Newslaundry Hindi
आर्थिक विकास पर पड़ा तेल और रुपए का काला साया
पिछले हफ्ते जुलाई और सितंबर 2018 के सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी के आंकड़े प्रकाशित हुए. सकल घरेलू उत्पाद आर्थिक आकार की एक माप है. इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था का 7.1% की दर से विकास हुआ. इससे पहले की तिमाही (अप्रैल और जून 2018) में भारतीय अर्थव्यवस्था 8.2% की दर से आगे बढ़ी थी.
इस गिरावट का प्रमुख कारण क्या है? गैर सरकारी अर्थव्यवस्था केवल 6.4% की दर से आगे बढ़ी. जुलाई से सितंबर की तिमाही में गैर सरकारी अर्थव्यवस्था, पूरी अर्थव्यवस्था का करीब 88% हिस्सा थी. इससे पहले की तिमाही में, गैर सरकारी अर्थव्यवस्था, 8.3% क दर से आगे बढ़ी थी. इस गिरावट के प्रमुख कारण, कच्चे तेल के बढ़ते दाम और डॉलर के मुकाबले गिरता रुपया है.
अब कारों की बिक्री को ही ले लीजिये. जुलाई से सितंबर के बीच कारों की बिक्री बिल्कुल ठप रही और इसमें 2.4% की गिरावट आई. इससे पहले की तिमाही में, कारों की बिक्री करीब 18% तक बढ़ी थी.
अगर दोपहिया वाहनों (मोटरसाइकिल, स्कूटर और मोपेड) की बिक्री की बात करें, तो इधर भी धंधा थोड़ा मंदा ही रहा. जुलाई और सितंबर के बीच में दो पहिया वाहनों की बिक्री केवल 4.9% की दर से बढ़ी. इसके पहले की दो तिमाही में बिक्री 13.9% और 24.8% बढ़ी थी. स्कूटरों की बिक्री केवल 0.3% बढ़ी. स्कूटर ज़्यादातर शहरों में बिकते हैं इसलिए इनकी बिक्री का आंकड़ा शहरी भारत का एक अच्छा आर्थिक संकेतक हैं.
ये गिरावट रुपए की कीमत में कमी और बढ़ते कच्चे तेल के दामों का नतीजा था. इस तिमाही की शुरुआत में डॉलर का मूल्य 68.4 रुपए था जो कि इसके अंत तक करीब 73 रुपए पर पहुंच गया. कच्चे तेल का दाम इस तिमाही में 75 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर बरकरार रहा. इसकी वजह से भारत में पेट्रोल और डीजल के दाम भी काफी ज़्यादा बढ़ गए. इसके चलते ड्राइविंग एक महंगा सौदा बन गया. इसका प्रभाव कारों और दो पहिया वाले वाहनों की बिक्री पर पड़ा.
गिरते रुपए ने आयात महंगा बना दिया. भारत का व्यापार घाटा सकल घरेलू उत्पाद का -4.8% तक पहुंच गया. व्यापार घाटा आयात और निर्यात के बीच के अंतर को कहते हैं. महंगे कच्चे तेल की वजह से भारतीय आयात तो जुलाई से सितंबर के बीच में काफी ज़्यादा बढ़ा, पर निर्यात उतना नहीं बढ़ सका. भारत जितना कच्चे तेल का सेवन करता है, उसका करीब 83% हिस्सा आयात करता है. इसकी वजह से व्यापार घाटा गिर कर -4.8% तक पहुंच गया. और इसकी वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर गिर कर 7.1% पर आ गयी.
व्यापार घाटे के काफी गिरने के बाद भी जीडीपी की दर 7.1% पर इसलिए बनी रही, क्योंकि इस दौरान सरकारी खर्च करीब 12.7% बढ़ा. सरकारी खर्च बढ़ा कर विकास की दर तेज़ करने का फार्मूला कुछ सीमित समय तक ही चल सकता है, पर मोदी सरकार ने पिछले दो सालों से इसकी आदत बना ली है.
जहां तक कच्चे तेल के दामों का सवाल है, मोदी सरकार की अच्छी किस्मत फिर से लौट आई है. 3 दिसंबर, 2018 को कच्चे तेल का दाम करीब 61 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर आ गया था. इसके अलावा डॉलर के मुकाबले रुपए का मूल्य भी थोड़ा सुधर गया है. एक डॉलर का मूल्य अभी 70.5 रुपए है. इसका मतलब ये हुआ कि पिछली तिमाही में जो कच्चे तेल के दाम बढ़ने से और रुपए का मूल्य गिरने से नकारात्मक प्रभाव पढ़ा था, वो इस तिमाही में दोबारा नहीं होगा.
इसका असर कारों और दोपहिया वाहनों की बिक्री में दिखने लगा है. अक्टूबर 2018 के नतीजे उससे पहले के महीनों से काफी बेहतर थे. आर्थिक विकास पर कच्चे तेल के दाम और गिरते रुपए का काला साया पड़ गया था. ये साया अब धीरे धीरे उठता हुआ दिखाई दे रहा है.
(विवेक कौल इजी मनी ट्राइलॉजी के लेखक हैं)
Also Read
-
TV Newsance 305: Sudhir wants unity, Anjana talks jobs – what’s going on in Godi land?
-
What Bihar voter roll row reveals about journalism and India
-
India’s real war with Pak is about an idea. It can’t let trolls drive the narrative
-
Reporters Without Orders Ep 376: A law weaponised to target Gujarat’s Muslims, and a family’s fight against police excess in Mumbai
-
बिहार वोटर लिस्ट रिवीजन: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई और सांसद मनोज झा के साथ विशेष बातचीत