Newslaundry Hindi
पत्रकारों की हत्या की जांच पुलिस फाइलों में दब कर रह गई है
भारत में बीते 16 सालों में 65 पत्रकारों की हत्या की जा चुकी है. रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स की 180 देशों की सूची में भारत 136वें स्थान से गिरकर 138वें पायदान पर पहुंच चुका है. रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स एक वैश्विक संस्था है जो पत्रकारीय चुनौतियों और पत्रकारों की सुरक्षा के लिए काम करती है. इन दो आकड़ों की बदौलत यह आंकने में कोई दिक्कत नहीं होती कि भारत में पत्रकारिता करना कितना जोखिम भरा काम है.
बेशक जोखिम भरा है लेकिन पत्रकारों पर हमलों का भी अपना एक समाजशास्त्र है. मारे गए ज्यादातर पत्रकार क्षेत्रीय भाषाओं में लिखने और स्थानीय मीडिया से जुड़कर काम करते हैं. कुछ परिवारों को सरकारी मुआवजे दिए गए हैं, कुछ एक मृत पत्रकारों के परिजनों को संस्थान ने थोड़ी सी आर्थिक मदद देकर पल्ला झाड़ लिया. दुर्भाग्यपूर्ण यह रहा है कि न्याय की राह बेहद कठिन रही है. कहीं एफआईआर दर्ज नहीं हुई तो कहीं जांच अधर में लटकी हुई है.
दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में नेशनल कन्वेंशन अगेन्सट असॉल्ट ऑन जर्नलिस्ट्स द्वारा आयोजित टॉक में मृत पत्रकारों के परिवारों ने आपबीती सुनाई. इसके पहले फिल्म अभिनेता प्रकाश राज और हिंदी दैनिक देशबंधु के एडिटर इन चीफ़ ललित सुरजन ने कार्यक्रम की शुरुआत की. इस टॉक की अध्यक्षता समकालीन तीसरी दुनिया के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा के जिम्मे थी. मीडिया विजिल के संस्थापक और संपादक पंकज श्रीवास्तव भी मंच पर मौजूद रहे.
प्रकाश राज ने अपने संबोधन में स्पष्ट कहा, कन्वेंशन में वह अपनी बात रखने बतौर अभिनेता उपस्थित नहीं हैं. वह अपनी पत्रकार मित्र गौरी लंकेश की हत्या से व्यथित हैं और गौरी के मित्र की हैसियत से अपनी बात रख रहे हैं.
परिजनों की आपबीती
राजदेव रंजन:
बिहार के सिवान जिले में हिंदुस्तान के ब्यूरो चीफ राजदेव रंजन की नृशंस हत्या कर दी गई थी. अटकलें हैं कि उनकी हत्या कथित तौर पर राजद के पूर्व सांसद बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन के खिलाफ लिखने के चलते हुई. कन्वेंशन में आईं राजदेव रंजन की पत्नी उषा रंजन ने बताया, “हमारे लिए सफलता बस इतनी ही रही है कि सुप्रीम कोर्ट में मेरी याचिका के बाद शहाबुद्दीन की बेल रद्द कर दी गई और उसे तिहाड़ जेल शिफ्ट किया गया.”
फिलहाल राजदेव रंजन के मामले में, सितंबर, 2017 में, सीबीआई ने शहाबुद्दीन समेत आठ आरोपितों के खिलाफ चार्ज शीट दाखिल किया है.
नवीन गुप्ता:
नवीन उत्तर प्रदेश के बिलहौर में हिंदुस्तान के स्ट्रिंगर के रूप में कार्यरत थे. वह स्थानीय मुद्दों पर रिपोर्ट किया करते थे. नवीन जिन ठेकेदारों को अपने रिपोर्ट में घेरा करते थे, उनमें से एक ने कथित तौर पर उनकी दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी.
उनके भाई प्रवीण गुप्ता ने बताया, “पुलिस अब तक हत्या का कारण नहीं ढूंढ सकी है. पुलिस वाले डेढ़ साल से एक ही बात कहते हैं, जांच चल रही है. हमने योगी आदित्यनाथ से सीबीआई जांच की भी मांग की लेकिन अबतक कोई कार्रवाई नहीं की गई है.”
संदीप शर्मा:
संदीप एक स्थानीय चैनल के लिए भिंड में काम करते थे. उन्होंने खनन माफियाओं के ऊपर एक स्टिंग किया था. इस स्टिंग को चैनल पर प्रसारित हने के बाद से ही संदीप को अपनी जान पर खतरे का आभास हो गया था. उन्होंने सुरक्षा के लिए भिंड पुलिस प्रशासन एवं आला अधिकारियों को पत्र लिखे थे. हत्या के ठीक चार दिन पहले, उन्हें भिंड पत्रकार संघ का अध्यक्ष चुना गया था. उन्हें भिंड कोतवाली पुलिस स्टेशन के पास ट्रक से कुचलकर मार दिया गया.
कन्वेंशन में उनका परिवार नहीं पहुंच सका. हालांकि मीडिया विजिल के अभिषेक श्रीवास्ताव, जो संदीप के परिवार से मिलकर लौटे थे, उन्होंने परिवार से हुई बातचीत श्रोताओं से साझा किया. अभिषेक ने बताया, “परिवार गुरबत में जीवन गुजार रहा है. सुरक्षा के मद्देनज़र परिवार भिंड से दूसरी जगह किराये पर शिफ्ट कर चुका है. पुलिस संदीप की हत्या को ट्रक दुर्घटना मानकर जांच को आगे बढ़ा रही है. कार्रवाई के नाम पर सिर्फ इतना हुआ है कि ट्रक को पुलिस ने सीज किया है और ट्रक ड्राइवर को गिरफ्तार किया गया है. पुलिस हत्या की साजिश के कारणों का खुलासा करने में नाकामयाब रही है.”
शुजात बुखारी:
राइजिंग कश्मीर के संपादक शुजात बुखारी की हत्या इसी वर्ष जून में, ठीक उनके दफ्तर के बाहर की गई थी. शुजात कश्मीर मुद्दे पर लिखने वाले निष्पक्ष पत्रकारों में से एक थे. वह कश्मीर समस्या का हल संवाद के रास्ते खोजने के पक्षधर आवाजों में से एक थे.
उनके सहयोगी और गल्फ न्यूज़ में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार जलील ने बताया, “उन्होंने हत्या के कुछ दिनों पहले स्क्रॉल पर एक लेख लिखा था, जिसमें रमजान के दौरान सीजफायर पर रोक की वो तारीफ कर रहे थे. शुजात के राजनीतिक स्टैंड की वजह से उन्हें चरमपंथियों और सरकार दोनों से बराबर का खतरा रहता था.”
जमील ने आगे कहा, “हम यह नहीं जानते शुजात को किसने मारा लेकिन उसकी हत्या के बाद जम्मू के भाजपा नेता ने एक बयान दिया, जिसमें उसने कहा कि, भारत विरोधी पत्रकारों को संभलकर रहना चाहिए वर्ना उनका भी शुजात जैसा हाल किया जा सकता है. यह चेतावनी इशारा करती है कि शायद शुजात की हत्या सुनियोजित थी और हत्यारों को सत्ता का शह प्राप्त था.”
पैट्रीशिया मुखीम:
शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक पैट्रीशिया मुखिम के घर के बाहर पेट्रोल बम फेंके गए थे. वह पूर्वोत्तर राज्यों में लाइमस्टोन के खनन और छात्रसंघों के हिंसक बर्ताव पर मुखरता से लिखती रही हैं. हमले में पैट्रीशिया या उनके परिवार का कोई सदस्य घायल नहीं हुआ था.
कन्वेंशन के दौरान पैट्रीशिया ने अपने संबोधन में कहा, “पूर्वोत्तर में प्राकृतिक संसाधनों की लूट मची है. वहां कई सारे पक्ष हैं और पत्रकारों को सभी पक्षों से बराबर का खतरा है.”
मीडिया की भूमिका पर पैट्रीशिया ने स्वतंत्र और वैकल्पिक मीडिया को भविष्य का मीडिया बताया. साथ ही पैट्रीशिया ने लोगों से अपील भी की कि वे फ्री मीडिया का सहयोग करें.
दूसरों वक्ताओं ने भी वर्तमान समय में पत्रकारिता के संकट को आपातकाल से कम नहीं बताया. मेनस्ट्रीम मीडिया की आलोचना में पंकज श्रीवास्तव ने कहा, “मुख्यधारा की पत्रकारिता सूचना देने के नहीं सूचना छिपाने के धंधे में है. वैकल्पिक पत्रकारिता के बारे में गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है.”
देशबंधु के संपादक ललित सुरजन ने ‘गुरिल्ला पत्रकारिता’ की ज़रूरत पर ज़ोर दिया, “पत्रकारिता जोखिम लेने का काम है और इसका रिश्ता तक़लीफ़ से है. युवा पत्रकारों को चाहिए कि छोटे-छोटे प्रयासों और सोशल मीडिया के ज़रिए बड़े-बड़े सत्य का उद्घाटन करने का जोखिम लें.”
आनंद स्वरूप वर्मा के मुताबिक, “जब अंधेरा इतना घना हो तो सच बोलना ही क्रांतिकारी कार्य है.”
Also Read
-
‘They call us Bangladeshi’: Assam’s citizenship crisis and neglected villages
-
Why one of India’s biggest electoral bond donors is a touchy topic in Bhiwandi
-
‘Govt can’t do anything about court case’: Jindal on graft charges, his embrace of BJP and Hindutva
-
Reporter’s diary: Assam is better off than 2014, but can’t say the same for its citizens
-
‘INDIA coalition set to come to power’: RJD’s Tejashwi Yadav on polls, campaign and ECI