Newslaundry Hindi
6 दिसंबर, 1992 को बाबरी तोड़ने वाला मुसलमान कारसेवक
बाबरी विध्वंस के आज 26 साल पूरे हो चुके हैं. इन 26 सालों के दौरान बहुत कुछ बदल गया. देश में भी और उन लोगों के जीवन में भी जिन्होंने बाबरी विध्वंस की पटकथा लिखी थी. लेकिन बाबरी मस्जिद के गिरने के बाद सबसे बड़ा बदलाव बलबीर सिंह के जीवन में आया जो 6 दिसंबर, 1992 को हुई हिंसक कारसेवा में बतौर कारसेवक शरीक हुए थे.
मूल रूप से हरियाणा के पानीपत जिले के रहने वाले बलबीर सिंह 90 के शुरुआती दशक में एक हिंदूवादी संगठन से जुड़े थे. तब उनकी उम्र करीब 25 साल थी. अपने आस-पास के कई अन्य युवाओं की तरह ही बलबीर भी अयोध्या में राम मंदिर बनवाने के लिए आंदोलन में कूद गए थे. उन्होंने बताया, “हमें कहा और सिखाया गया था कि मुस्लिम आक्रांता थे. उन्होंने हमारे मंदिर तोड़ कर वहां अपनी मस्जिदें बनाई थी. अब देश में हमारा शासन है है लिहाजा हमें उन गलतियों को सुधारना है जो इतिहास में हुई. हमें मस्जिदें गिराकर मंदिर बनाने हैं.”
बलबीर के मुताबिक वे उन शुरुआती लोगों में से एक हैं जिन्होंने 6 दिसंबर, 1992 के दिन बाबरी मस्जिद के गुंबद पर चढ़कर सबसे पहले प्रहार किए थे. बाबरी गिराने के बाद जब बलबीर अपने साथियों के साथ वापस पानीपत लौटे तो उनका भव्य स्वागत किया गया. लोगों ने उन्हें कन्धों पर उठा लिया और फूल मालाएं पहना कर उन्हें सम्मानित किया. लेकिन उनके घरवाले उनसे नाखुश थे. बलबीर कहते हैं, “घरवालों ने मुझे एहसास दिलाया कि मैंने कितनी बड़ी भूल की है. मैंने एक अपराध किया था जिसका अंदाज़ा मुझे बाद में हुआ.”
अपनी गलती का एहसास होने के बाद बलबीर इस कदर ग्लानि में डूब गए कि उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा. वे बताते हैं कि अपने स्वास्थ्य सुधार के लिए उन्होंने हर तरह के जतन किए लेकिन कुछ भी फायदा नहीं हुआ. कुछ समय बाद उन्हें मालूम चला कि उनके साथी योगेन्द्र पाल सिंह, जो कारसेवा में उनके साथ थे, अब इस्लाम अपना चुके हैं. बलबीर को भी किसी ने सलाह दी कि अपने किए का पश्चाताप करने के लिए उन्हें भी किसी मौलाना से मिलना चाहिए.
बलबीर कहते हैं, “मैं शर्म से डूबा हुआ मौलाना के पास पहुंचा. मैंने उन्हें ये नहीं बताया कि मैं बाबरी तोड़ने वालों में शामिल रहा हूं लेकिन लेकिन मेरे चेहरे के भाव बहुत कुछ बता रहे थे. मौलाना से मेरी जो बात हुई उसके बाद मैंने मन बना लिया कि मुझे इस्लाम अपनाना है. मैंने प्रण भी लिया एक मस्जिद गिराने का जो पाप मैंने किया है, उसके प्रायश्चित के लिए मैं कम-से-कम सौ मस्जिदें बनवाऊंगा.”
इसके बाद बलबीर सिंह धर्म परिवर्तन करके मोहम्मद आमिर हो गए. अब वे इस्लाम का प्रचार करते हैं और बीते 25 सालों में उन्होंने 91 मस्जिदें बनवाने में अपना सक्रिय योगदान किया है. वे कहते हैं, “सौ मस्जिदें बनवाने की बात मैंने अपने पापों के प्रायश्चित के लिए एक जज्बे और जोश में कही थी. अल्लाह ने उस जज्बे की लाज रखी और मुझे 91 मस्जिदें बनवाने का सौभाग्य मिला.”
बलबीर सिंह के मोहम्मद आमिर हो जाने के इस मामले में कुछ तथ्य ऐसे भी हैं जो कई सवाल खड़े करते हैं. इनमें पहला तो यही है कि बलबीर सिंह के साथ ही लगभग 27-28 अन्य कारसेवकों ने भी कथित तौर पर इस्लाम धर्म अपनाया था. लेकिन इसकी पुष्टि के लिए जब न्यूज़लांड्री ने ऐसे लोगों से संपर्क करने के प्रयास किए तो मोहम्मद आमिर (बलबीर सिंह) के अलावा किसी भी अन्य व्यक्ति से संपर्क नहीं हो सका. यहां तक कि योगेंद्र पाल सिंह, जो बलबीर सिंह के दोस्त थे और उनसे पहले इस्लाम अपना चुके थे, उनका भी कोई संपर्क सूत्र नहीं मिलता. खुद मोहम्मद आमिर (बलबीर) भी नहीं जानते कि वो अब कहां हैं.
दूसरा, बलबीर सिंह और अन्य लोगों के इस्लाम अपनाने की बातें कई वेबसाइटों पर प्रकाशित तो हुई हैं लेकिन इनमें से अधिकतर वेबसाइट ऐसी हैं जो इस्लाम धर्म के प्रचार का ही काम करती हैं. बलबीर सिंह के मोहम्मद आमिर हो जाने की ख़बर तो कुछ मुख्यधारा की समाचार वेबसाइट पर मिलती है लेकिन अन्य कारसेवकों के इस्लाम अपनाने की बातें सिर्फ इस्लाम धर्म प्रचार से जुड़ी वेबसाइटों पर ही दिखती हैं.
इसके अलावा मौलाना कलीम सिद्दीकी का नाम भी इस पूरे प्रसंग में कई जगह आता है. कलीम सिद्दीकी मुज़फ़्फ़रनगर के पास के एक गांव के रहने वाले हैं और एक इस्लामिक ट्रस्ट चलाते हैं. उनका नाम इस प्रसंग में आना इसलिए इस मामले तो थोड़ा संदेहास्पद बना देता है क्योंकि उनके ऊपर ज़बरन धर्मांतरण के आरोप लगते रहे हैं. इस संबंध में उनके ख़िलाफ़ एक मुक़दमा भी दर्ज हुआ है.
मौलाना कलीम सिद्दीक़ी के कई वीडियो भी इंटरनेट पर उपलब्ध हैं जिनमें वे बताते हैं कि कैसे उनसे बात करने के बाद सैकड़ों हिंदू लोगों ने इस्लाम अपना लिया. उनके अधिकतर वीडियो ‘मैसेज टीवी’ नाम के एक चैनल पर प्रकाशित होते हैं. ऐसे ही एक वीडियो में वे बता रहे हैं कि कैसे उन्होंने गैर-मुस्लिम लोगों को इस्लाम में जोड़ने का काम शुरू किया. इस वीडियो में वे कहते हैं कि उनके घर की एक छोटी बच्ची एक बार इसलिए बहुत रोने लगी कि उनकी कामवाली अगर मुस्लिम नहीं बनी और हिंदू रहते हुए ही मर गई तो वह दोज़ख में जलेगी. वे आगे इस वीडियो में बताते हैं कि बच्ची की इस बात से उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें लोगों को ‘दोज़ख की आग में जलने से बचाने’ के लिए काम करना चाहिए और गैर मुस्लिम लोगों को इस्लाम की ‘दावत’ देनी चाहिए.
ऐसे कई वीडियो मौलाना कलीम सिद्दीकी के मौजूद हैं जिनमें वे बताते हैं कि कैसे उन्होंने कभी टैक्सी ड्राईवर को इस्लाम के बारे में बताकर उसे और उसके परिवार को मुसलमान बना लिया तो अभी सैकड़ों अन्य लोगों को. बलबीर सिंह और अन्य 27-28 कारसेवकों को इस्लाम धर्म में लाने के बारे में कलीम सिद्दीकी अपने कई वीडियो में बताते हैं. बलबीर इस बात की पुष्टि भी करते हैं कि उन्होंने मौलाना कलीम सिद्दीकी से मिलने के बाद ही इस्लाम अपनाने का मन बनाया था.
बलबीर सिंह ने मोहम्मद आमिर बनने का यह फैसला कैसे लिया, क्यों लिया, अब वे क्या करते हैं और आज राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद के बारे में वे क्या सोचते हैं, इन तमाम सवालों के विस्तृत जवाब इस एक्सक्लूज़िव बातचीत में सुन सकते हैं:
Also Read
-
What’s Your Ism? Ep 9. feat Shalin Maria Lawrence on Dalit Christians in anti-caste discourse
-
Uttarakhand forest fires: Forest staff, vehicles deployed on poll duty in violation of orders
-
Mandate 2024, Ep 3: Jail in Delhi, bail in Andhra. Behind the BJP’s ‘washing machine’ politics
-
‘They call us Bangladeshi’: Assam’s citizenship crisis and neglected villages
-
Another Election Show: Students of Kolkata’s Jadavpur and Presidency on Modi vs Mamata