Newslaundry Hindi
असम पार्ट 3: महिला और मुस्लिम योग के लिए दुर्योग बना एनआरसी
बरपेटा ज़िले के गांव जयपुर में कुलसन निसां के घर सात साल पहले तक खूब चहल कदमी रहा करती थी. घर में चार बेटे और पति मिलाकर पांच कमाऊ लोग थे. दस हाथों की कमाई से बरकत बरस रही थी. लेकिन अचानक से इस घर की आबोहवा बदल गई. इन दिनों घर में एक अनकहा सन्नाटा रहता है, चुप्पी और मातम का माहौल भारी पड़ता है.
भारतीय नागरिकता साबित न कर पाने की वजह से सात साल से कुलसन निसां असम के कोकराझार ज़िले की महिला जेल में बंद है. दो साल पहले इस ग़म में उनके पति की मौत हो गई. कुलसन निसां के बेटों के पास अदालती कार्यवाही के लिए भी पैसे नहीं है. उन्होंने अपने आंगन की मिट्टी बेचकर जिस वकील को केस लड़ने के लिए चुना वो अब तक डेढ़ लाख रुपए मेहनताना ले चुका है, लेकिन कुलसन निसां की रिहाई की कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही है.
उनके बेटे सर्वेश अली बताते हैं, “मेरी मां पिछले 27 साल से वोट दे रही थीं, उनकी गिरफ्तारी से नौ महीने पहले उनके नाम डी वोटर होने का नोटिस आया था. हम लोग हाउली पुलिस स्टेशन हाजिरी देने गए तो मां को पुलिस वालों ने साथ नहीं आने दिया.” कुलसन निसां के दूसरे बेटे दर्वेश अली के अनुसार कानूनन कहता है कि कुलसन निसां के अलावा घर में सभी सदस्य भारतीय नागरिक हैं.
कुलसन निसां की तरह असम में बांग्ला भाषी मुस्लिम और हिंदू महिलाओं के लिए भारतीय नागरिकता साबित करना जी का जंजाल बनता जा रहा है. असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को अपटेड करने की प्रक्रिया ने औरतों को आतंकित कर दिया है. क्योंकि औरतों के पास या तो पूरे दस्तावेज नहीं हैं या उनमें नाम और गांव के नाम बदले हुए हैं.
इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में ले जाने वाली जमियत उलमा ए हिंद के सदर अरशद मदनी कहते है, “असम में हमने देखा कि औरतों की कम उम्र में शादी कर दी जाती है, बहुत कम लड़कियां हैं जो स्कूल-कॉलेज जाती हैं. इसलिए उनके पास वे सर्टिफिकेट भी नहीं हैं जिनकी मांग एनआरसी द्वारा की जा रही है. शादी के बाद उनके गांव का नाम और उनका अपना नाम भी बदल जाता है. यहां तक कि उन्हें यह तक नहीं पता है कि किस ऑफिस में, किस अधिकारी को क्या बोलना है, कहां क्या साइन करना हैं.”
व्यापक अशिक्षा और कम जानकारी के कारण असम में भारतीय नागरिकता साबित करने की जद्दोजहद कर रही महिलाओं की स्थिति बाकियों से कहीं ज्यादा संवेदनशीन और चिंताजनक है.
शादी के बाद या किसी अन्य वजह से जो महिलाएं दूसरे गांव या इलाके में चली गईं हैं उनके लीगेसी लिंकेज दस्तावेज़ को भयावह समस्या खड़ी हो गई है. शादी के बाद उनके नाम भी बदल गए. पति का उपनाम साथ में जुड़ गया. इस समस्या के मद्देनज़र एनआरसी ने भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए जारी दस्तावेजों की सूची में पंचायत प्रमाणपत्र को भी मान्यता दे दी थी लेकिन गुवाहाटी हाईकोर्ट ने इसे वैध दस्तावेज मानने से इंकार कर दिया था.
बात में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए पंचायतों द्वारा जारी प्रमाणपत्र को नागरिकता लिए वैध सहायक दस्तावेज मानने का फैसला सुनाया. हालांकि कोर्ट ने पंचायत प्रमाणपत्रों की वेरिफिकेशन करने के लिए आदेश दिए हैं. एनआरसी में नाम दर्ज कराने के लिए 3.20 करोड़ के लोगों में 48 लाख नागरिक ग्राम पंचायत सचिव के प्रमाण पत्र के आधार पर दावा कर रहे हैं जिनमें अधिकतर औरतें ही हैं. असम में एनआरसी दस्तावेजों की वजह से परेशान इन लोगों के बीच काम कर रहे मानवाधिकार कार्यकर्ता सैय्यद अज़हरुद्दीन का कहना है कि दिक्कत यह है कि फॉरनर्स ट्रिब्यूनल के कुछ अधिकारी पंचायत द्वारा जारी सर्टिफिकेट ले रहे हैं कुछ अधिकारी उसे नहीं ले रहे.
इन मसलों में उलझ कर औरतों के लिए एनआरसी जीने-मरने का सवाल बन गया है. असम के तेजपुर कस्बे की रहने वाली 30 वर्षीय बिमला खातून को एनआरसी से नोटिस मिला. केस चलने पर वह अपने आपको भारतीय नागरिक साबित नहीं कर पाईं. विदेशी बताकर उन्हें तेजपुर सेंट्रल जेल में डाल दिया गया. बिमला खातून जब जेल में थी तभी उनके पति की मौत हो गई. उनके तीन बेटे और एक बेटी है. एक बहुत छोटा बच्चा बिमला खातून के साथ जेल में ही रहता है. पति की मौत के बाद बिमला खातून के बच्चे अपने ताया के पास रहने के लिए आ गए लेकिन हाल ही में उनकी भी मौत हो गई है. अब यह बच्चे अपने नाना-नानी के पास रहते हैं.
सैय्यद अज़हरुद्दीन के अनुसार यह लोग इतने गरीब है कि न तो यह बच्चे पढ़ते हैं न ठीक से खाना खाते हैं.
बरपेटा ज़िले के गांव रायपुर की ही उन्नति बेग़म भी दो साल से कोकराझार जेल में है. उनके पूरे परिवार को भारतीय नागरिकता मिल गई है लेकिन उन्हें विदेशी बताया गया. उन्नति बेग़म के भतीजे अब्दुल जुब्बार अली ने बताया कि मेरी मौसी की पीठ में ट्यूमर हो गया है. जेल में उन्हें इलाज नहीं मिल पा रहा है. कोकराझार डिटेंशन कैंप में बहुत भीड़ है. उनके दो छोटे-छोटे बच्चे अपने दादा-दादी के पास हैं. उन्नति बेगम को भी किसी काम से पुलिस स्टेशन बुलाया गया था जहां उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
असम के गोआलपाड़ा ज़िले के गांव चिरैली कृष्णैयी की रश्मिनारा का मामला महिलाओं के खिलाफ इस प्रक्रिया की पोल खोलता है. गिरफ्तारी के वक़्त रश्मिनारा प्रेगनेंट थीं. उनके तीन बेटियां भी थीं जिन्हें छोड़कर उन्हें जेल जाना पड़ा.
वह बताती है कि उसे कोकराझार जेल ले जाया गया. प्रेगनेंसी की वजह से उन्हें बहुत दर्द होता था. तबीयत खराब रहती थी. जेल में खाने के लिए बहुत भी बहुत गंदा खाना मिलता था.
रश्मिनारा के अनुसार कोकराझार जेल में कुल 136 महिला कैदी थी. उन्हें रात में सोने के लिए मुश्किल से जगह मिल पाती थी. वह बताती हैं कि जेल में शुरूआती दिनों में तो किसी ने उन पर ध्यान ही नहीं दिया. प्रेगनेंसी के छह महीने बाद कुछ–कुछ ध्यान देना शुरू किया. लेकिन फिर भी उन्हें वक़्त पर डॉक्टर नहीं मिलता था. महिला विशेषज्ञ की बजाय सामान्य एमबीबीएस डॉक्टर रश्मिनारा का चेकअप किया करती थीं. रश्मिनारा की चौथी बेटी जेल में ही पैदा हुई थी.
रश्मिनारा को वर्ष 2005 में डी वोटर की कैटेगिरी में डाल दिया गया था. वर्ष 2017 में उन्हें फॉरनर्स ट्रिब्यूनल ने विदेशी घोषित कर दिया. इन्होंने एनआरसी में अपने मायके वाले गांव की पंचायत से लिया सर्टिफिकेट भी जमा किया. रश्मिनारा के साथ दिक्कत यह हुई कि इन्होंने अपने असली प्रमाणपत्र भी जमा कर दिए थे. इनके दादा हाजी रौश महमूद फ्रीडम फाइटर थे. वर्ष 1913 से इनका परिवार यहां रह रहा है.
रश्मिनारा के मुताबिक उन्होंने एक-एक दस्तावेज जमा किया था लेकिन एनआरसी के अनुसार उनका हाई स्कूल और प्राइमरी स्कूल के बीच उम्र का जितना फासला होना चाहिए उतना नहीं था. इसी को आधार बनाते हुए रश्मिनारा को विदेशी बताकर डिटेंशन कैंप में डाल दिया गया. अभी वह बेल पर जेल से बाहर हैं. उनका मामला अदालत में है. एनआरसी की फाइलन लिस्ट से ही पता लग पाएगा कि कितनी महिलाओं का नाम एनआरसी से बाहर कर दिया गया है. लेकिन असलियत यह है कि महिलाएं बुरी तरह से प्रताड़ित हो रही हैं.
असम में छह ज़िलों में छह डिटेंशन सेंटर हैं. हालांकि महिलाओं के लिए ज़िला कोकराझार में डिटेंशन सेंटर है, लेकिन भीड़ होने की वजह से सभी डिटेंशन सेंटर में महिलाएं हैं. 26 मार्च, 2018 को असम विधानसभा में पूछे गए एक सवाल के जबाव के मुताबिक असम के इन छह डिटेंशन सेंटर्स में विदेशी महिलाओं की संख्या इस प्रकार है. गोआलपाड़ा- 253, कोकराझार- 160, सिलचर- 91, जोरहाट- 120, डिब्रूगढ़- 48 और तेजपुर- 279.
Also Read
-
No FIR despite complaints: Muslim families say forced to leave Pune village amid ‘boycott, threats’
-
Why are tribal students dropping out after primary school?
-
Let Me Explain: CBFC or censorship bureau? Who’s deciding what India can watch
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
At least 300 end-of-life vehicles in Delhi Police fleet, RTI suggests