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“मैं भारतीय, कन्नड़िगा और लिंगायत हूं,” कलबुर्गी के बेटे ने कहा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह कर्नाटक में लिंगायत आंदोलन करने वालों पर हिंदू समुदाय को बांटने का आरोप लगाते आए हैं.
उनका यह आरोप कांग्रेस के प्रति केन्द्रित है जो 12 सदी के दार्शनिक बसवन्ना के उपासकों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
हर तरफ से भाजपा के इन आरोपों का खंडन किया गया है- यहां तक कि मृत कन्नड़ बुद्धिजिवी डॉ. एमएम कलबुर्गी की बेटी ने भी इसका खंडन किया है.
“जब हम कभी भी हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं रहे हैं, लिंगायत कैसे हिंदू समुदाय को बांट रहे हैं,” रूपदर्शी ने कहा. वह उसी कमरे में यह बात कह रही थी जहां आज से तीन साल पहले उनके पिता को गोली मार दी गई थी. “मैं कह रही हूं- मैं लिंगायत हूं. यह मुझे हिंदू विरोधी कहां बना देता है?”
30 अगस्त, 2015 को अज्ञात लोगों ने डॉ कलबुर्गी की गोली मारकर हत्या कर दी थी. कलबुर्गी ने बसवन्ना के 22,000 वचनों को संग्रहित किया है. यह लिंगायत समुदाय के साहित्य को सबसे बड़ा योगदान है. 12 मई को जब कर्नाटक में वोट पड़ेंगे, उनके लिखे कामों का महत्वपूर्ण और भी बढ़ जाता है.
वर्ष 2017 में, जगतिका लिंगायत महासभा ने बसवन्ना समर्थकों को अल्पसंख्यकों का दर्जा देने के लिए बड़ा आंदोलन किया था. चुनावों के नजदीक देखकर, मुख्यमंत्री सिद्धारमैय्या ने राज्य अल्पसंख्यक आयोग से आग्रह किया कि वे लिंगायत समुदाय पर रिपोर्ट तैयार करें.
ऐसा माना जाता है कि कर्नाटक की कुल आबादी में अकेले लिंगायतों की संख्या 15 से 17 फीसदी होगी. यह संख्या इतनी बड़ी है कि किसी भी चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल का पासा पलट दे. इससे पहले कि आंदोलन की मांगें पूरी की जातीं, लिंगायत समुदाय के भीतर ही दो पंथ बंट गए- लिंगायत और वीरशैव.
मार्च में कमेटी की रिपोर्ट में लिंगायतों और वीरशैव लिंगायतों को अल्पसंख्यक दर्जा देने का सुझाव दिया गया. हालांकि वीरशैव महासभा ने इस सुझाव की आलोचना करते हुए कहा कि उनका पंथ बसवन्ना (जिन्होंने 12 सदी में इस धर्म की स्थापना की) से भी पुराना है.
इसी बीच कमेटी की रिपोर्ट ने कलबुर्गी के पक्ष का समर्थन किया. कमेटी ने बताया कि लिंगायत पंथ हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं है और वीरशैव लिंगायत नहीं हैं.
1993 में, कलबुर्गी ने वचन साहित्य के पहले 15 वॉल्युम प्रकाशित हुए. इसमें वीरशैव और लिंगायत बारी-बारी से इस्तेमाल किया गया था. लेकिन 1994-95 से उन्होंने लिंगायत के लिए वीरशैव शब्द का इस्तेमाल बंद कर दिया, कुलबर्गी के परिवार ने बताया.
उनकी हत्या के एक महीने बाद हम्पी यूनिवर्सिटी के कुलपति ने कुलबर्गी के काम को पूरा किया. उन्होंने दो वॉल्युम जिसमें 22,000 वचन संग्रहित थे- कर्नाटक सरकार को छापने के लिए जमा किया. यह 2016 में प्रकाशित हुआ.
उनकी हत्या के तीन साल बाद कुलबर्गी के घर में पत्रकार फिर से अतिथि बनकर आने लगे हैं. उनकी पत्नी, उमादेवी कलबुर्गी, 70, पत्रकारों से जितना हो सके दूरी रखती हैं. उनका बेटा श्रीविजय कलबुर्गी बेंगलुरु के मल्टी-चेन स्टोर में बतौर सीनियर मैनेजर कार्यरत है. जब पिता की हत्या के जांच के बारे में उनसे पूछा गया, उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, “सरकार से कहा है कि वे अपने सिरे से भरसक प्रयास कर रहे हैं. ढाई साल से ज्यादा बित गया है लेकिन केस में कोई प्रगति नहीं है.”
उन्होंने जोड़ा कि उन्हें पुलिस पर भरोसा है. अपनी धार्मिक मान्यताओं के संदर्भ में श्रीविजय कहते हैं, “मैं भारतीय, कन्नड़िगा और लिंगायत हूं.” जब उनसे पूछा गया कि क्या आप खुद को हिंदू मानते हैं, उन्होंने कहा, “नहीं. मैं लिंगायत हूं.”
धारवाड़ में उनकी बहन रूपदर्शी ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा कि परिवार का केस से भरोसा खत्म हो गया है और वे कुलबर्गी के काम को प्रकाशित करने में ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं. कुलबर्गी द्वारा प्रकाशित काम उनके उसी कमरे में अच्छे से रखी गई हैं जहां उन्हें गोली मारी गई थी.
कलबुर्गी की तस्वीर उनकी सोफे पर रखी थी. वह इसी सोफे पर चश्मा लगाकर बैठा करते थे.
मार्ग श्रृंखला की पहली किताब (लेखों और सिद्धांतों का संग्रह) 1988 में प्रकाशित हुई थी और उसे प्रतिबंधित कर दिया गया था, उमादेवी ने कहा. यह उनकी पसंदीदा किताब रही है. “मैंने उनकी सारी किताबें पढ़ी हैं. मैं उनकी पहली पाठक हूं,” चेहरे पर मंद मुस्कुराहट के साथ उन्होंने कहा. “उनका जोर सरल भाषा में लिखने पर था जिसे सब सकते हों. वह कहते थे- अगर मैं उनके लिखे को समझ गई, दूसरे पाठक भी समझ जाएंगें.”
उनकी बेटी समझाती है कैसे उनका धर्म हिंदू धर्म से अलग है. “हम वेदों को खारिज करते हैं, वह कहती हैं. हम जाति व्यवस्था खारिज करते हैं. हम कैलाश शिव को नहीं नहीं मानते. हम निराकार शिव को मानते हैं.”
बसवन्ना के वचनों को अनूदित करते हुए उन्होंने कहा, “अगर में कहती हूं कि मैं हरुआ (ब्राह्मण) हूं. कूदालसांग्या हमपर हंसेंगे.”
कलबुर्गी की लेखनी ने परिवार को 1980 में पहली बार मुसीबत में डाला, रूपदर्शी ने कहा. उन्होंने कहा, “स्थानीय मीडिया ने पूर्व में लिखे उनके काम पर विवादों को हवा दी. एक खास वर्ग के लोग उनके लेखनी से बेचैन थे. उनके आलोचक उन्हें हिंदू विरोधी की तरह पेश करते थे.”
“हमें मालूम था कि जिन्हें उनके विचार और विचारधारा से सहमति नहीं होगी, वे उनके खिलाफ आवाज़ बुलंद करेंगे,” रूपदर्शी ने कहा. “हमने कभी नहीं सोचा था कि लोग उनके जान मारने तक की हद तक जा सकते हैं.”
“मेरे पिता ने बसवन्ना के वचनों को संग्रहित, अनूदित और जनमानस तक पहुंचाने का जिम्मा लिया था,” उन्होंने कहा. “जो बसवन्ना और उनके उपासकों के साथ हुआ था, वही मेरे पिता के साथ दुहराया गया.”
कलबुर्गी की हत्या के विरोध में जितनी भी रैलियां हुई किसी भी नेता ने उनमें हिस्सा नहीं लिया था.
कर्नाटक अब मतदान के लिए तैयार है. जहां एक ओर कांग्रेस बसवन्ना उपासकों का समर्थन कर रही है वहीं भाजपा उनपर समाज में बंटवारे का आरोप लगा रही है. “मैं नहीं समझती हूं कि किसी भी नेता ने उनके विचार पढ़े होंगे,” उमादेवी ने कहा.
परिवार कोई भी राजनीतिक पक्ष लेने से बचता है. “मेरे पति का काम लिखना पढ़ना था, राजनीतिक दलों से उनका कोई लेना देना नहीं था. उन्होंने सभी- जेडीएस, भाजपा और कांग्रेस सरकारों के अंदर काम किया है. उनके लिए उनके विचार महत्वपूर्ण थे.”
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