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विशेष: प्रो जीडी अग्रवाल के अंतिम पत्र प्रधानमंत्री पर कई सवाल खड़े करते हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 अक्टूबर को प्रो. जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी सानंद के निधन पर अंग्रेजी में ट्वीट किया- “श्री जीडी अग्रवालजी के निधन से सदमे में हूं. उनका अध्ययन, शिक्षा, और पर्यावरण विशेषकर गंगा की स्वच्छता के प्रति समर्पण को याद रखा जाएगा. मेरी श्रद्धांजलि.”

प्रधानमंत्री का यह ट्वीट स्वामी सानंद की मौत के 4 से 5 घंटे के भीतर ही आ गया था. प्रधानमंत्री ने स्वामी सानंद की मौत के बाद उन्हें याद रखने की घोषणा तो कर दी लेकिन उनके जीते जी प्रधानमंत्री को उनकी एक बार भी सुध नहीं आई. न्यूज़लॉन्ड्री यहां पर ऐसे 6 पत्र अपने पाठकों के सामने रख रहा है जिन्हें स्वामी सानंद ने इस साल फरवरी माह से अपनी मौत के दरम्यान प्रधानमंत्री मोदी को लिखा था. उन्हीं मोदी को जिन्होंने 2014 से पहले विपक्ष में रहते हुए स्वामी सानंद की चिंता में मनमोहन सिंह की केंद्र सरकार को नीचा खाने का कोई मौका नहीं छोड़ा.

स्वामी सानंद के ये पत्र उनकी मनोदशा को व्यक्त करते हैं. गंगा के प्रति मौजूदा सरकार के कपटपूर्ण रवैये से स्वामी सानंद अथाह पीड़ा में थे. एकाधिक मौकों पर उन्होंने मोदी को लिखे अपने पत्रों में साफ-साफ कहा था कि इस बार का उपवास उनकी मृत्यु के साथ ही थमेगा. लेकिन राजनीतिक जमात की निर्ममता यह कि स्वामी सानंद द्वारा लिखे इन पत्रों को पावती (एक्नॉलेजमेंट) की सूचना देने लायक भी नहीं समझा गया. किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि प्रधानमंत्री ने जो ट्वीट उनकी मौत पर किया है, उसमें व्यक्त की गई पीड़ा उतनी ही खोखली है, जितनी मां गंगा की सफाई के प्रति उनकी श्रद्धा. लिहाजा किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि स्वामी सानंद के निधन को उनके अपने मित्र, शिष्य और मातृ सदन के लोग एक हत्या के रूप में देखते हैं.

“स्वामी सानंद की मौत सामान्य नहीं, उनकी हत्या हुई है. यहां से ले जाने के 24 घंटे के भीतर ही उन्हें मार डाला गया.” मातृ सदन के ब्रह्मचारी दयानन्द बिना हिचकिचाहट आगे कहते हैं, “ये पहली हत्या नहीं है. मातृ सदन के संत स्वामी निगमानंद को भी प्रशासन ऐसे ही उठाकर ले गया था और फिर अस्पताल में उनकी हत्या कर दी गई. अब स्वामी सानंद के साथ भी यही हुआ है. बार-बार ऐसा कैसे हो सकता है कि मातृ सदन से तो सन्यासी बिल्कुल स्वस्थ जाता है लेकिन अस्पताल पहुंचते ही उसकी मृत्यु हो जाती है?”

ब्रह्मचारी दयानन्द ऐसा सोचने वाले इकलौते नहीं हैं, जो स्वामी सानंद की मौत में हत्या की साजिश देखते हैं. स्वामी सानंद के संघर्ष में शामिल रहे मातृ सदन के तमाम सन्यासी और अनुयायी यही मानते हैं कि उनकी हत्या की गई है. मातृ सदन के संस्थापक स्वामी शिवानंद कहते हैं, “आप पूरे घटनाक्रम को देखिये. स्वामी सानंद 110 दिनों से मातृ सदन में अनशन कर रहे थे. लेकिन वे इतने स्वस्थ थे कि जिस दिन प्रशासन उन्हें यहां से लेकर गया, उस दिन भी बिना किसी सहारे के चल रहे थे. आप वो वीडियो भी देख सकते हैं जब उन्हें जबरन उठाकर यहां से ले जाया जा रहा है. स्वामी सानंद अपनी पूरी क्षमता से उनका विरोध कर रहे थे. लेकिन अस्पताल पहुंचने के 24 घंटे बाद ही उनकी मौत हो जाती है. क्या आपको ये सामान्य लगता है?”

प्रोफेसर जीडी अग्रवाल उर्फ़ स्वामी सानंद लंबे समय से मातृ सदन से जुड़े थे. गंगा की निर्मलता और अविरलता को बचाए रखने के लिए उन्होंने कई बार मातृ सदन के साथ ही अनशन किया था. गंगा को बचाने के लिए वे कई दशकों से संघर्षरत थे और कई बार उन्होंने अलग-अलग सरकारों को अपनी मांगें मनवाने पर मजबूर भी किया था. उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में प्रस्तावित कई जल विद्युत् परियोजनाएं उनके संघर्ष के चलते स्थगित की गई और गंगा में खनन पर भी उन्होंने काफी हद तक लगाम कसवाई. इस बार भी वे गंगा को बचाने की अपनी दशकों पुरानी लड़ाई को ही आगे बढ़ा रहे थे लेकिन 112 दिनों के अनशन के बाद उनकी मृत्यु हो गई.

मातृ सदन का आरोप है कि स्वामी सानंद की मौत के पीछे प्रशासन और माफियाओं का हाथ है. स्वामी शिवानन्द कहते हैं, “स्वामी सानंद की जिस दिन मौत हुई उस सुबह उन्होंने एक नोट लिखा था. इसमें उन्होंने लिखा था कि डॉक्टरों का व्यवहार उनके साथ बहुत अच्छा रहा है. ये नोट लिखने के लिए उन पर कई बार दबाव बनाया गया था. हमारे जो साथी उनके साथ मौजूद थे वे बताते हैं कि स्वामी जी से बार-बार कहा जा रहा था कि वे डॉक्टरों के अच्छे बर्ताव के बारे में कुछ लिख दें.”

स्वामी शिवानन्द आगे कहते हैं, “इस तरह का नोट या फीडबैक अमूमन तब लिखवाया जाता है जब कोई मरीज स्वस्थ होकर हॉस्पिटल से विदा हो रहा हो. लेकिन स्वामी सानंद को तो हॉस्पिटल आए अभी 24 घंटे भी पूरे नहीं हुए थे. फिर भी उन पर यह नोट लिखने का दबाव बनाया जा रहा था, क्या ये संदेहास्पद नहीं है?”

मातृ सदन से जुड़े लोग यह भी बताते हैं कि स्वामी सानंद की तमाम मेडिकल रिपोर्ट्स सामान्य थी. ब्रह्मचारी दयानंद कहते हैं, “उनकी मौत से कुछ दिनों पहले तक उनके जो मेडिकल हुए, उनमें ऐसी कोई शिकायत नहीं थी कि उनकी जान को खतरा है. जिस दिन उनकी मौत हुई, उससे ठीक पहले हुए मेडिकल में भी उनके शरीर में पोटैशियम की कमी जरूर थी लेकिन इतनी नहीं कि कुछ ही घंटों में उनकी मौत हो जाए. मौत से कुछ घंटे पहले ही उन्होंने अपना एक वीडियो रिकॉर्ड किया है और आप देख सकते हैं कि उसमें वो पूरी चेतना में हैं.”

हालांकि मातृ सदन के इन आरोपों को एम्स ऋषिकेश सिरे से ख़ारिज करता है. एम्स ऋषिकेश के निदेशक रविकान्त ने यह भी बयान दिया है कि वे मातृ सदन के ऐसे आरोपों के चलते उन पर मानहानि का मुकदमा करेंगे. दूसरी तरफ मातृ सदन अपने दावों पर अडिग है और उसका कहना है कि वे इस संबंध में शिकायत भी दर्ज करवाना चाहते हैं लेकिन उनकी शिकायत पर एफआईआर दर्ज नहीं की जा रही है.

बहरहाल, यदि यह मान भी लिया जाए कि स्वामी सानंद की हत्या संबंधित मातृ सदन के आरोप निराधार हैं और उनकी मौत में कोई साजिश नहीं है तब भी मौजूदा सरकारों पर यह मौत कई सवाल खड़े करती है.

यह सवाल इसलिए जरूरी हैं क्योंकि अपने अनशन के दौरान स्वामी सानंद ने स्थानीय प्रशासन से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक को कई पत्र लिखे थे. इन पत्रों पर यदि सरकार कान धरती तो स्वामी सानंद को आकस्मिक मृत्यु से आसानी से बचाया जा सकता था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तो उन्होंने कई व्यक्तिगत पत्र भी लिखे थे. इन तमाम पत्रों में उनकी शिकायत यही थी कि जो व्यक्ति खुद को ‘मां गंगा का बेटा’ कहता रहा है वह प्रधानमंत्री बनने के बाद गंगा के प्रति इतना उदासीन कैसे हो सकता है.

अपने आखिरी समय में स्वामी सानंद मौजूदा सरकार से क्या अपेक्षाएं रखते थे और सरकारों का उनके प्रति क्या रवैया रहा, इसे उस पत्राचार से आसानी से समझा जा सकता है जो स्वामी सानंद और सरकार के बीच हुआ. यह पत्राचार स्पष्ट कर देता है कि स्वामी सानंद की मौत में भले ही प्रशासन की प्रत्यक्ष भूमिका न हो लेकिन परोक्ष तौर से इस मौत के लिए मौजूदा सरकार ही जिम्मेदार है. प्रधानमंत्री मोदी को लिखे स्वामी सानंद के तमाम पत्र इस बात की पुष्टि भी करते हैं:

स्वामी सानंद का प्रधानमंत्री के नाम पहला पत्र (24 फरवरी 2018):

प्रिय छोटे भाई नरेंद्र मोदी,

भाई, प्रधानमंत्री तो तुम बाद में बने, मां गंगा जी के बेटों में तो मैं तुमसे 18 वर्ष बड़ा हूं. 2014 के लोकसभा चुनाव तक तो तुम भी स्वयं को मां गंगा जी के समझदार, लाडले और समर्पित बेटे होने की बात करते थे. लेकिन वह चुनाव मां के आशीर्वाद और प्रभु राम की कृपा से जीतकर अब तो तुम मां के कुछ लालची, विलासिता प्रिय बेटे-बेटियों के समूह में फंस गए हो… तुम्हारा अग्रज होने, तुमसे विद्या-बुद्धि में भी बड़ा होने और सबसे ऊपर मां गंगा जी के स्वास्थ्य-सुख-प्रसन्नता के लिए सबकुछ दांव पर लगा देने के लिए तैयार होने में तुमसे आगे होने के कारण, गंगा जी के विषयों में तुम्हें समझाने का और तुम्हें निर्देश तक देने का मेरा जो हक़ बनता है, वह मां की ढेर सारी मनौतियों और कुछ अपने भाग्य और साथ में लोक-लुभावनी चालाकियों के बल पर तुम्हारे सिंहासनारूढ़ हो जाने से कम नहीं हो जाता. उसी हक़ से मैं अपनी आपेक्षाएं सामने रख रहा हूं:

मां गंगाजी की अलकनंदा बाहु को छेदने वाली विष्णुगाड-पीपलकोटी परियोजना और मन्दाकिनी बाहु को छेदने वाली फाटा-ब्यूंग, सिगोली-भटवारी परियोजनाओं पर सभी निर्माण कार्य तुरंत बंद हों और तब तक बंद रहें जब तक संसद में इस पर विस्तृत चर्चा न हो और ‘गंगा-भक्त परिषद की इसमें सहमति न हो.

न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय समिति द्वारा प्रस्तावित गंगा संरक्षण विधेयक पारित किया जाए.

गंगा भक्त परिषद् का गठन किया जाए जिसमें सरकारी और गैर-सरकारी दोनों ही लोग शामिल हों. गंगा से संबंधित किसी भी निर्माण या विकास कार्य के लिए इस परिषद की अनुमति आवश्यक हो.
पिछले साढ़े तीन साल से अधिक वर्ष तुम्हारी और तुम्हारी सरकार की प्राथमिकताएं और कार्य पद्धति देखते हुए मेरी अपेक्षाएं मेरे जीवन में पूर्ण होने की संभावना नगण्य ही है और मां गंगा जी के हितों की इस प्रकार उपेक्षा से होने वाली असहाय यातना से मेरा जीवन ही यातना बनकर रह गया है. अतः मैंने निर्णय किया है कि गंगा दशहरा (22 जून 2018) तक उपरोक्त तीनों अपेक्षाएं पूर्ण न होने की स्थिति में मैं आमरण उपवास करता हुआ और प्रभु राम से मां गंगा के प्रति अहित करने और अपने एक गंगा भक्त बड़े भाई की हत्या करने के अपराध का तुम्हें समुचित दंड देने की प्रार्थना करता हुआ प्राणत्याग दूंगा.

तुम्हारा मां गंगा भक्त बड़ा भाई.
ज्ञान स्वरुप सानंद.

स्वामी सानंद का प्रधानमंत्री के नाम दूसरा पत्र (13 जून 2018):

प्रिय छोटे भाई नरेंद्र मोदी,

मां गंगा जी की दुर्दशा को तुम्हारी बहुस्तरीय सरकार और सरकारी मण्डलियों (जैसे नमामि गंगे) द्वारा पूर्ण अवहेलना ही नहीं, जानते-बूझते इरादतन किए जा रहे मां गंगा जी और पूरे पर्यावरण-निःसर्ग-प्रकृति को पहुंचाए जा रहे अहित के विषय को लेकर मैंने तुम्हें एक पत्र 24 फ़रवरी को लिखा था. पत्र की प्रति, जिसपर स्पीडपोस्ट कराने की रसीद की प्रतिकृति भी है, तुम्हें याद दिलाने और प्रमाण हेतु साथ लगा रहा हूं.

जैसा मुझे पहले ही जानना चाहिए था, साढ़े तीन महीने के 105 दिन में, न कोई प्राप्ति सूचना, न कोई जवाब या प्रतिक्रिया और न मां गंगा जी या पर्यावरण के हित में कोई छोटा-सा भी कार्य. तुम्हें कहां फुर्सत मां गंगाजी जी की दुर्दशा या मुझ जैसे बूढ़ों की व्यथा की ओर देखने की?

ठीक है भाई, मैं ही क्यों व्यथा झेलता रहूं? मैं भी कोसते हुए और प्रभु राम जी से तुम्हें मां गंगा जी की अवहेलना और अपने बड़े भाई की हत्या के लिए पर्याप्त दंड देने की प्रार्थना करता हुआ, शुक्रवार 22 जून 2018 से निरंतर उपवास करता हुआ प्राण त्याग देने के निश्चय का पालन करूंगा. आशा तो नहीं है कि तुम्हारे पास ध्यान देने का समय होगा, पर यदि राम जी के प्रताप से मां गंगा जी की सुध लेने का मन बने तो मां के स्वास्थ्य के हित में निम्न कार्य तुरंत आवश्यक हैं:

गंगा जी के लिए गंगा महासभा द्वारा प्रस्तावित अधिनियम ड्राफ्ट 2012 पर तुरंत संसद द्वारा चर्चा कराकर पास करना. ऐसा न हो सकने पर उस ड्राफ्ट के अध्याय 1 (धारा 1 से धारा 9) को राष्ट्रपति अध्यादेश द्वारा तुरंत लागू और प्रभावी करना.

उपरोक्त के अंतर्गत अलकनंदा, धौलीगंगा, नंदाकिनी, पिंडर तथा मंदाकिनी पर सभी निर्माणाधीन/प्रस्तावित जलविद्युत परियोजना तुरंत निरस्त करना.

उपरोक्त ड्राफ्ट अधिनियम की धारा 4 (डी) वन कटान तथा धारा 4 (एफ) खनन, 4 (जी) किसी भी प्रकार के खदान पर पूर्ण रोक तुरंत लागू कराना, विशेषतय हरिद्वार कुंभ क्षेत्र में.

4. मेरे 24 फ़रवरी के पत्र की अपेक्षा गंगा-भक्त परिषद का प्रोविजनल गठन (जून 2019 तक के लिए) तुम्हारे द्वारा नामांकित 20 सदस्यों का जो गंगा जी के हित में काम करने की शपथ गंगा जी में खड़े होकर लें और गंगा जी से जुड़े सभी विषयों पर इसका मत निर्णायक माना जाए.

प्रभु तुम्हें सद्बुद्धि दें और अपने अच्छे बुरे सभी कर्मों का फल भी. मां गंगा जी की अवहेलना, उन्हें धोखा देने को किसी स्थिति में माफ़ न करें.

तुम्हारा मां गंगा भक्त बड़ा भाई.
ज्ञान स्वरुप सानंद.

स्वामी सानंद का प्रधानमंत्री के नाम तीसरा पत्र (23 जून 2018):

प्रिय छोटे भाई नरेंद्र मोदी,

मैंने दो पत्र, पहला उत्तरकाशी से 24 फ़रवरी 2018 और दूसरा मातृ सदन, हरिद्वार से 13 जून 2018, प्रेषित कर मां गंगा जी की दुर्दशा को तुमसे बताकर तुमसे कुछ आवश्यक कार्रवाई की अपेक्षा की थी और ऐसा नहीं होने पर 22 जून 2018 से निरंतर उपवास करता हुआ प्राण त्याग देने के निश्चय का पालन करूंगा, से भी अवगत करा दिया था. दोनों पत्रों की प्रति संलग्न है. तुम्हारे द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई. अतः अपने निश्चय अनुसार मैंने विगत शुक्रवार 22 जून से निरंतर उपवास मातृ सदन, हरिद्वार में शुरू कर दिया है.

तुम्हारा मां गंगा भक्त बड़ा भाई.
ज्ञान स्वरुप सानंद.

स्वामी सानंद का प्रधानमंत्री के नाम चौथा पत्र (5 अगस्त 2018):

श्री नरेंद्र भाई मोदी जी,

मैंने आपको गंगा जी के संबंध में कई पत्र लिखे, लेकिन मुझे उनका कोई जवाब नहीं मिला. मुझे यह विश्वास था कि आप प्रधानमंत्री बनने के बाद गंगा जी की चिंता करेंगे क्योंकि आपने स्वयं बनारस में 2014 के चुनाव में यह कहा था कि मुझे मां गंगा ने बनारस बुलाया है. उस समय मुझे विश्वास हो गया था कि आप शायद गंगा जी के लिए कुछ करेंगे, इसलिए मैं लगभग साढ़े चार वर्ष शांति से प्रतीक्षा करता रहा. आपको पता होगा कि मैंने गंगा जी के लिए पहले भी अनशन किए हैं तथा मेरे आग्रह को स्वीकार करते हुए मनमोहन सिंह जी ने लोहारी नागपाला जैसे बड़े प्रोजेक्ट रद्द कर दिए थे जो कि 90 प्रतिशत बन चुके थे तथा जिसमें सरकार को हजारों करोड़ की क्षति उठानी पड़ी थी. लेकिन गंगा जी के लिए मनमोहन सिंह जी की सरकार ने यह कदम उठाया था. इसके साथ ही उन्होंने भागीरथी जी के गंगोत्री से उत्तरकाशी तक इको सेंसिटिव जोन घोषित किया था जिससे गंगा जी को हानि पहुंचा सकने वाले कार्य न हों.

मेरी अपेक्षा यह थी कि आप इससे दो कदम आगे बढ़ेंगे तथा गंगा जी के लिए और विशेष प्रयास करेंगे, क्योंकि आपने तो गंगा का मंत्रालय ही बना दिया था. लेकिन इन चार सालों में आपकी सरकार द्वारा जो कुछ भी हुआ उससे गंगा जी को कोई लाभ नहीं हुआ. उसकी जगह कॉर्पोरेट सेक्टर और व्यापारिक घरानों को ही लाभ दिखाई दे रहे हैं. अभी तक आपने गंगा से मुनाफा कमाने की ही बात सोची है…

3 अगस्त को मुझसे केन्द्रीय मंत्री साध्वी उमा भारती जी मिलने आई थीं. उन्होंने नितिन गडकरी जी से मेरी फ़ोन पर बात करवाई थी किन्तु समाधान तो आपको करना है, इसलिए मैं सुश्री उमा भारती जी को कोई जवाब नहीं दे सका. मेरा आपसे अनुरोध है कि आप मेरी नीचे दी गई चार मांगों को, जो वही हैं जो मेरे आपको 13 जून को भेजे पत्र में थी,स्वीकार कर लीजिये अथवा मैं गंगा जी के लिए उपवास करता हुआ अपनी जान दे दूंगा. मुझे अपनी जान दे देने की कोई चिंता नहीं है क्योंकि गंगा जी का काम मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण है. मैं आईआईटी का प्रोफेसर रहा हूं तथा मैं केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं गंगा जी से जुड़ी हुई सरकारी संस्थाओं में रहा हूं. उसी के आधार पर मैं कह सकता हूं कि आपकी सरकार ने इन चार सालों में कोई भी सार्थक प्रयत्न गंगा जी को बचाने की दिशा में नहीं किया है. मेरा आपसे अनुरोध है कि मेरी चार मांगों को स्वीकार किया जाए. मैं आपको यह पत्र उमा भारती जी के माध्यम से भेज रहा हूं.

भवदीय,
ज्ञान स्वरुप सानंद.

स्वामी सानंद का प्रधानमंत्री के नाम पांचवा पत्र (9 सितंबर 2018):

श्री नरेंद्र मोदी जी,

मैंने आपको दो पत्र दिनांकित 24 फ़रवरी और 13 जून उपवास शुरू करने से पूर्व लिखे जिनका कोई जवाब या प्रतिक्रिया न आने पर तीसरा पत्र दिनांक 23 जून यानी उपवास शुरू करने के अगले दिन लिखा. इसके बाद एक और पत्र दिनांक 5 अगस्त आपकी सरकार की मंत्री सुश्री उमा भारती जी के माध्यम से भी गंगा जी के संबंध में भिजवाया लेकिन कोई कदम गंगा जी के हित में आपके स्तर से कभी नहीं उठाया गया. आज मेरे उपवास का 80वां दिन है. ऐसे में मैंने आज, 9 सितंबर 2018 को, एक कठोर घोषणा की है जिसमें मैंने आने वाले शारदीय नवरात्र की प्रतिपदा यानी 10 अक्टूबर 2018 से जल भी त्याग देने का निर्णय लिया है. इस संबंध में मेरी हस्तलिखित प्रेस विज्ञप्ति की छायाप्रति संलग्न है. धन्यवाद सहित.

भवदीय,
ज्ञान स्वरुप सानंद.

स्वामी सानंद का प्रधानमंत्री के नाम आखिरी पत्र (30 सितंबर 2018):

श्री नरेंद्र भाई मोदी,

आज मेरे उपवास/तपस्या का 101 वां दिन पूरा हुआ. फ़रवरी में केंद्र सरकार के गंगा मंत्रालय / नमामि गंगे आदि के क्रियाकलापों से पूर्णतः निराश हो जब मैंने 22 जून तक कुछ अपेक्षाएं पूरी न होने पर 22 जून से आमरण उपवास करने का निर्णय लिया तो 24 फ़रवरी को इस आशय का एक पत्र अपनी अपेक्षाएं स्पष्ट करते हुए स्पीडपोस्ट द्वारा भेजा था. पत्र पर किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया न पाने पर और न ही भू-स्थिति या कार्यविधि में कोई भी अंतर दिखने पर दूसरा पत्र 13 जून को पुनः अपनी अपेक्षाएं और 22 जून को आमरण उपवास करने का अपना निर्णय स्पष्ट करते हुए आपको भेजा. एक बार फिर न कोई प्रतिक्रिया, न भू-स्थिति में कोई बदलाव. फलतः मैंने निश्चयानुसार 22 जून से अपना आमरण उपवास प्रारंभ कर सूचना आपको 23 जून के पत्र से दे दी.

आपने 2014 के चुनाव के लिए वाराणसी से उम्मीदवारी-भाषण में कहा था- “मुझे तो मां गंगा जी ने बुलाया है- अब गंगा जी से लेना कुछ नहीं, अब तो बस देना ही है.” मैंने समझा आप भी हृदय से गंगा जी को मां मानते हैं (जैसा कि मैं स्वयं मानता हूं और 2008 से गंगा जी की अविरलता, उसके नैसर्गिक स्वरुप और गुणों को बचाए रखने के लिए यथाशक्ति प्रयास करता रहा हूं) और मां गंगा जी के नाते आप मुझसे 18 वर्ष छोटे होने से मेरे छोटे भाई हुए. इसी नाते अपने पहले तीन पत्र आपको छोटा भाई मानते हुए लिख डाले. जुलाई के अंत में ध्यान आया कि भले ही मां गंगा जी ने आपको बड़े प्यार से बुलाया, जिताया और प्रधानमंत्री पद दिलाया पर सत्ता की जद्दोजहद (और शायद मद भी) में मां किसे याद रहेगी- और मां की ही याद नहीं, तो भाई कौन और कैसा. यह भी लगा कि हो सकता है कि मेरे पत्र आपके हाथों तक पहुंचे ही न हों- शासन तंत्र में ही कहीं उलझे पड़ें हों. अतः 5 अगस्त को पुनः आपको एक पत्र अबकी बार आपको छोटा भाई नहीं प्रधानमंत्री संबोधित करते हुए भेजा और आप तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए उसकी एक प्रति बहिन उमा भारती जी के माध्यम से भिजवाई. मुझे पता चला कि वह आपके हाथों और केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक तक पहुंचा है. पर परिणाम? परिणाम, आज तक वही ढाक के तीन पात. कोई अर्थपूर्ण पहल नहीं. गंगा मंत्री गडकरी जी को न गंगा की समझ है, न उनके प्रति आस्था…

तो जैसा मैंने अपने पहले वाक्य में लिखा, आज मात्र नींबू पानी लेकर उपवास करते हुए मेरा 101वां दिन है. यदि सरकार को गंगा जी के विषय में कोई पहल करनी थी तो इतना समय पर्याप्त से भी अधिक था. अतः मैंने निर्णय लिया है कि मैं आश्विन शुक्ल प्रतिपदा (9 अक्टूबर 2018) को अंतिम गंगा स्नान कर, जीवन में अंतिम बार जल और यज्ञशेष लेकर जल भी पूर्णतया (मुंह, नाक, ड्रिप, सिरिंज या किसी भी माध्यम से) लेना छोड़ दूंगा और प्राणांत की प्रतीक्षा करूंगा. प्रभु राम जी मेरा संकल्प शीघ्र पूरा करें जिससे मैं शीघ्र उनके दरबार में पहुंच, गंगा जी की अवहेलना करने और उनके हितों को हानि पहुंचाने वालों को समुचित दंड दिलवा सकूं. उनकी अदालत में तो मैं अपनी हत्या का आरोप भी व्यक्तिगत रूप से आप पर लगाऊंगा- अदालत माने न माने.

प्रभु राम जी आपको सद्बुद्धि दें इस शुभकामना के साथ.

मां गंगा जी के प्रति सच्ची निष्ठा वाला उनका पुत्र
ज्ञान स्वरुप सानंद.

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स्वामी सानंद के अंतिम पत्रों से उनकी मनोदशा आसानी से समझी जा सकती है. मौजूदा सरकार और विशेष तौर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उन्होंने न सिर्फ गंगा रक्षा की उम्मीदें लगाना बंद कर दिया था बल्कि अपनी हत्या का दोषी भी सीधे-सीधे उन्हें ही बताया था. मोदी सरकार के उदासीन रवैये ने कैसे स्वामी सानंद को हताशा में धकेल दिया था, इसका भान भी इन पत्रों से होता है.

केंद्र में जब कांग्रेस की सरकार थी और नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे तो वे स्वामी सानंद के संघर्ष के प्रति काफी समर्पित दिखते थे. उस दौर में नरेंद्र मोदी तत्कालीन केंद्र सरकार को यह याद दिलाना नहीं भूलते थे कि स्वामी सानंद की मांगों पर सरकार को ध्यान देना चाहिए. उस सरकार ने स्वामी सानंद की मांगों पर ध्यान देते हुए कई कदम उठाए भी थे और इसका जिक्र स्वयं स्वामी सानंद ने अपने इन पत्रों में किया है. लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने खुद स्वामी सानंद की मांगों पर कितना ध्यान दिया, यह भी उनके पत्र स्पष्ट कर देते है.

शायद सरकार के इसी उदासीन रवैये के चलते 23 अगस्त के दिन स्वामी सानंद ने अपना शरीर एम्स ऋषिकेश को दान करने के लिए एक शपथपत्र बनवाया और इसके लगभग डेढ़ महीने बाद ही उनकी मौत हो गई. स्वामी सानंद के पत्र यह तो बताते ही हैं कि केंद्र सरकार चाहती तो उन्हें मृत्यु के मुंह में जाने से आसानी से बचाया जा सकता था, साथ ही ये तमाम पत्र यह सवाल भी खड़ा करते हैं कि इन्हें आज पढ़कर क्या प्रधानमंत्री खुद से नज़रें मिला सकते हैं?