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2008 महामंदी: दस साल में दुनिया कितनी सुरक्षित हुई?

लेहमन ब्रदर्स, नाम तो सुना होगा न? नहीं सुना? लेहमन ब्रदर्स, अमेरिका की वाल स्ट्रीट का चौथा सबसे बड़ा निवेशक बैंक था. आज से ठीक 10 साल पहले, 15 सितम्बर, 2008 को इस बैंक का दिवाला पिट गया. लेहमन ब्रदर्स के दिवालिया होने के साथ ही पूरी दुनिया में वित्तीय संकट की सही मायने में शुरुआत हुई, जिसका असर दुनिया अभी भी महसूस कर रही है.

अब दस साल बाद ये कहा जा सकता है कि लेहमन ब्रदर्स कि किस्मत ख़राब थी. पश्चिमी देशों के कई केंद्रीय बैंकों ने सरकारों के साथ मिल कर तमाम वित्तीय संस्थानों को दिवालिया होने से बचाया. इस में एआईजी, सिटीग्रुप, फैनी मे, फ्रेड्डी मैक, आरबीएस वगैरह, शामिल थे.

लेहमन ब्रदर्स को क्यों नहीं बचाया गया? फ़ेडरल रिज़र्व ऑफ़ द यूनाइटेड स्टेट्स, जो कि अमेरिका का केंद्रीय बैंक है, ने आज तक इसका कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दिया है.

खैर ये सब तो इतिहास कि बातें हो गयी, आज, दस साल बाद, ये जानना ज़्यादा ज़रूरी है कि लेहमन ब्रदर्स दिवालिया क्यों हुआ, इससे दुनिया को क्या सीख मिली और क्या विश्व ने उन गलतियों से सीख लेते हुए भविष्य में एक और लेहमैन संकट से बचने की पुख्ता तैयार कर ली है?

हिंदी में एक कहावत है- जितनी लम्बी चादर हो उतना ही पैर फैलाना चाहिए. जो लोग लेहमन ब्रदर्स चला रहे थे, वो इस बात को भूल गए थे. दिवालिया होने से पहले, लेहमन ब्रदर्स का वित्तीय लेवरेज़ करीब-करीब 44 : 1 था. इसका मतलब यह हुआ के बैंक ने अपना हर एक रुपया जो धंधे में लगाया था, उस पर 44 रुपया उधार ले रखा था.

सीधा सा फार्मूला है कि उधार लेकर निवेश करने पर अच्छे समय में, मोटा लाभ होता है, लेकिन जब बुरा समय आता है, तो नुकसान भी बहुत ज़्यादा होता है.

2001 से लेकर 2006 तक अमेरिकी रियल एस्टेट बाज़ार उठान पर था. हर साल दाम बढ़ रहे थे, खास करके कुछ अमेरिकी राज्यों में जिन्हें सैंड स्टेट्स के नाम से जाना जाता है. ये राज्य हैं, एरिज़ोना, कैलिफ़ोर्निया, फ्लोरिडा और नेवाडा.

लेहमन ब्रदर्स और बाकी वित्तीय बैंकों ने अमेरिकी रियल एस्टेट बाज़ार में चल रही तेज़ी का 2001 से 2006 तक जमकर फायदा उठाया. इन बैंकों ने पैसा उधार लेकर अलग-अलग तरीकों से अमेरिकी रियल एस्टेट में पैसा लगाया.

वह दौर कुछ ऐसा था, कि बैंक होम लोन देने के बाद उस लोन को अपने बैलेंस शीट पर ज़्यादा दिन नहीं रखते थे. काफी सारे लोन्स को मिलाकर, बैंक उन लोन्स का प्रतिभूतिकरण कर देते थे. प्रतिभूतिकरण करने से होम लोन्स, बांड्स मे बदल जाते हैं.

बैंक इन बांड्स को निवेशकों को बेच कर कमीशन कमाते थे. लेहमन ब्रदर्स जैसे वित्तीय बैंक, इन बांड्स को खरीदते थे. कुछ समय के बाद स्थिति यह हो गई कि लेहमन ब्रदर्स ने होम लोन देने वाली कुछ कंपनियां भी खरीद ली. अब इन बैंकों के होम लोन्स को लेहमन प्रतिभूतिकरण करवा कर बांड्स के रूप में बेचने लगा.

बैंकों के लिए यह फायदे का सौदा था. पहले के समय में जब बैंक होम लोन देता था तो उस लोन को अपने बैलेंस शीट पर रखता था. उधार लेने वाला हर महीने ईएमआई देकर इस लोन की भरपाई करता था. अगर लोन 20 साल के लिए दिया गया हो, तो ये लोन 20 साल तक बैंक की बैलेंस शीट पर रहता था. इस दौरान, इस बात की संभावना होती थी कि उधार लेने वाला ईएमआई देना बंद कर दे. यह जोख़िम बैंक को उठाना पड़ता था.

प्रतिभूतिकरण से ये जोखिम बैंक को नहीं उठाना पड़ता है, क्यूंकि होम लोन को बांड्स बनाकर बेच दिया जाता है. इसलिए जोखिम उन निवेशकों के ऊपर आ जाता है, जिन्होंने ये बांड्स खरीदे हैं.

ऊपर से बांड्स बेचकर बैंक के पास पैसा फिर से आ जाता था. इस पैसे को बैंक फिर से लोन के रूप में दे सकता है और फिर से प्रतिभूतिकरण करके बांड्स बनाकर बेच सकता है. ये होता है इस फाइनेंशियल इंजीनियरिंग का कमाल.

इससे लेहमन ब्रदर्स जैसे वित्तीय बैंक्स का कैसे फायदा होता था? जब उधार लेने वाला ईएमआई देता था, ये पैसा बांड्स के निवेशकों के पास जाता था. इन बांड्स पर जो ब्याज़ था वो सरकारी बांड्स और बाकी AAA (ट्रिपल ए) बांड्स से थोड़ा ज़्यादा था.

इस तरह से 2006 के अंत तक अमेरिकी रियल एस्टेट बाज़ार एक बहुत बड़ा बुलबुला बन चूका था. इसके बाद धीरे धीरे घरों के दाम गिरने शुरू हो गए. जब ऐसा हुआ तो बड़ी संख्या में उधार लेने वालों ने, जिन्होंने अपनी हैसियत से ज्यादा लोन ले लिए था, ईएमआई देना बंद कर दिया. ईएमआई डिफॉल्ट करने वालों की संख्या बहुत ज्यादा थी. जब बहुत सारे लोगों ने ईएमआई देना बंद कर दिया, तो वो वित्तीय बैंक जिन्होंने इन होम लोन पर बने बांड्स खरीदे थे, मुसीबत में पड़ गए.

बांड्स पर पैसा वापस आना बंद हो गया. इन बांड्स में वित्तीय बैंकों ने जो निवेश किया था, उसके बर्बाद होने का खतरा पैदा हो गया. इन वित्तीय बैंकों ने उधार लेकर भी निवेश किया था. तो दूसरी मुसीबत ये हो गयी के अब ये पैसा कैसे लौटाया जाए. इस दोहरी मुसीबत के कुचक्र में फंसकर लेहमन ब्रदर्स जैसे वित्तीय बैंक बर्बाद होने कि कगार पर आ गए.

इन वजहों से पश्चिम के कई बड़े वित्तीय बैंकों की हालत 2008 के शुरुआत से काफी ख़राब हो गयी थी. जैसा कि मैंने ऊपर जिक्र किया था कि बहुत से बैंकों को, पश्चिमी देशों के केंद्रीय बैंकों ने सरकार के साथ मिलकर बचा लिया था. लेहमन ब्रदर्स की किस्मत ख़राब थी.

ये तो बात हुई कि लेहमन ब्रदर्स के साथ क्या हुआ. अब ये सवाल पैदा होता है कि क्या बाकी दुनिया ने लेहमन ब्रदर्स की बर्बादी से और उसके बाद शुरू हुए वैश्विक वित्तीय संकट से कुछ सीखा है?

इस टेबल एक को ध्यान से देखिए.

इस टेबल से हमें क्या पता चलता है? पूरे विश्व का कर्ज़ 2007 से 2017 के बीच में 42.5 % बढ़कर 238 ट्रिलियन डॉलर हो गया है. पिछले दस सालों में सरकारों और गैर वित्तीय कंपनियों ने जम कर कर्ज़ लिया है.

केवल कर्ज़ को यहां देखना सही नहीं होगा. 2007 और 2017 के बीच विश्व अर्थव्यवस्था भी पहले से बड़ी हो गयी है. इस बात को भी ध्यान में रखना पड़ेगा. 2007 में पूरे विश्व का कर्ज़, विश्व के कुल घरेलु उत्पाद का 289% था. 2017 में ये बढ़कर 295% तक पहुंच गया था.

इसका मायने ये हुआ कि लेहमन ब्रदर्स के दिवालिये और विश्व वित्तीय संकट से दुनिया ने उल्टा सबक सीखा है. सबक ये सीखना था कि अधिक कर्ज़ और वित्तीय लेवरेज़ से नुकसान होता है. पर सीखा कुछ उल्टा. और हर उल्टी सीख का खामियाज़ा कभी न कभी तो भुगतना ही पड़ता है.

(विवेक कौल “ईज़ी मनी ट्राइलोजी” के लेखक हैं.)