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बनारस के चौकघाट-लहरतारा पुल में धंसी जानें, 18 मौतों की पुष्टि

वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन के सिगरा थाना क्षेत्र में अक्सर भीड़भाड़ होती है. चूंकि यहां से मुगलसराय तक जाने के लिए ऑटो मिलता है, इसलिए भी भीड़ होती है. मंगलवार शाम के करीब पौने छह बजे यहां धमाके जैसे आवाज हुई. हमने देखा कि लहरतारा पुल के करीब बन रहे चौकाघाट फ्लाईओवर का एक बड़ा हिस्सा गिर गया है. पुल गिरने से अफरातफरी मच गई.

कई गाड़ियां इस मलबे में दब गईं थी. फ्लाईओवर निर्माण में लगे मजदूर भी इसके चपेट में आ गए. दुकानें बंद कर दी गई और सड़क पर मौजूद लोग फ्लाईओवर की तरफ भागे. हमने देखा रोडवेज की एक बस जो पुल के नीचे दब गई थी, उसका चालक फंसा हुआ था. उसका पैर सीट से दब गया था. परखच्चे उड़े इस बस की दाईं तरफ से खून टपक रहा था. हमें दो जन चीखते जान पड़े. वे बुरी तरह से फंसे थे. स्थानीय लोगों ने उन्हें निकालने की बहुत कोशिश की, पर पुल के भार की वजह से उन्हें निकाला नहीं जा सका.

सिगरा थाना को हादसे की सूचना फौरन दी गई थी. कई पीड़ित परिवारों के परिजन भाग-भगा कर उनतक पहुंच रहे थे. सिगरा थाने ने मदद में असमर्थता जाहिर करते हुए कहा कि उन्होंने कंट्रोल रूम और डीएम को सूचित कर दिया है. “पुलिस के अधिकारी ने हमें बताया कि जितना हो सकेगा, करने की कोशिश करेंगे. हमारे पास अभी मौके पर न क्रेन उपलब्ध है, न ही उतने लोग है,” 20 वर्षीय देबाशीष ने बताया. देबाशीष उन शुरुआती लोगों में से थे जो हादसे के बाद सबसे पहले मदद के लिए पहुंचे थे. एल-वन कोचिंग के छात्र देबाशीष मुगलसराय के लिए ऑटो लेने आए थे. उनकी मित्र सोनल (20) ऑटो से कैंट स्टेशन आ रही थीं. उनकी इस हादसे में दुखद मौत हो गई.

देबाशीष के जैसे ही कई और लोग हैं जिन्हें लगता है कि अगर मदद समय रहते पहुंचती तो कई लोगों की जान बचाई जा सकती थी. घटना के तकरीबन एक घंटे बाद पुलिस आई और शाम  7:15 से प्रशासन और एनडीआरएफ की टीम ने लोगों को निकालने का प्रयास शुरू किया. इस समय तक घटनास्थल पर सिर्फ दो ही एम्बुलेंस थे.

घायलों को बीएचयू ट्रॉमा सेंटर और रेलवे मंडलीय अस्पताल ले जाया गया. तकरीबन 8 बजे पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने मीडिया को सिर्फ इतना ही कहा कि, “प्रशासन को अपना काम करने दें. यह पुल शटरिंग के दौरान लगाए जा रहे पिलर की वजह से ढहा है. हम अपने तरफ से हर संभव कोशिश कर रहे हैं.” निर्माणाधीन पुल के नीचे वाहनों की आवाजाही का आदेश किसने दिया था, इस सवाल का जबाव पुलिस महानिदेशक ने जबाव नहीं दिया.

स्थानीय लोगों की भूमिका

प्रशासन को स्थानीय लोगों की तत्परता का शुक्रगुज़ार होना चाहिए. फ्लाईओवर गिरने के तुरंत बाद से ही लोग अपनी ओर से हर संभव मदद में लग गए थे. पहले एक घंटे कुछ लाश मलबों के भीतर से या मलबे के भीतर धंसी हुई गाड़ियों को काटकर स्थानीय लोगों ने ही निकाला. न सिर्फ निकाला बल्कि उन्हें मंडलीय अस्पताल में भर्ती भी करवाया. यातायात का नियंत्रण भी स्थानीय लोग ही कर रहे थे.

मालूम हो कि चौकाघाट पुल के विस्तार का काम करीब छह महीने से अधिक से चल रहा था. पुल का जो निर्माणाधीन हिस्सा गिरा है वह वाराणसी कैंट और लहरतारा के बीच का हिस्सा है. इसी फ्लाईओवर की सर्विस लेन से बनारस- इलाहाबाद, मिर्जापुर, सोनभद्र आदि जुड़ते हैं. जिस वक्त यह हादसा हुआ, वहां काफी ट्रैफिक था जो धीमी रफ्तार से चल रहा था.

कैंट और लहतारा के बीच यातायत बाधित होने से पूरे इलाके में लंबा जाम लग गया. इसकी वजह से भी बचाव और राहत में काफी दिक्कतें आईं. भीड़ को हटाने के लिए करीब 9 बजे पुलिस को हल्का लाठीचार्ज भी करना पड़ा.

बीएचयू ट्रॉमा सेंटर का हाल

ट्रॉमा सेंटर के परिसर में रात ग्यारह बजे भी लोगों की आवाजाही लगी हुई थी. परिसर में तीन लाशें पड़ी थीं जिनमें से दो फ्लाईओवर हादसे में मारे गए लोगों की थीं. संतोष कुमार उर्फ बिट्टू, 37, पुल के नीचे अपनी बाइक से गुजर रहे थे. वह हादसे में चल बसे.

संतोष का सात साल का बेटा अपने पिता के मृत शरीर से लिपटकर रो रहा है. यह बेहद करुणा भरा दृश्य है. संतोष के बड़े भाई मंटू ने हमें बताया कि संतोष अपने भतीजे के जन्मदिन का केक लेने जा रहे थे. हमें सात बजे घटना की सूचना मिली. हमें मधुरेश नाम के व्यक्ति का फोन आया कि संतोष पुल हादसे में घायल हो गए हैं.

बीएचयू के छात्र बड़ी संख्या में यहां मदद के लिए पहुंचे थे. कई छात्रों ने खून दिया और शहर भर में लोगों से खून देने की अपील भी कर रहे हैं. बीएचयू ज्वाइंट एक्शन कमिटी के छात्र अंकेश ने कहा, “हमलोग रात भर यहां रहेंगे, जिन्हें भी खून की जरूरत पड़ेगी हम मुहैया कराएंगें. हमलोग ब्लड बैंक के अधिकारियों के संपर्क में हैं.”

प्रशासन और सरकार की लिपापोती चालू

उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम के वरिष्ठ अधिकारी केआर सूदन ने हमें फोन पर बताया कि “चौकाघाट पुल का निर्माण अक्टूबर तक पूरा किया जाना था. पुल का जो हिस्सा गिरा है वह पिछले दो महीने से बनाया जा रहा था. हमलोग इसका लगातार इंस्पेक्शन भी कर रहे थे. पर हादसा हुआ है तो इसकी जांच कराई जाएगी.”

देर रात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटनास्थल और कबीर चौरा अस्पताल का दौरा किया है. सेतु निगम के चार अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया गया है. इसमें चीफ प्रोजेक्ट मैनेजर एचसी तिवारी, प्रोजेक्ट मैनेजर केआर सूदन, सहायक अभियंता राजेश सिंह और अवर अभियंता लालचंद शामिल हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल कर्नाटक चुनाव में मिली बाजपा को सफलता के जश्न के मौके पर इस घटना का जिक्र कर मृतकों के प्रति अपनी संवेदना जताई. इसके अलावा उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी घटना पर अफसोस जताते हुए अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को बचाव कार्य में सहयोग करने के लिए कहा है.

बीएचयू के सर सुंदरलाल हॉस्पिटल के एक वरिष्ठ चिकित्सक ने नाम न उजागर करने की शर्त पर हमें बताया, “तकरीबन 15-18 ऐसे केस हैं, जो क्रिटिकल हैं.” इसका एक अर्थ यह भी हो सकता है कि मृतकों का आंकड़ा अभी बढ़ सकता है.

ब्रिज कॉरपोरेशन के सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि पुल की गुणवत्ता को लेकर स्थानीय लोगों ने कॉरपोरेशन और मुख्यमंत्री को पूर्व में पत्र लिखा था. साथ ही लोगों ने पुल निर्माण में नियमों की अनदेखी पर भी सवाल उठाए थे. “इसी पुल के निर्माण में पिछले दो महीने में तीन मजदूरों की मौत हुई हैं,” सूत्र ने बताया.

मुख्यमंत्री ने मृतकों के परिजनों को 5 लाख व गंभीर रूप से घायलों को 2 लाख रूपए देने का एलान किया है. साथ ही सरकार ने जांच समिति का भी गठन किया है, जिसे अगले 48 घंटों में जांच रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया गया है. हालांकि, स्थानीय लोगों को उम्मीद है कि उनके सांसद प्रधानमंत्री मोदी जल्दी ही बनारस आएंगें. क्योंकि जब मोदी यहां आते हैं तो शहर चाक-चौबंद हो जाता है.

उत्तर सरकार भले ही इसपर अधिकारियों को सस्पेंड कर, मुआवज़ा देकर मामला रफ़ा-दफ़ा करने में लग जाए लेकिन स्थानीय लोगों के बीच ठेकेदारों और राजनीति के कॉकटेल को लेकर गुस्सा है. वे टेंडर की प्रक्रिया से लेकर पुल खड़े होने तक में होने वाले भ्रष्टाचार के किस्से सुना रहे हैं. “क्या भाजपा, क्या सपा- सब टेंडर अपने ही लोगों को देते हैं. इसी से सब गड़बड़ हो जाती है,” कैंट स्टेशन के स्थानीय दुकानदार मुराद बाबा ने कहा.

बताते चलें कि इस वक्त पूरे शहर में करीब 6 से 8 बड़े पुल बन रहे हैं और सभी के नीचे वाहनों की आवाजाही बनी रहती है. प्रदूषण और जाम का कारण तो ये पुल थे ही, अब मौतों का भी कारण बनने लगे हैं.