Newslaundry Hindi
हिंदी दिवस पार्ट-1: साहित्यिक पत्रिकाओं और समाचार पत्रों की आपसी कदमताल
वाराणसी के मैदागिन मार्ग पर स्थित पराड़कर स्मृति भवन के तीन मंजिला सफेद इमारत में काशी पत्रकार संघ का डेरा है. हालांकि यह तो स्पष्ट नहीं कि भवन में जाने वाले पत्रकारों पर और वहां आयोजित गोष्ठियों और व्याख्यानों पर उस व्यक्तित्व का कितना प्रभाव है जिससे इस भवन ने अपना नाम पाया, एक सम्बन्ध फिर भी स्पष्ट है.
बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में विद्वान-पत्रकार और आज अख़बार के प्रभावशाली संपादक बाबूराव विष्णु पराड़कर (1883-1955) ने अपने समाचार पत्र के पन्नो में आधुनिक हिन्दी के मानक रूप को आकर देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. अब जो हिन्दी लिखी या पढ़ी जाती है उस पर कई प्रभावों के साथ-साथ पराड़कर-प्रभाव भी है.
पिछले लगभग दो सौ वर्षों में हिन्दी भाषा का जो आधुनिक स्वरूप विकसित हुआ है उसमें हिन्दी पत्रकारिता के महत्वपूर्ण योगदान को नकारा नहीं जा सकता. पराड़कर एक ऐसी लम्बी प्रक्रिया की मध्य-कड़ी थे जो 1826 में पहले हिन्दी समाचार पत्र उदन्त मार्तण्ड के प्रकाशन से आरम्भ हुई थी. उनसे पहले और उनके बाद भी हिन्दी के विकास और प्रसार में हिन्दी प्रेस के कई सिपाहियों ने अपनी भाषा को वर्तमान विश्व के लिए तैयार किया.
हिन्दी पत्रकारिता भी उसी समय में आकर ले रही थी जब अपने सदियों पुराने इतिहास से निकल कर हिन्दी उन्नीसवीं शताब्दी में खड़ी बोली को अपनी स्वतंत्र पहचान का जरिया बना रही थी.
आधुनिक हिन्दी और इस भाषा में की गयी पत्रकारिता के इतिहास में झांकना एक व्यापक और महत्वाकांक्षी कार्य है, यहां हम ऐसा प्रयास बिल्कुल नहीं करेंगे. हमारी कोशिश यहां बीते दो सौ वर्षों में हिन्दी की यात्रा पर हिन्दी पत्रकारिता के प्रभाव के कुछ महत्वपूर्ण पड़ावों को जानने तक सीमित रहेगी.
यह वो दो सौ साल हैं जिसमें हिन्दी को न केवल एक मानक रूप मिला बल्कि हिन्दी की सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, साहित्यिक और बौद्धिक भूमिका को भी एक स्थिर ज़मीन मिली.
उन्नीसवीं शताब्दी में जब प्रकाशन के क्षेत्र में मानक हिन्दी पैर जमाने की कोशिश कर रही थी तो बाबू भारतेन्दु हरिश्चंद (1850-1885) कविवचन सुधा और बाद में हरिश्चंद्र चन्द्रिका (1874) जैसी साहित्यिक पत्रिकाओं से उसे दिशा दे रहे थे. इस कार्य को और ज्यादा विस्तार देने का काम किया 1903 से साहित्यिक पत्रिका सरस्वती के सम्पादन द्वारा महावीर प्रसाद द्विवेदी (1864-1938) ने.
बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में सरस्वती हिन्दी की सबसे महत्वपूर्ण पत्रिका के रूप में स्थापित हुई. इस पत्रिका ने हिन्दी भाषा के व्याकरण और प्रयोग-नियमों को स्थायित्व प्रदान किया. फ़ारसी, उर्दू और अंग्रेजी के प्रशासनिक महत्व के बीच, और अवधि और ब्रज जैसी बोलियों और उपभाषाओं से अलग खड़ी बोली में अपना पहचान खोजती हिन्दी को ऐसी और भी साहित्यिक पत्रिकाओं में बल मिला.
लेकिन बीसवीं शताब्दी के पहले के तीन दशक हिन्दी में समाचार-पत्रकारिता के भी परिपक्व होने का समय था. इस प्रक्रिया में जहां पराड़कर और खाडिलकर के सम्पादकीय नेतृत्व में आज (1920 में स्थापित) ने हिन्दी को एक मानक भाषा देने में ऐतिहासिक भूमिका निभायी वहीं गणेश शंकर विद्यार्थी (1890-1931) द्वारा सम्पादित और कानपुर से छपने वाले प्रताप (1913 में स्थापित) ने हिन्दी को जनभाषा के रूप में स्थापित करने में योगदान दिया.
एक ओर जहां बहुभाषी भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिन्दी को भारतीय राष्ट्रवाद की अभिव्यक्ति की भाषा के रूप में देखा गया वहीं दूसरी ओर इसे उत्तरी, मध्य तथा पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों की जनभाषा के रूप में भी इसे विकसित करने के प्रयास दिखे.
स्वतंत्र भारत में हिन्दी को राजभाषा (राष्ट्र भाषा नहीं) के रूप में संवैधानिक मान्यता ने जहां इसके आधिकारिक और वैज्ञानिक शब्दावली को सुदृढ़ किया वहीं सत्तर दशक के मध्य में जयप्रकाश आंदोलन से उपजी पत्रकारिता शैली ने इसमें जनभाषा की तरह लिखे और पढ़े जाने की एक वैचारिक धारा फिर से प्रवाहित की.
आंदोलन की प्रेरणा के साथ-साथ इस पहल में स्थानीयकरण और हिन्दी प्रेस के विस्तार में बाजारतंत्र से जुड़े तर्क भी कारण बने थे. पिछली शताब्दी के अंतिम दशक में वैश्वीकरण और आर्थिक उदारवाद का प्रभाव न केवल हिन्दी पत्रकारिता की कार्य-संस्कृति पर पड़ा बल्कि हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं, टेलीविज़न चैनलों और वेबसाइट्स पर प्रयोग की जाने वाली हिन्दी पर भी स्पष्ट दिखा.
समकालीन हिन्दी का जो भी स्वरुप है उसकी आधुनिकता के तार अभी भी पिछले दो सौ सालों की हिन्दी पत्रकारिता से प्रभावित है. यह समकालीन प्रासंगिकता में एक भाषा की स्वयं को स्थापित करने की भी कहानी है जो हिन्दी पत्रकारिता और खड़ी बोली के विकास को रोचक बनाती है. आगे के दो भागों में हम इस सम्बन्ध के कुछ ऐतिहासिक पहलुओं को टटोलेंगे.
Also Read
-
Delhi AQI ‘fraud’: Water sprinklers cleaning the data, not the air?
-
Nominations cancelled, candidate ‘missing’: Cracks in Jan Suraaj strategy or BJP ‘pressure’?
-
The fight to keep Indian sports journalism alive
-
Haryana’s bulldozer bias: Years after SC Aravalli order, not a single govt building razed
-
दिल्ली में एक्यूआई फर्जीवाड़ा? मॉनिटरिंग स्टेशन के पास पानी के छिड़काव से प्रदूषण घटा या आंकड़े