Newslaundry Hindi
क्यों नहीं रुक रहा टीवी रेटिंग का ‘घपला’?
हंसा रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड, मुंबई की एक ग्लोबल मार्केट रिसर्च कंपनी है. आठ अप्रैल को ग्वालियर के माधव गंज थाने में इस कंपनी ने अपने ही एक कर्मचारी के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई. कर्मचारी के ऊपर ब्रॉडकास्ट ऑडिएंस रिसर्च काउंसिल (बार्क) संबंधी जानकारियां लीक करने का आरोप था.
आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (चोरी), 406 (क्रिमिनल ब्रीच ऑफ ट्रस्ट) और 120 ब (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत गिरफ्तार किया गया. बताते चलें कि बार्क भारत में टेलिवीजन रेटिंग के आंकड़े तैयार करता है. हंसा रिसर्च, बार्क के लिए घर-घर सर्वेक्षण का काम करती है.
बार्क, रेटिंग और मापने का तरीका
बार्क भारत भर के ब्रॉडकास्टर्स, विज्ञापन एजेंसियों और विज्ञापनदाताओं का संयुक्त समूह है. जब एनडीटीवी ने पुरानी रेटिंग एजेंसी टैम मीडिया रिसर्च की विश्वसनीयता को न्यूयॉर्क की अदालत में चुनौती दी, तब बार्क अस्तित्व में आया. एनडीटीवी ने टैम के अधिकारियों पर घूस लेकर टीवी दर्शकों के आंकड़े में हेरफेर करने का आरोप लगाया था.
रेटिंग किसी भी चैनल की लोकप्रियता का पैमाना होता है. और इसी के आदार पर विज्ञापनदाता अपना निर्णय लेते हैं. प्राइस वाटरहाउस कूपर्स के एक आंकड़े के मुताबिक 2018 में भारत के विज्ञापन उद्योग का बजट 500 करोड़ रुपए का हो जाएगा. इसका सीधा मतलब है कि इतने बड़े बजट का निर्धारण बार्क के टीवी दर्शकों के आंकड़े से होता है.
व्यूअरशिप के आंकड़े जुटाने के लिए मसलन किस घर में कौन सा चैनल चलता है और कितनी देर तक चलता है, यह आंकड़ा जुटाने के लिए बार्क ने देश भर के चुनिंदा घरों में ‘बार-ओ मीटर’ लगाया है. ऐसे घरों को पैनल होम भी कहते हैं. पैनल को किसी भी तरह की छेड़छाड़ से बचाने के लिए इन घरों की पहचान नहीं बताई जाती.
आठ अप्रैल को ग्वालियर में की गई शिकायत इसी तरह के गोपनीय आंकड़े में लीक से संबंधित थी.
हंसा रिसर्च के एक कर्मचारी, महेश कुशवाहा पर आरोप है कि उसने अपने एक पूर्व कर्मचारी विनोद कुलश्रेष्ठ के साथ इन घरों की जानकारी साझा किया. माधवगंज पुलिस थाने में दायर शिकायत में कुशवाहा और कुलश्रेष्ठ कुल सात आरोपियों में शामिल हैं. इस सूची में कुलदीप श्रीवास्तव, शरण प्रधान उर्फ धर्मेन्द्र प्रधान, ज्ञानेन्द्र श्रीवास्तव, अनिल कुमार और अजय गौड़ शामिल हैं. माधवगंज पुलिस ने आरोपों और आरोपियों के नामों की पुष्टि कर दी है.
दैनिक भास्कर की ख़बर के मुताबिक, अनिल कुमार नाम का एक व्यक्ति इस लीक हुए आंकड़े के संबंध में और इंडिया न्यूज़ के प्रोमोशन के लिए प्रधान से मिला. हालांकि न्यूज़लॉन्ड्री स्वतंत्र रूप से इसकी पुष्टि नहीं करता है.
इंडिया न्यूज़ 24 घंटों का हिंदी समाचार चैनल है. इसका स्वामित्व आईटीवी नेटवर्क के पास है. कंपनी के पास न्यूज़ एक्स, संडे गार्डियन और आज समाज नाम का डेली अख़बार भी है. आज तक, इंडिया टीवी, ज़ी न्यूज़, न्यूज़ 18 और एबीपी न्यूज़ इसके प्रतिद्वंदी चैनल हैं और अक्सर बार्क की हिंदी चैनलों की रेटिंग में यह शीर्ष पांच चैनलों में शामिल रहता है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने इंडिया न्यूज़ पर बार्क के पैनल हाउस पर छेड़छाड़ के आरोपों के सिलसिले में उनसे संपर्क किया. इंडिया न्यूज़ की क़ानूनी सलाहकार टीम के हेड, दिनेश बंथ ने साफ किया कि कंपनी को शिकायत के बारे में जानकारी है. पर उन्होंने इस मामले में बाकी सवालों और टिप्पणियों से परहेज करते हुए हमारे फोन और संदेशों का जवाब नहीं दिया.
पैनल टैंपरिंग के आरोप न्यूज़ चैनलों पर पहली बार नहीं लगे हैं, ना ही इंडिया न्यूज़ के ऊपर यह पहला आरोप है. वर्ष 2016 में, तीन न्यूज़ चैनलों पर व्यूअरशिप बढ़ाने के लिए बार्क के मीटर वाले पैनल घरों को अपना चैनल दिखाने के लिए घूस देने का आरोप लगा था. इसके बाद इन चैनलों की बार्क की रेटिंग अगले चार हफ्ते तक निलंबित कर दी गई थी.
मौजूदा केस में गिरफ्तारियां भी हुई हैं. दैनिक भास्कर के मुताबिक सात जबकि एबीपी न्यूज़ की ख़बर के मुताबिक चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
पैनल टैंपरिंग के तमाम मामले इस बात की ओर इशारा करते हैं कि बार्क के सिस्टम में खामी है और वह पैनल होम की गोपनीयता को बरकरार नहीं रख पा रही है. इस मामले में जितनी जबावदेही बार्क की है, उतनी ही हंसा रिसर्च की भी है. इस रिपोर्टर ने हंसा रिसर्च से संपर्क करने की कई कोशिशें की लेकिन संस्थान से कोई जबाव नहीं मिल सका है.
दर्शकों के आंकड़ों को गोपनीय और सुरक्षित बनाए रख पाने में असफल रहने पर बार्क इंडिया के प्रवक्ता ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, “पैनल के साथ छेड़छाड़ एक पुरानी समस्या है. इसे न हम खारिज करते हैं न ही इसके प्रति हम लापरवाह हैं. यह भ्रष्टाचार की सामाजिक समस्या से जुड़ा है, जिससे आप भी सहमत होंगी, हम जितनी भी कोशिश कर लें पर यह इतनी आसानी से खत्म नहीं हो सकती.”
बार्क प्रवक्ता ने आगे जोड़ा, “पुलिस केसों की संख्या में बढ़ोतरी, गिरफ्तारियां इस बात की ओर इशारा करती हैं कि हम समस्या के निदान के लिए प्रतिबद्ध हैं. हम अपने सर्वेक्षण के तरीके को और पुख्ता बनाने की कोशिश कर रहे हैं.”
रेटिंग व्यवस्था और उसकी समस्याएं
बार्क इंडिया के प्रवक्ता ने पैनल घरों की गोपनीयता बनाये रखने की भी बात कही. “हमने एक मॉडल अपनाया है ‘दायां हाथ जो करे वह बांएं को मालूम न पड़े’. हमने समूचे व्यूअरशिप मापने की प्रक्रिया को छोटे-छोटे हिस्सों में बांट दिया है और एक मल्टी-वेंडर मॉडल तैयार किया गया है,” प्रवक्ता ने कहा.
हालांकि, इतने भर से समस्या का निवारण नहीं होता. पैनल घरों की गोपनीयता भंग होने की एक बड़ी वजह घरों में लगे अलग बार-ओ मीटर हैं जिनकी पहचान आसानी से हो सकती है. “हमें यह समझना होगा कि हम घरों में फ़िज़िकल मीटर लगाते हैं, जिन्हें घरों में देखा जा सकता है.
इसके पीछे संगठित तरीके से लोग काम करते हैं. जो इन पैनल होम की खोज करते रहते हैं ताकि व्यूअरशिप के आंकड़े को प्रभावित कर सकें. इससे बचने का एक ही तरीका है कि पैनल साइज़ को बहुत बड़ा कर दिया जाए. लेकिन इसके लिए भारी भरकम निवेश की जरूरत होगी जिसके लिए फिलहाल विज्ञापन जगत की स्थितियां मुफीद नहीं हैं,” बार्क इंडिया के प्रवक्ता ने जोड़ा.
यह बार्क डेटा की दूसरी समस्या की तरफ इशारा करता है- सैंपल साइज. क्या बार्क के 30,000 पैनल घर, भारत के 1.2 अरब लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं? और, क्या यह संख्या भारत की सांस्कृतिक और भौगोलिक विविधता का प्रतिनिधित्व करता है?
बार्क के पूर्व चेयरमैन चिंतामणि राव ने इस विषय पर द हूट को एक साक्षात्कार दिया था.
व्यूअरशिप के आंकड़ों और इसकी गणना के तरीके में खामी के संबंधों को स्पष्ट करते हुए राव कहते हैं “जब इस देश में टीवी दर्शकों की गणना की शुरुआत हुई थी तब मीडिया की दुनिया बेहद सरल थी. गिने-चुने चैनल थे. टीवी मुख्य रूप से मनोरंजन का स्त्रोत था. ज्यादातर विज्ञापन कंस्यूमर गुड्स से संबंधित होते थे जो प्रमुखता से महिलाओं पर केंद्रित होते थे. इतने के लिए 4,000 से 5,000 घर काफी हुआ करते थे,” राव ने कहा.
वक्त के साथ कई तरह के चैनल आ गए हैं. विज्ञापनों और उत्पादों में विविधता आ गई हैं. “अब टार्गेट ऑडिएंस में कई तरह के लोग शामिल हो गए. तो अब आप सीमित ऑडिएंस को छोटे से छोटे चैनल के हिसाब को माप रहे हो,” राव ने कहा.
बार्क एक संयुक्त वेंचर है. बार्क इंडिया का 60 फीसदी हिस्सा इंडिया ब्रॉडकास्टिंग फेडरेशन का है. जबकि इंडिया सोसायटी ऑफ एडवर्टाइज़र्स और एसोसिएशन ऑफ एडवार्टाइजिंग एजेंसी ऑफ इंडिया की संयुक्त रूप से 40 फीसदी हिस्सेदारी है. ध्यान रहे कि बार्क की रेटिंग के बदौलत ही ब्रॉडकास्टर्स विज्ञापन दाताओं को रिझाने का प्रयास करते हैं.
क्रोम डीएम के संस्थापक और सीईओ पंकज कृष्ण से न्यूज़लॉन्ड्री ने बात की. रेटिंग एजेंसियों की सबसे बड़ी दिक्कत है कि वे सैंपल के आधर पर ही काम करते हैं, कृष्ण ने कहा. “जहां सैंपल होता है, वहां सब्जेक्टिविटी का प्रश्न होता है. और जहां सैंपल होता है, वहां धोखा खाने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.”
एक उदाहरण देते हुए कृष्ण ने कहा, “अगर आप कल परीक्षा देने वाली हैं, आपको पांच किताबें पढ़ने की जरूरत होगी. लेकिन अगर आपको सवाल पहले से ही मालूम हों तो आपको सिर्फ उन्हीं पांच सवालों को पढ़ने की जरूरत होगी. इसी तरह यह रेटिंग प्रणाली काम करती है. अगर आपको मालूम है कहां बॉक्स लगे हैं, आप वहां जाओगे और अपना चैनल दिखाने की कोशिश करोगे.” हालांकि, उन्होंने जोर दिया कि यह सभी जगह लागू होता है, यह सिर्फ बार्क के लिए ही नहीं है.
समाधान क्या है?
पैनलों को छेड़छाड़ से बचाने के लिए सैंपल साइज़ बढ़ाना होगा, जैसा बार्क इंडिया के प्रवक्ता ने बताया था. कृष्ण इस बात से सहमत नज़र आते हैं. वे कहते हैं, “एक सैंपल जो बड़ा हो और किसी भी वक्त जनता के लिए उपलब्ध हो. इसमें ऐसा होना चाहिए कि लोगों को मालूम चल सके कौन, क्या, कब और किस जगह पर क्या देख रहा है. ऐसे में प्रभावित करने का सवाल ही पैदा नहीं होगा.”
“जबतक कोई रिवर्स डेटा पाथ (आरपीडी) नहीं होता, यह एक बाध्यता है जो किसी भी रेटिंग प्रणाली को मानना पड़ेगा,” कृष्ण ने जोड़ा. आरपीडी के अंतर्गत टीवी व्यूअरशिप के आंकड़े घरों में लगे सेट टॉप बॉक्स से जुटाए जाते हैं.
“सैंपल साइज़ बढ़ाने और छेड़छाड़ से बचाने के लिए बार्क इंडिया ने रिटर्न पाथ डेटा (आरपीडी) से व्यूअरशिप मापने पर भी विचार कर रही है. यह सैंपल साइज़ को बहुत बड़ा बना देगा. इसमें टैंपरिंग की संभावनाएं बहुत ही कम होगी,” बार्क के प्रवक्ता ने जोड़ा.
पिछले साल अक्टूबर में, बार्क इंडिया ने डेन नेटवर्क नाम के केबल ऑपरेटर के साथ मिलकर रिटर्न पाथ डेटा के जरिए टीवी व्यूअरशिप मापने की कोशिश की थी.
कृष्ण ने कहा कि सैंपलिंग से सेंसस की तरह बढ़ना चाहिए, इससे अवरोधों से पार पाने में मदद मिलेगी. “हिंदी के टॉप 6 चैनलों पर आने वाले कंटेंट लगभग एक जैसे होते हैं. वे सभी एक अलग-अलग समय पर एक ही बात कह रहे होते हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि, हर चैनल का लुक अलग है, विज्ञापन अलग हैं और अलग-अलग केबल ऑपरेटर पर उस चैनल की उपलब्धता अलग है. एक चैनल मान लीजिए 90 फीसदी घरों में है और दूसरा 60 फीसदी घरों में उपलब्ध है. ऐसे में डिस्ट्रिब्यूशन और ट्रायल का संबंध बनाना पड़ेगा- उन लोगों की संख्या जो चैनल देख सकते हैं बनाम वे लोग जो वास्तिकता में चैनल देख रहे होते हैं- यह सेंसस के सैंपल को बढ़ा देगी और आपका काम खत्म हो जाएगा.”
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सूचना व प्रसारण मंत्रालय सेट टॉप बॉक्स में चिप लगवाने की सोच रहा है, जिससे की ट्रेंड समझा जा सके. इससे बार्क डेटा की विश्वसनीयता का भी पता लग सकेगा.
Also Read
-
Newsance 274: From ‘vote jihad’ to land grabs, BJP and Godi’s playbook returns
-
‘Want to change Maharashtra’s political setting’: BJP state unit vice president Madhav Bhandari
-
South Central Ep 1: CJI Chandrachud’s legacy, Vijay in politics, Kerala’s WhatsApp group row
-
‘A boon for common people’: What’s fuelling support for Eknath Shinde?
-
हेट क्राइम और हाशिए पर धकेलने की राजनीति पर पुणे के मुस्लिम मतदाता: हम भारतीय हैं या नहीं?