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निजी एफएम चैनलों पर प्रसारित होगा समाचार, पर लोचा है अपार
मंगलवार, 8 जनवरी को, सूचना और प्रसारण मंत्री राज्यवर्धन राठौर ने ऑल इंडिया रेडियो और निजी एफएम चैनलों के बीच समाचार साझा करने की एक नई योजना की घोषणा की- जिसकी मांग पहली बार निजी एफएम चैनलों ने 1936 में की थी. अब तक रेडियो पर समाचार प्रसारित करने का अधिकार सिर्फ देश की राष्ट्रीय प्रसारणकर्ता आकाशवाणी के पास था.
राठौर ने आकाशवाणी और प्रसार भारती के शीर्ष अधिकारियों की उपस्थिति में, दिल्ली के राष्ट्रीय मीडिया केंद्र में आयोजित एक कार्यक्रम में इस बाबत घोषणा की गई कि आकाशवाणी अब निजी एफएम चैनलों के साथ अपनी समाचार सामग्री साझा करेगा. इसके तहत, ऑल इंडिया रेडियो का समाचार सेवा विभाग निजी एफएम चैनलों को अपने अंग्रेजी और हिंदी समाचार बुलेटिन को “बिना छेड़छाड़ किए” और “कुछ नियमों और शर्तों के साथ” प्रस्तुत करने की अनुमति देगा. यह फैसला अभी ट्रायल के तौर पर चलेगा जिसके तहत निजी एफएम चैनलों को 31 मई, 2019 तक, आकाशवाणी की समाचार सामग्री नि:शुल्क प्रसारित करने का अधिकार दिया गया है. इसके बाद एक बार पुन: समीक्षा करके इसे आगे बढ़ाने पर विचार किया जाएगा.
आजादी के बाद से, निजी एफएम चैनलों को खुद के समाचार तो दूर, आकाशवाणी के समाचार बुलेटिनों को भी जस का तस प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं दी गई. यह विभिन्न सरकारों द्वारा लागू की गई नीति थी. रेडियो की असीमित पहुंच के साथ, ऐसा एकाधिकार रेडियो समाचार के प्रसार पर सरकार का नियंत्रण सुनिश्चित करता है.
ध्यान देने वाली बात यह है कि हालांकि सरकार ने समाचार साझा करने की अनुमति भले ही दे दी हो लेकिन निजी एफएम चैनल अभी भी खुद के तैयार किए गए समाचार प्रस्तुत नहीं कर सकते हैं. इस घोषणा के अनुसार उन्हें सिर्फ आकाशवाणी के समाचार बुलेटिन को रीप्लग करने की अनुमति दी गई है. साथ ही निजी एफएम चैनलों को यह ध्यान भी रखना होगा कि हर बुलेटिन आकाशवाणी पर प्रसारित होने के 30 मिनट के अंदर ही प्रसारित हो.
निजी एफएम चैनलों पर प्रसार भारती के समाचार सामग्री का पुन: प्रसारण एक नई किस्म की समस्या के रूप में देखा जा रहा है. मीडिया और इसके अध्ययन से जुड़े विशेषज्ञों की राय है कि राष्ट्रीय प्रसारक को सरकार के पक्षधर के रूप में देखा जाता है, यह सरकारी की नीतियों के प्रचार-प्रसार का माध्यम भर है. कुछ लोगों का कहना तो यह भी है कि आजादी के बाद से ही आकाशवाणी सत्तारूढ़ सरकार का मुखपत्र रहा है. जबकि निजी समाचार संस्थान सरकार की नीतियों की समीक्षा और आलोचना भी कर सकते हैं.
एक और महत्वपूर्ण बात है इस व्यवस्था को लागू करने की समयसीमा. क्या मोदी सरकार का चुनावी साल में यह रणनीतिक और चालाकी भरा कदम है जिसके तहत वो निजी एफएम चैनलों के माध्यम से अपना संदेश उन वोटरों को भी पहुंचाना चाहती है जो एफएम चैलन सुनते हैं? इसकी समयसीमा 31 मई, 2019 तक तय की गई है. यह तारीख अपने आप में महत्वपूर्ण हैं. मई महीने के अंत में देश में नई सरकार का गठन हो चुका होगा. जाहिर है इस दौरान मोदी सरकार की वही नीतियां एफएम चैनलों के श्रोताओं तक पहुंचेंगी जो अब तक सिर्फ आकाशवाणी के श्रोताओं तक पहुंचती थी.
राज्यवर्धन राठौर ने कहा, “यह (साझेदारी) प्रत्येक नागरिक को सशक्त बनाएगी. आखिरकार, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था में नागरिक पूरी तरह से जागरूक और सूचनासंपन्न रहे.” उन्होंने कहा कि निजी एफएम चैनलों पर आकाशवाणी का समाचार प्रसारित करने की मांग दोनों पक्ष लंबे समय करते आ रहे थे. यह आकाशवाणी और प्रसार भारती की दूरदर्शिता और दृढ़ता के कारण अंतत: फलित हुआ.
मंत्री ने कहा, “प्रसार भारती की पहली प्राथमिकता जागरुकता पैदा करना है. राजस्व दूसरी प्राथमिकता है. अभी के लिए, हम इसे नि:शुल्क उपलब्ध करवा रहे हैं ताकि इसमें कोई देरी न हो और देश के नागरिकों तक समाचार के माध्यम से पहुंच बनाई जा सके.” राठौर ने यह भी कहा कि इस साझेदारी को “मेरी टीम बनाम आपकी टीम” के रूप में नहीं देखना चाहिए और निजी एफएम चैनलों और आकाशवाणी का एक साथ आना “हमारी कल की लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.”
सब कुछ कहने और सुनने के बाद इस साझेदारी की नियम और शर्तें कुछ सवाल खड़े करती हैं. सबसे पहला यह कि निजी एफएम चैनल आकाशवाणी के समाचार मुफ्त और ट्रायल के आधार पर केवल 31 मई तक ही साझा कर पाएंगे. लगभग उस तारिख तक जब 2019 के लोकसभा चुनाव और उससे सम्बंधित गतिविधियां ख़त्म हो जाएंगी. क्या यह तारीख जानबूझकर चुनी गई है?
इसके अलावा, समाचार साझा करने के कुछ नियम और शर्तें भी हैं. ट्रायल की अवधि के दौरान, निजी एफएम प्रसारणकर्ता “अशांत/सीमा और नक्सल क्षेत्रों में समाचार के प्रसारण से बच सकते हैं.” इसके अलावा, आकाशवाणी के समाचार बुलेटिनों को प्रसारित करने के इच्छुक निजी एफएम चैनलों को सबसे पहले ऑल इंडिया रेडियो के समाचार सेवा विभाग की वेबसाइट पर अपने को पंजीकृत करना होगा. आकाशवाणी के समाचार बुलेटिनों को “बिना छेड़छाड़ के” प्रसारित करना होगा और यहां तक कि समाचार बुलेटिन के दौरान प्रसारित होने वाले विज्ञापनों को भी जस का तस प्रसारित करना होगा.
निजी एफएम प्रसारणकर्ताओं को अपनी ख़बर को सोर्स करने के लिए आल इंडिया रेडियो को उचित श्रेय देना होगा और उसके न्यूज़ बुलेटिन को या तो लाइव ऑल इंडिया रेडियो के साथ प्रसारित करना होगा या 30 मिनट के अंदर प्रसारित करना होगा.
ऑल इंडिया रेडियो ने बताया, “विलम्बित लाइव के मामले में यह पहले से बताना होगा कि यह विलम्बित लाइव है.” “किसी भी एफएम रेडियो चैनल द्वारा आकाशवाणी के समाचार का प्रसारण नियम और शर्तों को स्वीकार करने के बाद ही किया जा सकता है.”
निजी एफएम चैनलों को हर महीने की पांच तारीख तक एक मासिक रिपोर्ट भी देनी होगी, जिसमें किसी विशेष समाचार बुलेटिन की कुल संख्या के प्रसारण का ब्यौरा देना होगा. यदि इनमें से किसी भी नियम और शर्तों का उल्लंघन किया जाता है, तो “उचित कार्रवाई की जाएगी.”
एसोसिएशन ऑफ रेडियो ऑपरेटर्स ऑफ इंडिया की अध्यक्ष अनुराधा प्रसाद ने सरकार की इस नीतिगत पहल के बारे में कहा, “हम 1936 से, जब से यह एसोसिएशन बना है, यह मांग कर रहे थे और अब आखिरकार यह मांग पूरी हो गई है.” उन्होंने आगे कहा, “हम नियमों और शर्तों का पालन करने की पूरी कोशिश करेंगे.”
अब आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या निजी एफएम चैनलों पर समाचार बुलेटिन लोकतंत्र के लिए वरदान साबित होगा या मोदी सरकार का ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच बनाने का एक चालाकी भरा चुनावी स्टंट.
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