Newslaundry Hindi
चुनाव बाद फिर से भाजपा में शामिल हो जाएंगे ‘जेएनयू कॉन्डोम’ वाले ज्ञानदेव आहूजा
चुनाव से ठीक पहले बीजेपी और कांग्रेस दोनों में भितरघात और विद्रोह देखने को मिल रहा है. जिन नेताओं के टिकट कटे हैं वो या तो दूसरी पार्टियों के पाले में जा रहे हैं या फिर निर्दलीय किस्मत आजमा रहे हैं. इसी कड़ी में एक नाम है ‘बदनाम हुए तो क्या नाम न हुआ’ वाले ज्ञानदेव आहूजा का. अलवर के रामगढ़ विधानसभा सीट से निवर्तमान विधायक आहूजा पहले भाजपायी हुआ करते थे. इस चुनाव में टिकट कटने के बाद वो जयपुर की सांगनेर विधानसभा सीट से निर्दलीय किस्मत आजमा रहे हैं. बीजेपी से इस्तीफा देने के कुछ घंटे बाद ही उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश.
आप लंबे समय से बीजेपी से जुड़े रहे हैं और पार्टी के एक वरिष्ठ विधायक रहे हैं. अचानक से आपने बीजेपी छोड़ने का फैसला क्यों किया?
मैंने बीजेपी नहीं छोड़ी है, बल्कि कुछ समय के लिए मैंने पार्टी से दूर रहने के लिए इस्तीफा दिया है. जब तक मुझे मेरा चुनावी टिकट काटने के लिए न्याय नहीं मिल जाता, तब तक के लिए. राष्ट्रीय नेतृत्व ने इस बात को स्पष्ट किया है कि अगर किसी मौजूदा विधायक को टिकट देने से इनकार किया जाता है तो पार्टी (बीजेपी) उस फैसले के पीछे का कारण ज़रूर बताए. न तो उन्होंने मुझे कोई कारण बताया और ना ही उन्होंने मेरा टिकट काटने के पीछे का रहस्य बताया. जनता इस फैसले से बेहद दुखी है लेकिन में इस फैसले से दुखी नहीं हूं, मैं हैरान हूं. अगर मैं दुखी होता, तो एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का फैसला नहीं लेता.
आपने भाजपा से इस्तीफा दे दिया है और फिर भी आप खुलकर इसे स्वीकार या इनकार नहीं कर रहे कि आपने पार्टी छोड़ दी है, ऐसा कैसे चलेगा.
मुझे भाजपा की चुनाव रणनीति पर पूर्ण विश्वास है और चुनाव जीतने के बाद मैं भाजपा में फिर से शामिल हो जाऊंगा. कांग्रेस, बीएसपी और एक स्थानीय पार्टी ने मुझे अपने टिकट पर चुनाव लड़ाने के लिए बार-बार संपर्क किया. लेकिन मैंने उन्हें सीधे अस्वीकार कर दिया. हालांकि मैं एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहा हूं, फिर भी मैं हूं एक बीजेपी नेता ही.
क्या बीजेपी के उम्मीदवार का चुनावी अभियान आपके खिलाफ नहीं होगा?
ज्ञानदेव आहूजा: वे मुझ पर हमला करने का विकल्प चुन सकते हैं लेकिन मैं भाजपा पर हमला नहीं करूंगा. मैं हिंदुत्व, राम जन्मभूमि, संस्कृति और गाय संरक्षण और सांगनेर विधानसभा के विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ रहा हूं, और इन्हीं मुद्दों पर आगे भी चुनाव लड़ूंगा.
असली ‘हिंदुत्व‘ ब्रांड उम्मीदवार कौन है, आप या बीजेपी का आधिकारिक उम्मीदवार?
मेरी सीट पर, बीजेपी और कांग्रेस के बीच तीसरे और चौथे स्थान की लड़ाई है. जहां तक मेरे अस्तित्व की बात है तो मैं एक ही आदमी हूं जो सनातन धर्म की जीवनशैली का निरंतर पालन करता हूं, ऋषि-मुनियों का सम्मान करता हूं, और सूर्यास्त से पहले दिन का मेरा अंतिम भोजन रहता है. मैं भाजपा उम्मीदवार पर टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं. लेकिन यह मुख्य बातें हैं जो मेरे चरित्र की विशेषता बताती हैं.
आपने आरोप लगाया है कि सरकार के तानाशाही रवैये के कारण आपने पार्टी छोड़ने का फैसला किया है. आपका इशारा केंद्रीय नेतृत्व या वसुंधरा राजे किसकी तरफ है?
केंद्रीय सरकार का मैं सम्मान करता हूं. और मैं कह रहा हूं कि नरेंद्र मोदीजी भगवान कृष्ण के अवतार हैं.
यानि आप वसुंधरा राजे को निशाना बना रहे हैं?
मैंने जिस प्रकार के बयानों का इस्तेमाल किया है, क्या पार्टी ने इन वर्षों में मुझे बाहर निकाला. अगर निकाला होता तो यह मेरी अपनी निष्ठा और ईमानदारी पर हमला होता. पार्टी ने ऐसा नहीं किया. मेरे इस्तीफे के पत्र में, मैंने स्पष्ट रूप से राज्य नेतृत्व के पक्षपात और तानाशाही रवैया, इन दो कारणों का उल्लेख किया है. (हंसते हुए) सब कुछ इस कथन में संक्षेप में है. जो लोग समझना चाहते हैं वह पहले ही समझ चुके हैं.
आप बोलने में कंजूसी कर रहे हैं? आपका हमला तो वसुंधरा राजे पर ही था?
(हंसते हुए) आप समझ सकते हैं कि मेरा निशाना किधर है.
अतीत में आपने गाय की तस्करी करने वाले लोगों के बारे में कहा था की जो लोग गाय की तस्करी करते है वह लोग मार डालने योग्य हैं. शायद आपकी इस बात से गौरक्षकों का मनोबल बढ़ा है. अब जब चुनाव हो रहे हैं तो क्या आप स्पष्टीकरण देना चाहेंगे या अपने पुराने बयान को वापस लेना चाहते हैं?
मैंने कभी स्पष्टीकरण जारी नहीं किया. यह मेरी प्रकृति में नहीं है. मैं हमेशा बोलता हूं कि यह कानून के अनुसार है.
आप हमेशा विवादो में घिरे रहे हैं. चाहे अलवर में गौरक्षा का मामला हो या फिर जेएनयू में ‘कंडोम गिनती‘ हो.
(आहूजा बीच में टोंकते हुए): आप रात में ‘अपवित्र’ चीजों के बारे में क्यों बात कर रहे हैं! (हंसते हुए)
लेकिन अब जब पार्टी ने आपको टिकट देने से इंकार कर दिया है, तो क्या आपको गौ संरक्षण या जेएनयू के बारे में अपने बयानों पर खेद है?
आप जैसे चाहें स्थितियों की व्याख्या करने के लिए स्वतंत्र हैं. लेकिन अफसोस जताना या स्पष्टीकरण देना मेरी प्रवृत्ति नहीं है. मैं अपने शब्दों के साथ खड़ा हूं, यह बात हर पत्रकार जानता है.
आप अलवर के मौजूदा विधायक हैं. अल्पसंख्यक समुदाय ने आरोप लगाया है कि समाज में सांप्रदायिक घृणा को बहुत ही रणनीतिक तरीके से फैलाया गया. इस घृणा के लिए आप किसको ज़िम्मेदार मानते हैं?
मैं सच्चा और कट्टर हिंदू हूं लेकिन मैं मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ नहीं हूं. मैं समुदाय के आपराधिक तत्वों के खिलाफ हूं जो गाय तस्करी-वध की गतिविधियों में शामिल हैं, जो लव जिहाद के लिए हिंदू लड़कियों को आकर्षित करते हैं. जो सिंथेटिक दूध बेचते हैं. मैं उनके खिलाफ हूं.
परन्तु ऐसे आपराधिक तत्व तो हिंदू समुदाय में भी होंगे?
मैं उनके खिलाफ भी हूं. विधायक होने के नाते मैं सभी तरह के अपराधियों और आपराधिक गतिविधियों के खिलाफ हूं. लेकिन जब (अलवर) अपराधों की बात आती है तो मेव समुदाय के लोगों की हिस्सेदारी उच्चतम होती है, जो कि 11 अपराधों की श्रेणी में आती है.
जब आप चुनाव लड़ने जा रहे हैं तो क्या आप अल्पसंख्यक समुदाय से वोट मांगेंगे या नहीं?
जैसा कि मैंने कहा, मैं मुसलमानों के खिलाफ नहीं हूं. इसलिए, मैं सभी समुदायों से वोट मांगूंगा. मुसलमानों से भी, ईसाइयों से भी. यह उन पर निर्भर करता है कि वे मेरे पक्ष में मतदान करना चाहते हैं या नहीं.
आपको राजस्थान के अलवर बेल्ट में हिंदुत्व प्रमुख चेहरा बताया गया था. विपक्ष ने भी बीजेपी पर हिंदुवादी भावनाओं को भड़काने का आरोप लगाया है. तो इस प्रमुख चेहरे को क्यों हटा दिया गया?
कांग्रेसी सबसे सांप्रदायिक लोग हैं. मध्य प्रदेश में वे गोशाला के बारे में बात कर रहे हैं. राहुल गांधी मंदिर जा रहे हैं. उनके नेता विवादास्पद वक्तव्य देते हैं और नक्सलियों और कश्मीरी पत्थरबाजों का बचाव करते हैं.
लेकिन सवाल यह है कि हिंदुत्व के पोस्टर ब्वाय को क्यों हटा दिया गया?
मैं भी अपने पार्टी नेतृत्व से यही सवाल पूछ रहा हूं- “मुझे टिकट देने से इनकार क्यों किया गया. इस तरह की कार्रवाई का मुख्य आधार क्या था.” मुझे अभी तक जवाब नहीं मिला है.
Also Read
-
TV Newsance 321: Delhi blast and how media lost the plot
-
Hafta 563: Decoding Bihar’s mandate
-
Bihar’s verdict: Why people chose familiar failures over unknown risks
-
On Bihar results day, the constant is Nitish: Why the maximiser shapes every verdict
-
Missed red flags, approvals: In Maharashtra’s Rs 1,800 crore land scam, a tale of power and impunity