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डीपीएस नोएडा: आजादी की लड़ाई, ऋषि-मुनियों का योगदान और जालीदार टोपी
नोएडा के सेक्टर 132 स्थित प्रतिष्ठित दिल्ली पब्लिक स्कूल. यहां बीते हफ्ते यहां तीन दिनों का एनुअल डे (वार्षिक उत्सव) कार्यक्रम हुआ जिसकी थीम थी गणतंत्र दिवस. इसमें स्कूल के करीब 800 बच्चोंं ने 3 दिनों के दौरान अलग-अलग कार्यक्रमों में हिस्सा लिया. इन कार्यक्रमों में बच्चों के साथ-साथ उनके परिजनों को भी बुलाया गया था.
कार्यक्रम गणतंत्र दिवस और ‘यूनिटी इन डाइवर्सिटी’ की थीम पर आयोजित हुआ था. इस आयोजन में एक नाटक का मंचन हुआ. उस मंचन के दौरान ऐसा कुछ दिखाया गया जिससे यहां पहुंचे मुस्लिम छात्र और उनके अभिभावकों में असहजता फैल गई.
नाटक के दौरान ही स्कूल में पढ़ने वाली एक मुस्लिम छात्रा (नाम और कक्षा नहीं बताया जा सकता) ने अपने पिता से पूछा, “टोपी तो आप भी पहनते हैं. टोपी पहनने वाले गलत होते हैं?” इस सवाल ने पिता को भी असहज कर दिया.
दरअसल स्कूल के ही बच्चे ‘देश को आज़ादी कैसे मिली’ विषय पर एक नाटक कर रहे थे. नाटक के एक दृश्य में कुछ ऋषि-मुनि बैठकर पूजा-पाठ कर रहे थे. जब ऋषि-मुनि पूजा कर रहे थे, तभी एक लड़का उठा और ऋषि मुनियों को जालीदार मुस्लिम टोपी पहना दिया. जालीदार टोपी मुस्लिम समुदाय के लोग इबादत या नमाज के दौरान पहनते हैं. जाहिर है जिसने भी नाटक लिखा था, उसने जाने-अनजाने एक स्टीरियोटाइप चुना जिसमें भारत को ऋषि-मुनियों का देश दिखाया गया और मुस्लिमों को आक्रांता के तौर पर जिन्होंने जबर्दस्ती धर्मपरिवर्तन करवा कर लोगों को टोपी पहना दी.
अपनी बेटी के साथ कार्यक्रम में पहुंचे इरशाद (बदला हुआ नाम) बताते हैं, “कार्यक्रम बहुत अच्छा था. छोटे-छोटे बच्चे परफॉर्म कर रहे थे. तभी एक नाटक में दिखाया गया कि भारत ऋषि-मुनियों का देश है. ऋषि मुनि साधना में लीन हैं, लेकिन तभी कुछ हमलावर आते हैं और उन्हें मारने लगते हैं. इसी दौरान एक हमलावर ऋषियों को जालीदार टोपी पहना देता है. ये सब मुझे बड़ा अजीब लगा. मैं भी कभी-कभी नमाज के लिए जालीदार टोपी पहनता हूं. कल को अगर मेरी बेटी पूछेगी कि पापा आप भी हमलावर हो, तो मैं क्या जवाब दूंगा?”
इरशाद आगे कहते हैं कि इस तरह के नाटकों से बच्चों में गलत संदेश जाता है. और ये तो इतिहास के नजरिए से भी गलत है. जब मुग़ल हिंदुस्तान में आए तो उन्होंने राजे-रजवाड़ों को हराकर सत्ता हासिल की थी. उस समय ऋषि-मुनियों की स्थिति खास नहीं थी, राजसत्ता में. न ही आम लोगों से मुग़लों का टकराव हुआ था. जाहिर है यह इतिहास के साथ भी छल है.
नोएडा सेक्टर 132 स्थित डीपीएस, दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाके शाहीन बाग़, बटला हाउस और जामिया नगर के करीब है इसलिए यहां मुस्लिम समुदाय के बच्चे काफी संख्या में बच्चे पढ़ने आते है.
अपने बेटे के साथ कार्यक्रम में पहुंचे अनवर खान (बदला हुआ नाम) कहते हैं कि हमारे घर में बच्चों को मजहबी तालीम नहीं दी जाती है. हम बच्चों को उनका मजहब हिंदुस्तान बताते हैं, लेकिन जब कार्यक्रम के दौरान ये दृश्य सामने आया तो बेहद अजीब लगा. नाटक देखने को दौरान ही मेरे बगल में बैठी एक महिला जो अपने बच्चे के साथ बैठी हुई थीं कहने लगीं, “ये ऋषि-मुनियों को मुसलमान बना रहे हैं.” यानि इस तरह के तोड़मरोड़ का असर लोगों के ऊपर होता है.
अनवर खान आगे कहते हैं, इस नाटक का बच्चों पर गलत असर हो सकता है. अगर नाटक के दौरान वो बच्चा जालीदार टोपी नहीं भी पहनाता तब भी नाटक का अर्थ लोगों तक पहुंच ही जाता. इतिहास में क्या हुआ. किसने, किसे परेशान किया उसको लेकर हम अपना आज और आने वाला कल क्यों खराब कर रहे हैं.
इस मसले में न्यूज़लॉन्ड्री ने डीपीएस के प्रिंसिपल से बात करने की कोशिश की लेकिन स्कूल प्रशासन ने बताया की वे लम्बी छुट्टी पर हैं. प्रिंसिपल की अनुपस्थिति में उनका काम देख रही भावना खन्ना से न्यूजलॉन्ड्री की बात हुई. उन्होंने कहा, “नाटक में हमने यहीं दिखाया कि हिंदुस्तान को आज़ादी कैसे मिली. नाटक के जरिए हमने बताने की कोशिश की थी कि किस तरह पहले खिलजी ने देश पर हमला किया, उसके बाद मुगल आए और फिर अंग्रेजों ने हमें अपना गुलाम बनाया और हमने कैसे उनसे आजादी पाई है.”
जालीदार टोपी पहनाए जाने के सवाल पर भावना खन्ना कहती हैं कि खिलजी और मुगलों के शासन के दौरान देश में जबरदस्ती धर्मांतरण को दिखाने के लिए उस दृश्य का इस्तेमाल किया गया. हम अपने मन से कुछ नहीं दिखा रहे थे. जो इतिहास में हैं उसे ही हमने दिखाने की कोशिश की ताकि आज के समय के युवा जान सके कि आजादी कितनी मुश्किलों के बाद मिली है.
बच्चों को दी जा रही इतिहास की कचरा समझ
भावना खन्ना जो कह रही हैं उसका एक पक्ष यह भी है कि डीपीएस एक आधुनिक, सेक्युलर मूल्यों पर आधारित शिक्षण संस्थान है. छह-सात सौ साल पुरानी बातों को मौजूद संदर्भ में दिखाना कहीं से भी समझदारी नहीं कही जा सकती, विशेषकर उन बच्चों के बीच जिन्हें अभी इतिहास की समझ नहीं है या जो पहली से पांचवी कक्षा में पढ़ते हैं.
सामाजिक चिंतक अभय कुमार दुबे इस मामले पर कहते हैं, “समाज में मुसलमानों के प्रति द्वेष तो लगातार फैलाया ही जा रहा है. डीपीएस में जो कुछ दिखाया गया, उस तरह से चीजों को दिखाने का असल मकसद मुगल शासकों की आलोचना करने से ज़्यादा अभी जो देश में मुस्लिम आबादी है, उसके प्रति लोगों में नकारात्मक भाव पैदा करना है. मुगलों के समय में जालीदार टोपी कोई पहनता था या नहीं किसी को पता है क्या.”
इस तरह के कार्यक्रमों का बच्चों पर होने वाले असर को लेकर अभय कुमार दुबे कहते हैं कि इसका बच्चों पर बेहद खराब असर पड़ेगा. हिन्दू बच्चों पर अलग और मुस्लिम बच्चों पर इसका अलग असर होगा. बच्चों के बीच की मित्रता खराब होगी. इस तरह से बच्चों के मन में सांप्रदायिकता का विष बो दिया जाएगा.
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