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दक्षिण और वाम के बीच गुरिल्ला वार जोन बना जेएनयू
जेएनयू छात्रसंघ का चुनाव प्रमुखत: दो कारणों से बाकी विश्वविद्यालयों के लिए नज़ीर पेश करता है- पहला, छात्रसंघ चुनाव में धन और बाहुबल का उपयोग नहीं होता. दूसरा, चुनाव संवाद और विमर्श की परिधि में संपन्न होता है. दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस बार ये दोनों ही खूबियां ख़तरे में पड़ गई.
इस बार का चुनाव संवाद से ज्यादा राजनीतिक झड़पों और व्यावधानों के लिए याद किया जाएगा. चुनाव मतगणना से लेकर चुनाव के बाद का जश्न भी झड़पों में मुक्त न रह सका. यह जेएनयू के लिए नया है.
सोमवार की सुबह करीब 3 बजे झेलम हॉस्टल से मारपीट की खबर आई. एबीवीपी का अपना पक्ष है और वाम दलों का अपना. न्यूज़लॉन्ड्री ने दोनों पक्षों से बात की और उनके पक्ष को समझने की कोशिश की.
वाम पक्ष
जेएनयू छात्रसंघ के नवनिर्वाचित अध्यक्ष एन साईं बालाजी ने बताया कि उन्हें ख़बर मिली थी कि सतलज हॉस्टल में एबीवीपी के कार्यकर्ता सौरभ शर्मा और अखिलेश मिश्रा के नेतृत्व में आइसा के कार्यकर्ताओं को पीट रहे हैं.
बालाजी बताते हैं, “जब मैं वहां पहुंचा तो मैंने देखा, पवन मीणा को एबीवीपी के लोग पीट रहे थे. जो भी स्टूडेंट पवन के बचाव की कोशिश कर रहा था, वे लोग उसे भी मार रहे थे. मैं वहां बीच-बचाव के लिए पहुंचा तो उन्होंने (एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने) मेरे ऊपर भी लाठी से हमला कर दिया.”
जेएनयू छात्रसंघ की पूर्व अध्यक्ष गीता कुमारी भी बालाजी के साथ सतलज पहुंची थी. गीता का दावा है कि एबीवीपी के लोगों ने उन्हें जान से मारने की धमकी दी.
बालाजी के मुताबिक भीड़ ने जेएनयू के पूर्व छात्र अभिनव सिन्हा को चिन्हित कर पीटा. अभिनव झेलम हॉस्टल के लॉन में थे. भीड़ ने उन पर हिंसक तरीके से हमला किया.
छात्रों के मुताबिक इसी दौरान पुलिस कैंपस में आ गई थी. पुलिस ने बालाजी को पीसीआर वैन में बैठा लिया. एक एबीवीपी कार्यकर्ता बालाजी के साथ पीसीआर वैन में बैठ गया. सतलज से झेलम के रास्ते में एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने पीसीआर वैन को रोक लिया और वहीं बालाजी पीटने लगे.
एबीवीपी पक्ष
दूसरी तरफ एबीवीपी है, जो इस घटना के बारे में करीब-करीब इसी तरह की कहानी बयान कर रही है. लेकिन उनकी कहानी में पिटने वाले बालाजी या पवन मीणा नहीं बल्कि एबीवीपी कार्यकर्ता हैं और पीटने वाले लेफ्ट के लोग हैं.
एबीवीपी से जुड़े अभिजीत ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “रविवार की शाम चार बजे हम लोग स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडी के बाहर नारे लगा रहे थे. हम लोग 20 से 22 की संख्या में थे. वहां सैकड़ों की तादाद में मौजूद कम्युनिस्टों ने हमें घेरकर फिकरेबाजी की और मारा. इसमें हमारे संगठन के कार्यकर्ता सेजल यादव का हाथ टूट गया. हम लोग पुलिस के पास एफआईआर दर्ज करवाने गए लेकिन पुलिस ने सिर्फ रिकॉर्ड इंट्री करके छोड़ दिया.”
अभिजीत आगे बताते हैं, “वापस करीब सुबह 3 तीन बजे एन साईं बालाजी और गीता कुमारी के नेतृत्व में पवन मीणा झेलम हॉस्टल पहुंचे थे. वहां वे लोग सेजल के टूटे हुए हाथ पर हमला करने लगे. एबीवीपी कार्यकर्ताओं को चुन-चुनकर वामपंथियों ने मारा है. ये जेएनयू को जाधवपुर यूनिवर्सिटी बनाना चाहते हैं.”
बताते चलें एबीवीपी और वाम संगठनों के बीच अध्यक्षीय भाषण के दौरान भी एक दूसरे के खिलाफ हूटिंग की गई थी. अभिजीत चुनाव आयोग पर सवाल उठा रहे हैं. चुनाव आयोग ने सफाई देते हुए कहा है कि उसने लिंगदोह नियमों के मुताबिक पोलिंग एजेंट को तीन बार बुलाया था. जब वह तीसरी और अंतिम बार भी नहीं आए तो आयोग ने रिजल्ट घोषित कर दिया. बाद में एबीवीपी के हंगामें के बाद मतगणना 16 घंटे तक रुकी रही.
दोनों ही पक्षों की ओर से फेसबुक पर वीडियो डाले गए हैं, जिससे यह स्पष्ट करना बहुत मुश्किल है कि किसने किसको मारा या फिर पहले इस हमले की शुरुआत किसने की.
दोनों पक्ष अपनी शिकायत लेकर वसंत कुंज (नॉर्थ) थाने पहुंचे. यहां पर तैनात एएसआई अभिषेक सिंह ने बताया, “दोनों पक्षों के बीच सुलह हो गई है और उन्हें वापस विश्वविद्यालय भेज दिया गया है. किसी भी छात्र पर कोई एफआईआर नहीं दर्ज की गई है. हम केस को फॉलो कर रहे हैं, कुछ अपडेट होगा तो मीडिया को सूचित किया जाएगा.”
इन दो पक्षों के बीच, एक ऐसा पक्ष है जिसकी धमक तो है लेकिन हिंसा और झड़पों के बीच चर्चा कहीं नहीं है. झेलम हॉस्टल के आर्य अजीत बताते हैं, “झड़प एनएसयूआई के विकास यादव के लोगों और एबीवीपी के बीच शुरू हुई थी. वहां से किसी ने बालाजी को सूचित कर दिया कि आइसा के कार्यकर्ताओं को पीटा जा रहा है. बालाजी वहां पहुंचे और एनएसयूआई सीन से गायब हो गई. इसके बाद चुनावी हार की जो कुंठा एबीवीपी के अंदर थी उसे उन लोगों ने लेफ्ट वालों के ऊपर उतार दिया.”
बापसा और एनएसयूआई ने भी हिंसक झड़पों का विरोध किया और एबीवीपी के कृत्यों की निंदा की है.
इस बीच जेएनयू के मुख्य द्वार पर दंगा नियंत्रण दल और दिल्ली पुलिस की भारी मौजूदगी है. ख़बर लिखे जाने तक जेएनयू के शिक्षकों और छात्रों ने कैंपस में लोकतांत्रिक मूल्य बहाल करने के लिए मार्च का आयोजन किया है.
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