Newslaundry Hindi
#कुम्भ मेला: पवित्र स्नान, मंदिर की राजनीति और मोक्ष
मकर संक्रांति के दिन पहले शाही स्नान के साथी ही कुम्भ मेले की शुरुआत हो गई. सूर्योदय से पहले ही, हज़ारों की संख्या में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा जैसे चींटियां चीनी की ओर बढ़ती हैं. ऐसा कहना कि पहले शाही स्नान में लगभग एक करोड़ लोगों ने आस्था की डुबकी लगायी, थोड़ा अतिशयोक्ति होगी, क्योंकि शहर की सड़कों पर चलने के लिए पर्याप्त जगह थी, भीड़ बहुत ज्यादा नहीं थी और आवश्यक वस्तुओं जैसे कि सब्जियों, फलों और तेल की कीमतों में कोई खास बदलाव नहीं हुआ था. तीर्थयात्रियों की संख्या सिर्फ एक अनुमान होती है क्योंकि आने वाले श्रद्धालुओं का कोई रजिस्ट्रेशन नहीं होता, न ही उनकी गिनती का कोई तरीका सरकार के पास है. हां, भीड़ का एक बड़ा हिस्सा स्थानीय या फिर इलाहाबाद के आस पास के कस्बों-शहरों से आया था.
पूस-माघ महीने के दरम्यान भी धूप खिली हुई थी, हल्की गर्मी थी और हवा चल रही थी. कुम्भनगरी का प्रत्येक नागरिक आस्था की डुबकी लगाने की तैयारी कर रहा था, खासकर हज़ारों साधू-संत और नागा साधू. जूना अखाड़ा के एक नागा, सुदर्शन- जो कि 20-30 वर्ष की आयु के होंगे- दिन भर अपने शिष्यों के साथ बैठक करते रहे और आगंतुकों से उपहार स्वीकार करते रहे. इसमें खाने के लिए पैसा, दान और नकदी या उपहार या फिर गांजा था. इसके बदले में वह उनको आशीर्वाद देते रहे.
धर्म और आध्यात्म की दुनिया में भी पैसा का महत्व बढ़ गया है. एक शिष्य खोने का मतलब है पैसे का खो जाना. विभिन्न अखाड़ों के बीच या अखाड़ों के महामांडलेश्वरों के बीच या साधुओं के बीच इस सीमित संसाधन के लिए लगातार संघर्ष छिड़ा रहता है. शिष्यों को आकर्षित करने के लिए वे एक पंथ बनाते हैं, अपनी अप्रत्यक्ष शक्तियों का प्रदर्शन करते हैं, बड़ी-बड़ी गाड़ियों के काफिले में घूमते हैं और भड़काऊ मुकुट धारण करते हैं. इतनी ज्यादा नारेबाजी होती है कि किसी को दुविधा हो जाय कि यह कोई राजनैतिक रोड शो हो रहा है.
अखाड़ों को नियंत्रण में रखने के लिए बहुत कड़ी स्पर्धा चलती है क्योंकि इसके पद और उससे जुड़े प्रोटोकॉल पवित्र माने जाते हैं. लिहाजा इसके लिए काफी संघर्ष रहता है. महामंडलेश्वरों के नेतृत्व में नागा साधू दूसरे अखाड़ों के अपने समकक्षों से हमेशा लड़ने-भिड़ने को तैयार रहते हैं. कुंभ मेले में अक्सर यह स्पर्धा पवित्र संगम में सबसे पहले स्नान करने के लिए होती है. मेला प्राधिकरण के लिए यह संघर्ष रोक पाना हमेशा से कड़ी चुनौती रहा है.
इस बार मेला प्रशासन ने इस तरह के किसी भी संघर्ष को रोकने के लिए अच्छा कदम उठाया. सभी चौदह अखाड़ों को एक निश्चित स्थान और समय पहले से तय कर दिया गया है, जिससे कि वो तय स्थान और समय पर डुबकी लगा सकें और किसी भी तरह का टकराव रोका जा सके. पवित्र स्नान वाले दिन वहां पर तनाव का माहौल था.
नागा साधू स्वाभाव से ही लड़ाकू होते हैं. वे सनातन धर्म या रूढ़िवादी हिन्दू मानसिकता के अनुयायी होते हैं और वे अपनी पूरी शक्ति को अपनी निष्ठा, राम मंदिर निर्माण, गायों को बचाने और धर्म के दुश्मनों का सफाया करने के प्रचार में लगाते हैं. एक मांडलेश्वर आनंद गिरी कहते हैं, “हम निष्ठा के रक्षक हैं, शिवजी के सगे-संबंधी हैं.”
विश्व हिंदू परिषद ने इस बार भी कुंभ मेला परिसर में ही एक “धर्म संसद” आयोजित करने की योजना बनाई है, जिसमें अभिनेता, खिलाडी, मशहूर हस्तियों को उनके 14 एकड़ में फैले हुए आश्रम, जो कि वहां मौजूद बड़े आश्रमों में से एक है, आमंत्रित किया जायेग. आरएसएस कैडर कुम्भ में काफी सक्रिय है, वहां के प्रशासन को कार्यक्रम के आयोजन में मदद कर रहा है. ऐसी संभावना है कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी धर्म संसद में भाग लेंगे जिसमें वे राम मंदिर के अलावा, लव जिहाद, धर्मान्तरण और गोरक्षा जैसे मुद्दों पर चर्चा करेंगे.
राम मंदिर और गोरक्षा आम बातचीत का सबसे प्रिय हिस्सा है. जूना अखाडा के 48 वर्षीय महामंडलेश्वर शैलेन्द्र गिरी कहते हैं, “मुझे लगता है कि भाजपा राम मंदिर निर्माण में विफल रही है. लेकिन मैं यह भी मानता हूं कि भाजपा ही एकमात्र पार्टी है जो अयोध्या में राम मंदिर बनाने में सक्षम है.”
विदेशी लोगों का नागाओं के शिविर में स्वागत है क्योंकि वे अच्छी चीज़ों के पारखी हैं और इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि वे दान अच्छा देते हैं. तकरीबन 70 वर्षीय एक ब्रिटिश दम्पत्ति जिन्होंने अपना परिचय स्मिथ के रूप में दिया, ने पूरी दोपहर डेरे में बिताई. पति गांजा फूंकता रहा जबकि पत्नी वहीं पर बेपरवाह सोती रही. वे कुछ ही घंटे पहले इलाहाबाद पहुंचे थे. वे सर्दियों में गोवा में रहते हैं और गर्मियां लंदन में बिताते हैं.
स्मिथ दम्पति ने बताया कि वो सेवानिवृत हैं. यह सुनकर सुदर्शन अचंभित हुए. यह कहते हुए कि उनको विशेषाधिकार प्राप्त है, उन्होंने स्मिथ दम्पति से हिंदी में कहा, “आप सेवानिवृत होने का जोखिम उठा सकते हैं. जो लोग विशेषाधिकार प्राप्त किये हुए होते हैं वे अध्यात्म की तलाश में अच्छे नहीं होते.” इस पर स्मिथ दम्पति माफ़ी मांगते हुए दिखे.
साधुओं को अपने रोजमर्रा के जीवनयापन के लिए संघर्ष करना पड़ता है. सुदर्शन पूरे दिन के दान दक्षिणा के बाद लगभग 500 रुपये कमा पाते हैं. कल कुछ खास था, जब उसको 3000 रुपये दान में मिले. इसका अधिकांश हिस्सा नशे का सामान खरीदने में खर्च हुआ. वह सिर्फ हंडिया से धूम्रपान नहीं करते बल्कि उनको इससे भी ज्यादा नशीला पदार्थ पसंद है और उन्हें यात्रा के लिए पैसा भी बचाना है.
इसलिए साधू और अखाड़े ध्यान आकर्षित करने के लिए और संरक्षण के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं. वे अच्छे भविष्य का सब्जबाग दिखाते हैं और डर भी दिखाते हैं जैसे कि अलवर के पत्थरदिल और आंखों पर गाढ़े सिरप की तरह आंसू लिए महंत शिवगिरी बाबा बार-बार कहते हैं- “ना तेरा है, ना मेरा है, ये नागा बाबा का डेरा ह.” सुदर्शन ने पेशकश की कि अगर उनके शिष्य 15 लीटर घी खरीदने का वादा करें तो वे अपने लिंग से कार खींचेंगे. किसी ने भी उनकी इस चुनौती में दिलचस्पी नहीं ली. इससे क्रोध में आए बाबा ने श्राप देते हुए कहा, “काल तुम्हारे सिर पर है.”
एक अन्य युवा नागा, उत्तराखंड के गोविन्द गिरी, एक छड़ी में अपना लिंग उलझाते हैं, छड़ी को एक-दो बार घुमाते हैं और छड़ी को जमीन के सामानांतर रखते हैं. वह उस छड़ी पर अपने एक साथी नागा साधू को खड़ा करते है. यह तमाशा भीड़ को आकर्षित करता है और उनकी अच्छी कमाई हो जाती है.
नागाओं को बाहरी लोगों का उनके डेरे में ज्यादा समय तक रहना अच्छा नहीं लगता. आप तब तक ही वहां रह सकते हैं जब तक आप धूम्रपान (गांजा) कर रहे हैं या दान दे रहे हैं. गोविन्द गिरी कहते हैं, “यह एक मेला है, लोग आते जाते रहते हैं. जीवन भी एक मेला है, हम सब यात्री हैं.” वे आगे कहते हैं, “नागाओं के साथ सूर्यास्त के बाद, जब आत्माएं और भूत-प्रेत सक्रिय हो जाते हैं, रहना ठीक नहीं है.” इस तरह की कई ट्रिक का इस्तेमाल नागा साधू लोगों को टरकाने के लिए करते हैं.
यात्रा करते समय नागा साधू ज्यादा प्रतिक्रियाशील होते हैं. थोड़े से उकसावे में ही या कुछ न करने पर भी वे देखने वाले को छड़ी से मार सकते हैं. अगर पीड़ित इस पर अपनी प्रतिक्रिया देने की हिम्मत करता है तो 10 अन्य नागा साधू उस पर हमला कर देते हैं.
पवित्र स्नान
नागाओं ने सबसे पहले आस्था की डुबकी लगाई. पवित्र स्नान से तीन घंटे पहले, वे अपने संबंधित अखाड़े के अंदर एकत्रित हो गए. इस दौरान विस्तृत अनुष्ठान किये जाते हैं. वे एक दूसरे के शरीर पर भस्म लगाते हैं, जिससे कि ऐसा प्रतीत होता है कि मांस और खून की धूसर नंगी प्रतिमाएं अग्नि के चरों ओर नाच रही हैं. फिर वे भीषण ठण्ड में छोटे समूह में बाहर निकलते हैं जिसमें कि बाद में बाकि और जुड़ते जाते हैं और वो नागा साधुओं की एक पूरी सेना बन जाती है, जिनके शरीर से भाप निकल रही होती है. उनका नेतृत्व विभिन्न महामंडलेश्वरों के रथ, उनके हथियार जैसे तलवार और गदा आदि करते हैं. “हर हर महादेव” बोलते हुए वे पवित्र नदी में आस्था की डुबकी लगाते हैं.
Also Read
-
TV Newsance 304: Anchors add spin to bland diplomacy and the Kanwar Yatra outrage
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
A flurry of new voters? The curious case of Kamthi, where the Maha BJP chief won
-
Reporters Without Orders Ep 375: Four deaths and no answers in Kashmir and reclaiming Buddha in Bihar
-
Lights, camera, liberation: Kalighat’s sex workers debut on global stage