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#KathuaRape: सुधीर चौधरी के ‘डीएनए’ में इंटरनेट ट्रोल्स का संक्रमण
देश भर में महिलाओं की असुरक्षा के मसले, खासकर कठुआ और उन्नाव की घटना के बाद विरोध प्रदर्शन जारी है. सिर्फ राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी इसकी चर्चा हो रही है. सरकार की चहुंओर आलोचना होने पर प्रधानमंत्री को भी कामचलाऊ बयान देना पड़ा. जम्मू कश्मीर कैबिनट के दो भाजपा मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा. दोनों पर कठुआ में बलात्कार के आरोपियों के समर्थन में जुलूस निकालने का आरोप था. वहीं उन्नाव में सीबीआई ने आरोपी भाजपा विधायक सेंगर को गिरफ्तार किया.
इसी मामले का दूसरा पक्ष और पूर्ण सत्य रखने के लिए ज़ी न्यूज़ के सुधीर चौधरी सोमवार की रात प्राइम टाइम पर अपना कार्यक्रम डीएनए लेकर आए. उन्होंने अपनी पत्रकारीय पैंतरे की शुरुआत ही एक डिसक्लेमर के साथ किया, “कठुआ की घटना जघन्य है और आरोपियों को दुनिया में जो भी सबसे बड़ी सज़ा हो, वो मिलनी ही चाहिए.” जघन्यता का यह दावा उसी चार्जशीट के तथ्यों के दम पर किया गया जिसकी विश्वसनीयता पर पूरे समय सवाल खड़ा करने की कोशिश सुधीर चौधरी बेहद अश्लील और भौंडे तरीके से करते रहे. वरना किसी को कैसे पता चलता कि आठ साल की पीड़िता के साथ कुछ जघन्य हुआ है.
सुधीर ने बताया कि उनका चैनल कठुआ का पूरा सच बताएगा. मीडिया में जो कुछ भी कठुआ के बारे में बताया जा रहा है, उसमें एक खास प्रकार का एजेंडा शामिल है. ज़ी न्यूज़ के अनुसार मीडिया कठुआ रेप मामले में सिर्फ तीन बिंदुओं पर चर्चा कर रहा है, वह है-
1. बलात्कार मंदिर में हुआ
2. बलात्कारी हिंदू थे
3. पीड़िता मुसलमान थी
ज़ी न्यूज़ ने दावा किया कि उसने पांच दिनों की पड़ताल के बाद सबसे विश्वसनीय ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की है. सुधीर ने फिर से ‘ज्ञान’ दिया कि जब मीडिया एजेंडा चलाने लगता है तो सच धुंधला जाता है. “स्टूडियो से रिपोर्टिंग नहीं की जाती, ग्राउंड से रिपोर्टिंग की जाती है,” सुधीर चौधरी ने कहा. खैर, अभी हंसना मना है!
रिपोर्ट कठुआ के उसी मंदिर से शुरू होती है जहां कथित रूप से आठ साल की बच्ची के साथ हफ्ते भर तक बंधक बनाकर बलात्कार किया गया और बाद में हत्या कर दी गई. रिपोर्टर कठुआ के उस मंदिर में पहुंचा है, जिसका जिक्र क्राइम ब्रांच ने अपनी रिपोर्ट में किया है. रिपोर्टर भी सुधीर की ही तरह डिसक्लेमर देता है- उसकी पंक्तियां भी हुबहू – “हम आरोपियों को बचा नहीं रहे हैं. हम चाहते हैं जो भी आरोपी हो, उसे सख्त से सख्त मिलनी चाहिए.” गरज यह कि डेढ़ घंटे के प्रोग्राम में बार-बार डिसक्लेमर दिए जाते रहे.
रिपोर्टर के हाथ में चार्जशीट है. वह क्राइम ब्रांच की चार्जशीट के दावों की पड़ताल करने की बात कर रहा है. अपनी रिपोर्ट में चैनल ने जो प्रश्न खड़े किए हैं, वे हम पाठकों के सामने रख रहे हैं-
1. जिस एक कमरे के मंदिर में 4 खिड़कियां और 3 दरवाज़े हों, वहां किसी लड़की को कैसे बंधक बनाकर रखा जा सकता है?
जम्मू-कश्मीर क्राइम ब्रांच की चार्जशीट स्पष्ट रूप से बताती है कि बच्ची को लगातार बिना खाना-पीना दिए नशे की गोलियां जबरदस्ती खिलाई गई. बेहोशी की हालत में उसके साथ रेप किया गया और उसके बाद उसे देवीस्थान में एक टेबल के नीचे रखकर उसके ऊपर दो चटाई रखी और दरी से ढका गया. इसके बाद आरोपियों ने देवीस्थान को बंद कर दिया.
चार्जशीट में आगे लिखा है कि 10 जनवरी को उन्होंने बच्ची को देवीस्थान में बंद किया और अगले दिन (11.1.2018) दोपहर 12 बजे देवीस्थान को खोला गया. यानि जिस मंदिर की बात हो रही है वह सामान्य मंदिर की तरह रोज सुबह शाम खुलने वाली या चौबीसों घंटों आवाजाही वाली जगह नहीं है.
मंदिर में खिड़कियां और दरवाजे होने का यह कतई मतलब नहीं कि आसपास के लोगों को मंदिर के भीतर बेहोश कर रखी गई बच्ची का मालूम पड़े.
2. जहां हर रोज 3 गांवों के लोग पूजा- अर्चना करते हों, वहां किसी लड़की को बंधक बनाकर कैसे रखा जा सकता है?
यह दावा बेहद बचकाना है. जब देवीस्थान पर आरोपी ताला लगा सकता है, इसका मतलब है कि मंदिर हर वक्त पूजा अर्चना के लिए खुला नहीं रहता होगा या यहां सामान्य मंदिरों की तरह आवाजाही नहीं रहती.
बेहोशी की हालत में बेसुध पड़ी लड़की, जिसे टेबल के नीचे चटाई और दरी से ढका गया हो, उसके बारे में मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं को तभी पता लग सकता है, जब किसी को कोई शक हो.
3. कोई पिता अपने बेटे और अपने नाबालिग भांजे को 8 साल की एक बच्ची का रेप करने के लिए कैसे कह सकता है.
ज़ी न्यूज़ इतनी मासूमियत से दुनिया को देखता है. ऐसा लगता है कि सुधीर चौधरी ने कहीं से राजस्थान की भंवरी देवी बलात्कार मामले का जजमेंट पढ़ लिया था. जहां जज कहता है कि भारतीय संस्कृति और पंरपरा में दादा और पोता एक साथ किसी का बलात्कार कैसे कर सकते हैं. अब आज की तारीख में देखा जाय तो उस भारतीय संस्कृति और परंपरा के सबसे बड़े सरमाएदार सुधीर चौधरी और उनका चैनल ही है.
चैनल दावा कर रहा है कि वह क्राइम ब्रांच के दावे की पड़ताल कर रहा है. लेकिन चालाकी से चार्जशीट की उन तमाम बातों को छिपा जाता है जहां क्राइम ब्रांच ने जिक्र किया कि सांझी राम ने जनवरी के शुरुआत में ही इसकी योजना बनाई थी. यह बकरवाल समुदाय को उस क्षेत्र से हटाने की योजना का हिस्सा था. यह मामला धार्मिक घृणा से प्रेरित था.
ऐसे ही आधे-अधूरे, कपोल कल्पना के निष्कर्षों की बहुतायत में ज़ी का नैतिक सवाल बेहद अनैतिक और मामले को उलझाने की कोशिश लगता है.
4. विशाल नाम का आरोपी एक ही समय में दो जगहों पर कैसे मौजूद हो सकता है?
चार्जशीट में कहा गया है विशाल जंगोत्रा को 11 जनवरी को फोन पर नाबालिक आरोपी ने सूचना दी कि अगर वह अपनी हवस पूरी करना चाहता है तो रसाना आ जाए. 12 जनवरी, 2018 को सुबह 6 बजे विशाल जंगोत्रा मेरठ से रासना पहुंचता है.
सुधीर चौधरी कहते हैं, “मुजफ्फरनगर के जिस लड़के पर कठुआ जाकर रेप करने का आरोप लगा है, वह वारदात वाले दिन मुजफ्फरनगर के ही कॉलेज में परीक्षा दे रहा था. ऐसे में सवाल यह उठता है कि, अगर उसने कठुआ जाकर रेप किया है तो उसी दिन, उसी समय कठुआ में परीक्षा कैसे दे सकता है? या परीक्षा झूठी है या रेप झूठा है?”
बताते चलें कि खतौली (जिला मुजफ्फरनगर) में विशाल का परीक्षा केंद्र होने की बात सामने आ रही है. अमर उजाला की रिपोर्ट बताती है, क्राइम ब्रांच को परीक्षा में शामिल होने वाली बात पर शक है. यही कारण है कि क्राइम ब्रांच ने अटेंडेंस रजिस्टर और सीसीटीवी फूटेज जब्त कर लिया है. ऐसे में सवाल उठता है कि ज़ी ने पांच दिनों की पड़ताल के बावजूद कॉल रिकॉर्ड जांचने की जरूरत क्यों नहीं समझी? विशाल के मोबाइल की कॉल डिटेल क्या लोकेशन दे रही थी?
5. कोई आरोपी लड़की का शव अपने घर के पास ही क्यों फेंकवाएगा?
चार्जशीट कहती है कि योजना के मुताबिक शव को हीरानगर के नहर में फेंका जाना था. हालांकि गाड़ी का इंतज़ाम न हो सका. उसके बाद शव को देवीस्थान में रखा गया. सभी आरोपी अपने घर चले गए. 15 जनवरी, 2018 को सांझी राम ने बाकी आरोपियों को बताया, किशोर ने गाड़ी लाने से मना कर दिया है और शव को जंगल में फेंक देना चाहिए. उसने कहा, अगले दिन देवीस्थान में फंदा के लिए लोग आएंगें इसलिए शव को देवस्थान में नहीं रखना चाहिए. फंदा का आयोजन सांझी राम को ही करना था.
पूरे डेढ़ घंटे के शो में सुधीर चौधरी ने यह बताने की जहमत नहीं उठाई कि चार्जशीट में आरोपियों के जुर्म कुबूलने की बात लिखी गई है. साथ ही जिस काउ शेड में बच्ची को रखने की बात उनका रिपोर्टर दिखाता है, उस सिलसिले में चार्जशीट में साफ लिखा है, यह कहानी बरगलाने के लिए आरोपी सब-इंस्पेक्टर दत्ता ने रची थी.
‘हिंदू होने पर शर्मिंदगी जता रहे हैं’
सुधीर चौधरी फिल्मी कलाकारों के कैंपेन से खासा नाराज़ दिखे. उन्होंने आरोपियों के हिंदू होने की वजह से सोशल मीडिया में ‘अशेम्ड टू बी हिंदू’ जैसे वाक्यों से बहुत परेशान दिखे. उन्होंने कहा, मीडिया और क्राइम ब्रांच ने इस मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की. हालांकि, क्राइम ब्रांच ने कहीं भी विशिष्टता से किसी धर्म का जिक्र नहीं किया है. नाम पढ़कर ही अंदाजा लगाया जा सकता है.
पीड़ित बच्ची की तस्वीर, डिजाइनर पत्रकार, रेप के आंकड़ें
मीडिया एथिक्स के मुताबिक पीड़ित का नाम और तस्वीर नहीं दिखाया जाना चाहिए था. इस मामले में कोर्ट ने बाकायदा आदेश जारी किया हुआ है कि पीड़िता का नाम और चित्र न दिखाया जाए. यह सरासर गलती थी. हालांकि कोर्ट के हस्तक्षेप और कुछ चैनलों को नोटिस भेजे जाने के बाद बच्ची की तस्वीर दिखाई जानी बंद हुई. लेकिन नाम उजागर करने में ज़ी भी शामिल था.
सुधीर पत्रकारों के विरोध पर भी बिफरे. उन्होंने मीडिया को ‘अर्धसत्य’ दिखाने का दोषी बताया. दिल्ली में हुए नॉट इन माइ नेम को फैशन करार दिया. “छोटी बच्चियों को विरोध प्रदर्शन में शामिल करने वाले लोग बच्चों का बचपन खराब कर रहे हैं.”
रेप के आंकड़े देते हुए कठुआ की घटना को यह साबित करने की कोशिश में लगे रहे कि यह घटना भी बाकी रेप की घटनाओं की ही तरह है. एक बार भी सुधीर ने आरोपियों को संरक्षण दिए जाने की बात नहीं कही, सुधार ने आरोपियों के पक्ष में रैली करने वाले दो भाजपा के मंत्रियों की बात नहीं की, सुधीर ने बार एसोसिएशन द्वारा चार्जशीट दाखिल करने से रोकने और पीड़िता के वकील को दी जा रही धमकियों को भी संज्ञान लेना जरूरी नहीं समझा.
सुधीर यहीं नहीं रुके. इंटरनेट ट्रोल की तर्ज पर ही वे व्हाटअबाउटरी यानी “तब कहां थे जब” टाइप कुतर्कों पर उतर आए. उन्होंने पूछा कि कठुआ बलात्कार पर बोलने वाली जनता सासाराम, असम पर चुप क्यों है. सुधीर की भाषा सोशल मीडिया पर दक्षिणपंथी ट्रोल की भाषा है क्योंकि ऐसे ही तर्क आपको सोशल मीडिया पर आसानी से मिल जाएंगें.
सुधीर की सत्ता को आउटसोर्स कर दी गई अक्ल के चलते यह समझ पाना बेहद कठिन है कि रेप पर सख्त कारवाई की मांग की चाहे वह किसी भी धर्म का हो, समुदाय का हो होना ही चाहिए. कठुआ या उन्नाव का मामला एक टिपिंग प्वाइंट है क्योंकि आरोपियों के समर्थन में जुलूस निकल रहा है, सत्ताधारी विधायक उन्हें संरक्षण दे रहे हैं. सत्ता का संरक्षण प्राप्त है.
सासाराम या असम में अगर कुछ नहीं हो रहा है तो सुधीर चौधरी की सारी उम्मीदें उस सिविल सोसाइटी पर जा टिकी हैं जो शायद उनके मुताबिक देश का गृह मंत्रालय है. वो एक बार भी पलट कर बिहार और असम की भाजपा सरकारों से सवाल नहीं पूछते जिनके हाथ में लॉ एंड ऑर्डर की जिम्मेदारी है.
सुधीर के मुताबिक आंदोलन और जुलूस भारत की जनता का पसंदीदा टाइमपास है. एक पत्रकार की हैसियत से यह कहते हुए उन्हें एक बार भी इस बात का इल्म नहीं हुआ कि जनता अगर सजग नहीं होगी तो मरे हुए समाज का निर्माण होगा और एक पत्रकार तो इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता है, सुधीर जैसे लोग कर सकते हैं.
वे लोकतंत्र में आंदोलनों को असफल बताने की गरज में इस हद तक आगे चले गए कि उन्होंने भारत की आजादी के बाद हुए सभी राजनीतिक-सामाजिक आंदोलनों को असफल बता दिया. इसके लिए उन्होंने जेपी आंदोलन की झलकियां दिखाई, बताया गया कि सभी सामाजवादी दलों की कैसे दुर्गति हो गई. नेता भ्रष्टाचार के आरोपों में घिर गए. इससे ही उन्होंने निष्कर्ष दे दिया कि सामाजिक आंदोलन असफल रहे हैं. सुधीर को कहां इतनी फुर्सत है कि आंदोलनों का समाज के विभिन्न वर्गों पर पड़े प्रभाव का विश्लेषण कर सके.
दरअसल, सुधीर और ज़ी मानवीय संवेदनाओं के स्तर पर मृत हो चुके हैं. वे सत्ता के एजेंडे के प्रसार के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं. कठुआ की बात करते हुए हाफिज़ सईद के बयान को प्रमुखता से दिखाने का क्या औचित्य है? आखिर मीडिया के इसी ट्रेंड की तो आलोचना हो रही है- मुख्य मुद्दे को छोड़ मीडिया दिग्भ्रमित करने में लगा है.
मीडिया के एजेंडे का खुलासा करते-करते कब सुधीर चौधरी प्रोपगैंडा बन गए, उन्हें भी नहीं पता.
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