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महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय: अंतत: कुलपति प्रो. अरविंद अग्रवाल का इस्तीफा
आखिरकार मोतिहारी स्थित महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अरविंद अग्रवाल ने इस्तीफा दे दिया है. इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक 26 अक्टूबर को कुलपति ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय को अपना इस्तीफा सौंपा है. बीते एक साल से विश्वविद्यालय में अशांति और उठापटक का माहौल था. छात्रों और शिक्षकों की लगातार शिकायत थी कि कुलपति मनमाने ढंग से विश्वविद्यालय को संचालित कर रहे हैं.
विश्वविद्यालय में विवाद उस समय शीर्ष पर जा पहुंचा जब विश्वविद्यालय के ही शिक्षक प्रो. संजय कुमार पर 17 अगस्त की शाम जानलेवा हमला हुआ. हमले का कथित कारण पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के उपारांत संजय द्वारा लिखा गया एक फेसबुक पोस्ट था. हालांकि खुद प्रो. संजय कुमार सहित महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय छात्रसंघ (एमजीसीयू) सिर्फ फेसबुक पोस्ट को हमले का कारण नहीं मानता. उनका हमले के बाद से ही मानना रहा है कि हमला कुलपति की धांधलियों और अनियमितताओं पर मुखरता से बोलने के कारण हुआ था, फेसबुक पोस्ट महज एक बहाना था.
प्रो.संजय कुमार पर हमले के बाद खराब माहौल का हवाला देते हुए विश्वविद्यालय को अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया गया था. वार्षिक सत्र भी तय समय से देरी से चल रहा है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने 24 अगस्त को प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में कैग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए विश्वविद्यालय में आर्थिक अनियमितताओं (पहली रिपोर्ट यहां पढ़ें) का विस्तार से जिक्र किया था. प्रो अरविंद अग्रवाल की शैक्षिक योग्यता पर भी संदेह उठ चुका है. उनकी पीएचडी और स्नातक की डिग्री पर गंभीर प्रश्न खड़े किए गए थे. वीसी का दावा है कि उनकी पीएचडी हिंडेनबर्ग यूनिवर्सिटी, जर्मनी से है जबकि उसी विषय पर पीएचडी में उनका नाम राजस्थान यूनिवर्सिटी में दर्ज है.
फिलहाल प्रो. अनिल कुमार राय को महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय का प्रो वीसी नियुक्त किया गया है. अनिल राय वर्धा विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के वरिष्ठ अध्यापक रह चुके हैं. वर्तमान में वह विदर्भ क्षेत्र के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के उपाध्यक्ष भी हैं.
विश्वविद्यालय के सूत्रों के मुताबिक कुलपति प्रो. अग्रवाल से मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने पिछले महीने, उन पर लग रहे आरोपों के संबंध में स्पष्टीकरण मांगा था. एक शिक्षक बताते हैं, “मंत्रालय कुलपति के जवाब से संतुष्ट नहीं था. मंत्रालय ने भी कुलपति की डिग्री को संदिग्ध माना है. इससे पहले कि मंत्रालय उन्हें लंबी छुट्टी पर भेजता, उन्होंने खुद ही अपना इस्तीफा दे दिया.”
महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के सचिव मृत्युंजय ने प्रो-वीसी की नियुक्ति की पुष्टि की. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहा, “यह हमारे लिए दिवाली और होली दोनों का वक्त है. हालांकि हमारी मांग सिर्फ प्रो. अरविंद अग्रवाल को पद से मुक्त करने भर की नहीं है. जिस तरह के संगीन आरोप वीसी पर लगे हैं, उनकी जगह जेल में हैं.”
“हम शिक्षकों को अब सुनिश्चित करना है कि विश्वविद्यालय में लोकतांत्रिक मूल्यों और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को लागू कर सके,” मृत्युंजय ने आगे बताया.
महात्मा गांधी सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रशासकीय अधिकारी ने अनिल राय की नियुक्ति की पुष्टि की है. लेकिन उन्होंने कोड ऑफ कंडक्ट से बंधे होने का हवाला देकर बाकी सवालों का जवाब नहीं दिया.
कुलपति प्रो. अग्रवाल पर स्थानीय मीडिया को मैनेज करने के भी आरोप लगते रहे हैं. महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय पर स्टोरी के संबंध में न्यूज़लॉन्ड्री ने कुलपति का पक्ष लेने की तमाम कोशिशें की. लेकिन कुलपति ने न तो ईमेल और टेक्सट मैसेज का जवाब दिया, न ही फोन उठाया. इस्तीफे के संबंध में भी हमने कुलपति से संपर्क किया है लेकिन स्टोरी लिखे जाने तक उनका कोई जवाब हमें नहीं मिला है.
कुलपति के नेतृत्व में विश्वविद्यालय के दूषित माहौल का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता था कि महिला प्रोफेसरों ने ऑन रिकॉर्ड उत्पीड़न की आपबीतियां सुनाईं थी. ये आपबीतियां उन्होंने न सिर्फ पत्रकारों को सुनाई बल्कि स्थानीय प्रशासन और राष्ट्रीय महिला आयोग से लिखित शिकायतें भी की. (दूसरी रिपोर्ट यहां पढ़ें)
प्रोफेसर श्वेता कहती हैं, “वीसी के इस्तीफे की ख़बर हमारे लिए जश्न का वक्त है. यह विश्वविद्यालय में प्रशासकीय पागलपन और मनमानेपन की इंतहा का अंत है.”
एक अन्य शिक्षक ने नाम न उजागर करने की शर्त पर न्यूज़लॉन्ड्री से कहा कि, “नए प्रो-वीसी का भी अकादमिक रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है. वर्धा विश्वविद्यालय में उनके ऊपर नकल (प्लेजरिज्म) का गंभीर आरोप लग चुका है. चूंकि बहुत दबाव था इसीलिए सरकार ने चेहरा बदल दिया, उनका एजेंडा एक ही जैसा रहने की उम्मीद है.” न्यूज़लॉन्ड्री प्रो. अनिल राय पर प्लेजरिज्म के आरोपों की पुष्टि नहीं करता है. स्टोरी लिखे जाने तक प्रो-वीसी ने इस रिपोर्टर के टेक्सट मैसेज का जवाब नहीं दिया है.
कुलपति ने इस्तीफा जरूर दे दिया है लेकिन मानव संसाधन विकास मंत्रालय को मामले का संज्ञान लेने में इतनी देर क्यों लगी, यह समझ से परे है. पिछले डेढ़ साल से लोकसभा सांसदों ने कुलपति की शिकायत मानव संसाधन विकास मंत्रालय, प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति से की थी लेकिन तब मंत्रालय ने कोई कार्रवाई नहीं किया. जिस तरह की आर्थिक अनियमितताओं के आरोप कुलपति पर लगे थे, ऐसे में वह इस्तीफा देकर बाकी सवालों को बच निकलेंगे इसकी उम्मीद कम लगती है.
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