Newslaundry Hindi
स्वप्ननगरी का चक्रव्युह तोड़ने की कोशिश की थी नरेंद्र झा ने
टीवी, थियेटर और सिनेमा की दुनिया का बेहद जाना पहचाना नाम थे नरेंद्र झा. इस घोर व्यावसायिक युग में खुद को सिर्फ और सिर्फ अपनी काबिलियत से स्थिर कर पाए थे. निजी जीवन में पहले से ही दो बार हार्ट अटैक झेल चुके नरेंद्र खुद को तीसरी बार नहीं संभाल सके. आखिरकार लंबे समय से अपने शरीर से संघर्ष कर रहें अभिनेता नरेंद्र ने 14 मार्च को अंतिम सांसें ली.
21वीं सदी की शुरुआत से ही फिल्मों में कदम रखने वाले नरेंद्र ने कई बेमिसाल किरदारों को निभाकर दर्शकों के बीच अपनी पहचान बनाई है. बिहार के मधुबनी में जन्में नरेंद्र ने यूं तो हिन्दी समेत अन्य कई क्षेत्रीय फिल्मों में काम किया लेकिन निर्देशक विशाल भारद्वाज की फिल्म हैदर में निभाया हिलाल मीर, राहुल ढोलकिया की फिल्म रईस में मूसा भाई, घायल वंस अगेन में निभाया हुआ राज बंसल, और टीवी की दुनिया में हिट हुए सीरियल ‘संविधान’ में निभाया पाकिस्तान के जन्मदाता जिन्ना का किरदार उन्हें औरों से अलग और विविधता प्रदान करता है.
गौरतलब है कि संविधान से पहले वो फिल्म फंटूस और श्याल बेनेगल का ड्रीम प्रोजेक्ट ‘नेता जी सुभासचन्द्र बोस: द लास्ट हीरो’ में हबीबुर रहमान का किरदार निभा चुके थे. उनका यह किरदार श्याम बेनेगल को इतना पसंद आया कि मौजूदा समय में भी श्याम उन्हें हबीब के नाम से ही पुकारते थे.
सिविल सर्विसेज में जाने की चाह दिल में रखने वाले नरेंद्र को जब टीवी का चस्का लगा तो वे एक्टिंग की तरफ़ बढ़ गए. सिविल सर्विसेस में जाने का पुराना सपना वो भूल गए. कह सकते हैं उन्हें इस ओर टेलीविज़न की क्रान्ति ने मोड़ दिया था. 1992 में श्रीराम सेंटर फॉर आर्ट एंड कल्चर से एक्टिंग में डिप्लोमा कर औरों की तरह संघर्ष करने मुंबई पहुंच गए.
नरेंद्र बताते थे कि मुंबई पहुंच कर उन्होंने सबसे पहले अभिमन्यु की तरह फिल्मी दुनिया का चक्रव्युह को तोड़ने के कॉन्सेप्ट को समझा. पहले कुछ सालों में मॉडलिंग करते हुए वे टीवी की दुनिया में शामिल हुए थे. मॉडलिंग की ओर पहला कदम अभिनेता इसलिए उठाते हैं क्योंकि यह फील्ड मुंबई में सरवाइव करने का मौका देती है. नरेन्द्र के साथ भी यही संयोग बना.
झा जिस दौर में मॉडलिंग की दुनिया में प्रवेश कर रहे थे उसी दौर में डीनो मारियो, अर्जुन रामपाल जैसे अभिनेता भी मॉडलिंग के क्षेत्र में अपने हाथ आजमा रहे थे. कैप्टन हाउस, आम्रपाली, छूना है आसमान, चेहरा, एक घर बनाऊंगा, शांति जैसे सीरियल में अपनी आवाज और एक्टिंग से छोटे पर्दे पर पहचान बनाने वाले नरेद्र ने 2003 में बनी इम्तियाज़ पंजाबी की हास्य फिल्म फंटूस से बड़े पर आकर दर्शकों को अचंभित कर दिया.
उनका निभाया 10वीं शताब्दी के राजा का किरदार आज भी उस पीढ़ी की स्मृतियों में ताजा है, जो उसी फिल्म के एक किरदार चिंदी चोर के बरक्स ही था. इसके बाद उन्हे नेता जी सुभाषचंद्र बोस: द लास्ट हीरो, तेलगु फिल्म छत्रपती और हिन्दी फिल्म कच्ची सड़क में अच्छे किरदारों के साथ काम मिलना शुरू हो गया.
भले ही नरेन्द्र अब फिल्म और टीवी की दुनिया में खुद को स्थापित कर चुके थे, लेकिन अब तक उन्हें दर्शकों ने आंखों में बिठाना शुरू नहीं किया था. 2014 में राज्यसभा टीवी के बेहद महत्वाकांक्षी सीरियल ‘संविधान’ में कायदे आज़म: मुहम्मद अली जिन्ना का किरदार निभाने के बाद उन्हें दर्शकों के दिल में एक स्थायी जगह मिली.
बाद में विशाल भारद्वाज की फिल्म हैदर के डॉक्टर हिलाल मीर और फिल्म रईस के मूसा भाई के रूप में वें और भी प्रगाढ़ अभिनेता के रूप में स्थापित हुए. भले ही उनका फिल्मी सफर ज्यादा लंबा नहीं रहा लेकिन यह जितना इफेक्टिव सफर रहा वह उनके हमउम्र अन्य अभिनेताओं की किस्मत में नहीं रहा.
फिल्म हैदर में रूहदार के किरदार में इरफान खान के साथ सलाखों में बंद डॉ. हिलाल मीर का वह संवाद- ‘उससे कहना कि वो मेरा इंतकाम ले, मेरे भाई से, उसकी दोनों आंखों में गोलियां दागे, जिन आंखों ने उसकी मां पर फरेब डाले थे, वो आंखें जो उसे यतीम बना गयी,’ आज भी दर्शकों के जेहन में ताजा है. ऐसे सपोर्टिंग एक्टर कम ही होते है जो बड़े स्टार्स के साथ काम करने पर भी खुद की पहचान स्थापित कर सकें. नरेंद्र ऐसा करने में सफल रहे.
ऐसा इसलिए भी हो पाया कि वे पढे-लिखे अभिनेता थे. उन्हें खुद द्वारा सेलेक्ट की हुई फिल्मों की विषयवस्तु और किरदार का खास ध्यान रहता था.
पहले से ही शादीशुदा और एक बच्ची की मां पंकजा ठाकुर से प्रेम विवाह करने वालें नरेंद्र को रूढ़िवादी परम्पराओं के खिलाफ खड़े होने वाले अभिनेताओं में भी गिना जाएगा. गौरतलब है कि पंकजा सेंसर बोर्ड की पूर्व सीईओ रह चुकी है. और दोनों की प्रेम कहानी बहुत ही रहस्य में रही.
हिन्दी सिनेमा में अपनी मजबूत उपस्थिती दर्ज करा चुके नरेंद्र पूरे फिल्मी जीवन में खुद की एक्टिंग के अलावा अनुशासन, भाषा पर अच्छी पकड़ आदि पर ध्यान देते रहे. यही बातें उन्हे औरों से अलग करती है. तभी तो हैदर से लेकर, हमारी अधूरी कहानी, फोर्स-2, शोरगुल, काबिल और हालिया फिल्म विराम में उनका किरदार देखा जाए तो एक्टिंग के अलावा उनकी भाषा भी दर्शकों का ध्यान खींचती हैं.
ऐसे कर्मठ और अनुशासित अभिनेता का यूं ही अचानक चले जाना हिन्दी सिनेमा को रिक्त कर गया है. वे रहते तो अभी और भी ऐसे कई किरदार करते जिनकी जरूरत दर्शकों और सिनेमा दोनों को थी.
Also Read
-
The Rs 444 question: Why India banned online money games
-
‘Total foreign policy failure’: SP’s Chandauli MP on Op Sindoor, monsoon session
-
On the ground in Bihar: How a booth-by-booth check revealed what the Election Commission missed
-
A day in the life of an ex-IIT professor crusading for Gaza, against hate in Delhi
-
Crossing rivers, climbing mountains: The story behind the Dharali stories