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कर्नाटक चुनाव: जब सोशल मीडिया है तो मीडिया की चिंता क्यों करें?
“चूंकि राष्ट्रीय मीडिया और क्षेत्रीय मीडिया का एक धड़ा जेडीएस और एचडीके को ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहा है, इसीलिए इस वॉर रूम की जरूरत पड़ी,” 25 वर्षीय श्रेयस चंद्रशेखर ने बताया. “सोशल मीडिया पर मज़बूत पकड़ रखना हमारी जरूरत बन गई. और पिछले पांच छह महीनों में हम अपने पक्ष में माहौल बनाने में कामयाब हुए हैं.”
चंद्रशेखर जनता दल सेकुलर (जेडीएस) के 50 सदस्यीय टीम का हिस्सा हैं. वे बंगलुरु में रहकर पार्टी का वॉर रूम संभालते हैं.
यहां बताते चलें कि पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की जेडीएस आगामी विधानसभा चुनावों में अहम भूमिका निभा सकती है. उनके पुत्र और पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी (एचडीके) मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं. 2006 में, पार्टी से विद्रोह करने के बाद, एचडीके ने कांग्रेस और जेडीएस की गठबंधन सरकार को अस्थिर कर दिया था और भाजपा के साथ हाथ मिला लिया था. वह राज्य के 18वें मुख्यमंत्री बने. देवेगौड़ा ने उन्हें आशीर्वाद देने से मना कर दिया था.
आज भी पिता अपने बेटे के ‘भाजपा जैसी पार्टी से जुड़ने’ फैसले पर अफसोस जताते हैं. लेकिन 12 साल बाद, बाप-बेटे की जोड़ी भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ खड़ी है. उन्हें उम्मीद है कि वे इस बार कर्नाटक में सरकार बनाने में कामयाब होंगे.
वॉर रूम पर वापस चलते हैं. जेडीएस नेताओं से मिलने की आस में हम पार्टी के राज्य मुख्यालय जेपी भवन पहुंचे. चुनाव महज़ दो हफ्ते दूर है लेकिन पार्टी कार्यालय सुनासान है. यहां हमें वॉर रूम का संचालन करने वाले लोगों का फोन नंबर मिला.
मीटिंग तय की गई. हमें स्टारबक्स के आउटलेट पर बुलाया गया. वहां से एक अपार्टमेंट में ले जाया गया जहां हमारी मुलाकात श्रेयस से हुई. हमें बिल्डिंग का एड्रेस साझा करने से मना किया गया.
25 वर्षीय श्रेयस हमें जेडीएस के प्रचार रूम ले गए. यहां काम करने वाले लोगों की उम्र 20 से 35 साल है. ज्यादातर वास्तविक रूप से पार्टी समर्थक लगते हैं.
“हम सब अपनी नौकरी छोड़कर पिछले पांच-छह महीनों से जेडीएस का चुनाव प्रचार कर रहे हैं,” श्रेयस ने कहा. श्रेयस अक्टूबर, 2017 तक एक प्रतिष्ठित कंपनी के साथ डेटा वैज्ञानिक थे.
हमें बताया गया कि कुछ लोग स्थानीय मीडिया पर नज़र रखते हैं, वे अपने लैपटॉप में आंखें गड़ाए रखते हैं. अन्य चार पांच लोग पार्टी की एलईडी प्रचार वैन पर निगरानी रखते हैं. यह वैन लोगों तक चुनावी वादे पहुंचा रही है. उनके पीछे एक सफेद व्हाइटबोर्ड है. जिन विधानसभा क्षेत्रों में वैन गए हैं, उनकी जानकारी व्हाइटबोर्ड पर है. चुनाव का दिनांक गाढ़े लाल रंग और मोटे अक्षरों में बोर्ड के किनारे पर लिखा है.
10-15 युवाओं का एक समूह चुनावी पोस्टर और वीडियो एडिट करने में व्यस्त है. इन्हें सोशल मीडिया पेजों पर अपलोड किया जाना है.
गौरतलब हो कि सिर्फ श्रेयस को ही हमसे मिलने की अनुमति थी. बाकी लोगों के बयान हमें ऑफ रिकॉर्ड मिले हैं. “हमलोग जब 2013 में हारे, तभी से तैयारियां शुरू कर दी गईं थी. एक तरह की सोच रखने वाले प्रतिभावान युवा, जो हमारे पार्टी के समर्थक भी थे, उन्हें एक साथ लाया गया,” श्रेयस ने कहा. हम राष्ट्रीय मीडिया को लेकर ज्यादा व्याकुल नहीं होते. हम कन्नड़ न्यूज पर ध्यान रखते हैं- क्योंकि उनकी व्यूअरशिप सबसे ज्यादा है.
यह रूम पार्टी का ‘आपात रिस्पॉन्स सेंटर’ है
“कोई भी ख़बर जो हमारे पक्ष में नहीं होती, चाहे वह सोशल मीडिया पर हो या चैनलों पर हो, यहां से आपातकालीन रिस्पॉन्स दिया जाता है,” श्रेयस बताते हैं. “अगर इसके लिए हमें किसी खास उम्मीदवार या नेता से बयान दिलवाने की जरूरत होती है, हम उनसे तुरंत संपर्क करते हैं.”
एक अन्य सदस्य जो अपना नाम उजागर नहीं होने देना चाहते, कहते हैं, “टीम सीधे एचडीके से संपर्क करती है, कभी-कभी हम उन्हें सलाह देते हैं कि जनसभाओं में क्या बोलना चाहिए- यह सुझाव हम अपने विश्लेषण के आधार पर देते हैं.”
पार्टी के पास प्रभावी रिसॉर्स मैनेजमेंट प्लान है. “हमने 114 विधानसभा क्षेत्रों की पहचान की है जहां पार्टी के जीतने की प्रबल संभावना है, पार्टी के एक वरिष्ठ सदस्य ने बताया.”
मज़ेदार है कि पूर्व में पार्टी का भाजपा के साथ रिश्ता आईटी सेल के लिए परेशानियां पैदा कर रहा है. राहुल गांधी ने तंज कसते हुए कहा कि जेडीएस में ‘एस’ का मतलब है ‘संघ’ (भाजपा की सलाहकार संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ).
लोगों के बीच एक धारणा है कि अगर 15 मई को किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है, ऐसे में जेडीएस भाजपा के साथ हाथ मिला सकती है. कांग्रस पार्टी की राज्य ईकाई ने इस प्रौपगैंडा को फैलाने में अहम भूमिका निभाई है. जब पूछा गया कि आप इंटरनेट पर उग्रता से कैसे निपटते हैं, श्रेयस कहते हैं, “हम दोनों के खिलाफ बराबरी से उग्र हैं.”
जब हमने उनसे पूछा कि सांप्रदायिक एजेंडा और लठैत समूहों से कैसे पार पाते हैं. उनका जबाव है, “हम सिर्फ विकास की बात कर रहे हैं और अपने घोषणापत्र में किए वादों का प्रचार कर रहे हैं. यह चमत्कार कर रहा है.”
ग्रामीण क्षेत्रों में जेडीएस को स्वाभाविक जनसमर्थन प्राप्त है- खासकर मैसुरू क्षेत्र में. हालांकि एचडीके के फेसबुक पेज पर येदियुरप्पा की तुलना में बहुत कम लाइक्स हैं, वह मुख्यमंत्री सिद्धरमैय्या के खिलाफ लड़ रहे हैं.
येदियुरप्पा के फेसबुक पेज पर 17.57 लाख लाइक हैं. एचडीके के 2.3 लाख फेसबुक लाइक हैं. सिद्धरमैय्या के फेसबुक पेज पर 1.73 लाख लाइक है. रोचक है कि एचडीके के ऑफिशियल पेज पर मज़ेदार वीडियो और ग्राफिक कंटेंट है.
आईटी टीम के मुताबिक, “जेडीएस समर्थकों को मालूम है कि मीडिया उनके खिलाफ है, इसीलिए वे जेडीएस और एचडीके के समर्थन वाले कंटेंट सोशल मीडिया पर डालते हैं. अगर हम नंबर के हिसाब से देखें तो बहुत सारे वीडियो को हम वायरल कह सकते हैं.”
जेडीएस समर्थकों ने आईपीएल में आरसीबी फैन्स को बेहद अच्छे से प्रभावित किया है- “ई साला कप नामदे (इस बार कप हमारा है)” से “इस बार विधानसभा हमारा है.
एचडीके की प्रॉडक्शन टीम एक वीडियो कैंपेन चला रही है जिसमें उनके घोषणापत्र के वादे बताए जा रहे हैं- 24 घंटे बिजली, रोजगार और गर्भवती महिला को 6000 रुपये का मासिक भत्ता (12 महीनों तक) और 68 साल की उम्र से ऊपर वालों को 5000 रुपये पेंशन.
कई सारे फैन पेज जो सीधे जेडीएस के नाम से नहीं जुड़े हैं, लेकिन पार्टी उसका संचालन कर रही है ताकि अपने एजेंडा को आगे बढ़ा सके. “हम विपक्षी दलों की आलोचना आधिकारिक पेज से उस तरीके से नहीं कर सकते जैसा हम अपने अनाधिकारिक पेज से कर सकते हैं,” टीम के एक वरिष्ठ सदस्य ने बताया.
न्यूज़लॉन्ड्री ने वॉर रूम से संचालित होने वाले एक ऐसे ही अनाधिकारिक फेसबुक पेज का मुआयना किया- और 28 दिनों का परिणाम ये मिला:
श्रेयस के टीम की भगवा पार्टी के लिए एक सुझाव है. “भाजपा यहां भी उत्तर प्रदेश की ही तरह कॉपी-पेस्ट के फॉर्मूले पर काम कर रही है. यह उनकी सबसे बड़ी गलती है,” श्रेयस ने कहा. “भाजपा को मालूम होना चाहिए कि हम विभिन्न संस्कृतियों से बने एक देश हैं. वे कर्नाटक में भी उत्तर प्रदेश वाला ही फॉर्मूला लगा रहे हैं. क्यों? इसलिए क्योंकि उत्तर प्रदेश भी कर्नाटक की तरह एक बड़ा राज्य है. और अब तक वे राज्य में कांग्रेस सरकार के खिलाफ एक भी नैरेटिव तैयार नहीं कर सके हैं.”
यहां काम कर रहे युवाओं को एक बात का गर्व है. वे दावा करते हैं कि उन्होंने 4 लाख वोटरों तक सीधे संदेश पहुंचाया है. इस फॉर्मूला के अंतर्गत चार लाख वोटरों को एक संदेश प्रतिदिन भेजा जाता है.
वोटरों और स्थानीय नेताओं को फोन करके उनसे फीडबैक कॉल लिया जा रहा है. मतदान का निर्णायक दिन जैसे-जैसे करीब आ रहा है, एक सवाल जो उन्हें असहज कर रहा है- अगर विधानसभा में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो? क्या जेडीएस गठबंधन की सरकार बनाएगी, और अगर वे गठबंधन सरकार बनाते हैं, वो चुनावी वादे कैसे पूरा करेंगे?
अगर कुमारस्वामी के इन सक्रिय समर्थकों की मानें तो वे गठबंधन सरकार नहीं बनाएंगें. लेकिन, जैसा पार्टी नेतृत्व कहता है, वे भी दावा करते हैं कि जेडीएस पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने जा रही है. पर कैसे? वे कहते हैं – “वे 20 महीने कुमारस्वामी प्रशासन का ट्रेलर था. जेडीएस की जीत की बाद जन नीतियों पर आधारित पूरी फिल्म शुरू हो जाएगी.”
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