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कांग्रेसी नहीं चाहते आप से चुनावी गठबंधन
कांग्रेस के भीतर आम आदमी पार्टी से गठबंधन को लेकर मतभेद दिखने लगे हैं. ये विरोध आम आदमी पार्टी के विधानसभा के प्रस्ताव के बाद तेज़ हुआ है जिसमें राजीव गांधी से भारत रत्न वापस लेने का प्रस्ताव पारित किया गया. हालांकि अब आम आदमी पार्टी इस प्रस्ताव को खुद ही खारिज कर चुकी है.
माना जा रहा है कि इस मामले में कांग्रेस की शिकायत दूर करने की आप हर कोशिश कर रही है. हालांकि कांग्रेस के भीतर मतभेद साफ दिखाई दे रहा है. कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि दिल्ली के बदले सीट देने का कोई औचित्य नहीं है. हरियाणा कांग्रेस के मुखिया अशोक तंवर का कहना है कि पार्टी ने उनसे सलाह ली थी, लेकिन हरियाणा में आप से गठबंधन का कोई फायदा नहीं है. बीजेपी को चुनौती देने के लिए कांग्रेस पर्याप्त है. ऐसे में आप को सीट देने से कांग्रेस का नुकसान है.
हालांकि कांग्रेस नेतृत्व जो फैसला करेगा संगठन उसके साथ है. कांग्रेस पूरे देश में बीजेपी के खिलाफ एक बड़ा गठबंधन खड़ा करना चाहती है. लेकिन आप के साथ जाने में कांग्रेस के तमाम नेताओं और प्रदेश संगठनों में हिचकिचाहट है.
आप-कांग्रेस का तालमेल
आप ने विधानसभा में दिल्ली से कांग्रेस का पूरी तरह सफाया कर दिया है. लोकसभा में बीजेपी के पास सातों सीट है. इस तरह लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ जाने से आप की ताकत बढ़ेगी. कांग्रेस को भी फायदा हो सकता है. दोनों मिलकर बीजेपी के मोदी इफेक्ट को कम कर सकते हैं. यह पार्टी के भीतर एक धड़े की सोच है.
लेकिन आप के साथ कांग्रेस के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं है. राजीव गांधी से भारत रत्न वापस लेने का प्रस्ताव उसका एक नमूना है. हालांकि बाद में स्पीकर ने कहा कि ये साजिश का नतीजा है. इस तरह पंजाब में आप और कांग्रेस एक दूसरे के विरोध में खड़ी है. हरियाणा में आप की ताकत ज्यादा नहीं है. इसलिए वहां का संगठन विरोध कर रहा है.
तीन राज्यों के चुनाव में आप का सफाया
आम आदमी पार्टी चार राज्यों के चुनाव में अपनी ज़मानत नहीं बचा पाई है. मध्य प्रदेश में आप के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार आलोक अग्रवाल को सिर्फ 1654 वोट मिलें हैं. वहीं आप ने प्रदेश के 230 में से 208 सीट पर उम्मीदवार उतारे थे लेकिन पार्टी को सिर्फ 0.7 प्रतिशत वोट मिल पाया है. राजस्थान में 199 में से 142 सीट पर आप ने चुनाव लड़ा लेकिन 0.4 प्रतिशत वोट मिला है. छत्तीसगढ़ में 90 में से 85 सीट पर चुनाव लड़ने के बावजूद 0.9 फीसदी लोगों ने आप को पंसद किया है.
इन राज्यों में नोटा को आप से अधिक मत मिले हैं. इस हार पर आप के नेता गोपाल राय ने कहा कि पार्टी का विस्तार किया जा रहा है. इस चुनाव के लड़ने से आप की ताकत बढ़ी है. हालांकि आप के चुनाव मैदान में कूदने से कांग्रेस का नुकसान हुआ है. कई सीट पर आप के उम्मीदवारों की वजह से कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा है. कांग्रेस का पूर्ण बहुमत से वंचित होने की वजह भी यही है.
आप की लोकप्रियता घटी
जिन राज्यों में हाल में चुनाव हुए हैं, उसके नतीजों से साफ है कि आप की ताकत घटी है. आप की लोकप्रियता कम हो रही है. हालांकि दिल्ली के संबध में ये कहना मुश्किल है. आप यहां सत्ता में है. चुनाव अगर पैमाना है तो निगम के चुनाव में आप ने कांग्रेस को तीसरे नंबर पर धकेल दिया है. लेकिन जीत बीजेपी की हुई है.
आप के बारे में कहा जा सकता है कि पहले के मुकाबले पार्टी की लोकप्रियता घटी है. दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने आप के साथ गठजोड़ का विरोध नहीं किया है, लेकिन अजय माकन इसके लिए तैयार नहीं है. दिल्ली के कांग्रेस वर्कर भी आप के साथ जाने में झिझक रहे हैं. जिससे कांग्रेस और आप के बीच तालमेल का फायदा होने की उम्मीद कम है. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बनाम बीजेपी में आप का खेल कितना रहेगा ये अंदाज़ा करना मुश्किल है.
पंजाब में आप
पंजाब ऐसा प्रांत है जहां आप की राजनीतिक हैसियत ठीक है. पंजाब में पार्टी मुख्य विरोधी दल है. पंजाब की आप यूनिट में लड़ाई भी चरम पर है. 2014 में सभी 13 सीटों पर आप ने उम्मीदवार उतारे थे. जिसमें चार लोग सांसद चुने गए थे. चार सांसदों में से दो सांसद आप से अलग हो गए हैं. वहीं दो सांसद पार्टी में हैं लेकिन संगरूर के सांसद भगवंत मान गाहे बगाहे पार्टी से नाराज़ रहते हैं.
जिन 13 उम्मीदवारों की बात हो रही है, उनमें से 7 अब पार्टी में नहीं हैं. जिसकी वजह से आप कमज़ोर हुई है. पंजाब में आप के 20 में से 8 विधायक पार्टी से नाराज़ बताए जा रहें हैं. ऐसे में कांग्रेस के साथ गठबंधन में आप को फायदा है. लेकिन पंजाब में पार्टी में घमासान हो सकता है. कांग्रेस के पास पटियाला से पहले प्रनीत कौर सांसद थी. लेकिन 2014 में आप ने चुनाव में उन्हें हरा दिया. प्रनीत कौर मुख्यमंत्री की पत्नी हैं. ऐसे ही हर सीट पर रार है. इसलिए पार्टी की प्रदेश इकाई गठबंधन की हिमायत नहीं कर रही है.
दिल्ली में आसान नहीं गठबंधन
दिल्ली में आप के उदय से नुकसान कांग्रेस का हुआ है. आप की वजह से कांग्रेस सारी सीटें हार गयी हैं. दिल्ली में दिग्गज कांग्रेसी सांसद रह चुके हैं. आप ने कई सीट पर उम्मीदवार भी घोषित कर दिये हैं. दिल्ली के मौजूदा कांग्रेस के मुखिया अजय माकन नई दिल्ली सीट से सांसद थे. इसलिए उनका विरोध मुखर है. पूर्वी दिल्ली से संदीप दीक्षित दो बार सांसद रहे हैं. उनके पास यहां से लड़ने के अलावा कोई चारा नहीं है.
इसी तरह जेपी अग्रवाल उत्तर पूर्वी दिल्ली से सांसद रहें हैं. चांदनी चौक से पूर्व मंत्री कपिल सिब्बल भी सांसद थे. ऐसे में इन चार सीटों पर कांग्रेस समझौता नहीं कर सकती है. कपिल सिब्बल राज्यसभा में हैं तो उनकी सीट भले आप को दी जा सकती है. लेकिन कपिल सिब्बल लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहते हैं. जो तीन सीटें कांग्रेस आप को ऑफर कर सकती है वो हैं साउथ दिल्ली, पश्चिमी दिल्ली और उत्तर पश्चिम दिल्ली. लेकिन आप तीन सीट पर मानेगी ये कहना मुश्किल है.
हालांकि 2014 के चुनाव से पहले सातों सीट कांग्रेस के पास थी. लेकिन मोदीलहर में कांग्रेस की पराजय हुई. कांग्रेस को सिर्फ 15 फीसदी वोट मिले थे. आप को 32 फीसदी वोट मिले थे. बीजेपी को 46 फीसदी वोट मिले थे. हालांकि दिल्ली में मुद्दों पर चुनाव होता रहा है. ऐसे में आप की पहले जैसी स्थिति भी नहीं है. कांग्रेस को सोच समझकर फैसला लेना है.
गठबंधन विकल्प
नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी को हराना आसान नहीं है. कांग्रेस के पास गठबंधन ही विकल्प है. कांग्रेस के नेता किसी पार्टी को नाराज़ नहीं करना चाहते हैं. टीडीपी के नेता चन्द्रबाबू नायडू, अरविंद केजरीवाल को साथ रखना चाहते है. इसलिए कांग्रेस के हाथ बंधे हैं. यूप, बंगाल ओडीशा में कांग्रेस कमज़ोर है. गठबंधन के साथी आंख दिखा रहे हैं. जिस तरह 2019 का चुनाव है, उसमें एक-एक सीट मायने रखती है. आप के साथ गठबंधन में दिल्ली की सभी सीट जीतने की संभावना है. कांग्रेस इस संभावना को हाथ जाने नहीं देना चाहेगी.
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