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दिल्ली-एनसीआर निर्माण प्रतिबंध: ‘यहां तो काम बंद है, गांव लौटने की मजबूरी है’

अगले 10 दिनों तक मोहम्मद नज़र उल मजबूरन छुट्टी पर रहेगा, दिल्ली एनसीआर में पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण अथॉरिटी (ईपीसीए) ने निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी है. 28 साल के मोहम्मद नज़र बिहार के दरभंगा जिले से आते हैं. ईपीसीए द्वारा निर्माण कार्य पर रोक लगाने का मतलब है, अगले 10 दिन तक उनके कमाई का जरिया बंद होना.

“हमारे ठेकेदार के मैनेजर ने कहा कि सरकार ने प्रदूषण के कारण 1 से 10 तारीख तक सभी निर्माण कार्य पर रोक लगा दी है,” उन्होंने कहा. मोहम्मद नज़र अपनी पत्नी और 3 बच्चों के साथ निर्माण स्थल के पास ही एक छोटी सी झोपड़ी में रहते हैं जो उनके ठेकेदार ने गुरुग्राम के सेक्टर ए में मुहैया कराई है.

आस-पास के सभी हाउसिंग प्रोजेक्ट की तरह यहां का निर्माण कार्य भी रोक दिया गया है. निर्माण कार्यों में लगने वाला सामान हवा में उड़कर धूल के कण मिला रहा है. ईपीसीए का प्रतिबंध हटने तक यह सब ऐसे ही पड़ा रहेगा. नज़र उल और उनके पड़ोसी पिछले 5 निर्माण प्रोजेक्ट्स करने के दौरान उसी जगह पर रहते आ रहे हैं, जो उन्हें दी गई है.

नज़र को एक शिफ्ट का 210 रुपए मिलता है. सामान्यतः दिन भर में वो दो शिफ्ट कर लेते हैं. इस हिसाब से वो इन दस दिनों में लगभग 4000 रुपए की मजदूरी खोएंगे. इसके साथ ही इन दस दिनों में कोई कमाई न होने के दौरान करीब 2000 रुपए उनके खर्च भी होंगे. नज़र ने कहा, “इससे मेरा और मेरे परिवार का 6000 का नुकसान होगा. इसी तरह पिछले साल भी प्रदूषण की वजह से 10 दिन काम नहीं हुआ था, जिससे हमें बहुत मुश्किलों से गुज़रना पड़ा और 2016 में नोटबंदी के दौरान भी ऐसा हुआ था.”

नज़र बताते हैं, “दरभंगा में हमारा कोई घर नहीं है. वहां कोई स्थायी नौकरी मिलना भी मुश्किल है. मेरे पिता ने मुझे अपनी संपत्ति से बेदखल कर दिया है. इसलिए इस दौरान गांव वापस जाने का सवाल ही नही उठता.” वह चुप हो जाता है जब उसकी छोटी बेटी शगुफ्ता उसकी कमर पर बंधे मोबाइल फोन को निकालने की कोशिश करती है और वह निराश होकर कहता है कि “अब 10 दिन ऐसे ही टाइम पास करेंगे.”

निर्माण उद्योग के विशेषज्ञों का सुझाव है कि ईपीसीए ने यह प्रतिबंध गलत समय पर लगाया है. दिवाली का समय है और इसके ठीक बाद छठ त्यौहार शुरू हो जाता है जो कि बिहार, यूपी और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों का मुख्य त्यौहार है. इत्तेफाक से अधिकतर मजदूर इन्हीं राज्यों से आते हैं.

नज़र उल का 18 साल का पड़ोसी चन्दन भी बिहार के रोहतास जिले से है. चन्दन ने बताया, “ठेकेदार भी मेरे इलाके से है. वहां कोई काम नहीं था तो मैं यहां आ गया.” गुरुग्राम के एक हाउसिंग प्रोजेक्ट में एक मजदूर के तौर पर काम करने वाले चंदन की इस मजबूरन छुट्टी को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया थी.

हक़ीक़त यह है कि उसको होने वाली आमदनी का नुकसान उसे उदास कर देता है. लेकिन जब से दिल्ली आया है, उसके के बाद घर जाने का यह पहला मौका था लिहाजा वह खुशी से उछल पड़ता है. चन्दन ने मुस्कुरा कर कहा कि “मैं छठ खत्म होने के बाद ही यहां वापस आउंगा या फिर शायद महीने के अंत तक.”

36 साल के हंसराज एक दूसरे बिल्डिंग प्रोजेक्ट में काम करते हैं. उनकी राय भी बाकियों जैसी ही है. “यहां रहने का मतलब है कि घर और सफर का खर्चा होना. इससे अच्छा है कि हम अपने गांव चले जाए, जहां त्यौहारों और गेहूं बुवाई का मौसम करीब है. अब हम इन दोनों को खत्म करके ही वापस लौटेंगे,” वो कहते हैं.

आय की निचली श्रेणी के लोगों के अलावा इस प्रतिबंध से रियल एस्टेट के बिजनेस को भी नुकसान होगा. दिल्ली, हरियाणा और यूपी के बिल्डर्स और डेवलपर्स का एक संगठन  एसोसिएशन सर्टिफाइड रिलेटर इन इंडिया (ASRI) भी इस प्रतिबंध से परेशान है. “यह मजदूरों के लिए मुश्किल समय है क्योंकि इससे प्रोजेक्ट का निर्माण धीमा पड़ जाएगा. यह लगभग नामुमकिन है कि ठेकेदार मजदूरों को प्रतिबंध के दौरान मजदूरी दें. इससे काम का खर्च और समय दोनों बढ़ जाएगा,” एएसआरआई के अध्यक्ष  रवीन्द्र अग्रवाल ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा. वो कहते हैं कि नुकसान के आंकड़े निकाल पाना बहुत ही मुश्किल है और इस तरह के प्रतिबंध से प्रोजेक्ट्स अधर में लटक जाते है. एक बार जब वो (मजदूर) अपना काम छोड़कर चले जाते हैं तो वापस काम को उसी प्रक्रिया में आने 40-45 दिन का वक़्त लग जाता है. बड़े हाउसिंग प्रोजेक्ट्स को इस तरह के प्रतिबंध से बड़ा झटका लगता है.

अग्रवाल का दावा है कि दिल्ली एनसीआर की खतरनाक हवा के कारण लगाया गया बैन,  बड़े-बड़े हाउसिंग प्रोजेक्ट को पटरी से उतारने की क्षमता रखता है. यह काम करने के पूरी प्रक्रिया को तितर-बितर कर देता है. अगर निर्माण कार्यों को रोक दिया जाएगा तो इससे काम और उसकी समयसीमा दोनों प्रभावित होंगी.

संगठन का दावा है कि दिल्ली एनसीआर (दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम और गाजियाबाद शामिल) में 100 से ज्यादा बड़े प्रोजेक्ट्स ईपीसीए के इस प्रतिबंध से प्रभावित होंगे.

गुरुग्राम के एक हाउसिंग प्रोजेक्ट्स से जुड़े अधिकारी, जो अपने गुरुग्राम प्रोजेक्ट्स का दिल्ली में ज़ोर-शोर से विज्ञापन कर रहे हैं, कहते हैं, “निर्माण क्षेत्र में दो लाइनों में काम चलता है, ढांचे का और अंत में साज-सज्जा का. इनमें से साज-सज्जा का काम बिना कोई रुकावट चलता रहेगा जबकि ईपीसीए गाइडलाइंस के अनुसार ढांचागत काम रोक दिया गया है.”

उनके अनुसार, साज-सज्जा का काम प्रोजेक्ट के दूसरे चरण में होता है, इसका मतलब है कि यह ईपीसीए के आदेश से बाहर है. लेकिन पहले चरण की समयसीमा बढ़ गई है, क्योंकि ढांचागत कार्य से धूल पैदा होती है.

डेवलपर्स के ऊपर आरोप लगते हैं कि वे अक्सर पर्यावरणीय अधिकारियों द्वारा जारी सलाहों और दिशानिर्देशों को नजरअंदाज करते हैं. जैसा कि गुरुग्राम के सेक्टर 64 से 70ए के क्षेत्र में ईपीसीए के मापदंडो का स्पष्ट उल्लंघन दिखता है. कई निर्माण स्थलों पर इमारत बनाने वाली सामग्री खुली पड़ी है, मलबा भी खुले में फेंक दिया जाता है. ईपीसीए लंबे समय से स्थानीय अधिकारियों से एनसीआर में धूल को कम करने की मांग कर रहा है, लेकिन यह आदेश यहां के निर्माण क्षेत्र की कंपनियों के लिए कोई महत्व ही नहीं रखता.

यह ध्यान देना होगा कि 31 अक्टूबर को उच्चतम न्यायालय ने ईपीसीए को यह कह कर वैधता दी कि- “दिल्ली में आने वाले दिनों में हवा की गुणवत्ता में तेज़ी से गिरावट आएगी… और यह पश्चिमी विक्षोभ से पैदा हो रही. नासा द्वारा जारी की गई तस्वीरों से साफ होता है कि पड़ोसी राज्य पंजाब और हरियाणा में धान की फसल के अवशेष जलाने की मात्रा में भी वृद्धि हुई है. यह दिल्ली-एनसीआर के अपने प्रदूषण के स्रोतों के साथ मिलकर आने वाले 10 दिनों में बेहद तेजी ला सकता  है.” दिल्ली में वायु की गुणवत्ता पहले से ही बहुत ही खतरनाक श्रेणी में है, इन कारकों से स्थिति और भी खराब हो जाएगी.

संगठन ने सात सूत्री ग्रेडेड रिस्पॉन्स प्लान (जीआरएपी) जारी किया है और राज्यों से इसे लागू करने को कहा है. जीआरएपी के तहत, 1 नवंबर और 10 नवंबर के बीच जहां काम ख़त्म हो चुका है और जहां निर्माण सामग्री का उपयोग नहीं हो रहा, उन्हें  छोड़कर, उत्खनन और सिविल निर्माण सहित सभी निर्माण गतिविधियों पर ईपीसीए ने रोक लगा दी है. इसी के चलते पत्थर तोड़ने और ईंट की भट्टियों पर भी पाबंदी  लगा दी गई  है.

एएसआरआई के महासचिव निपुण चावला का मानना है कि निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध लगाना कोई स्थायी समाधान नहीं है. सरकार को डेवलपर्स के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि निर्माणाधीन स्थलों पर वही मशीनें इस्तेमाल में लाई जाएं जो धूल को सोखने में सक्षम हों. जिससे सभी परियोजनों को बिना बाधा के पूरा किया जा सकेगा और हमारे पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचे.

ऐसे ‘समाधान’ व्यवहार में लाना मुश्किल है. सवाल यह भी उठता है कि क्या छोटे और मझोले स्तर के डेवलपर्स ऐसे मानदंडों का पालन करने के लिए सहमत होंगे?