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जियो इंस्टिट्युट के बहाने क्या ‘अजन्मे का ऋण’ चुका रहे हैं नरेन्द्र मोदी?
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने 2 सितम्बर 2017 को इंस्टिट्युट ऑफ एमिनेंस के लिए प्रपोजल माँगा था. इसके अंतर्गत देश के 20 चुने हुए संस्थानों, 10 पब्लिक और 10 प्राइवेट संस्थानों को 5 वर्ष तक 200 करोड़ प्रति वर्ष की राशि आवंटित की जानी थी. इसका उद्देश्य अधिक अकादमिक, वित्तीय, प्रशासनिक और अन्य नियामक स्वायत्तता प्रदान करना था, जिससे कि ये संस्थान दुनिया के अग्रणी संस्थानों की सूची में अपनी जगह बना सकें. इसके चयन के लिए एक समिति बनाई गई थी जिसे इन संस्थानों का चुनाव करना था. समिति का प्रमुख पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालास्वामी को नियुक्त किया गया था तथा इसमें कुल चार सदस्य थे.
इस बीच खबरें आ रही थीं कि इन्हें ऐसे संस्थान मिलने मुश्किल हो रहे हैं जिसे इंस्टिट्युट ऑफ एमिनेंस का दर्जा दिया जा सके. सोमवार को मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ट्विटर पर 6 संस्थानों की सूची जारी की जिन्हें इंस्टिट्युट ऑफ एमिनेंस के लिए चुना गया है. इसमें 3 पब्लिक तथा 3 प्राइवेट संस्थानों के नाम हैं. पब्लिक संस्थानों में आईआईटी बॉम्बे, आईआईटी दिल्ली और आईआईएससी बंगलुरु का नाम है तथा प्राइवेट संस्थानों में मनिपाल इंस्टिट्युट, बिट्स पिलानी इंस्टिट्युट तथा रिलायंस फाउंडेशन के जियो इंस्टिट्युट का नाम है.
यहाँ सबसे विवादस्पद यह है कि जिस जियो इंस्टिट्युट को इंस्टिट्युट ऑफ एमिनेंस के लिए चुना गया है वह अस्तित्व में ही नहीं है. गूगल पर सर्च करने पर ऐसा कोई संस्थान नहीं मिलता. काफी सर्च करने पर द हिंदू का एक आर्टिकल मिला जिसमें रिलायंस फाउंडेशन द्वारा वर्ल्ड क्लास यूनिवर्सिटी खोलने की बात कही गयी है.
हमें एक और सर्च रिजल्ट मिला जिसमें जियो इंस्टिट्युट लिखा मिला पर देखने पर यह जॉब सर्च की वेबसाइट लग रही थी न कि एक शिक्षण संस्थान की. मतलब इस संस्थान की न कोई वेबसाइट मिली न ही कोई सोशल मीडिया अकाउंट. ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या ये सब ऐसे ही हो गया या इसके पीछे कोई खेल चल रहा है.
ट्विटर पर जावड़ेकर से सवालों की बौछार लगी हुई है पर इसका कोई जवाब अब तक नहीं मिला है सिवाय अनुदान के सवाल को लेकर. इस बीच आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं कि आखिर मुकेश अम्बानी के प्रोजेक्ट जियो इंस्टिट्यूट को सरकार बाकी चुने हुए संस्थानों की तर्ज पर पैसा क्यों देगी. इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार परन्जॉय गुहा ठाकुरता ने एक ट्वीट कर के स्थिति स्पष्ट की है.
जो संस्थान अभी खुला भी नहीं हो उसे इंस्टिट्यूट ऑफ़ एमिनेंस का दर्जा देने के बारे में सरकार कि दलील है कि इसे ग्रीन फ़ील्ड्स संस्थानों कि श्रेणी में शामिल किया गया है. इस श्रेणी में सरकार के मुताबिक़ कुल 11 संस्थानों ने आवेदन किया था लेकिन फंडिंग और तमाम स्थितियों के मद्देनज़र जियो को चुना गया है. सवाल उठता है कि तमाम आदर्श पूर्व स्थितियों के रहते हुए भी क्या अजन्मे के होनहार निकलने की कोई गारंटी दी जा सकती है? कहीं यह अजन्मे का ऋण चुकाने जैसा कोई मामला तो नहीं?
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