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अलवर लिंचिंग: दो गांव, दो कहानियां, एक में दुख, दूसरे में गर्व

पिछले हफ़्ते शुक्रवार को लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्ष को जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘न्यू इंडिया’ की सोच ज़ाहिर की थी कि किस तरह से युवा उद्यमी हमें “इनोवेटिव इंडिया” की ओर ले जा रहे हैं. अभी संसद में उनका भाषण समाप्त हुए कुछ ही घंटे हुए थे कि वहां से करीब 150 किलोमीटर दूर, युवा और “इनोवेटिव” इंडिया अपना काम करने लगा था. एक ऐसे समाचार की ज़मीन तैयार कर रहा था जो एक बार फिर पूरे भारत में चर्चा के केंद्र में आ जाने वाला था. अकबर खान उर्फ़ रकबर खान, उम्र 28 साल, राजस्थान के लालवंडी गांव में गौरक्षकों द्वारा दबोच लिया गया था. याद रहे कि यह अलवर में पिछले दो सालों में भीड़ द्वारा गौरक्षा के नाम पर हत्या का तीसरा मामला है.

कहानी शुरू होती है पिछले साल अप्रैल में उन तस्वीरों के साथ जिसमें पहलू खान को बहरोर की गलियों में पीट जा रहा है. सैंकड़ों लोगों ने उसे घेर रखा है, कई लोग घटना को कैमरे पर रिकॉर्ड भी कर रहे थे, लेकिन बचाने के लिए कोई आगे नहीं आया. 20-21 जुलाई की रात को, पहलू खान की दहशत भरी हत्या और कथित तौर पर दुर्व्यवहार दोबारा रीप्ले अकबर के मामले में देखने को मिला.

इस प्रकरण की सबसे परेशान करने वाली बात, अलवर के रामगढ़ ब्लाक के लालवंडी गांव के लोगों की इस घटना पर प्रतिक्रिया थी. वहां पछतावे के कोई निशान तक नहीं हैं. हिंदुत्व का उन्माद यहां इंसानी करुणा और संवेदना को खत्म कर चुका है. गौरक्षा का स्वागत है. एक उदाहरण है, चैन सिंह, उम्र लगभग 20 साल और कक्षा 9 तक पढ़ा हुआ. बिना किसी खेद और पूर्ण आत्मविश्वास के साथ वो गौरक्षा को न्यायसंगत ठहराता है. उसने कहा, “गाय दिन में भी लेकर कोई जाए तो रोकते हैं. सरपंच के दस्तख़त का भी वैल्यू नहीं मानते हैं. कोई एसपी से लिखवाकर आए तो जाने देंगे इधर से.”

जब ये पूछा गया कि वे विशेषकर किसे रोकते हैं तो जवाब था- मुसलमानों को. लालवंडी के पांच से सात युवाओं के बीच बात चल रही थी कि क्यों सरपंच के हस्ताक्षर पर गायों को लाने-ले जाने वालों के लिए वैध पास या प्रमाण पत्र के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए. सिंह ने सबके ऊपर हावी होते हुए कहा, “क्या हमें नहीं पता कि मुसलमान गायों के साथ क्या करेंगे? वो ये कह सकते हैं कि वे गायों को दूध के लिए ले जा रहे हैं और हरियाणा पहुंचने के बाद, वे सभी बूचड़खाने भेज दी जाती हैं.”

इससे संक्षेप में समझा जा सकता है कि कैसे और क्यों इस क्षेत्र में “गौरक्षा” मुस्लिमों को आतंकित करती हैं. उन्होंने गर्व से न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि लालवंडी को इसके गौरक्षकों के लिए भी जाना जाता है.

ये महज बचपना नहीं है. यहां से एक किलोमीटर दूर, हमने सीधा रास्ता लिया, जो घटनास्थल तक जाता है, हम लालवंडी निवासियों के एक और समूह से मिले. मीडिया की गाड़ियों की आवाजाही गांव में बढ़ गई है, इसलिए हर कोई उत्सुक और सतर्क लग रहा है. इन युवा और अधेड़ उम्र को गांववासियों ने हमें बताया कि कैसे मवेशी तस्कर राजस्थान से गायों को खरीदते हैं या चोरी करते हैं और सीमा पार कराते हैं. हरियाणा के फिरोजपुर झिरका में, इन गायों को बूचड़खानों में भेजा जाता है. गांववालों का मानना है कि कैसे इस तरह पड़ोसी जिले के मेव मुसलमानों की शाम होती है.

“राजस्थान में, गायों के लिए सुरक्षा है क्योकि यहां कानून है, लेकिन हरियाणा में, चीजें सही नहीं हैं. इन गाय तस्करों के लिए हरियाणा एक सुरक्षित आश्रय है. वहां ये इन गायों को बूचड़खानों में भेजते हैं. यह अकबर भी गायों को फिरोजपुर झिरका ले जा रहा था,” धर्म प्रकाश ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया. ये 52 वर्षीय शिक्षक हैं जो गांव में एक उच्चतर प्राथमिक विद्यालय चलाते हैं.

गायों के खिलाफ मेव मुसलमानों द्वारा कथित ‘क्रूरता’ के किस्सों पर बोलते हुए, 36 वर्षीय कपूर चंद शर्मा ने हमें बताया कि कैसे अकबर जैसे लोग अमानवीय तरीक़े से गायों को हरियाणा ले जाते हैं. उन्होंने कहा, “एक इंडिका मे दो-दो गाय डालकर ले जाते हैं ये मेव (मुस्लिम). पता नहीं है आपको क्या?” गायों की इस चिंता के बीच गांव के किसी भी आदमी के भीतर इस बात का अफसोस नहीं था कि गौरक्षकों ने अकबर के साथ क्या किया.

धर्मेंद्र यादव के खेत में खान को एक हिंसक हिंदू भीड़ ने जमकर मारा था. रामगढ़ पुलिस से अपने आखिरी वक्तव्य में, खान ने अपनी आपबीती सुनाई और बाद में संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई.

महत्वपूर्ण बात यह है कि यादव, परमजीत सिंह और नरेश राजपूत इस मामले में गिरफ्तार तीन आरोपी हैं, और चौथा संदिग्ध विजय फरार है. सभी गांव के दो हिस्सों से ताल्लुक़ रखते हैं: छोटा और बड़ा लालवंडी.

गांव में कुछ सिख और मुस्लिम परिवारों सहित- मिश्रित आबादी है. यहां गौरक्षा स्वीकार्य शब्द है. जहां खान पर हमला किया गया था, वहां से लगभग 300 मीटर दूर गिरिराज यादव, 57, का घर है. वह खान की मौत पर पछतावा करता है, लेकिन गुस्सा इस बात पर है कि उनके गांव के युवाओं को “पुलिस की यातना का शिकार” बनाया जा रहा है.

हमें दूध पेश करते हुए, यादव ने आरोप लगाया कि पिछले 15 दिनों से अकबर और उसके सहयोगी रात में गायों को इस तरह से ले जा रहे थे. यही वह समय है जब गांव के कुछ लोगों को उनकी गतिविधि के बारे में पता चला. गजराज पलट कर सवाल करते हैं, “क्या कोई किसी मुस्लिम देश में इस प्रकार से सूअरों को लाने-ले जाने या मारने की कोशिश करेगा? फिर भारत में ऐसा क्यों है? यह हिन्दुओं की ज़मीन है, जहां गायों को देवताओं की तरह पूजा जाता है.”

इस बीच, गिरफ्तार आरोपी धर्मेंद्र यादव के पिता कैलाश यादव, जो एक किसान हैं, ने कहा कि उन्हें पता नहीं था कि उनका बेटा किसी गौरक्षा समूह का हिस्सा था. “कभी-कभी वह रात में देर से लौटता था, इसलिए हमने उसपे बहुत ज़्यादा ध्यान नहीं दिया.” जबकि उनका बड़ा बेटा दिल्ली पुलिस में है, धर्मेंद्र प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. उसके पिता ने कहा, “मुझे इस घटना और उसकी गिरफ्तारी के बारे में सुबह (जुलाई 21) पता चला.”

आरोपी धर्मेन्द्र यादव के पिता, कैलाश यादव

चूंकि हम लगभग रात 8 बजे लालवंडी गांव से निकल रहे थे, हमने देखा कि एक घर के बाहर बगीचे में 20-25 लोगों की बैठक चल रही थी. यह संवाददाता यह देखने के लिए वहां रुक गया कि वहां क्या हो रहा था. यह समूह लिंचिंग की घटना पर चर्चा कर रहा था. उनकी चर्चा का विषय था कि कैसे उनके लड़कों को एक हिंदू के रूप में अपने “कर्तव्यों” का निर्वहन करने के लिए निशाना बनाया जा रहा है.

52 वर्षीय एक शिक्षक इस समूह के केंद्र में कुर्सी पर बैठे थे, जबकि अन्य लोग जमीन पर. इस समूह में चौथे आरोपी विजय के चाचा भी शामिल थे. चूंकि विजय अभी भी फरार है, इसलिए उसके पिता और भाई को 21 जुलाई की सुबह पुलिस ने हिरासत में ले लिया था.

शिक्षक, धर्म प्रकाश, फोन पर किसी से बात कर रहे थे और अपने लड़कों के लिए संगठनात्मक समर्थन की बात कर रहे थे. जैसे ही उन्होंने फ़ोन रखा, मैंने पूछा कि क्या वे एक राजनीतिक दल से बचाव में सहयोग की उम्मीद कर रहे थे. इस पर प्रकाश ने कहा, “नहीं हमारी बात संगठन से चल रही है.” हालांकि उन्होंने इस संगठन के बारे में विस्तार से नहीं बताया लेकिन बातचीत के मजमून से यह स्पष्ट था की वह किसी भगवा संगठन के बारे में बात कर रहे थे.

महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रकाश रामगढ़ में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) गाय संरक्षण विंग के प्रमुख-नवल किशोर शर्मा, उर्फ मिश्रा का रिश्तेदार भी है. धर्मेंद्र और परमजीत ने ही उस रात शर्मा को लोगों द्वारा जब्त किए गए मवेशियों के बारे में सूचित करने के लिए फ़ोन किया था. प्रकाश ने कहा, “अगर हमारा अकबर को मारने का इरादा था, तो हम पुलिस को क्यों बुलाते? और कम से कम उस मामले में, हमारे बच्चों को शहीद कहा जाता जिन्होंने हिंदू धर्म के लिए सब कुछ त्याग दिया.”

इसके आगे की बातचीत काफ़ी परेशान करने वाली थी जब 50 की उम्र के एक व्यक्ति ने कुछ ऐसा कहा जो अल्पसंख्यक समुदाय के लिए, गहराई में बैठी हुई मोनोविकृति को प्रदर्शित करता है. “ये मादरचोद मेव हमारी गाय काटते हैं, हमारी हिन्दू लड़कियों से नाम बदलकर शादी भी करते हैं,” उसने कहा. “यही लोग आतंकवादी बनते हैं.”

शायद यही कारण है कि आसपास के गांव के मुसलमान गायों को लाना ले जाना पसंद नहीं करते. इतने ज़्यादा कि वे पशु चिकित्सा अस्पताल में अपनी गायों को ले जाने से डरते हैं, और निजी पशु चिकित्सकों को घर पर बुलाना पसंद करते हैं. आम इंसानी जीवन ख़तरे में है, क्योंकि स्वघोषित गौरक्षा समूहों ने कानून-लागू करने वाली संस्थाओं की जगह ले ली है.

मेवात में एक परिवार कर रहा है न्याय का इंतजार 

फिरोजपुर झिरका में प्रवेश करने से लगभग 10 किलोमीटर पहले, दिल्ली-अलवर राजमार्ग से एक संकरी सड़क कट जाती है जो आपको हरियाणा के दोहा गांव ले जाती है. यह चिकनी पक्की सड़क कुछ किलोमीटर के बाद समाप्त होती है. यहां बोर्ड पर “कोलगांव” लिखा है. यह अकबर खान का दुख भरा गांव है.

अकबर खान के गांव कोलगांव जाने का रास्ता

आख़िरी बार असमीना ने अपने पति खान से, शुक्रवार की शाम को जब वह गायों को खिला रही थीं, बात की थी.अगली सुबह, वह अपने जीवन की सबसे भयानक ख़बर के साथ जगी की खान गौरक्षा समूह द्वारा पीट- पीटकर मार दिया गया है.

उन्होंने कहा कि खान और उनके सहयोगी असलम राजस्थान में रामगढ़ ब्लॉक के एक गांव में गायों को खरीदने के लिए गए थे. “उन्होंने इन गायों को खरीदने के लिए मेरी मां से 50,000 रुपए उधार लिया था. मैंने उस रात उसे फ़ोन किया लेकिन नम्बर बंद था.”

27 वर्षीय महिला बार-बार बेहोश हो रही थी. यह एक प्रकार का चक्र बन गया था: कुछ टूटी फूटी बातचीत जिनमें पत्रकारों के साथ उनके घर, सिसकना, और खान और उसकी तस्वीर का एक विशिष्ट उल्लेख था, जो उन्हें बेहोश कर देता था.

उनके सात बच्चे-सहिला (12), शाइमा (10), साहिल (8), इकराना (7), इकरान (6), रेहान (4) और सबसे कम उम्र की मासीरा (2), सभी एक साथ उनकी चारपाई के अगल-बगल खड़े थे.

अकबर खान की पत्नी और सात बच्चे

उन्होंने कहा कि उन बच्चों के लिए ही अकबर खान ने दो और दुधारू गायों को लाने का फैसला किया था. “हमारे पास पहले से ही दो दुधारू गायें हैं, और तीसरी कुछ महीनों में दूध देना शुरू कर देगी. और हमारे पास दो बछड़े भी हैं. वह (अकबर) कहते थे कि अगर हम दो और गाएं ले लें, तो वे दूध बेचेंगे,” असमीना ने कहा. “कम से कम बचे पैसे से, हम अपने बच्चों की जरूरतों का ख्याल रख पाते.”

उनके घर में एक 15×10 फीट का कमरा है जिसमें कुछ मीटर का शेड है. जबकि उनके बड़े भाई हारून का परिवार सड़क पार दो कमरे के घर में रहता है. “वह मज़दूरी के रूप में रोजाना 200- 250 रुपए कमाता था.

33 वर्षीय हारून ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि यह एक बिस्वा (बीघे का 1/20) ज़मीन है. अकबर की वित्तीय स्थिति की तुलना में हारून बेहतर दिखाई देता है और एक जेसीबी मशीन चलाता है. खान की मां और पिता खेतों में रहते हैं और बकरियां चराते हैं ताकि वे अपने चिकित्सकीय खर्चों का प्रबंध स्वयं कर सकें, और अपने बच्चों पर बोझ न बनें.

पुलिस को दिसंबर 2014 में राजस्थान बोवाइन एनिमल एक्ट, 1995 के तहत अकबर खान के खिलाफ पंजीकृत एक पुरानी प्राथमिकी (एफआईआर) मिली है. हारून ने कहा कि कुछ ग़लतफ़हमी के कारण प्राथमिकी दर्ज की गई थी. खान की पत्नी भी दावा करती है कि उसके पति ने किसी भी संदिग्ध कार्य के लिए कभी घर नहीं छोड़ा था. विशेष रूप से, परिवार के अनुसार, खान दुधारू गायें लेकर आ रहा था. दोनों गायों को उस रात अलवर में जबरन जब्त कर लिया गया था जो अब सुधा सागर गौशाला में हैं. वहीं पुलिस और यहां तक की गौशाला की देखभाल करने वाले कपूर जैन ने दावा किया है कि दोनों ग़ैर दूधारू गायें थीं.

इसपर असमीना ने कहा, “हमारी गाय दूध की थी, एक महीने की बियाई हुई. अब वो कुछ भी बोल दें. जब उन्हें जान से मार दिया तो अब कुछ भी दिखा दें.”

उस रात क्या हुआ इसे लेकर सभी के पास अपनी अपनी कहानी है. यह भी इसलिए है क्योंकि घटना के एकमात्र चश्मदीद, असलम मीडिया से दूर हैं. खान के रिश्तेदारों ने कहा कि लालवंडी में गौरक्षकों ने हवा में गोलियां भी चलाई थी. असलम का बयान 22 जुलाई को फिरोजपुर झिरका में दर्ज किया गया था, जिसमें सामाजिक कार्यकर्ता रमजान चौधरी उनके साथ थे.

चौधरी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “असलम ने अपने बयान में कहा कि वे दो गायों के साथ लालवंडी पहुंचे, अचानक एक मोटरसाइकिल निकली. इसके परिणामस्वरूप गायें कपास के खेतों में भागने लगी. लगभग 5-7 लोग, जिन्होंने हवा में गोलीबारी की, उसकी ओर आए, और उस पर हमला करना शुरू कर दिया.” असलम भागने में कामयाब रहे, खान को निर्दयतापूर्वक मारा गया. खान के पोस्ट-मॉर्टम ने 13 चोटों और बाएं फेफड़े में 750 मिलीलीटर रक्त और छाती में जमाव की पुष्टि की है.

विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने उनके घर जाना शुरू कर दिया है, लेकिन दोनों राज्यों में सत्ताधारी दल, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का अभी तक पीड़ित परिवार से मिलना बाकी है.

इस बीच, ग्रामीणों और यहां तक कि खान के रिश्तेदारों ने कहा कि गौरक्षक राजस्थान के अलवर में पागलों की तरह चलते हैं क्योंकि बीजेपी के नेता उन्हें सुरक्षा दे रहे हैं. खान के साले, खुर्शीद ने बीजेपी के अलवर के विधायक के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए. उन्होंने कहा, “हमलावर कह रहे थे कि वे विधायक, ज्ञानदेव अहुजा को जानते हैं, और उनके साथ कुछ भी नहीं होगा. यह सब अपराधियों के राजनीतिक संरक्षण के कारण हो रहा है.”