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रोहिंग्या शरणार्थियों के बीच जम्मू कश्मीर का देवदूत

जम्मू के रहने वाले जीवनज्योत सिंह, 27 वर्षीय मेकैनिकल इंजीनियर हैं. वह एक क्रंस्ट्रक्शन कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर हैं. उनके मुस्कुराते चेहरे के पीछे एक जुझारू कार्यकर्ता छिपा है. वह हादसों और आपदाओं से पीड़ित लोगों की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं. जब कभी भी मानवीय सहायता की दरकार होती है, सिंह वहां मौजूद रहते हैं. वह अपने काम से छुट्टी लेकर अपने गृह प्रदेश से दूर लोगों की मदद करने पहुंच जाते हैं.
हाल ही में सिंह बांग्लादेश शरणार्थी कैंप में दो सप्ताह की सेवा देकर लौटे हैं. दूसरे कार्यकर्ताओं के साथ, उन्होंने सैकड़ों रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए खाना बनाया और बांटा. सिंह खालसा ऐड इंटरनेशनल के साथ यह सेवा दे रहे थे. खालसा ऐड इंटरनेशनल एक गैर सरकारी अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो दुनिया भर के आपदा और युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में लोगों की सहायता करता है. खालसा समूह युद्ध प्रभावित सीरिया में भी प्रभावित लोगों को मदद पहुंचाता रहता है.

सिंह जम्मू और कश्मीर से शायद इकलौते युवा हैं जो बतौर कार्यकर्ता दो बार बांग्लादेश की यात्रा कर चुके हैं. वहां रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए बनाये गए राहत शिविरों में काम किया है. पिछले साल सितंबर में वह पहली बार खालसा ऐड ग्रुप के साथ बतौर कार्यकर्ता बांग्लादेश गए थे. बाद में ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड से कुछ और भी कार्यकर्ता राहत कार्य के लिए पहुंचे थे.

खालसा ऐड कैंप के सदस्य के नाते उन्हें बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाकों में लगाए गए शरणार्थी शिविरों में रोहिंग्या शरणार्थियों के खानपान का ख्याल रखने की जिम्मेदारी दी गई. वह अपने दोनों दौरों पर कई-कई हफ्तों तक ये काम करते रहे.

“जब पिछले साल मैं बांग्लादेश गया था, हमने सीमा के करीब ही राहत शिविर लगाया था. वहीं हर रोज़ 15,000 से 25,000 रोहिंग्या शरणार्थियों का खाना बनाना शुरू किया. वहां लोग भूखे थे और वे बहुत दूर-दूर से पैदल चलकर बांग्लादेश की सीमा तक पहुंचे थे,” सिंह बताते हैं जो पिछले दो साल से खालसा ऐड के साथ जुड़े हैं. “अपनी ओर से जो भी थोड़ा कर पाया, उससे खुशी मिली. यह मलाल नहीं है कि दूर से उन्हें भुगतते देखकर कुछ न कर सके.”

सिंह को वो पहला दिन याद है जिस दिन वह पहली बार बांग्लादेश में बसे शरणार्थी कैंपों में पहुंचे थे. वे लोग डरे हुए थे, भूखे थे और बिल्कुल टूटे हुए थे. “उन्होंने कई दिनों से खाना नहीं खाया था. हमने तुरंत वहां एक अस्थायी फूड कैंप बनाया और लोगों के खाने का तत्काल इंतजाम किया गया,” सिंह कहते हैं. उन्होंने बताया कि शरणार्थी कैंपों के लिए खाना बनाने का सिलसिला इस वर्ष जनवरी तक चला.

खालसा ऐड के साथी हर रोज तकरीबन 20,000 शरणार्थियों के लिए खाना बनाया करते थे, उन्होंने कहा. “पिछले साल हमने एक सर्वेक्षण किया कि शरणार्थियों को किन तरह के पोषक तत्वों की जरूरत है. उसके बाद हमने उन्हें 16 ज़रूरी पोषक खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराए. यह उन्हें हर महीने दिया जाता है,” सिंह ने बताया.

पिछले महीने सिंह फिर से बांग्लादेश गए. वहां खालसा ऐड के साथियों के साथ कॉक्सेस बाज़ार के पास स्थित कुथ्थु पलांग शरणार्थी कैंपों में सेवा दी. खालसा ऐड के साथ मिलकर उन्होंने शरणार्थियों को खाना वितरण करने का जिम्मा संभाला. “हमलोग मॉनसून के मद्देनज़र सहायता प्रोजेक्ट का विस्तार करना चाह रहे हैं. समुदायिक भवन बनाने और शरणार्थियों की दूसरी समस्याओं को भी दूर करने की कोशिश है,” वह कहते हैं.

हालांकि बांग्लादेश में कई सहायता समूह रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए काम कर रहे हैं लेकिन सिंह खालसा और बाकियों में फर्क देखते हैं. वह कहते हैं कि, लोगों के खाने की पौष्टिकता और खासकर छोटे बच्चों के खाने में जो जरूरी तत्व होने चाहिए, उसकी भरपाई करने में खालसा और बाकियों में बड़ा फर्क है. “अब हमारा ध्यान रोहिंग्या परिवारों को मिल रहे खाने की पौष्टिकता सुनिश्चित करने पर है. यह कैंप में कुपोषित बच्चों के लिहाज से बहुत जरूरी है,” सिंह ने कहा. “हमने फिलहाल के लिए 1000 परिवारों के पोषक तत्वों का जिम्मा ले लिया है जिसे हर महीने पूरा किया जा रहा है.”

सेवा का यह भाव सिंह के परिवार में शुरू से है. सिंह अपने चचेरे भाई गगनदीप सिंह से खासा प्रभावित हैं जिन्होंने खालसा ऐड के साथ जुड़कर नेपाल में भीषण भूंकप के बाद भी सहायता दी थी.

पिछले साल, जीवनज्योत ने ऑफिस से दूसरी छुट्टी ली थी और खालसा ऐड के साथ रजौरी जिले के नौशेरा क्षेत्र में मदद देने पहुंचे थे. यह क्षेत्र क्रॉस-बॉर्डर गोलीबारी से प्रभावित था. दूसरे कार्यकर्ताओं के साथ उन्होंने सीमावर्ती क्षेत्र में ही सीमा के आर पार हो रही गोलीबारी से प्रभावित करीब 5,000 विस्थापितों के लिए खाना बनाया था. वह वहां दो सप्ताह तक रहें और सहायता टीम के साथ संपर्क में रहे ताकि विस्थापित परिवारों को राहत मिल सके.


सिंह बताते हैं कि खालसा ऐ़ड इंटरनेशनल के सीईओ रवि सिंह उनके प्रेरणास्त्रोत हैं. यह गैर सरकारी संगठन 1999 में स्थापित किया गया था.
“मैं खालसा ऐड के मैनेजिंग डायरेक्टर (एशिया पैसिफिक) अमरप्रीत सिंह से भी प्रभावित हूं. वह एक कॉमर्शियल पायलट थे लेकिन खालसा ऐड के सहायता कार्यों से जुड़ने के लिए उन्होंने अपना पेशा छोड़ दिया. अभी वह खालसा के कई राहत कार्यों से जुड़े हैं, जो देश के अलग-अलग राज्यों सहित बांग्लादेश और श्रीलंका के शरणार्थियों के लिए चलाए जा रहे हैं,” उन्होंने कहा.

सिंह चाहते हैं कि जम्मू और कश्मीर के और भी नौजवान सहायता कार्यों से जुड़ें. उनके अनुसार, संकट से जूझ रहे लोगों के दर्द बांटने और उनके दुख कम करने की कोशिश करने से बेहतर दुनिया का कोई अन्य काम नहीं है. दुनिया द्वारा पैदा किए गए संकट और युद्ध से पीड़ित लोगों के लिए युवाओं को अपनी धार्मिक मान्यताओं से इतर मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए आगे आना चाहिए. उन्हें सरकारी मदद के इंतज़ार से पहले खुद को सहायता कार्यों में लगाना चाहिए, वह कहते हैं.

वह मानते हैं कि संकट के समय एक-दूसरे की सहायता कर के हम दुनिया को बेहतर बना सकते हैं. “हमें बिना किसी जाति और धर्म में फंसे संपूर्ण मानवता के लिए काम करना है.”