Newslaundry Hindi
फ़सल बीमा: निजी कंपनियां मालामाल और सरकारी का बंटाधार
फ़सल बीमा से निजी बीमा कंपनियों को 3,000 करोड़ का लाभ और सरकारी बीमा कंपनियों को 4,085 करोड़ का घाटा हुआ है. मार्च 2018 में ख़त्म हुए सालाना बहीखाते से यह हिसाब निकला है. इंडियन एक्सप्रेस में जॉर्ज मैथ्यू की रिपोर्ट छपी है. आख़िर फ़सल बीमा की पॉलिसी खुले बाज़ार में तो बिक नहीं रही. बैंकों से कहा जा रहा है कि वह अपने लोगों ने ये पॉलिसी बेचें. प्राइवेट कंपनियों ने अपनी पालिसी बेचने के लिए न तो कोई निवेश किया और न ही लोगों को रोज़गार दिया. सरकारी बैंकों के अधिकारियों से ही कहा गया कि आप ही बेचें. इस तरह की नीति ही बनाई गई.
इस लिहाज़ से देखेंगे तो निजी बीमा कंपनियों का मुनाफ़ा वास्तविक अर्थों में कई गुना ज़्यादा होता है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में वाजिब सवाल किया गया है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि पॉलिसी को बेचने में ही इस तरह का हिसाब किताब हो कि प्राइवेट बीमा कंपनियों को लाभ हो. इन कंपनियों के पीछे कौन है, इनके लाभ के कितने हिस्से पर किसका अधिकार है, यह सब आप कल्पना तो कर ही सकते हैं. ऐसी चीज़ें हवा में नहीं घट जाती हैं.
आप बैंक वालों से बात करेंगे तो वे बता देंगे कि फ़सल बीमा में निजी बीमा कंपनियों को प्रमोट किया जा रहा है. किसी ज़िले के भीतर एक ही बीमा कंपनी को टेंडर मिलता है. उसका एकाधिकार हो जाता है. कंपनियां मनमानी भी करती हैं. इन पर राजनीतिक नियंत्रण काम करता है. वह इससे पता चलता है कि जब चुनाव आता है तब ये कंपनियां किसानों के दावे का भुगतान तुरंत करने लगती हैं. जैसा कि मध्य प्रदेश के मामले में देखा गया और मीडिया में रिपोर्ट भी आई.
सरकार का काम है कि वह ऐसी नीति बनाए कि सरकारी बीमा कंपनियों को प्रोत्साहन मिले. मगर जनता के पैसे से चलने वाले सरकारी बैंक के अधिकारियों को निजी बीमा कंपनी की पॉलिसी बेचने के लिए मजबूर किया गया. बीमा नियामक आईआरडीए की सालाना रिपोर्ट से पता चलता है कि 11 निजी बीमा कंपनियों ने 11,905 करोड़ रुपये प्रीमियम के रूप में वसूले हैं. मगर उन्हें दावे के रूप में 8,831 करोड़ का ही भुगतान करना पड़ा है. पांच सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों ने प्रीमियम की राशि के रूप में 13,411 करोड़ वसूले. लेकिन किसानों के दावे का भुगतान किया 17,496 करोड़.
सरकारी बीमा कंपनियों में सबसे ज़्यादा घाटा कृषि बीमा कंपनी एआईसी को हुआ है. 4,000 करोड़ से अधिक का नुकसान एक कंपनी को उठाना पड़ा है. दूसरी तरफ निजी बीमा कंपनी आईसीआईसी लोम्बार्ड को 1,000 करोड़ का लाभ हुआ. रिलायंस जनरल को 706 करोड़ का लाभ हुआ. बजाज आलियांज़ को 687 करोड़, एचडीएफसी को 429 करोड़ का लाभ हुआ है.
जब आप इस आंकड़ें को देखेंगे तो खेल समझ आ जाएगा. निजी कंपनियों पर क्लेम देने का दबाव कम होता होगा. मगर सरकारी बीमा कंपनी से प्रीमियम की राशि से भी ज्यादा क्लेम का भुगतान कराया गया. इसीलिए कहा कि फसल बीमा का कुछ हिस्सा राजनीतिक रूप से मैनेज किया जा रहा है. जैसा कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के समय हुआ. कभी आप स्वयं भी समय निकाल कर फ़सल बीमा के दावों से संबंधित किसानों की परेशानियां वाली ख़बरों को पढ़ें. किसी बैंकर से पूछे तो बता देगा कि दरअसल वह फसल बीमा के नाम पर प्राइवेट कंपनी की पालिसी बेच रहा है.
बिजनेस स्टैंडर्ड में कपड़ा उद्योग का विश्लेषण पेश किया गया है. पिछले तीन साल से इस सेक्टर का निर्यात 17 अरब डॉलर पर ही स्थिर हो गया है. ऐसा नहीं हैं कि मांग में कमी आ गई है. ऐसा होता तो इसी दौरान बांग्लादेश का निर्यात दुगना नहीं होता. अख़बार में टीई नरसिम्हन ने लिखा है कि भारत सरकार ने मुक्त व्यापार समझौते करने में उदासीनता दिखाई जिसके कारण हम टेक्सटाइल सेक्टर में पिछड़ते जा रहे हैं. टेक्सटाइल सेक्टर के कारण ही बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था मज़बूत हो रही है. उसके 2021 तक मिडिल इंकम ग्रुप में पहुंचने की बात होने लगी है. वहां पर कपास की खेती भी नहीं होती है. भारत दुनिया में सबसे अधिक कपास उगाता है, और टेक्सटाइल सेक्टर पर पहले से बढ़त बनाने वाला रहा है. इसके बाद भी वह इन तीन सालों में बांग्लादेश से पिछड़ गया.
अब तो लोग भारत के टेक्सटाइल सेक्टर के ख़ात्मे का भी एलान करने लगे हैं. टेक्सटाइल सेक्टर काफी रोज़गार देता है. जब यह सेक्टर डूब रहा हो, स्थिर हो चुका हो तो रोज़गार पर भी क्या असर पड़ता होगा, आप अंदाज़ा लगा सकते हैं. कुछ कमियां सेक्टर के भीतर भी हैं. कहा जा रहा है कि वह नए-नए प्रयोग नहीं कर रहा है. अपनी लागत में कमी नहीं ला पा रहा है. बांग्लादेश में एक शिफ्ट में 19-20 पीस कपड़ा तैयार होता है जबकि भारत में 10-12 ही. भारत में मज़दूर को एक महीने का 10,000 रुपए देना पड़ता है तो बांग्लादेश में 5-6000 में ही काम चल जाता है. एक समय बांग्लादेश भी महंगा हो जाएगा और श्रीलंका की तरह उभर कर पिछड़ जाएगा. फिलहाल भारत को इस सेक्टर की यह स्थिरता भारी पड़ रही है.
नोट- रोज़ सुबह कई घंटे लगाकर मैं अपना हिन्दी के पाठकों के लिए यह संकलन लाता हूं. ताकि आपके साथ हम सभी की ऐसी खबरों के प्रति समझ बढ़ें. मेरा अपना अनुभव रहा है कि हमारे हिन्दी के घटिया अख़बारों का कुछ नहीं हो सकता, बेहतर है कि हम पाठक के तौर पर अपना तरीका बदल लें. थोड़ी मेहनत करें.
Also Read
-
100 rallies, fund crunch, promise of jobs: Inside Bihar’s Tejashwi Yadav ‘wave’
-
What do Mumbai’s women want? Catch the conversations in local trains’ ladies compartment
-
Another Election Show: What’s the pulse of Bengal’s youth? On Modi, corruption, development
-
Doordarshan and AIR censor opposition leaders, but Modi gets a pass
-
Road to Mumbai North: Piyush Goyal’s election debut from BJP’s safest seat