Newslaundry Hindi
पश्चिम बंगाल में चिटफंड और पत्रकारिता का बदसूरत जाल
पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ पत्रकार सुमन चट्टोपाध्याय को सीबीआई ने चिट-फंड घोटाले में गिरफ्तार कर लिया है. तृणमूल कांग्रेस से निकाले गए सांसद, दैनिक समाचार पत्र ‘संबद्ध प्रतिदिन’ के पूर्व संपादक कुणाल घोष और प्रमुख संपादक श्रीन्जॉय बोस के बाद चट्टोपाध्याय तीसरे ऐसे पत्रकार हैं जिन पर चिट-फंड घोटाले का आरोप लगाया गया है.
बीते गुरुवार को चट्टोपाध्य को आई-कोर ग्रुप चिट-फंड घोटाले में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. शुक्रवार को भुवनेश्वर कोर्ट के प्रमुख न्यायिक मजिस्ट्रेट ने चट्टोपाध्याय को तीन दिनों के लिए सीबीआई की हिरासत में भेज दिया है. सीबीआई ने कोर्ट को बताया है कि आई-कोर ग्रुप पर भारी मुनाफे का लालच देकर लोगों से 3,000 करोड़ रुपए ऐंठने का आरोप है, फंड का कुछ हिस्सा चट्टोपाध्याय की कंपनी के माध्यम से बांटा जाना था.
यह किस्सा एक और ऐसे मामले को उजागर करता है जिसमें पत्रकारिता जगत के ऐसे व्यक्ति का नाम खराब हुआ है जिसने पिछले दशक में बंगाली पत्रकारिता को एक नए आयाम तक पहुंचाया है. यह घटना पैसों के दम पर चल रही पत्रकारिता के बदसूरत चेहरे को दिखाती है जो एक राज्य में संदिग्ध स्रोतों के जरिए पत्रकारिता में पैसा लगाने की कोशिश करती है.
उनके प्रतिद्वंद्वी समेत पूरी मीडिया बिरादरी इस मुद्दे पर खुल कर बात करने से बचते नज़र आ रहे है लेकिन इस बात की चर्चा ज़रूर है कि अगर इस मामले की गहराई से जांच हुई तो इसमें कई और परतें खुल कर सामने आएंगी. मामले से जुड़े सूत्रों ने बताया कि जांच एजेंसी द्वारा जो जानकारी हासिल की जा रही है उसमें कई बड़े राजनेताओं और मीडिया जगत के सम्मानित नाम सामने आ सकते हैं.
यह गिरफ्तारी पश्चिम बंगाल की मीडिया के लिए अभी तक कोई महत्वपूर्ण ख़बर नहीं है. राज्य के प्रमुख बंगाली और अंग्रेज़ी समाचार पत्रों ने अभी तक इसे कवर नहीं किया है. यहां तक की राज्य का सबसे अधिक प्रसार संख्या वाला बंगाली अख़बार आनन्द बाज़ार पत्रिका ने भी बिना चट्टोपाध्याय का नाम लिए, केवल एक छोटी सी रिपोर्ट प्रकाशित की है.
आई-कोर और करोड़
सूत्र कहते है कि सीबीआई चट्टोपाध्याय पर आरोप दाखिल करने के लिए बिल्कुल तैयार है, क्योंकि करोड़ों रुपये के घोटाले की जांच में उनकी भी भूमिका दिख रही है. सूत्र बताते हैं कि उन्होंने आई-कोर की तरफ से कई चिट फंड फार्म से पैसे लिए थे.
एक पुलिस अधिकारी ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया, “संपादक के चिट फंड फर्म के साथ मिलीभगत के बारे में सभी जानते हैं. उन्हें 20 करोड़ रुपये फर्म तथा आई-कोर के अलावा अन्य जगहों से मिले थे.”
एक छोटे रिपोर्टर से सेलेब्रिटी क्लब तक
चट्टोपाध्यायय ने 1981 में अपना कैरियर ट्रेनी रिपोर्टर के तौर पर एक बंगाली दैनिक अख़बार ‘आजकल’ से शुरू किया. आनंद बाज़ार पत्रिका के साथ अपने 25 साल के कार्यकाल में, उन्होंने अपने चेहरे और नाम के अलावा बहुत कुछ दांव पर लगाया. उन्होंने कार्यकारी संपादक के रूप में आनंद बाज़ार पत्रिका को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया. चट्टोपाध्यायय ने बंगाली पत्रकारिता को नई पहचान दी. वह 2004 में शुरू हुए बंगाली समाचार चैनल ‘एबीपी आनंदा’ के संस्थापक संपादक भी रहे जिसे 2005 में उन्होंने छोड़ दिया. इसी साल वह कोलकाता टीवी से बतौर संस्थापक संपादक जुड़े और 2006 में इसे भी छोड़ दिया.
इसके बाद, चट्टोपाध्यायय ने अपना खुद का बंगाली अख़बार ‘एकदिन’ शुरू किया. साथ में एक अन्य प्रकाशन दिशा की भी नींव रखी. उनको इन प्रोजेक्ट्स को पूरा करने के लिए पैसों की जरूरत थी और यहीं पर आरोप है कि उन्होने चिट फंड फर्म से पैसे लिए.
सीबीआई ने 2014 में चट्टोपाध्यायय से आई-कोर से पैसे लेने के मामले पर सवाल जवाब करना शुरू किया. सीबीआई को उस समय पता चला कि कंपनी के फंड का एक हिस्सा दिशा प्रॉडक्शन एंड मीडिया प्राइवेट लिमिटेड को भेजा गया और साथ ही चट्टोपाध्यायय के निजी खाते में भी कुछ रकम गई. वर्ष 2017 में शारदा चिट फंड मामले में उनकी पत्नी कस्तूरी से भी पूछताछ की गयी थी.
एक राजनीतिक निवेश–
शारदा चिट फंड घोटाला 2013 में सामने आया. तृणमूल कांग्रेस के सरकार में आने के ठीक 2 साल बाद. तब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के राजनीतिक विरोधियों ने उन पर आरोप लगाना शुरू कर दिया कि 2011 के विधानसभा चुनावों का ज़्यादातर प्रचार प्रसार चिट फंड और पूंजी योजना के पैसों से किया गया. पूंजी योजना में, जिसमें कम आमदनी वाले समूदायों को काफी ज्यादा रिटर्न का सब्जबाग दिखा कर उनकी छोटी-छोटी बचत को लेकर उसे दूसरे प्रोजेक्ट्स में निवेश किया जाता है.
जिन कंपनियों को चिट फंड के रुपये से फायदा हुआ वह थी- रोज़ वैली, आई-कोर और शारदा. इन फ़र्मों ने कथित तौर पर अपने फंड को मीडिया घरानों में ट्रांसफर किया. इन पैसों से टीवी चैनल्स, अख़बार और पत्रिकाएं शुरू की गईं. परिणामतः बंगाल में बड़ी संख्या में नए प्रकाशन संस्थान शुरू हुए, हालांकि इनमें से अधिकतर प्रकाशनों पर सीबीआई की कार्रवाई के बाद ताले पड़ गए.
एक पूर्व पत्रकार बताते हैं, “राजनीतिक दलों के बीच कई प्रमुख पत्रकारों ने पैसे लिए है. जिनमें चट्टोपाध्यायय और कुणाल घोष के नाम सबसे आगे आए, लेकिन दूसरों का क्या? आम चुनाव निकट हैं, इसलिए मुझे आश्चर्य नहीं होगा यदि कई अन्य बड़े नाम सलाखों के पीछे नज़र आएं.”
संयोग से, घोष जो कि 3 साल की की सज़ा काटने के बाद रिहा हो चुके हैं, एकमात्र ऐसे व्यक्ति जिन्होंने चट्टोपाध्यायय की गिरफ्तारी पर सार्वजनिक रूप से बात की.
घोष का सवाल है कि मीडिया अब चुप क्यों है? उन्होंने कहा, “सरकार ने मेरे खिलाफ कार्रवाई की और मीडिया ने उस समय खुशी मनाई जब मुझे झूठे मामले में गिरफ्तार किया गया, जिससे मेरा कोई संबंध नहीं था. उस समय सुमन दा (चट्टोपाध्यायय का ज़िक्र करते हुए) सहित पूरे मीडिया ने मेरी गिरफ्तारी कि ख़बर खूब चलाई जिससे मेरा कोई लेना देना नहीं था. मुझ पर झूठा आरोप लगाया गया, पर आज पूरा मीडिया खामोश क्यों है?”
उन्होंने आगे कहा, “क्या मेरे और प्रतिदिन के प्रमुख संपादक श्रीन्जॉय बोस के साथ ऐसा ही बर्ताव किया गया था? क्या पत्रकारिता इतनी बीमार हो गई है.”
इस गिरफ्तारी से सत्ता के गलियारे में खतरे की घंटी बज चुकी है क्योंकि चट्टोपाध्यायय मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के करीबी माने जाते हैं. राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि उनकी गिरफ्तारी आम चुनावों से ठीक पहले राज्य में टीएमसी सरकार को ‘किनारे’ करने का एक तरीका है. उनका मानना है कि केंद्र टीएमसी सरकार पर दबाव बनाने के लिए एक बार फिर चिट फंड के मुद्दे को उछालने की कोशिश कर रहा है. यह गिरफ्तारी उन लोगों के लिए चेतावनी है, जिन्होंने मतदान के दौरान दलाल की भूमिका निभाई थी.
इस घटना ने विपक्षी भाजपा को एक बार फिर टीएमसी पर हमला करने का मौका दे दिया है, और आम चुनावों से ठीक पहले रथ यात्रा को लेकर सत्तारूढ़ टीएमसी और भाजपा के बीच जो तना-तनी चल रही है वो किसी से छुपी नहीं है. यह गिरफ्तारी ममता बनर्जी के खिलाफ भाजपा के हाथ में एक मजबूत हथियार सिद्ध हो सकता है.
Also Read
-
Hafta 483: Prajwal Revanna controversy, Modi’s speeches, Bihar politics
-
Can Amit Shah win with a margin of 10 lakh votes in Gandhinagar?
-
Know Your Turncoats, Part 10: Kin of MP who died by suicide, Sanskrit activist
-
In Assam, a battered road leads to border Gorkha village with little to survive on
-
Amid Lingayat ire, BJP invokes Neha murder case, ‘love jihad’ in Karnataka’s Dharwad