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बीएचयू: एक साल बाद भी महिलाओं के लिए कुछ नहीं बदला है
22 सितम्बर, 2017 का दिन था. उत्तर प्रदेश के नए-नवेले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनारस आने को थे. तैयारियां चाक-चौबंद थीं और ख़ुफ़िया विभाग की ओर से लगातार दी जा रही रिपोर्टों में शहर में सबकुछ सामान्य था. लेकिन अचानक उसी दिन सुबह तक़रीबन साढ़े छह बजे के आसपास बीएचयू की कई छात्राएं यूनिवर्सिटी के मुख्य द्वार पर आकर धरने पर बैठ गईं. वे अपने साथ हो रही ज्यादती रोकने और न्याय पाने की मांग कर रही थीं.
लड़कियों की न्याय की मांग धरने से लगभग 12 घंटे पहले की एक घटना से जुड़ा था. यूनिवर्सिटी के भीतर दृश्य कला संकाय की एक छात्रा के साथ छेड़खानी की गई थी. इस घटना की शिकायत दर्ज करवाने के लिए जब पीड़िता यूनिवर्सिटी के सुरक्षा अधिकारियों के पास गयी तो मामले को यह कहकर रफ़ा-दफ़ा करने का प्रयास किया गया कि अगले दिन प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का दौरा होने वाला है, इसलिए पीड़िता को कोई हंगामा खड़ा करने की ज़रूरत नहीं है. यूनिवर्सिटी के सुरक्षाधिकारियों के इस बयान के बाद कैंपस के भीतर स्थित महिला हॉस्टलों में हंगामा खड़ा हो गया और सुबह होते-होते छेड़खानी की पीड़िता के लिए न्याय की मांग करती हुए छात्र-छात्राएं बीएचयू के मुख्य द्वार (सिंहद्वार) पर आ बैठे.
इस घटना ने बीएचयू कैंपस के भीतर महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा की बदतर स्थिति और उसके प्रति प्रशासन के नकारात्मक रवैये को उजागर कर दिया. मामले ने तूल पकड़ा तो ग़ैर-ज़िम्मेदाराना रवैया अपनाने के लिए तत्कालीन चीफ प्राक्टर को पद से बर्खास्त कर दिया गया, और तत्कालीन कुलपति गिरीशचंद्र त्रिपाठी अनिश्चितकालीन छुट्टी पर चले गए. इसके बाद बीएचयू के इतिहास में पहली बार एक महिला चीफ प्रॉक्टर के रूप में प्रोफेसर रोयना सिंह की नियुक्ति की गई.
लेकिन कैंपस के अंदर के हालात यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा की गई घोषणाओं के अनुरूप नहीं बदले. रोयना सिंह उसी परम्परा का हिस्सा बन कर रह गईं जिसकी वजह से बीएचयू सुर्खियों में आया था. इन घटनाओं के पहले बीएचयू के महिला छात्रावासों में कर्फ़्यू जैसी परिस्थितियां बनी हुई थीं, जिनके तहत छात्राओं को हॉस्टलों के अंदर मांसाहार की इजाजत नहीं थी, उनके खाने की गुणवत्ता पर लगातार प्रश्न उठ रहे थे, इन तमाम हॉस्टलों में वाई-फ़ाई की सुविधा नहीं दी जा रही थी, उन्हें रात को दस बजे के बाद फ़ोन पर बात करने की मनाही थी, और साथ ही साथ लड़कियों के हॉस्टलों में लौटने के समय को लेकर तमाम बंदिशें अभी भी लागू थीं.
सितम्बर 2017 में जब बीएचयू की छात्राओं के आंदोलन ने आकार लिया तो छेड़खानी की शिकार छात्रा को न्याय देने के साथ-साथ इन तमाम नियमों को ध्वस्त करने की मांगें भी शामिल थीं. इन नियमों में एक सिस्टम और समझदारी से बदलाव किए जाने थे, लेकिन रोयना सिंह ने पदभार ग्रहण करते ही प्रेसवार्ता में पहला बयान दिया, “लड़कियां हॉस्टलों में जब मन करे, तब आएं-जाएं, उन पर कोई पाबंदी नहीं. उनके मांस खाने या शराब पीने पर कोई रोकटोक नहीं होगी.”
यही नहीं, इसी साल मई में रोयना सिंह ने ‘जी न्यूज़’ को अपना बयान देते हुए कहा कि बीते साल का आंदोलन प्रायोजित था और आंदोलनरत छात्राओं को ट्रकों में भर-भरकर पिज़्ज़ा और कोल्ड ड्रिंक्स पहुंचाया गया. न्यूज़ चैनल ने इस दावे की पुष्टि करना भी ज़रूरी नहीं समझा. चैनल पर इस एकतरफा ख़बर के प्रसारण के बाद छात्र-छात्राओं का एक समूह इस आरोप के सबूत की मांग करने अन्यथा माफ़ी की मांग रखने चीफ प्राक्टर के ऑफ़िस पहुंचा. इस बात से बौखलाकर रोयना सिंह ने विश्वविद्यालय के ही 12 छात्रों के खिलाफ़ पुलिस में तहरीर दी कि उनके दफ़्तर में घुसकर तोड़फोड़ की गयी और छात्रों ने उन्हें जान से मारने का प्रयास किया. इस तहरीर की बिना पर वाराणसी पुलिस ने इन सभी छात्रों के खिलाफ़ धारा 147, 148, 353, 332, 427, 504, 307 और 395 के तहत मुक़दमा दर्ज कर लिया. यही नहीं, इसी साल अगस्त के महीने में विश्वविद्यालय प्रशासन ने 14 छात्रों को डिबार कर दिया, ताकि वे विश्वविद्यालय में पढ़ाई न कर सकें.
बीएचयू प्रशासन के फ़ैसलों या नियमों के खिलाफ़ प्रदर्शन कर रहे छात्रों के खिलाफ़ आपराधिक मुक़दमे दर्ज कराना अब एक आम घटना है, और ख़ासकर बीते साल के छात्र आंदोलन के बाद मुकदमेबाज़ी के अध्यायों में बहुत बढ़ोतरी हुई है. छात्राओं और छात्रों की मानें, तो ऐसा छात्रों की आवाज़ों को दबाने के प्रयास के तहत किया जा रहा है.
मूलतः बक्सर से ताल्लुक़ रखने वाली शिवांगी चौबे दिल्ली विश्वविद्यालय में भाषा विज्ञान की पढ़ाई कर रही हैं. बीते साल हुए छात्र आंदोलन में शिवांगी ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. शिवांगी चौबे का नाम उन 12 छात्रों में शामिल है, जिनके ऊपर रोयना सिंह को जान से मारने का प्रयास करने का आरोप लगाया गया है. साथ ही साथ शिवांगी चौबे डिबार किए गये छात्रों की सूची में भी शामिल हैं. शिवांगी पर रोयना सिंह ने यह आरोप लगाया है कि शिवांगी चीफ प्राक्टर के ऑफ़िस में घुसकर उनका गला घोंटने का प्रयास कर रही थीं.
न्यूज़लॉंड्री से बातचीत में शिवांगी कहती हैं, “यह बात ख़ुद मेरी समझ से बाहर है कि बीएचयू के चीफ प्राक्टर के ऑफ़िस- जहां हर समय बहुत सारे सुरक्षाकर्मी मौजूद रहते हैं- में घुसकर कोई चीफ प्राक्टर को मारने का प्रयास कैसे कर सकता है.”
शिवांगी आगे कहती हैं, “मेरे खिलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई या पुलिस केस को ले लीजिए तो वो बड़ी बात नहीं है. बड़ी बात यह है कि यहां के छात्रों के अधिकारों की बात आते ही बीएचयू में इस तरह की कार्रवाई को अंजाम दिया जा रहा है, और ऐसा प्रशासन की मदद से हो रहा है.” बक़ौल शिवांगी, इस तरह की कार्रवाईयों में बीते साल के आंदोलन के बाद बढ़ोतरी हुई है.
यौन उत्पीड़न की घटनाओं के मद्देनज़र देश के सारे उच्च शिक्षण संस्थानों में जीएसकैश (जेंडर सेंसिटाईजेशन कमिटी अगेन्स्ट सेक्शुअल हरेसमेंट) की स्थापना की संस्तुति की गयी है, लेकिन बीएचयू उन कुछ बिरले संस्थानों में शामिल है जहां जीएसकैश की स्थापना न होने के बराबर ही है. कई छोटे-बड़े आंदोलनों की मदद से जीएसकैश की स्थापना की मांग रखी गयी और इसके लिए बाक़ायदा पत्र लिखे गए. बीते साल के छात्र आंदोलन में भी जीएसकैश की स्थापना करना प्रमुख मांगों में शामिल था.
लेकिन तमाम मांगों के बावजूद जिस जीएसकैश की स्थापना बीएचयू में की गयी है, उसमें छात्रों की ओर से कोई भी प्रतिनिधि नहीं शामिल किया गया है. पूछने पर विश्वविद्यालय के अधिकारी कहते हैं कि उन्हें ठीक-ठीक मालूम नहीं कि जीएसकैश की संरचना क्या है और उसमें कौन-कौन से लोग शामिल हैं. बीएएचयू में एक शिकायत सेल भी बीते कई सालों से सक्रिय है, जिसे चीफ प्रॉक्टर रोयना सिंह ख़ुद चेयर करती हैं, और यहां भी छात्र समुदाय की ओर से कोई भी प्रतिनिधि शामिल नहीं है, जो विश्वविद्यालय में पढ़ रहे लड़के और लड़कियों का भी पक्ष रख सके.
विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान विभाग की एक प्रोफेसर नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताती हैं, “जब भी यहां जीएसकैश में छात्राओं की ओर से किसी का नाम शामिल करने की बात आती है, तो मेरे साथी ही कहते हैं कि उनके होने से क्या होगा? या उन्हें शामिल करने की क्या ज़रूरत है?”
वे आगे कहती हैं, “विश्वविद्यालय में महिला अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता का बहुत अभाव है. लड़की और लड़के के बीच के आपसी संबंध को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जा रहा. और ऐसा करने में मेरे ही कई सहकर्मी सबसे आगे रहते हैं. जिन लोगों के ऊपर यूनिवर्सिटी ने संवेदनशीलता बढ़ाने, जागरुक करने का जिम्मा विश्वविद्यालय ने दिया, खुद उनमें ही संवेदना का बुरी तरह से अभाव है. अव्वल तो उनका काम मामले को रफ़ा-दफ़ा करने और पीड़िता को शिकायत करने से रोकने भर का रह गया है.”
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में लड़कियों को सुरक्षा उपलब्ध कराने के मद्देनज़र पुलिसिंग में बढ़ोतरी की गयी है. अंधेरा होते-होते कैंपस की कई सड़कों पर बैरिकेडिंग कर दी जाती है और उन रास्तों पर लोगों को जाने से मना कर दिया जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि तमाम मांगों में शामिल सड़कों पर प्रकाश की व्यवस्था को बीएचयू प्रशासन अभी तक पूरा नहीं कर सका है. वह सड़क, जिस पर बीते साल छात्रा के साथ छेड़खानी की घटना को अंजाम दिया गया था, उस पर भी अभी उतनी ही स्ट्रीट लाइटें लगी हुई हैं, जितनी दुर्घटना के पहले लगी थीं. सामाजिक विज्ञान विभाग की प्रोफेसर कहती हैं, “कैंपस में अभी भी सुरक्षा नहीं है, इसलिए वे पुलिसिंग बढ़ा रहे हैं. और ये पुलिसिंग नैतिक क़िस्म की भी है, जो सदाचार की शिक्षा तक जाती है जिसे केवल लड़कियों को दिया जाता है.”
अवंतिका तिवारी हिन्दी की छात्रा हैं और उन्हें और उनकी सहेलियों को कई दफ़ा हॉस्टल के भीतर छोटे कपड़े पहनने के लिए टोका गया है. बीते साल हुए आंदोलन पर अवंतिका कहती हैं, “आंदोलन के बाद कुलपति जीसी त्रिपाठी को छुट्टी पर भेज दिया गया था, नए प्रॉक्टर की नियुक्ति हुई थी तो हमें लगा कि हमारी मांगों को माना जा रहा है और असल में ताक़त लड़कियों के हाथ में आ गयी है, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.”
अवंतिका आगे कहती हैं, “जो लड़कियां मुखर होकर आंदोलन में सामने आयीं थीं, उन्हें परेशान किया जाने लगा. इस साल सेमेस्टर की परीक्षा के दौरान मेरा एडमिट कार्ड नहीं दिया गया. मैं दो दिनों तक भागती रही और आख़िर में परीक्षा के पंद्रह मिनट पहले मुझे एडमिट कार्ड दिया गया. यही नहीं, जब मैं परीक्षा देने पहुंची तो मेरी सीट ही कहीं नहीं लगी थी, उसके लिए मुझे आधे घंटे तक इंतज़ार करना पड़ा. अगले तीन-चार पेपरों में कोई ना कोई आकर मेरी कॉपी और एडमिट कार्ड चेक करने लगता था, लगातार लगता रहता था कि कोई न कोई परेशान करने आएगा.”
निलम्बित करने, डिबार करने या पुलिस केस दर्ज कराने की घटनाओं- जिनमें इस साल ख़ासी बढ़ोतरी हुई है- के बारे में बात करते हुए अवंतिका कहती हैं, “मैं बात करने, डिबेट करने, नुक्कड़ नाटक करने या शांतिपूर्ण ढंग से धरना देने के पहले भी सोचती हूं कि मेरे खिलाफ़ भी ऐसी कार्रवाई की जा सकती है.”
लेकिन बीते साल के छात्र आंदोलन के बाद अब कई छात्राओं का ऐसा मानना है कि कैंपस के अंदर अधिकारों और नियमों के मद्देनज़र एक समझ विकसित हुई है. सांख्यिकी स्नातक की छात्रा रश्मि कहती हैं, “हमारे अंदर पहले के मुक़ाबिले जागरूकता आयी है. हम अब कई मौक़ों पर प्रश्न करते हैं. पहले लड़कों द्वारा छींटाकशी किए जाने को हम नज़रंदाज करते थे, लेकिन अब हम ध्यान देते हैं क्योंकि नज़रंदाज करने से अपराधियों के इरादे बुलंद होते थे.”
अपना कार्यकाल पूरा होने के पहले ही पूर्व कुलपति गिरीशचंद्र त्रिपाठी छुट्टी पर भेज दिए गए थे, और पदमुक्त होने के दिन ही वे वापिस कैंपस में दबे पांव दाख़िल हुए और वापिस चले गए. उनके बाद राकेश भटनागर ने पदभार सम्हाला. गिरीशचंद्र त्रिपाठी और राकेश भटनागर दो विपरीत ध्रुवों की तरह साबित हुए. एक तरफ़ जहां गिरीशचंद्र त्रिपाठी मीडिया में कोई भी बयान दे देने और छात्रों से मुंहफट स्वभाव में बात करने के लिए जाने जाते थे, वहीं राकेश भटनागर एकदम चुप कुलपति साबित हुए.
विश्वविद्यालय के एक रजिस्ट्रार नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, “दरअसल राकेश भटनागर ने इस शर्त के साथ काम करना शुरू किया कि उन्हें बीएचयू के कुलपति की ‘अनुपलब्ध’ रहने वाली छवि का उन्मूलन करना था. वे अब छात्रों से मिलते हैं, लेकिन उनका रवैया ढुलमुल और किसी शिकायत-समस्या को रफ़ा-दफ़ा करने वाला है. बस अंतर यह है कि गिरीशचंद्र त्रिपाठी ये काम चीख़-चिल्लाकर करते थे, राकेश भटनागर चुपचाप और हंसी के साथ करते हैं. एजेंडा दोनों तरफ़ एक ही है.”
रश्मि भी कहती हैं, “हमारे पुराने कुलपति जितने पितृसत्तात्मक थे, राकेश भटनागर भी उतने ही पितृसत्तात्मक हैं. बस राकेश भटनागर का व्यवहार लोगों और मीडिया के सामने खुलकर नहीं आया है.”
इस साल जब विश्वविद्यालय के छात्रों के खिलाफ़ हत्या के प्रयास के साथ-साथ अन्य धाराओं में मुक़दमा दर्ज किया गया तो नामज़द छात्र कुलपति राकेश भटनागर से मिलने पहुंचे. उनमें शामिल छात्र न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में बताते हैं, “हमने उनके सामने पूरी बात रखी और यह कहा कि हम निर्दोष हैं. पूरी बात सुनने के बाद उन्होंने बस इतना कहा कि सभी को न्याय मिलेगा.”
विश्वविद्यालय में अभी भी पुलिस केसों और गम्भीर आरोपों का सामना कर रहे लोगों को खुले हाथ छूट देना और उनके खिलाफ शिकायत को किसी रूप में ना सुनना एक आम बात रही है. राकेश भटनागर के कार्यकाल में भी यह हो रहा है. विश्वविद्यालय के सरसुंदर लाल चिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक रहे ओपी उपाध्याय के ऊपर कथित तौर पर आरोप है कि मॉरिशस में उनके ऊपर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा था. इस संबंध में हमने उपाध्याय से संपर्क कर उनका पक्ष शामिल करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया.
इस साल जुलाई में आईसीयू में बेड न मिलने के कारण सरसुंदर लाल चिकित्सालय की ही एक नर्स ने तड़प-तड़पकर स्ट्रेचर पर दम तोड़ दिया. इसके बाद नर्सों ने हंगामा किया और कुलपति आवास पर धरना दिया. जिसके बाद राकेश भटनागर ने ओपी उपाध्याय को चिकित्सा अधीक्षक के पद से हटा दिया.
लेकिन उन्हें हटाने के ठीक दो दिनों बाद राकेश भटनागर ने ओपी उपाध्याय को एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी. भटनागर ने ओपी उपाध्याय को सरसुंदर लाल चिकित्सालय में होने वाले सुधार कार्यों के लिए रोडमैप तैयार करने और बीएचयू के चिकित्सा विज्ञान संस्थान को अपग्रेड करने के लिए नवगठित सात सदस्यीय कमेटी का चेयरमैन नियुक्त कर दिया. लेकिन लापरवाही, व्यभिचार और बलात्कार जैसे आरोपों का सामना कर रहे ओपी उपाध्याय पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं मुमकिन हो सकी.
रोयना सिंह के मामले में भी लगभग यही रवैया कुलपति ने अख़्तियार किया हुआ है. ख़ुद रोयना सिंह पर हत्या के प्रयास का मामला दर्ज है, उन पर कैंपस के भीतर के आपराधिक तत्वों और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े लोगों को छूट देने का आरोप है. इसी महीने बीएचयू के नर्सिंग महाविद्यालय की मान्यता की मांग को लेकर धरने पर बैठी छात्राओं को उठाने के प्रयास में रोयना सिंह ने एक छात्रा को कथित रूप से ऐसा झापड़ मारा कि उस छात्रा के एक कान का पर्दा फट गया. इसके बाद रोयना सिंह पर एक और मुक़दमा दर्ज हुआ लेकिन फिर भी कुलपति ने रोयना सिंह के खिलाफ़ कोई भी अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की.
कार्रवाई के लिए कई छात्रों ने कुलपति कार्यालय के बाहर धरना दिया, लेकिन कई दिनों तक इंतज़ार करवाने के बाद राकेश भटनागर ने जब छात्रों से मुलाक़ात की तो आश्वासन के अलावा कुछ नहीं दे सके.
अपने ऊपर लगे आरोपों के बाबत रोयना सिंह हमसे कहती हैं, “जब आप विश्वविद्यालय को सुधारने की दृष्टि से काम करते हैं तो छात्र आपके खिलाफ़ आवाज़ उठाते हैं, लेकिन छात्र यह समझने में नाकाम हैं कि मैं उनकी बेहतरी के लिए कोई भी क़दम उठाती हूं.” वे आगे कहती हैं, “मुझ पर लगे आरोप मनगढ़ंत हैं. मैंने तो उस लड़की को थप्पड़ मारा ही नहीं, और उसके कान का पर्दा पहले से ही ख़राब था. मुझ पर लगा हत्या के प्रयास का मुक़दमा भी केवल फंसाने के लिए दायर किया गया है.”
रोयना सिंह कहती हैं कि वे किसी राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित नहीं हैं, और एबीवीपी से जुड़े छात्रों को बढ़ावा देने के आरोप भी बेबुनियाद हैं. कुलपति के रवैये और तमाम अनियमितताओं के मद्देनज़र विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी राजेश सिंह कहते हैं, “माननीय कुलपतिजी का मत है कि कोई दोषी होगा तो उसे दंडित किया जाएगा. यहां के अधिकारियों के खिलाफ आरोप लगे हैं, वे सिद्ध तो नहीं हुए हैं. ऐसे में कैसे उन्हें दंडित किया जा सकता है?”
राजेश सिंह आगे कहते हैं, “जहां तक छात्राओं की बात है तो वे चाहते ही हैं कि उन्हें स्वच्छंद वातावरण मिले, बिना किसी रोक-टोक के. हम उन्हें ऐसा वातावरण मुहैया कराना भी चाहते हैं, लेकिन उनकी सुरक्षा हमारे लिए सर्वोपरि है. अगर कल को कुछ घट जाता है तो विश्वविद्यालय की ही बदनामी होगी,” ऐसा कहते हुए राजेश सिंह यह स्पष्ट कर देते हैं कि बीएचयू के लिए ख़ुद की बदनामी किसी छात्र अधिकार या छात्र अस्मिता के हनन से बढ़कर है.
जीएसकैश में छात्राओं के प्रतिनिधि की अनुपस्थिति, भ्रष्टाचार और अपराध के आरोपों और पुलिस केसों के साथ-साथ रोयना सिंह के ख़ुद से जुड़े मामले की जांच कमेटी को चेयर करने के सवालों पर राजेश सिंह कहते हैं, “एकदम से मुझे समझ नहीं आ रहा है. मुझे देखना-समझना होगा, तभी मैं जवाब दे सकूंगा.”
‘सर्वविद्या की राजधानी’ के तमग़े के साथ चमक रहे बीएचयू ने इस साल छात्राओं को हताश भी बहुत किया है. थ्रति दास समाजशास्त्र की छात्रा हैं. मूलतः पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर से ताल्लुक़ रखने वाली दास कहती हैं, “मैं यहां आने के पहले सोचती थी कि बीएचयू में एक प्रगतिशील माहौल मिलेगा, लेकिन यहां तो वास्तविकता बिलकुल उलट निकली. सब वैसा ही दशकों पुरानी परम्परा पर चल रहा है.”
वे आगे कहती हैं, “यहां हमें सुरक्षा दिए जाने के वायदे झूठे हैं. अब लोग न बोलें तो सुरक्षाकर्मी ही किसी भी लड़के-लड़की को साथ चलने-बैठने को लेकर डांट दिया करते हैं. संवेदनशीलता का अभाव है. हमें अभी भी नैतिकता और अपने रहन-सहन को लेकर तमाम लेक्चर दिए जा रहे हैं, बस अब बात बाहर नहीं पहुंच रही.”
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