घर है जो पीड़िता की भतीजी लगती हैं. वो और भतीजा गोवर्धन मुंडा कहते हैं, “चाची के लिए बहुत किया. वो कोई बात ही नहीं मानती है हम लोगों की. थाना में केस भी किया, और क्या करें. अब कोई लेना-देना नहीं उनसे.”

परिवार वाले यह तो मानते हैं कि बलात्कार हुआ और उन्होंने गर्भवती होने की बात पूरे गांव और पुलिस को भी बताई. तो सवाल है कि कार्रवाई क्यों नहीं हुई, इस पर चुप्पी क्यों है?

वहीं पुलिस के मुताबिक मामला थाना तक तो पहुंचा लेकिन कोई केस दर्ज नहीं हुआ, बल्कि आरोपी और पीड़ित पक्ष ने मामले को गांव में ही निपटा लिया.

इस पूरे मामले पर थाना प्रभारी शंकर प्रसाद ने कहा, “ढाई महीने पहले काफी संख्या में औरतें आई थीं. उस महिला (पीड़िता) को लेकर. आरोपी और पीड़िता पक्ष के लोग भी थे. लेकिन उन लोगों ने आपस में मामले को सुलटाने की बात कही. साथ ही ये भी कहा का था कि पीड़िता के पेट में पल रहे बच्चे की देख-रेख का जिम्मा लेते हैं. इसमें पुलिस अब क्या कर सकती है. पीड़िता आकर आवेदन दे तो हम आज भी केस दर्ज करने के लिए तैयार हैं.”

इसी गांव की एक महिला नाम नहीं बताने की शर्त पर कहती है, “मामला बहुत गंभीर था. पीड़िता के साथ हमलोग करीब 50 महिलाएं चार अक्टबूर, 2018 को शाम से लेकर एक बजे रात तक केस दर्ज करने की मांग करते रहे, पर पुलिस ने कई भद्दे सवाल.”

इन्हीं महिलाओं का कहना है कि उन्होंने केस दर्ज करने को लेकर पुलिस को आवेदन भी दिया था, लेकिन वहां मौजूद आरोपी पक्ष की बात सुनना पुलिस ने ज्यादा बेहतर समझा.
जन्मी बच्ची कहां गई?

ठंड से ठिठुरता तीन साल का सुभाष (बदला हुआ नाम) अपनी मां यानी प्रतिमा से बात करता देख मुझे टकटकी लगाकर देखने लगता है. तभी दूर दो और खड़े बच्चे पास आकर बैठ जाते हैं पर बलात्कार के बाद जन्मी वो बच्ची न गोद में थी, ना ही घर के भीतर दिखाई पड़ी.

बच्ची के सवाल पर पीड़िता सिर्फ इतना कहती है, “पास में पहले से बेटी है. कहां से तिलक देंगे. इसीलिए उसे अनाथालय में दे दिया.” लेकिन कई बार अनाथालय का नाम और पता पूछने पर भी वो बताने को तैयार नहीं हुई.

हालांकि बच्ची पीड़िता के घर में ही जन्मी है, इसे परिवार और आरोपी पक्ष दोनों ही स्वीकारते हैं, लेकिन वो मासूम कहां है, क्या उसे किसी ने बेच दिया या मार दिया, इस सवाल से हर कोई किनारा कर लेता है.

काफी खोजबीन और पूछताछ के बाद गांव की ही कुछ महिलाएं दबी जुबान में स्वीकारती हैं, “बच्ची को बेच दिया गया है सर. बीस या तीस हजार में. इसमें आरोपी और पीड़िता के परिवार वाले दोनों मिले हुए हैं. इसकी जांच करवाइए, सब पता चल जाएगा.”

आंगनवाड़ी केंद्र की सेविका मुन्नी देवी बताती हैं कि बच्ची का जन्म पिछले साल दो दिसंबर को हुआ था, तब उसका वजन वक्त ढाई किलो था. इसके आगे वो कुछ भी बोलने से कतराती हैं.

बेकसूर तो जांच क्यों नहीं?

आरोपी ललकु कुम्हार और राजू कुमार कुम्हार पहले तो खुद को बेकसूर बताते रहे लेकिन सवाल-जवाब के दौरान ही कहने लगे कि अब इश मामले को रफा-दफा कर दिया गया है.

हालांकि पीड़िता या उसके परिवार के लोग आरोपियों के नाम देने से कतराते रहे. लेकिन काफी कोशिश के बाद गांव के ही एक लड़के ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर आरोपियों का नंबर मुहैया कराया.

मोबाइल पर ललकू कुम्हार कहते हैं, “मामला खत्म हो गया है. रफा-दफा कर दिया गया है. गांववालों ने हमलोगों को बोला कि पीड़िता को 10 से 15 हजार रुपया दे दो, तो हमने दे दिया. कहानी वहीं पर खत्म हो गई. अब उसका बच्चा कब हुआ, कहां हुआ हमको नहीं पता है.”

इस रिपोर्टर ने आरोपी से फोन पर ही पूछा कि आपके ऊपर बलात्कार का आरोप है और थाने में आप लोगों ने पीड़िता के बच्चे को पालने-पोसने की बात मानी थी. इस प्रश्न पर आरोपी सीधे मुकर गया.

जाहिर है अगला सवाल था कि अगर आरोपी निर्दोष थे तो उन्होंने पीड़िता को 10 हजार रुपया क्यों दिया? वे अपने ऊपर लगे आरोपों की जांच कराने के लिए क्यों नहीं तैयार हुए?

इसके जवाब में आरोपी ललकू कहते हैं, “देखिए जो यहां 15 हजार में सुलटा. वही कचहरी जाने पर साठ तिया तेल जलता और सतरा दिन वहां रहते. उसके बाद पेशी होता. मेरे बीवी-बच्चे रोड पर आ जाते. आप ही बताइए हम क्या करते. आखिर में हमपर कोई केस नहीं बनता.”

गांव के मुखिया मधुसूदन मुंडा को भी घटना की जानकारी है, पर उनसे किसी पक्ष ने राय-मश्विरा नहीं किया. वो कहते हैं, “परिवार और आरोपी पक्ष दोनों ने ही बात छुपाई है. मुझे पता चला तो मैं खुद ही थाने पहुंचा था. गांव जाकर पीड़िता से भी मिला और उसे केस करने कहा. लेकिन गांव वालों ने मुझे बिना बुलाए ही बैठक करके मामले को दबा दिया.”

बलात्कार और पैसा लेकर मामला रफा-दफा करने के ऊपर भी यह सवाल जस का तस बना हुआ है कि बलात्कार के बाद पैदा हुई बच्ची कहां है.

झारखंड में 24 महिला थाना, 26 महिला फ्रेंडली पुलिस थाना, शाक्ति ऐप, ऑपरेशन निर्भीक, हम-तुम महिला हेल्पलाइन आदि के बाद भी हर साल बलात्कार की घटना बढ़ती ही जा रही है, जो पुलिस-प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा करती है. पुलिस के आंकड़े के मुताबिक 2016 में 1,146, 2017 में 1,357 व 2018 में 1,395 बलात्कार के मामले पूरे झारखंड में दर्ज हुए. ये वो मामले हैं जो पुलिस की फाइलों में दर्ज हैं, लेकिन गांव में न जाने प्रतिमा जैसी कितनी कहानियां हैं जो पुलिस-प्रशासन तक पहुंचकर भी दब जाती है.