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अविश्वास प्रस्ताव: भागीदार, कामगार और थोड़ी सी गांधीगिरी
मोदी सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का हश्र उम्मीद के मुताबिक ही हुआ. एनडीए के पक्ष में यानी अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में पड़े मतों की संख्या 325 रही. हालांकि यह आंकड़ा थोड़ा और बेहतर हो सकता था अगर एनडीए की सहयोगी शिवसेना पक्ष में वोट करती. पर उसने वोटिंग से अनुपस्थित रहने का फैसला किया. इस लिहाज है अमित शाह और अनंत कुमार का फ्लोर प्रबंधन थोड़ा कमजोर रहा.
सरकार को एआईडीएमके के तौर पर नया साथी मिल गया है. प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर मोदी के खिलाफ एकजुट होने का आरोप लगाया. लेकिन विपक्ष एकजुट नहीं था. यह अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में पड़े 126 मतों से सिद्ध होता है. कांग्रेस के साथ सिर्फ लेफ्ट, टीएमसी, टीडीपी, एनसीपी, एनसी और एसपी ने वोट किया है. इससे साफ होता है कि विपक्षी एकता के लिए कांग्रेस को अभी बहुत कोशिश करने की ज़रुरत है.
बीस साल में ये चौथा अविश्वास प्रस्ताव सरकार के खिलाफ आया है. जिसमें 1998 में बनी वाजपेयी सरकार एक वोट से हार गयी थी. दोबारा बनी वाजपेयी सरकार के खिलाफ भी अविश्वास प्रस्ताव लाया गया लेकिन दूसरी बार उन्हें कामयाबी मिली थी. 2008 में अमेरिका से न्यूक्लियर डील के मुद्दे पर लेफ्ट पार्टियों ने मनमोहन सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. तब विपक्ष ने संसद में सरकार को बहुमत सिद्ध करने का प्रस्ताव दिया था. उस शक्ति परीक्षण में यूपीए सरकार ने जीत दर्ज की थी. दस साल बाद आए टीडीपी के अविश्वास प्रस्ताव को कांग्रेस समेत कुछ विपक्षी दलों का साथ मिला. राहुल गांधी ने गांधीगिरी को अपना हथियार बनाया और कहा कि वो नफरत की राजनीति नहीं बल्कि प्यार की राजनीति कर रहे हैं.
राहुल ने किया 2019 का आगाज़
राहुल गांधी ने अपने लगभग 50 मिनट के भाषण की शुरुआत बेहद आक्रामक तरीके से की. उन्होंने 2019 के आम चुनाव की एक तरह से पूर्वकथा सामने रखी. राहुल ने उन सभी विवादित मुद्दों से परहेज़ किया, जिसका बीजेपी फायदा उठा सकती थी. मॉब लिंचिंग और हिंसा का मुद्दा उन्होंने उठाया तो उसे आंबेडकर के संविधान से जोड़ते हुए अपनी बात कही. जाहिर है उनके दिमाग में 2019 चल रहा था.
उन्होंने कहा, “जहां देखो किसी की हत्या हो रही है, किसी को पीटा जा रहा है, दबाया जा रहा है, जब भी किसी को कुचला जाता है तो सिर्फ उस व्यक्ति पर हमला नहीं है, बल्कि अंबेडकरजी के संविधान पर और संसद पर हमला होता है.”
राहुल गांधी इस तीखे हमले में आगे राफेल डील के ज़रिए बहुत प्रभावी तरीके से प्रधानमंत्री को घेरते हैं. जिससे सरकार के भीतर कसमसाहट साफ दिखाई दे रही थी. राहुल ने कहा कि प्रधानमंत्री उनसे आंख नहीं मिला पा रहें हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री के ऊपर चौकीदार की जगह भ्रष्टाचार का भागीदार होने का आरोप लगाया है.
प्रधानमंत्री ने दिया जवाब
प्रधानमंत्री ने विपक्ष के आरोप का भी बखूबी जवाब दिया है. लेकिन वो विश्वास चेहरे पर दिखाई नहीं पड़ रहा था जो आत्मविश्वास पहले दिखाई पड़ता था. प्रधानमंत्री ने राहुल गांधी को नामदार बताया और कहा कि वो कामदार है. इशारों ही इशारों में उन्होंने अपनी पिछड़ी जाति का भी इस्तेमाल किया. प्रधानमंत्री ने अपने आप को गरीब और पिछड़ी जाति का बताया. जाहिर है उनका मकसद पिढ़ते वोटों को साधना था.
विपक्ष की एकता पर प्रहार करते हुए उन्होंने चौधरी चरण सिंह, चंद्रशेखर, मोरारजी देसाई, एचडी देवगौड़ा से इन्द्र कुमार गुजराल और सरदार पटेल तक का उदाहरण दिया कि कांग्रेस के साथ रहने का कोई राजनीतिक फायदा नहीं है. ज़ाहिर है बीजेपी के लिए प्रधानमंत्री ने एजेंसी सेट कर दिया है. पार्टी के लिए लाइन भी तय कर दी है.
विपक्षी एकता में नो-ट्रस्ट
इस अविश्वास प्रस्ताव के ज़रिए विपक्षी एकता का भी टेस्ट होना था. और एकता का वह राग फिलहाल धराशायी हो गया है. बीजेपी के विरोध में खड़ी कुछ पार्टियां वॉक आउट कर गईं जिससे विपक्ष के वोटों की तादाद और कम हो गयी. तीसरे मोर्चे का राग अलापने वाली टीआरएस ने वॉक आउट किया. उसके 11 सदस्यों ने मत विभाजन में हिस्सा नहीं लिया. ओडिशा में बीजेपी से बीजेडी का सीधा राजनीतिक संघर्ष है. लेकिन बीजेडी ने भी अविश्वास प्रस्ताव का बहिष्कार किया.
बीजेडी संसदीय पार्टी के नेता भर्तृहरि महताब ने कहा कि इस चर्चा से ओडिशा को कोई फायदा नहीं होने वाला है. इसलिए वो वॉकआउट कर रहें हैं. इसी तरह बीजेपी का शिवसेना के साथ लंबे समय से मतभेद चल रहा है. लेकिन पार्टी ने सरकार का समर्थन तो नहीं किया लेकिन विपक्ष का भी साथ नहीं दिया.
जयललिता की मृत्यु के बाद एआईएडीएमके में नेतृत्व का अभाव है. वर्तमान नेतृत्व ने सरकार के साथ जाने में भलाई समझा. इस अविश्वास प्रस्ताव के दौरान विपक्ष एकता के टेस्ट में फेल हो गया है.कांग्रेस के लिए सबक है कि बिना होमवर्क के विपक्ष को एक साथ लाना आसान नहीं है. विपक्ष के अपने राजनीतिक मुद्दे हैं जिनको नज़रअंदाज़ करने का जोखिम कांग्रेस नहीं उठा सकती है.
मोदी अभी भी मज़बूत
बीजेपी के भीतर और बाहर अभी भी मोदी मज़बूत नज़र आ रहे हैं. सरकार के पक्ष में संख्या बल इसका सुबूत है. तमाम दावों के बाद सरकार के विरोध में छोटी पार्टियां जाने की हिमाकत नहीं कर पा रही हैं. बीजेपी के भीतर विरोध की बात हवाई साबित हुई है. प्रधानमंत्री ने विपक्ष का मज़ाक यह कहते हुए उड़ाया कि 2024 में फिर से अविश्वास प्रस्ताव लाना.
इसके बाद प्रधानमंत्री ने सिलसिलेवार सरकार की उपलब्धियां गिनाई. रोज़गार के मसले पर प्रधानमंत्री ने आंकड़ो के ज़रिए विपक्ष के सवाल का जवाब दिया. उन्होंने नब्बे मिनट के अपने भाषण में कांग्रेस के साथ जाने वालों का अंजाम बताया और विपक्षी दलों को आगाह भी किया है. सरकार की तरफ से मध्य प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष से बहस का जवाब दिलाया गया.
राकेश सिंह ने इन तीन राज्यों के चुनाव में बीजेपी की तरफ से पुरज़ोर तरीके से प्रचार का अभियान शुरु किया है. वहां की सरकारों के कामकाज का ब्योरा दिया है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में 15 साल से बीजेपी की सरकार है. राजस्थान में भी बीजेपी की 5 साल से सरकार चल रही है. इस साल ही इन तीन राज्यों में चुनाव है.
राहुल की गांधीगिरी
राहुल गांधी ने अपने भाषण के बाद प्रधानमंत्री को जाकर गले लगा लिया. जिसका सोशल मीडिया में मजाक भी उड़ाया जा रहा है. हालांकि इसको लेकर कांग्रेस नेताओं का तर्क है कि वो नफरत की राजनीति नहीं करते, लेकिन जब राहुल ने अपनी सीट पर आकर आंख मारी तब इस बात के कयास लगने लगे कि राहुल प्रधानमंत्री से गले अच्छी नीयत से मिले थे या उनकी मौज लेने की नीयत से. बीजेपी ने इसे बच्चों जैसी हरकत करार दिया.
एक और चमत्कार आम आदमी पार्टी का कांग्रेस के प्रस्ताव के समर्थन में आना रहा. दिल्ली में केजरीवाल से कांग्रेस का धुर विरोध खुली बात है. इस लिहाज से राहुल को आप का समर्थन मिलना फिलहाल कामयाबी लग रही है.
प्रधानमंत्री से गले मिलकर अविश्वास प्रस्ताव की महफिल में छा गए राहुल गांधी के लिए बशीर बद्र का एक शेर है:
कोई हाथ भी ना मिलाएगा,
जो गले लगोगे तपाक से.
नए मिज़ाज का शहर है,
ज़रा फासले से मिला करो.
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