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बाड़मेर के पत्रकार को भारी पड़ा पेपर लीक का खुलासा करना
पाकिस्तान की सीमा से सटा बाड़मेर जिला तो सूखे से जूझता ही है, यहां के पत्रकारों के पास भी खबरों का टोटा रहता है. उन्हें अकाल और बॉर्डर पर होने वाली गतिविधियों के इतर रिपोर्ट करने लायक कम ही मुद्दे मिलते हैं. एक नवंबर को ‘न्यूज—18 राजस्थान‘ के स्थानीय संवाददाता प्रेमदान देथा ने जब द्वितीय श्रेणी अध्यापक भर्ती परीक्षा का पेपर लीक होने की खबर ‘ब्रेक‘ की तो उन्हें ‘शाबासी‘ मिलने की उम्मीद थी, लेकिन नसीब हुई पुलिस की लाठी.
पहले तो पुलिस प्रशासन ने प्रेमदान देथा पर खबर का सूत्र बताने के लिए दबाव बनाया और फिर उन्हें अपराधियों की तरह जबरन उठाकर ले गई. गनीमत है कि ‘न्यूज—18 राजस्थान‘ ने पुलिस की इस दबंगई को बड़ी ख़बर बनाया और मामला मुख्यमंत्री कार्यालय व पुलिस मुख्यालय के संज्ञान में आ गया. इनके दखल के बाद पुलिस ने देथा को छोड़ दिया वरना उन्हें ‘जमानत‘ पर ही बाहर आना पड़ता.
हुआ यूं कि पिछले दिनों राजस्थान लोक सेवा आयोग की ओर से द्वितीय श्रेणी अध्यापक भर्ती परीक्षा आयोजित की. एक नवंबर को सुबह 9 से 11:30 बजे तक पूरे प्रदेश में हिंदी का पेपर था. बाड़मेर में भी इसके कई सेंटर थे. प्रेमदान देथा को 10:36 बजे उनके किसी जानकार ने हिदी परीक्षा का पेपर व्हाट्सएप पर भेजा. कुछ ही मिनट में यह सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. देथा ने तुरंत कलेक्टर, एडीएम और एसडीएम से संपर्क करने का प्रयास किया, लेकिन तीनों में से किसी ने मोबाइल कॉल रिसीव नहीं किया. मजबूरन देथा ने उनके कार्यालय को पेपर लीक होने की सूचना दी. इसके बाद ही उन्होंने ‘न्यूज—18 राजस्थान‘ को यह ख़बर भेजी.
इस दौरान पेपर खत्म हो गया. प्रेमदान ने जब उनके पास आए पेपर का मिलान परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों के पेपर से किया तो वह हूबहू निकला. यानी पेपर लीक होने की पुष्टि हो गई. ‘न्यूज—18 राजस्थान‘ पर जब यह ख़बर चली तो राजस्थान लोक सेवा आयोग में हड़कंप मच गया और बाड़मेर प्रशासन के हाथ—पांव फूल गए. अव्वल तो स्थानीय प्रशासन को यह पता लगाना चाहिए था कि पेपर कहां से लीक हुआ, लेकिन वे ऐसा करने की बजाय पत्रकार प्रेमदान देथा के पीछे पड़ गए.
प्रशासन की दबंगई के बारे में बताते हुए देथा कहते हैं,’कलेक्टर राकेश कुमार और एडीएम शिव प्रकाश ने फोन कर मुझे दफ्तर बुलाया और ख़बर के स्रोत के बारे में पूछा. जब मैंने स्रोत बताने से इंकार किया तो दोनों ने मुझे धमकाया. कहा कि यदि आपने ऐसा नहीं किया तो हम आपके खिलाफ मुकदमा करेंगे और पुलिस आपको गिरफ्तार करेगी. मेरे साफ इंकार करने के बाद इन्होंने नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहने को कहा.‘
24 घंटे से भी कम समय में कलेक्टर और एडीएम का कहा सच साबित हो गया. आगे का घटनाक्रम बताते हुए प्रेमदान कहते हैं,’पहले मेरे पास सदर थाने से फोन आया. उन्होंने कहा कि आपको नोटिस देना है, आप कहां हैं. मैंने कहा कि मैं तो कलेक्ट्रेट की कैंटीन में बैठा हूं. कुछ ही देर में एक सिपाही नोटिस लेकर वहां आ गया. मैं नोटिस देख ही रहा था कि चार पुलिसकर्मी आए और मुझे साथ चलने के लिए कहा.‘
वे आगे कहते हैं,’मैंने और मेरे साथ बैठे पत्रकार साथियों ने उनसे खूब जिरह की. हमने उन्हें समझाया कि मुझे अभी—अभी नोटिस मिला है. मैं वकीलों से राय—मशविरा कर इसका जवाब दूंगा. वे नहीं माने और कहने लगे कि आपको अभी हमारे साथ थाने चलना होगा. मेरे मना करने पर वे हाथापाई करते हुए मुझे जबरन गाड़ी में बिठाकर सदर थाने ले गए. रास्ते में गाड़ी में बैठे पुलिस वाले ने एसपी को फोन कर कहा कि आपके कहे मुताबिक प्रेमदान को उठाकर ले आए हैं. थाने में जाते ही पुलिसकर्मियों ने मेरा मोबाइल छीन लिया.‘
जब इस वाकए की ख़बर ‘न्यूज—18 राजस्थान‘ के वरिष्ठ संपादक श्रीपाल शक्तावत को लगी तो चैनल पर पुलिस की मनमानी की ख़बर को प्रमुखता से चलाया गया. कुछ ही देर में मुख्यमंत्री कार्यालय और पुलिस मुख्यालय हरकत में आ गया. दोनों के दखल के बाद पुलिस ने प्रेमदान देथा को छोड़ दिया. हालांकि इस प्रक्रिया में डेढ़ घंटे से ज्यादा का समय लग गया. इस दौरान देथा को पेपर लीक होने की ख़बर ‘ब्रेक‘ करने के ‘जुर्म‘ में थाने में बैठाया गया.
‘न्यूज—18 राजस्थान’ के वरिष्ठ संपादक श्रीपाल शक्तावत बाड़मेर पुलिस की इस कार्रवाई को पत्रकारिता पर हमला करार देते हैं. वे कहते हैं, ‘मुख्यमंत्री कार्यालय और पुलिस मुख्यालय के दखल के बाद हमारे साथी प्रेमदान को बाड़मेर सदर पुलिस ने भले ही अवैध हिरासत से छोड़ दिया हो, लेकिन इससे साबित हो गया कि यहां की पुलिस पत्रकारों से खार खाए हुए है. पुलिस को ख़बर के सोर्स में दिलचस्पी होनी चाहिए या पेपर लीक करने वालों को पकड़ने में? एक पत्रकार के लिए सोर्स उतना ही अहम होता है जितना पुलिस के लिए मुखबिर.‘
राजस्थान हाईकोर्ट में वकील डॉ. विभूति भूषण शर्मा के अनुसार बाड़मेर पुलिस की यह कारनामा आपराधिक कृत्य है. वे कहते हैं, ‘पुलिस ने प्रेमदान को 4:10 बजे बयान दर्ज करवाने के लिए 160 सीआरपीसी का नोटिस दिया और दो मिनट बाद ही उसे अपराधियों की तरह जबरन उठा लिया. पुलिस को ऐसा करने का अधिकार किसने दिया? पुलिस पत्रकार पर खबर का सोर्स बताने का दबाव नहीं बना सकती. पत्रकार को अपने सोर्स को प्रोटेक्ट करने का अधिकार है. इसे जानने के लिए पत्रकार के साथ अपराधियों जैसा बर्ताव करना आपराधिक कृत्य है.‘
शर्मा आगे कहते हैं, ‘पत्रकार को जबरन उठाकर ले जाने वाले चारों पुलिसकर्मियों के खिलाफ अपहरण का मुकदमा दर्ज होना चाहिए. जहां तक मेरी जानकारी है पत्रकार से अपराधियों जैसा बर्ताव करने वाले चारों पुलिसकर्मी जिला स्पेशल सेल के थे. ये सेल जिला एसपी के मातहत काम करती है. जाहिर है एसपी के कहने पर पुलिस वालों ने दबंगई दिखाई. ऐसे में बाड़मेर के जिला एसपी मनीष अग्रवाल के खिलाफ 120—बी के तहत मामला बनता है. उनके खिलाफ भी मुकदमा दर्ज होना चाहिए.‘
प्रेमदान देथा ने इस आशय का परिवाद बाड़मेर पुलिस को दिया है, लेकिन इस पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. मुख्यमंत्री कार्यालय और पुलिस मुख्यालय के दखल के बाद इस मामले में स्थानीय पुलिस का कोई भी अधिकारी कुछ भी बोलने का तैयार नहीं है. एसपी मनीष अग्रवाल तो इस बारे में बात करने तक को तैयार नहीं हैं. चुनावी मौसम में नेता जरूर इस मामले में खुलकर बोल रहे हैं. कांग्रेस ही नहीं, भाजपा के स्थानीय नेताओं ने भी पुलिस की कार्रवाई को गलत बताते इसे अंजाम देने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की मांग की है.
यह पहला मौका नहीं है जब पत्रकार पर बाड़मेर पुलिस की ज्यादती का शिकार बना हो. इससे पहले इंडिया न्यूज के संवाददाता दुर्ग सिंह राजपुरोहित के मामले में भी पुलिस की लापरवाही सामने आई थी. गौरतलब है कि राजपुरोहित के खिलाफ बिहार में एससी—एसटी एक्ट के तहत दर्ज हुए मामले का वारंट बाड़मेर पुलिस को व्हाट्सएप पर मिला था. पुलिस इसकी पड़ताल किए बिना ही पत्रकार को पटना ले गई. जबकि मुकदमे में जिस दिन की यह घटना बताई गई उस दिन राजपुरोहित पटना में नहीं, बल्कि बाड़मेर में थे. यही नहीं, मुकदमा दुर्गेश सिंह के नाम से दर्ज था.
राजपुरोहित फिलहाल जमानत पर हैं. इस मामले में पुलिस मुख्यालय स्थानीय पुलिस की भूमिका की जांच कर रहा है जबकि पटना हाईकोर्ट ने पटना व बाड़मेर पुलिस को नोटिस जारी किया है. राजपुरोहित की मानें तो बाड़मेर एसपी मनीष अग्रवाल का पत्रकारों से कोई न कोई निजी खुन्नस है. वे कहते हैं, ‘मेरे और प्रेमदान देथा के मामलों के अलावा भी एसपी मनीष अग्रवाल का पत्रकारों के प्रति रवैया ठीक नहीं है. उन्होंने साफ तौर पर हिदायत दे रखी है कि बिना मेरी जानकारी के बाड़मेर जिले की पुलिस के बारे में कोई ख़बर न करें. एसपी कभी भी पत्रकारों से सीधे मुंह बात नहीं करते.‘
पेपर लीक प्रकरण में बाड़मेर पुलिस ही नहीं, राजस्थान लोकसेवा आयोग का रवैया भी हैरत भरा है. यह पुष्टि होने के बाद भी कि परीक्षा के दौरान ही पेपर बाहर आ गया, आयोग इसे लीक मानने को तैयार नहीं है. वह सिर्फ इतना कहकर ही मामले की लीपापोती में जुटा है कि परीक्षा समाप्त होने से पहले प्रश्नपत्र वायरल होने में गंभीर चूक हुई. आयोग के सचिव पीसी बेरवाल कहते हैं, ‘यह कहना जल्दबाजी होगी कि पेपर आउट हो गया. अभी मामले की जांच की जा रही है. जांच पूरी होने के बाद ही पता चलेगा कि किसकी चूक से परीक्षा के दौरान पेपर सोशल मीडिया पर वायरल हुआ.‘
बाड़मेर पुलिस ने भी इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया है. जांच में यह सामने आने के बाद कि परीक्षा के दौरान पेपर शहर के माधव कॉलेज से बाहर आया, अब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है.
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