Newslaundry Hindi
चंपारण में सत्याग्रह का पहला फल लगा
चंपारण भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का खुलासा करता है. यह आंदोलन साम्राज्यवादी उत्पीड़न के लिए लगाई गई सभी भौतिक ताकतों के विरूद्ध लड़ने के लिए एक अनजान कार्य प्रणाली के बारे में जानकारी देता है. गांधीजी ने इसे सत्याग्रह के नाम से पुकारा. चम्पारण सत्याग्रह के परिणाम ने राजनीतिक स्वतंत्रता की अवधारणा और पहुंच को पुनर्भाषित किया और पूरे ब्रिटिश-भारतीय समीकरण को एक जीवंत मोड़ पर खड़ा कर दिया.
चम्पारण में ब्रिटिश बागान मालिकों ने जमींदारों की भूमिका अपना ली थी और वे न केवल वार्षिक उपज का 70 प्रतिशत भूमि कर वूसल कर रहे थे, बल्कि उन्होंने एक छोटे से मुआवजे के बदले किसानों को हर एक बीघा (20 कट्टे) जमीन के तीन कट्टे में नील की खेती करने के लिए मजबूर किया. उन्होंने कल्पना से बाहर अनेक बहानों के तहत गैर कानूनी उपकर ‘अबवाब’ भी लागू किया. यह कर विवाह में ‘मारवाच’, विधवा विवाह में ‘सागौरा’, दूध, तेल और अनाज की बिक्री में ‘बेचाई’ के नाम से जाना जाता था. उन्होंने प्रत्येक त्यौहार पर भी कर लागू किया था. अगर किसी बागान मालिक के पैर में पीड़ा हो जाए, तो वह इसके इलाज के लिए भी अपने लोगों पर ‘घवही’ कर लागू कर देता था.
बाबू राजेन्द्र प्रसाद ने ऐसे 41 गैर कानूनी करों की सूची बनाई थी. जो किसान कर का भुगतान करने या नील की खेती करने में नाकाम रहते थे उन्हें शारीरिक दंड दिया जाता था. फरीदपुर के मजिस्ट्रेट रहे ईडब्ल्यूएल टॉवर ने कहा था- ‘नील की एक भी ऐसी चेस्ट इंग्लैंड नहीं पहुंची, जिस पर मानव रक्त के दाग न लगे हों. मैंने रयत देखे, जो शरीर से आर-पार निकले हुए थे. यहां नील की खेती रक्तपात की एक प्रणाली बन गई है. डर का बोलबाला था. ब्रिटिश बागान मालिक और उनके एजेंट आतंक के पर्याय थे.’
याचिकाओं और सरकार द्वारा नियुक्त समितियों के माध्यम से स्थिति को सुधारने के अनेक प्रयास किये गये, लेकिन कोई राहत नहीं मिली और स्थिति निराशाजनक ही रही. गांधीजी नील की खेती करने वाले एक किसान राजकुमार शुक्ला के अनुरोध पर चम्पारण का दौरा करने पर सहमत हो गए, ताकि वहां स्थिति का स्वयं जायजा ले सकें. बागान मालिक, प्रशासन और पुलिस के बीच गठजोड़ के कारण एक आदेश बहुत जल्दी में जारी किया गया कि गांधीजी की उपस्थिति से जिले में जन आक्रोश फैल रहा है, इसलिए उन्हें तुरंत जिला छोड़ना होगा या फिर दंडात्मक कार्रवाई का सामना करना होगा.
गांधी ने ना केवल सरकार और जनता को इस आदेश की अवज्ञा करने की घोषणा करते हुए चौंका दिया, बल्कि यह इच्छा भी जाहिर की कि जब तक जनता चाहेगी वे चंपारण में ही अपना घर बना कर रहेंगे. मोतिहारी जिला अदालत में मजिस्ट्रेट के सामने गांधीजी ने जो बयान दिया, उससे सरकार चकित हुई और जनता उत्साहित हुई थी.
गांधीजी ने कहा था कि कानून का पालन करने वाले एक नागरिक के नाते मेरी पहली यह प्रवृत्ति होगी कि मैं दिए गए आदेश का पालन करूं, लेकिन मैं जिनके लिए यहां आया हूं, उनके प्रति अपने कर्तव्य की हिंसा किये बिना मैं ऐसा नहीं कर सकता. मैं यह बयान केवल दिखावे के लिए नहीं दे रहा हूं कि मैंने कानूनी प्राधिकार के प्रतिसम्मान की इच्छा के लिए दिए गए आदेश का सम्मान नहीं किया है, बल्कि यह हमारे अस्तित्व के उच्च कानून के प्रति मेरे विवेक की आवाज भी है. यह समाचार जंगल की आग की तरह फैल गया और अदालत के सामने अभूतपूर्व भीड़ इकट्ठी हो गई.
बाद में गांधीजी ने इसके बारे में लिखा कि किसानों के साथ इस बैठक में मैं भगवान, अहिंसा और सत्य के साथ आमने सामने खड़ा था. स्थिति से किस तरह निपटा जाए, इसके बारे में मजिस्ट्रेट और सरकारी अभियोजक की समझ में कुछ नहीं आ रहा था, वे मामले को स्थगित करना चाहते थे. गांधीजी ने कहा था कि स्थगन जरूरी नहीं है, क्योंकि वह अवज्ञा के दोषी हैं.
गांधीजी के दृष्टिकोण की नवीनता अत्यंत विनम्रता, पारदर्शिता, लेकिन फिर भी बहुत दृढ़ और मजबूत व्यक्तित्व से लोगों ने देखा कि उन्हें गांधी के रूप में एक उद्धारकर्ता मिल गया है, जबकि सरकार अत्यंत विरोधी है. मजिस्ट्रेट ने मामले को खारिज कर दिया और कहा कि गांधीजी चम्पारण के गांवों में जाने के लिए आजाद हैं.
गांधीजी ने वायसराय और उपराज्यपाल तथा पंडित मदन मोहन मालवीय को पत्र लिखे. पंडित मदन मोहन मालवीय ने हिन्दू विश्वविद्यालय के काम में व्यस्तता के कारण चम्पारण के लिए अपनी अनुपलब्धता के बारे में उन्हें पत्र लिखा. सीएफ एंड्रयूज नामक एक अंग्रेज, जिन्हें लोग प्यार से दीनबंधु कहते थे, गांधीजी की सहायता के लिए पहुंचे. पटना के बुद्धिजीवी बाबू ब्रजकिशोर प्रसाद, बैरिस्टर मज़ारुल हक, बाबू राजेंद्र प्रसाद तथा प्रोफेसर जेपी कृपलानी के नेतृत्व में युवाओं की अप्रत्याशित भीड़ गांधीजी की सहायता के लिए उनके चारों ओर इकट्ठी हो गई.
गांव की दायनीय हालत देखकर गांधीजी ने स्वयंसेवकों की सहायता से छह ग्रामीण स्कूल, ग्रामीण स्वास्थ्य केन्द्र, ग्रामीण स्वच्छता के लिए अभियान और नैतिक जीवन के लिए सामाजिक शिक्षा की शुरूआत की. देशभर के स्वयंसेवकों ने सौंपे जाने वाले कार्यों के लिए अपना नामांकन कराया. इन स्वंयसेवकों में सरवेंट आफ इंडियन सोसायटी के डॉ. देव भी थे.
पटना के स्वयसेवकों ने आत्म निर्धारित श्रेष्ठता का परित्याग करके एक साथ रहना, साधारण आम भोजन खाना और किसानों के साथ भाई-चारे का व्यवहार करना शुरू कर दिया. उन्होंने खाना बनाना और बर्तन साफ करना भी शुरू कर दिया. पहली बार किसान अन्यायी प्लांटरों से परेशान होकर निडर रूप से अपनी परेशानियां दर्ज करवाने के लिए आगे आए.
व्यवस्थित जांच मामले के तर्कसंगत अध्ययन और सभी पक्षों के मामले की शांतिपूर्ण सुनवाई, जिसमें ब्रिटिश प्लांटर्स भी शामिल थे तथा न्याय के लिए आह्वान के कारण सरकार ने एक जांच समिति का गठन करने के आदेश दिए. इस कमेटी में गांधीजी भी एक सदस्य थे, जिन्होंने आखिर में चम्पारण से टिनखटिया प्रणाली के पूर्ण उन्नमूलन की अगुवाई की.
चंपारण से सबक
चंपारण से नई जागृति आई और इसने यह दर्शाया है कि:
1- कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि उसकी अन्यायपूर्ण व्यवस्था हमारी दुश्मन है.
2- अहिंसा में, क्रोध और घृणा किसी कारण और दृढ़ता को रास्ता प्रदान करते हैं.
3- अन्यायपूर्ण कानून के साथ सभ्यतापूर्ण असहयोग और अपेक्षित दंड को प्रस्तुत करने तथा सच्चाई के अनुपालन की इच्छा ऐसे बल का सृजन करती है, जो किसी सत्तावादी ताकत को निस्तेज करने के लिए पर्याप्त है.
4- निडरता, आत्मनिर्भरता और श्रम की गरिमा स्वतंत्रता का मूल तत्व है.
5- यहां तक कि शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्ति भी चरित्र बल पर ताकतवर बनकर विरोधियों को परास्त कर सकता है.
चंपारण सत्याग्रह के बारे में बाबू राजेन्द्र प्रसाद ने लिखा है कि- “राष्ट्र ने अपना पहला पाठ सीखा और सत्याग्रह का पहला आधुनिक उदाहरण प्राप्त किया.”
(लेख साभार पीआआईबी ब्लॉग)
Also Read
-
Delhi’s ‘Thank You Modiji’: Celebration or compulsion?
-
Dhanyavaad Modiji, for keeping independent journalism premium with 18% GST
-
DU polls: Student politics vs student concerns?
-
Margins shrunk, farmers forced to switch: Trump tariffs sinking Odisha’s shrimp industry
-
Beyond Brotherhood: Why the new Saudi-Pakistan pact matters