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दलित के घर राम बनकर पहुंचे योगी के मंत्री, दो रोटी खाकर किया उद्धार
योगी सरकार में एक मंत्री हैं राजेन्द्र प्रताप सिंह. सिंह साहब ने एक दिन पहले ही यूपी के एक दलित के घर भगवान राम की तरह भोजन किया और शबरी की तरह उस दलित का उद्धार कर दिया. ‘डिनर विथ दलित’ कार्यक्रम निपटाने के बाद मंत्रीजी ने कहा कि उन्होंने वही किया जो राम ने शबरी के बेर खाकर किया था. भोजन के बाद बाहर इंतजार कर रहे कैमरों के सामने नमूदार हुए राजेन्द्र प्रताप सिंह जी बोले- ‘मैं यहां आया तो ज्ञानजी की मां ने रोटी परोसी तो उन्होंने कहा कि मेरा उद्धार हो गया. ये कितनी बड़ी खाई थी.’
सदियों से खोदी गई जिस खाई को बड़े-बड़े महापुरुष नहीं भर पाए, उसे माननीय मंत्रीजी ने दलित महिला के हाथ की दो रोटी खाकर भर दिया. दलित उद्धार के तमाम आंदोलन अब तक भले ही अपने अंजाम पर नहीं पहुंच पाए लेकिन मंत्रीजी ने दलित महिला के हाथों की रोटी खाकर ही दलितों का उद्धार कर दिया. उस दलित परिवार की आने वाली पुश्तें भी अपने इस उद्धारक के प्रति कृतज्ञ रहेंगी कि योगी-मोदी राज में हुआ था एक मंत्री, जिसने हमारा उद्धार किया…
अब ये पता नहीं कि इन मंत्री महोदय को अपनी ही पार्टी की वरिष्ठ नेता और केन्द्रीय मंत्री उमा भारती के उस बयान के बारे में कुछ पता है कि नहीं, जिसमें उमा भारती ने कहा कि हम कोई भगवान राम नहीं, कि शबरी के बेर खाकर उसे पवित्र कर देंगे या दलित के घर भोजन करके उसका उद्धार कर देंगे.
दरअसल उमा भारती ने ये कहकर सामाजिक समरसता भोज के नाम पर चल रहे इस नाटक का हिस्सा बनने से इंकार कर दिया है. उमा भारती की राजनीति और उनके तमाम बयानों से भले आप सहमत-असहमत हों लेकिन एक रात वाले इस ‘दलित प्रेम प्रोजेक्ट’ के सहभागियों के लिए उमा भारती का बयान तमाचे की तरह है.
दूसरे मंत्री सुरेश राणा साहब की कहानी तो आप सुन ही चुके होंगे. उन्होंने बैठने के लिए दलित के घर की दो गज जमीन पर रखी चौकी का भले ही इस्तेमाल किया, लेकिन भाई साहब ने परिवार को और कोई कष्ट नहीं दिया.
सामान पूरा बाहर से मंगवा लिया. कल ही योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री सुरेश राणा का वीडियो सामने आया है, जिसमें वो अलीगढ़ के दलित परिवार में बाहर से मंगाए गए ‘छप्पन भोग’ का सेवन करते दिख रहे हैं. दाल-मखनी, छोले-चावल, पालक पनीर, मिस्सी रोटी, तंदूरी रोटी, सलाद, रायता, मिठाई और साथ में मिनरल वाटर.
मंत्रीजी को कुछ मिनट बैठने और जीमने के लिए एक अदद दलित घर की ही तो दरकार थी. खाने की पूरी रेंज का इंतजाम सलीके से किया गया ताकि हुजूर ‘डिनर विथ दलित’ के देशव्यापी प्रोग्राम का हिस्सा बन सकें. मंत्रीजी अपने लाव-लश्कर के साथ आए, खाए, दलित परिवार को धन्य-धन्य किया, फोटो खिंचवाया और कूलर-गद्दे से युक्त इंतजाम वाली जगह पर सोने चले गए. वो जगह थी सामुदायिक भवन, जिसे प्रशासन ने मंत्रीजी के रात्रि विश्राम के लिए बाहरी इंतजाम के बूते ‘तैयार’ किया था.
असली ख़बर तो बाद में आई कि जिस घर में मंत्रीजी का ‘डिनर विथ दलित’ कार्यक्रम संपन्न हुआ, उस घर के मालिक को रात ग्यारह बजे तक पता ही नहीं था कि उनके यहां मंत्री पधारने वाले हैं. एएनआई रिपोर्टर से घर के मालिक रजनीश ने कहा कि मुझे नहीं पता था कि मंत्रीजी रात के खाने पर मेरे घर आ रहे हैं. वह अचानक आ गये. उनके खाने-पीने का सारा इंतजाम बाहर से किया गया. ऐसे ही ‘बाहरी इंतजामों’ के भरोसे बहुत से नेता दलित प्रेम दिखाने की मुहिम का हिस्सा बने हुए हैं.
कहा तो ये भी जा रहा है कि रजनीश के परिवार को नींद से उठाकर मंत्रीजी के आवभगत के लिए तैयार किया गया. परिवार तैयार भी हो गया क्योंकि उसे तो अपना घर देना था, इंतजाम तो बाहर से होना था.
ऐसा नहीं है कि दलितों के घर रात गुजारने या उनके घर खाना खाकर उन्हें अपना बनाने का ये फार्मूला बीजेपी ने निकाला है. कांग्रेस नेता दशकों से ये करते रहे हैं. राहुल गांधी और उनके सिपहसालारों की ऐसी तस्वीरें भी गूगल पर भरी पड़ी है. सवाल सिर्फ इतना है कि दिखावटी दलित प्रेम के ऐसे कांग्रेसी नुस्खे अपनाने से क्या दलितों को उद्धार हो जाएगा?
एक शाम खाने के लिए बाहर से खाना, कूलर, हलवाई, कुर्सियां और मिनरल वाटर तक मंगवाने वाले नेता हों या फिर दलित के हाथ की रोटी खाकर उनके उद्धार का दावा करने वाले बीजेपी के मंत्री या फिर ऐसे ही काम दशकों से कर रहे कांग्रेसी, क्या फर्क रह गया है इन सबमें? यूपी चुनाव से पहले 2016 के आखिरी महीनों में राहुल गांधी ने भी दलितों के यहां भोजन किया था. कहा गया था उनके लिए खास तौर से एक दलित परिवार की तलाश की गई और उसके यहां से राहुल गांधी को बतौर मेहमान न्यौता दिलवाकर बुलवाया गया.
उन्हीं दिनों मध्य प्रदेश में किसान यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने गुलाम नबी आजाद के साथ एक दलित के यहां खाना खाया था. मतलब ये सब पहले से होता रहा है. कोई नई बात नहीं है. नई बात ये है कि बीजेपी नेता कांग्रेसी नेताओं को मात देने में जुटे हैं.
मोदी और उनके समर्थक कहते हैं कि जो काम कांग्रेस साठ साल में नहीं कर पाई, उसे हमने चार साल में कर दिया. तो क्या मान लिया जाए कि साठ साल में इस्तेमाल किए कांग्रेस के हर हथकंडे और पांखंड का जवाब उन्हीं हथकंडों से देने में जुटी है बीजेपी? पाखंड का जवाब पाखंड से? कोई मंत्री खाने जाए तो हलवाई साथ ले जाए.
कोई सांसद जाए तो दलित का घर पिकनिक स्पॉट बन जाए. योगी जाएं तो दलित के घर एक दिन के लिए एयरकंडीशनर लग जाए. कोई नेता जाए तो दलित की चौकी पर बैठकर होटल से मंगाए ‘छप्पन भोग’ डकार कर मिनरल वाटर पीकर कूलर या एसी वाली जगह पर सोने चला जाए. क्या होगा इससे? अगर यूपी के किसी दलित के घर सीएम योगी अपने लाव-लश्कर को लिए खाने को चले जाएं और उनके लिए वहां स्वाति सिंह रोटियां सेंककर उन्हें खिला दें तो क्या इससे दलितों की जिंदगी बदल जाएगी?
दलितों को मुख्यधारा से जोड़ने की मुहिम आजादी के पहले गांधीजी ने भी जोर-शोर से चलाई थी. आजादी के बाद अंबेडकर से लेकर लोहिया और कांशीराम तक दलितों के उत्थान के रास्ते तलाशते रहे. वो रास्ता यहां तक आएगा, इसके बारे में न तो आंबेडकर सोच पाए थे, न ही लोहिया. ये रास्ता तो योगी राज में मंत्री सुरेश राणा ने खोजा है. राजेन्द्र प्रताप सिंह ने खोजा है. ऐसे और भी कोलंबस आपको आने वाले दिनों में टीवी चैनलों पर दिख सकते हैं.
कहा जा रहा है कि हाल ही में एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले और उसके खिलाफ भारत बंद के बाद से बीजेपी चिंतित है. चिंता के केन्द्र में दलित हैं. इस चिंता के सबसे बड़े चिंतक पीएम मोदी हैं. एनडीटीवी के अखिलेश शर्मा की एक रिपोर्ट के मुताबिक पीएम मोदी ने पिछली कैबिनेट की बैठक में मंत्रियों से पूछा कि किस किसने दलित गांव में रात बिताई है, क्या जवाब मिला ये तो पता नहीं लेकिन उसी रिपोर्ट के मुताबिक पीएम नहीं चाहते हैं कि किसी भी सूरत में उनकी सरकार पर दलितों की उपेक्षा के आरोप लगे. बीजेपी सांसदों ने भी पीएम को आगाह किया कि आने वाले चुनाव में दलित वोट बीजेपी से छिटक सकते हैं.
इसी चिंता से चिंतित पीएम मोदी ने संसदीय दल की बैठक में ऐलान किया कि 14 अप्रैल को बाबा साहेब आंबेडकर के जन्मदिन से लेकर पांच मई तक बीस हजार से ज्यादा दलित बहुल गांव में ग्राम स्वराज अभियान के तहत सरकार की योजनाओं के बारे में दलितों को विस्तार से बताया जाएगा. इसके लिए हर सांसद को ऐसे गांवों में एक रात और मंत्री को दो रातें बिताने को कहा गया. ताकि दलितों के साथ संवाद भी हो सके और बीजेपी से जोड़ा भी जा सके.
पीएम ने फार्मूला दे दिया. सबके सब उस फार्मूले को अमली जामा पहनाने के लिए दलितों के घर खाने और सोने के लिए निकल पड़े. इस तरह से शुरु हुआ ‘एक रात तो गुजारो दलित के घर’ का प्रोजेक्ट. ये प्रोजेक्ट अलग-अलग फार्म में हर चुनाव के पहले देश में चलता रहा है, दशकों से. फर्क ये है कि इस बार इस प्रोजेक्ट को देशव्यापी विस्तार दिया गया है. यूपी सरकार में मंत्री राजेन्द्र प्रताप सिंह सरीखे ‘अवतारी राम’ शबरी के घर को पवित्र करने के लिए देश भर में घूम रहे हैं.
ठाकुर साब, सिंह साब, मिश्राजी, जयसवालजी, प्रसादजी, शर्माजी, ओझाजी, त्यागीजी और ऐसे न जाने कितने उच्चकुल धारी बीजेपी नेता दलितों के घर जूठन गिराने की ड्यूटी पूरी करने में लगे हैं. ये सब इसलिए हो रहा है ताकि आने वाले चुनाव से पहले दलितों को जोड़ा जा सके. जो पहले से जुड़े हैं, उन्हें चटकने से रोका जा सके. खाने वाले को पता है कि ये नाटक है. खिलाने वाले को पता है कि ये नाटक है. दिखाने वाले को पता है कि ये नाटक है. फिर भी ये नाटक जारी है, जारी रहेगा. ऐसे में उमा भारती तो इन ‘नाटककारों’ से बेहतर है, जिन्होंने ऐसे नाटकों का किरदार बनने से मना तो कर दिया.
दरअसल पता तो ये करने की जरुरत है कि बीते पांच सालों में राहुल गांधी से लेकर पीएम मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह, योगी आदित्यनाथ समेत बड़े-बड़े दिग्गजों ने जिन दलितों के यहां जूठन गिराकर उन्हें धन्य किया है, राजेन्द्र प्रताप सिंह के शब्दों ने उनका उद्धार किया है, उनका आज क्या हाल है? उनके घर पलट कर पूछने-देखने भी गया कि नहीं? क्या वो मुख्यधारा में शामिल होकर अपना हक पाने में कामयाब हो गए? क्या किसी गरीब दलित की कुटिया में नेताओं के चरण पड़ने से उनकी जिंदगी पटरी पर आ गई? अगर आ गई तो दलितों के घर ये खाना और सोना चालू रहे.
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