Newslaundry Hindi
सरकार के पास नौकरियां नहीं, बैंकों में पैसे नहीं
भारत की चार बड़ी कंपनियों ने इस बार 76 फीसदी कम भर्तियां की हैं. 2016 में 59,427 लोग इन चारों कंपनियों से बाहर हुए थे. 2018 में सिर्फ 13,972 लोग ही रखे गए हैं. ये चारों कंपनियां हैं इंफोसिस, विप्रो, टाटा कंसलटेंसी और एससीएल.
बिजनेस स्टैंडर्ड के रोमिता मजुमदार और बिभू रंजन मिश्रा ने लिखा है कि इन कंपनियों का मुनाफा बढ़ रहा है फिर भी भर्तियां कम हो रही हैं. इसका मतलब है कि कंपनियां आटोमेशन की तरफ तेज़ी से बढ़ रही हैं. कंपनियों के राजस्व बढ़ने का मतलब यह नहीं रहा कि नौकरियां भी बढ़ेंगी. जैसे टीसीएस का राजस्व 8.6 प्रतिशत की दर से बढ़ा लेकिन नियुक्त किए गए लोगों की संख्या मात्र 2 प्रतिशत ही बढ़ी है.
20-20 लाख की फीस देकर पढ़ने वाले इंजीनियरों को 20 हज़ार की नौकरी भी नहीं मिल रही है. पता नहीं इन नौजवानों की क्या हालत है. कई लोग लिखते हैं कि इंजीनियरों की हालत पर मैं कुछ करूं. बड़ी संख्या में इंजीनियरों को बहका कर ट्रोल बनाया गया. भक्त बनाया गया. इन्हें भी उम्मीद थी कि नौकरियों को लेकर कुछ ऐसा कमाल हो जाएगा. मगर कमाल सिर्फ चुनाव जीतने और भाषण देने में ही हो रहा है.
बिजनेस स्टैंडर्ड के ही शुभायन चक्रवर्ती की रिपोर्ट बता रही है कि निर्यात करने वाले सेक्टर में ठहराव की स्थिति बनी हुई है. जैसे टेक्सटाइल, हीरे जवाहरात, चमड़ा उद्योग. सरकार इन्हीं सेक्टरों के भरोसे है कि नौकरियां बढ़ेंगी. लोगों को काम मिलेगा.
भारत का टेक्सटाइटल उद्योग 36 अरब डॉलर का माना जाता है. निर्यात में तीसरा बड़ा सेक्टर है. 2017-18 में इस सेक्टर का ग्रोथ रेट है 0.75 प्रतिशत.
सूरत से ही लाखों लोगों के काम छिन जाने की ख़बरें आती रहती हैं. अभी इस सेक्टर में 1 करोड़ 30 लाख लोग काम करते हैं. इसके कई क्लस्टर बंदी के कगार पर पहुंच चुके हैं. बांग्लादेश और वियतनाम इसी क्षेत्र में अच्छा करते जा रहे हैं.
कंफेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री के अध्यक्ष संजय जैन का कहना है कि टेक्सटाइल में लोगों को खूब काम मिलता है मगर इसकी हालत काफी बेचैन करने वाली है. यह सेगमेंट बहुत ही बुरा कर रहा है. आपको याद होगा कि पिछले दो साल से ख़बर छपती रही है कि सरकार ने कुछ हज़ार करोड़ के पैकेज दिए हैं. उसका क्या रिज़ल्ट निकला, किसी को पता नहीं है.
इकोनोमिक टाइम्स की रिपोर्ट है कि बैंकों का डिपाज़िट ग्रोथ पचास साल में सबसे कम हुआ है. कई कारणों में नोटबंदी भी एक कारण है. इसने बैंकों को बर्बाद कर दिया. भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट से पता चलता है कि 2017-18 में बैंकों में डिपॉज़िट की दर 6.7 प्रतिशत से ही बढ़ी है. नोटबंदी के दौरान बैंकों में जो पैसे आए थे, वो निकाले जा चुके हैं.
अर्थव्यवस्था की हालत ख़राब है. मोदी सरकार तमाम एजेंसियों की जीडीपी भविष्यवाणी दिखाकर खुश हो जाती है. मगर इंजीनियरिंग की डिग्री से लेकर बिना डिग्री वालों को काम कहां मिल रहा है?
इसलिए ज़रूरी है कि जेएनयू के बाद एएमयू का मुद्दा उछाला जाए. उसे निशाना बनाकर मुद्दों को भटकाया जाए. आप लगातार हिन्दू मुस्लिम फ्रेम में ही सोचते रहे और धीरे धीरे ग़ुलाम जैसे हो जाएं. उत्पात करने के लिए कई प्रकार के संगठन बनाए गए हैं. जिनमें नौजवानों को बहकाकर इस्तेमाल किया जा रहा है.
Also Read
-
Let Me Explain: How the Sangh mobilised Thiruparankundram unrest
-
TV Newsance 325 | Indigo delays, primetime 'dissent' and Vande Mataram marathon
-
The 2019 rule change that accelerated Indian aviation’s growth journey, helped fuel IndiGo’s supremacy
-
You can rebook an Indigo flight. You can’t rebook your lungs
-
‘Overcrowded, underfed’: Manipur planned to shut relief camps in Dec, but many still ‘trapped’