Newslaundry Hindi
एक चुनाव के बहाने मीडिया के मैडहाउस की झलक
देश के सबसे बड़े सूबे यूपी में राज्य मुख्यालय पर सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त पत्रकारों की समिति (एक्रेडिशन कमेटी) के चुनाव हो रहे हैं. रविवार को मतदान होगा. नजारा ग्राम प्रधानी के चुनाव से भी बदतर है.
मतदाताओं को पटाने के लिए जाति, धर्म, दारू, मुर्गा, उपहार समेत सारे टोटके आजमाए जा रहे हैं. ठेकेदार और सत्ता के गलियारों के बिचौलिये जनमत बनाने वाली पार्टियां आयोजित कर रहे हैं. सभी 92 प्रत्याशियों का दावा है कि वे पत्रकारिता से दलालों की सफाई और वास्तविक पत्रकारों को ज्यादा से ज्यादा सरकारी सुविधाएं दिलाने के लिए लड़ रहे हैं.
बीते सालों में दलालों की सफाई का शोर जितना ऊंचा होता गया है सरकारी मान्यता पाने वाले गैर पत्रकारों की संख्या बढ़ती गई है, नेताओं-अफसरों के लिए मुफीद दलालों का वर्चस्व बढ़ता गया है और खुद एक्रेडिशन कमेटी को ही तिकड़मों से व्यर्थ बना दिया गया है. साथ ही ऐसे पेशेवर पत्रकारों की संख्या भी बढ़ रही है जिन्हें पत्रकार कहलाने में शर्म आती है.
पहली बार एक वरिष्ठ पत्रकार, राजेंद्र द्विवेदी ने मुख्य निर्वाचन अधिकारी को चिट्ठी लिखकर शिकायत की है कि अध्यक्ष पद का एक प्रत्याशी इस चुनाव में होने वाले भारी खर्च का हवाला देकर व्यापारियों से एक-एक लाख रूपए की वसूली कर रहा है. अगले चुनाव से प्रत्याशियों को अपने आपराधिक रिकार्ड का ब्यौरा देना जरूरी कर दिया जाना चाहिए और चुनाव प्रचार के खर्चे का हिसाब लिया जाना चाहिए. अगर कोई प्रत्याशी वसूली करता पाया जाए तो उसका पर्चा खारिज किया जाना चाहिए.
एक्रेडिशन कमेटी के पूर्व अध्यक्ष प्रांशु मिश्र का कहना है, “बीते सात-आठ सालों में पत्रकारों के बीच एक नए तरह का सिंडिकेट तैयार हुआ है जो ट्रांसफर-पोस्टिंग कराने और विभागों के टेंडर मैनेज करने का काम करता है. इस सिंडिकेट का राजनीतिक चेहरा कोई और होता है और पत्रकारीय चेहरा कोई और. धंधा चलाने के लिए पैसा बहाकर एक्रेडिशन कमेटी पर कब्जा किया जाता है.”
जाहिर है यह सब भ्रष्ट नेताओं और अफसरों के इस खेल में शामिल हुए बिना संभव नहीं है. अब इस सिंडिकेट से प्रेरित कुछ नए खिलाड़ी भी चुनाव में उतरे हैं जिनका खर्चा वे ठेकेदार उठा रहे हैं जिन्हें ऐसे प्रत्याशियों के जीत जाने के बाद अपना निवेश ब्याज सहित वापस मिलने की उम्मीद है.
एक्रेडिशन कमेटी के तीन प्रमुख काम हुआ करते थे. एक्रेडिशन के योग्य अनुभवी पत्रकारों के नामों की सिफारिश करना, मुख्यमंत्री-मंत्रियों और अफसरों की प्रेस कांफ्रेंसों की इस तरह व्यवस्था करना कि एक समय में एक ही कांफ्रेस हो और पेशेवर रिपोर्टिंग के काम में आने वाली दिक्कतों को शासन के समक्ष उठाना.
इन दिनों पहले मनमाने ढंग से एक्रेडिशन हो जाते हैं फिर एक्रेडिशन कमेटी का गठन किया जाता है. पिछली कमेटी के साथ यही हुआ था. इसका नतीजा यह हुआ है कि मोबाइल के सिम बेचने वाले, ट्रैवल एजेंट, ड्राइविंग स्कूल चलाने वाले, झोला छाप डाक्टर, नेताओं के पीआरओ और ड्राइवर, सूचना विभाग के अफसरों के बीबी-बच्चे, राजनीतिक दलों के प्रवक्ता, दुकानदार सभी जरूरी कागजातों का इंतजाम कर सरकारी मान्यता प्राप्त पत्रकार बना दिए जाते हैं.
वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष और भाजपा नेता हृदय नारायण दीक्षित भी विधायक रहते हुए पिछले साल तक मान्यता प्राप्त पत्रकार हुआ करते थे जो नियमों के विरूद्ध था.
पिछली कमेटी में उर्दू मीडिया के करीब पचासी मुसलमान पत्रकारों में एक को भी जगह नहीं दी गई. जो इस चुनाव में मुद्दा है. अल्पसंख्यक तबके के पत्रकार कह रहे हैं कि भाजपा ने पिछले चुनाव में एक भी मुसलमान को प्रत्याशी बनाने लायक नहीं समझा और यहां एक्रेडिशन कमेटी में भी एक मुसलमान मेंबर नहीं रखा गया. दोनों में अंतर क्या है?
अध्यक्ष पद के एक प्रत्याशी नीरज श्रीवास्तव का दावा है कि अब एक्रेडिशन देने के लिए रिश्वत भी चलने लगी है. इस मारामारी का कारण यह है कि एक्रेडिशन कार्ड सचिवालय का पास भी होता है जिसके जरिए धंधेबाजों के लिए पत्रकार के लबादे में अपने मतलब के नेताओं, अफसरों से मिलना और प्रभावित करना आसान हो जाता है.
प्रेस कांफ्रेसों की व्यवस्था का काम अब आमतौर पर वह पार्टी करती है जिसकी सरकार होती है. तीसरा काम पेशेवर रिपोर्टिंग में आने वाली समस्याओं को शासन स्तर पर उठाना था लेकिन इसके बजाय अब एक्रेडिशन कमेटी पत्रकारों के कल्याण के उन कामों का दावा करने लगी है जो मीडिया हाउसों को करने चाहिए थे. इनमें पत्रकारों को मकान और सस्ते प्लाट, सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज, राज्य परिवहन निगम की बसों में मुफ्त यात्रा और रेल में रियायती दर पर यात्रा की सुविधाएं शामिल हैं.
यूपी में पत्रकार अब एक कांस्टिट्युएंसी यानी निर्वाचन क्षेत्र हं और एक्रेडिशन कमेटी का चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी राजनेताओं की तरह चुनाव जिताने की शर्त पर पूरे किए जाने वाले वादे करने लगे हैं. जनसंपर्क के लिए भंडारा और जगराते भी लखनऊ में होने लगे हैं.
इस चुनाव के मुख्य निर्वाचन अधिकारी, किशोर निगम का कहना है, 1984 में जब मेरा एक्रेडिशन हुआ था तब कुल 123 पत्रकार इस समिति के सदस्य थे जिनमें आकाशवाणी, दूरदर्शन और प्रेस इन्फार्मेशन ब्यूरो के कर्मचारी भी शामिल थे. अब 750 से ज्यादा एक्रेडिटेड पत्रकार हैं. हालत यह है प्रेस कांफ्रेसों में बैठने की जगह मिलने में मुश्किल होने लगी है.
Also Read
-
Adani met YS Jagan in 2021, promised bribe of $200 million, says SEC
-
Pixel 9 Pro XL Review: If it ain’t broke, why fix it?
-
What’s Your Ism? Kalpana Sharma on feminism, Dharavi, Himmat magazine
-
मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग ने वापस लिया पत्रकार प्रोत्साहन योजना
-
The Indian solar deals embroiled in US indictment against Adani group