Newslaundry Hindi
“अगले साल, इस दिन, मोदी देश के प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे”
मनुष्यों की याददाश्त कमजोर होती है. वे आंदोलन, पुलिस लाठीचार्ज और यहां तक कि फेक एनकांउटरों को भी भूल जाते हैं. वे संभवत: यह भी भूल जाएंगें, जो 2 अक्टूबर को दिल्ली-उत्तर प्रदेश की सीमा पर हुआ.
हजारों किसान घंटों दिल्ली की सीमा में प्रवेश करने के लिए इंतजार करते रहे. वे प्रधानमंत्री की कृषि नीति का विरोध कर रहे थे. वे कृषि संकट से जूझ रहे किसानों की समस्या उठाना चाहते थे. भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के बैनर तले, उन्होंने किसान क्रांति पदयात्रा की शुरुआत 23 सितंबर को हरिद्वार से की थी. जब वे गाजीपुर, दिल्ली की सीमा में पहुंचे, दिल्ली पुलिस और सशस्त्र सीमा बल पहले से तैयार बैठी थी. सुरक्षा बलों ने आंदोलनरत किसानों को दिल्ली की सीमा में घुसने नहीं दिया. आखिरकार, 3 अक्टूबर की सुबह आंदोलन समाप्ति की घोषणा कर दी गई.
पूरी स्थिति का विरोधाभास यह रहा- गांधी जयंती के अवसर पर देश की रीढ़ माने जाने वाले समुदाय पर लाठियां भांजी गईं. लाल बहादुर शास्त्री, जिन्होंने जय जवान, जय किसान का नारा दिया था, उनके जन्मदिवस पर किसानों के ऊपर वाटर कैनन, आंसू गैस और रबर बुलेट दागे गए. गाजीपुर युद्धगृह में तब्दील हो गया. बावजूद इसके, किसान पुलिस अधिकारियों से मुस्कुराते हुए मिलते दिखे. वे ट्रैक्टरों में बैठकर प्रतिक्षा करते रहे.
मालूम नहीं यह देश इस घटना को आने वाले दिनों में याद रखेगा या नहीं, किसान और कृषि समुदाय को यह जरूर याद रहेगा. दिल्ली यूपी बॉर्डर पर जमे किसानों के बीच मोदी और योगी सरकारों को लेकर गुस्सा स्पष्ट दिख रहा था.
किसानों को भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) ने इकट्ठा किया था. जिन्हें बीकेयू का इतिहास और महेन्द्र टिकैत के बारे में जानकारी नहीं है, उनके लिए- 1988 में बीकेयू की अगुवाई में लाखों किसान टैक्टर लेकर दिल्ली में घुस आए थे. उन्होंने बोट क्लब को अपने कब्जे में ले लिया और राजीव गांधी सरकार थर्रा गई थी. तीस साल बाद, जब बीकेयू और मोदी सरकार के बीच बातचीत फेल हो गई, टिकैत के बेटे नरेश टिकैत ने कहा, “अगले वर्ष, आज की तारीख में मोदी प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे.” उनके बयान का किसानों के समूह ने नारे के साथ समर्थन किया.
टीवी कैमरों ने किसानों पर पुलिसिया कार्रवाई को दिनभर दिखाया. शाम तक, किसानों के मुद्दे गौण हो गए और बहसें भाजपा बनाम विपक्ष की ओर मुड़ गईं. प्राइमटाइम पर वही थके-हारे सवाल, “कौन लोगों को मोदी सरकार के खिलाफ उकसा रहा है.”
न्यूज़लॉन्ड्री ने किसानों से गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों से मुलाकात की और पाया कि यह आंदोलन कृषि आर्थिकी से जुड़ा था, न कि दलगत राजनीति से.
आंदोलन का मुद्दा यह था कि कृषि को लाभदायक बनाया जाए. किसान चाहते थे कि उनके ट्रैक्टरों की कामकाज की अवधि बढ़ाई जाए. बिजली के रेट घटाए जाए. खाद की कीमतें घटाई जाय, न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाया जाय और समय पर मुहैया कराया जाए.
ये उन कुछेक किसानों की आवाजें हैं जो शांतिपूर्वक तरीके दिल्ली की सीमा में घुसना चाहती थी और बीकेयू की मांगों को आगे करना चाहती थी.
1. मुकेश कौशिक (56 वर्ष), 250 बीघा जमीन के मालिक
कौशिक की यात्रा बुलंदशहर से शुरू हुई थी. वह 22 सितंबर को हरिद्वार पहुंचे. वे एक ट्रैक्टर और तीन सहयोगियों के साथ किसान क्रांति पदयात्रा में शामिल हुए थे. नौ दिन की यात्रा के बाद उन्हें दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर रोक लिया गया. हमारी बातचीत के दौरान, वह अपने दोस्तों और परिवार वालों का जवाब देते हैं, “उन्होंने (पुलिस) यात्रा पर फायरिंग की शुरुआत कर दी. स्थितियां तनावपूर्ण हैं.”
कौशिक बताते हैं कि जबसे उन्होंने हरिद्वार छोड़ा है, किसानों ने दिल्ली के रास्ते में कोई व्यवधान पैदा नहीं किया. उनकी सबसे पहली चिंता है, उनके ट्रैक्टर का सही हालत में होना. “10 साल में ट्रैक्टर हटवा रहे हैं. किसान के पास कहां है इतना पैसा कि वह हर दस साल में नया ट्रैक्टर खरीदे?” नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दस साल पुराने डीजल वाहनों पर प्रतिबंध लगा दिया था. कौशिक अपनी नीले रंग की ट्रैक्टर दिखाते हुए कहते हैं, “यह 10 साल पुरानी है. इसकी स्थिति देखिए. आपको लगता है कि मुझे नया लेने की जरूरत है?”
कौशिक बीकेयू की मांगों की चर्चा संक्षेप में करते हुए बताते हैं कि यह कृषि को लाभदायक बनाने से जुड़ा है. “हमें कर्ज माफी की बदौलत नहीं रहना चाहिए,” वह कहते हैं. “जिसका पैसा लिया है, उसको वापस देना चाहिए.” सरकार को अन्नदाताओं की सहायता करनी चाहिए. उन्हें कभी लोन माफी की जरूरत नहीं पड़ेगी.
2014 के लोकसभा चुनावों में कौशिक ने भाजपा को वोट किया था. लेकिन पुलिसिया बर्बरता के बाद, वह मोदी-विरोधी हो गए हैं. वो कहते हैं, “उन्होंने हमारी पदयात्रा रोकी, हमारे ऊपर वाटर कैनन चलवाये. अंतिम बार कब किसी केन्द्र सरकार ने किसानों के आंदोलन पर यह बर्बरता दिखाई थी?”
2. उदय राज, (73 वर्ष), 20 बीघा जमीन के मालिक
उदय राज महेन्द्र टिकैत जैसे किसान नेताओं के साथ आंदोलन में शामिल रह चुके हैं. वह ऐसे तीन आंदोलनों की याद दिलाते हैं. हमें फर्क नहीं पड़ता, कौन सी सरकार सत्ता में है. किसान अपनी लड़ाई जारी रखेंगे, राज ने कहा. न्यूनतम समर्थन आय और कृषि राजस्व किसानों को प्रभावित करती है, वही हमारा मुद्दा है.
जो चीजें हम खरीदते हैं खेती के लिए, उसका भाव बढ़ा जा रहा है. हम जो बेचे हैं, वो फसल मंदा होता जा रहा है, वह कहते हैं. यही मूल सवाल है जिसे बार-बार किसान उठाता है. राज कहते हैं, किसान अपने अधिकार मांग रहे हैं, और “सरकार हमारे अधिकारों के जवाब में गोलियां दे रही है.”
3. गुड्डू प्रधान, (48 वर्ष), 31 बीघा जमीन के मालिक
प्रधान बुलंदशहर में बीकेयू के जिला अध्यक्ष हैं. उनके पिता सेना में थे. वह कहते हैं, “आज हमारे सामने, मोदी सरकार ने हमारे भाईयों की फौज खड़ी कर दी. ऐसी व्यवस्था तो आंतकवादी के लिए करे है.”
प्रधान बताते हैं कि ट्रैक्टर कृषि में इस्तेमाल आने वाला औजार है, उसे प्रतिबंधित करने का क्या औचित्य है? हर दस साल पर एक नया ट्रैक्टर खरीदने से किसानों पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है. वह टैक्टरों पर लगाए जा रहे भारी-भरकम जीएसटी से भी परेशान हैं.
वह बताते हैं, “खाद की कीमत बढ़ गई है. इसके वजह से प्रोडक्शन कॉस्ट बढ़ गया है. योगी सरकार के अंदर बिजली की कीमतें दुगनी हो गई हैं, यह भी प्रोडक्शन कॉस्ट बढ़ने का एक कारण है.”
प्रधान भाजपा सरकार को “सौ प्रतिशत किसान विरोधी” बताते हैं क्योंकि भाजपा किसानों को किए वादे पूरे नहीं कर सकी.
4. मुनफत अली, (60 वर्ष), 40 बीघा खेत के मालिक
मुनफत अली हाइवे के किनारे घूम रहे हैं, जो पदयात्रा और प्रदर्शन की वजह से बंद है. वह कहते हैं, मुझे खेती के लिए लोन लेना पड़ा और मैं अभी भी गन्ने की कीमतों का इंतजार कर रहा हूं.
योगी सरकार के गन्ने की कीमतों के दावों पर वह कहते हैं, “योगी झूठ कह रहे हैं. हमारे बैंक खाते देख लीजिए, पता चल जाएगा हमारे बकाये दिए गए हैं या नहीं.”
अली बीकेयू से करीब तीन दशकों से जुड़े हुए हैं. उनके लिए बिजली सब्सिडी वरीयताओं में है. वे चाहते हैं कि सरकारें डीजल और खाद का रेट नियंत्रित करें. वे कर्ज माफी की भी मांग करते हैं. “हजारो करोड़ के डिफॉल्टर्स के लोन माफ कर दिए गए हैं, लेकिन किसान अभी भी कर्ज माफी का इंतज़ार कर रहे हैं.”
अली मोदी सरकार के उन दावों पर सवाल करते हैं जिसमें न्यूनतम समर्थम मूल्य को 150 फीसदी बढ़ाने के दावे किए गए थे. उनके समीप मौजूद दूसरे किसान कहते हैं कि इसमें मजदूरी कौन जोड़ेगा. “न्यूनतम समर्थन मूल्यों की बात स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट के संदर्भ में की जानी चाहिए,” अली कहते हैं.
5. विरेन्दर सेहरावत, (40 वर्ष) 40 बीघा जमीन के मालिक
“जय जवान, जय किसान का नारा जिसने दिया, उसके जन्मदिन पर किसानों पर गोली चलवा दी मोदी सरकार ने,” सहरावत कहते हैं. वह भाजपा समर्थक और मुजफ्फरनगर के निवासी हैं. वह पार्टी की नीतियों से नाराज हैं. “मैं मोदीजी को उन्हीं की नीतियों की याद दिलाना चाहता हूं. अगर उन्होंने वादे पूरे किए होते तो लाखों किसानों को सड़कों पर नहीं उतरना पड़ता.” सहरावत योगी और मोदी के कर्ज माफी के बारे में पूछते हैं- कहां हैं वे?
वह पश्चिमी यूपी में खेती से जुड़ी एक वास्तविक समस्या बताते हैं, “गन्ने का दाम मिलने में महीनों बीत जाते हैं और किसानों को मजबूरन लोन लेना पड़ता है. यह जाल है.” किसान इंटरेस्ट देते हैं लेकिन उन्हें सरकार की तरफ से बकाये की पूर्ति नहीं की जाती. वह बताते हैं, “किसानों को बकाया राशि पर ब्याज नहीं मिलता, न ही सरकार की तरफ से सब्सिडी मिलती है. सरकार पर कौन कार्रवाई करेगा?” सहरावत की शिकायतों की लिस्ट लंबी है और वह यूपी में बिजली के बढ़े दाम और डीजल के दामों पर चिंता जाहिर करते हैं.
योगी आदित्यनाथ और केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी के बयान जिसमें किसानों को गन्ने पर निर्भरता कम करने की बात कही गई थी, उसपर प्रतिक्रिया देते हुए सहरावत कहते हैं, “केन्द्र सरकार को अपनी नीतियों पर ध्यान देना चाहिए. जब हम गन्ना उपजाने में आत्म-निर्भर हैं, तो हम चीनी का आयात क्यों कर रहे हैं. यह हमारी कृषि आर्थिकी पर बुरा प्रभाव डालता है.”
Also Read
-
‘Overcrowded, underfed’: Manipur planned to shut relief camps in Dec, but many still ‘trapped’
-
Since Modi can’t stop talking about Nehru, here’s Nehru talking back
-
Indigo: Why India is held hostage by one airline
-
2 UP towns, 1 script: A ‘land jihad’ conspiracy theory to target Muslims buying homes?
-
‘River will suffer’: Inside Keonjhar’s farm resistance against ESSAR’s iron ore project