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रम में राम, जिन में जानकी! जय श्रीराम, हो गया काम
‘व्हिस्की में विष्णु बसे, रम में बसे हैं राम, जिन में माता जानकी, ठर्रे में हनुमान, बोलो सियावर रामचन्द्र की जय’ भगवान विष्णु, भगवान राम, माता जानकी और हनुमान को मदिरा से जोड़कर हल्की तुकबंदी पहली बार किसी ने संसद में सुनाई थी.
बकौल बीजेपी, संसदीय इतिहास में पहली बार किसी सांसद ने भगवान को व्हिस्की, रम और ठर्रे से जोड़कर उनका अपमान किया था. बयान देने वाले सांसद थे समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सदस्य नरेश अग्रवाल. वही नरेश अग्रवाल जो आज अपने सुपुत्र के साथ सफेदी की चमकार वाले भाजपाई ‘बाथटब’ में बैठ गए हैं. नहाकर निकलेंगे तो साफ-सुथरे हो जाएंगे. सारे आरोप सारे दाग धुल जाएंगे.
संभव है नरेश अगली बार किसी रैली में, किसी सभा में या किसी मंच पर भगवा चादर ओढ़े, तिलक लगाए जय श्रीराम का नारा बुलंद करते भी नजर आएंगे. ‘नरेश पुराण’ के कुछ अध्याय का पाठ करने से पहले जुलाई 2017 को संसद में उनके बयान और बवाल को थोड़ा विस्तार से समझ लीजिए ताकि पता चले कि बीजेपी को नरेश अग्रवाल के रुप में कैसा नगीना मिला है और जरुरत पड़ने पर कोई पार्टी कैसे-कैसे नगीने को अपने मुकुट में सजा सकती है.
वो तारीख थी 19 जुलाई, 2017. उस दिन गौरक्षा के नाम पर लिंचिग की मानसिकता पर बोलते हुए नरेश अग्रवाल ने बीजेपी सांसदों से सवाल भी पूछा था कि गाय अगर हमारी माता है तो बैल क्या है? एक सवाल पर शोर हुआ तो दूसरा सवाल दागा. अच्छा बछड़ा और सांड हमारा क्या हुआ? गौरक्षा और गौहत्या पर बहसें तो बहुत हुई थी लेकिन पहली बार बीजेपी के सांसदों से किसी सांसद ने सवाल पूछ दिया था कि गाय हमारी माता है तो बैल क्या हुआ? बछड़ा और सांड रिश्ते में हमारा क्या लगता है? नरेश अग्रवाल के इस बयान पर बीजेपी को भड़कना था, सो भड़क गई.
बीजेपी सांसदों ने शोर मचाना शुरु किया. दर्जनों सांसद नरेश अग्रवाल माफी मांगो, माफी मांगो, माफी मांगो के नारे लगाने लगे. उनके बयान को संसद की कार्यवाही से निकालने की मांग होने लगी लेकिन अग्रवाल टस से मस नहीं हो रहे थे. बीजेपी सांसद जितना ही बवाल कर रहे थे, नरेश अग्रवाल उतना ही मजे ले रहे थे.
सत्ता पक्ष के हमले के बीच भी गाय, बछड़े और राम पर चिढ़ाने वाली फुलझड़ी छोड़ रहे थे. शोर-शराबे के बीच बीजेपी सांसद और पार्टी महासचिव भूपेन्द्र यादव, वित्तमंत्री अरुण जेटली, केन्द्रीय मंत्री अनंत कुमार, मुख्तार अब्बास नकवी जैसे दिग्गजों ने नरेश अग्रवाल पर माफी मांगने का दबाव बनाया. जेटली और अनंत कुमार ने कहा कि नरेश अग्रवाल संसद में बयान दिया इसलिए बच गए, बाहर दिया होता तो मुकदमा हो जाता. जेटली ने नरेश अग्रवाल के बयान को देवताओं के अपमान के साथ-साथ देश के हिन्दुओं का अपमान घोषित कर दिया.
जेटली और अनंत कुमार इस बात पर बुरी तरह तमतमाए हुए थे कि भगवान को शराब से क्यों जोड़ा? बीजेपी सांसदों के शोर के बीच एक सांसद ने यहां तक कह दिया कि अगर यही बात संसद के बाहर कही होती तो नरेश अग्रवाल की लिंचिग हो जाती. बीजेपी सांसदों ने इतना गला-फाड़ हंगामा किया कि उस दिन राज्यसभा चल नहीं सकी. संसद की कार्यवाही से नरेश अग्रवाल का बयान भी निकाल दिया गया और उनसे खेद भी व्यक्त करवाया गया, जो उनकी तरफ से सिर्फ औपचारिकता थी- ‘अगर भावनाओं को ठेस पहुंची तो मेरा कोई ऐसा इरादा नहीं था’ टाइप.
जिस नरेश अग्रवाल के बयान पर बीजेपी सांसद उनकी लिंचिग तक की बात कह रहे थे, वही नरेश अग्रवाल भगवा चोला पहनकर ‘कमल सरोवर’ में नहाने की खातिर बीजेपी के मुख्यद्वार से पार्टी में दाखिल हो चुके हैं.
ऐसा नहीं है कि नरेश अग्रवाल को कल-परसों सपने में राम लला ने दर्शन दिए और आदेश दिया कि जाओ वत्स, बीजेपी में शामिल होकर देश का कल्याण करो या फिर उन्हें कोई परम ज्ञान प्राप्त हो गया और वो बीजेपी में शामिल हो गए. बात सिर्फ इतनी है कि राज्यसभा के लिए सपा से उनका टिकट कटा तो उन्हें अपना सियासी भविष्य बीजेपी में नजर आया. यह काम तैंतीस साल के सियासी करियर में वे सात बार पहले भी कर चुके हैं, वही उन्होंने आठवीं बार किया है.
नरेश सात बार विधायक रहे. अलग-अलग पार्टी के झंडे से लड़ते-जीतते रहे. इधर से कटे तो उधर घुसे. उधर से कटे तो इधर घुसे. जिधर मिला, उधर घुसे. तो नरेश अग्रवाल साहब कांग्रेस से शुरु होकर हर पार्टी के गलीचों पर गुजरते हुए अब बीजेपी में पार्क हो गए हैं. बीच में अपनी पार्टी भी बनाकर देख चुके हैं. घाट-घाट का पानी पीने वाले कलाबाज नेता हैं. हर पार्टी का पानी पी पीकर बीजेपी को कोसते रहे हैं. बोलने के मामले में बेलगाम रहे हैं. टीवी कैमरे के सामने छोटी बाइट देते हैं लेकिन मिर्च-मसाले की मात्रा उसमें काफी होती है.
आज ही की बात करें तो नरेश अग्रवाल अपनी नई पार्टी के मुख्यालय में अपने अभिनंदन वक्तव्य के दौरान भी कुछ ऐसा बोल गए कि उनके चुप होते ही वहां बैठे बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा को सफाई देनी पड़ी. अग्रवाल कह गए कि ‘फिल्मों में काम करने वाली से मेरी हैसियत कम कर दी गई. फिल्मों में डांस करने वालों के नाम पर हमारा टिकट काटा गया, ये सही नहीं है.’
उनका इशारा जया बच्चन की तरफ था. जिस पार्टी के मंच से वो जया बच्चन को फिल्मों में डांस करने या काम करने वाली बता रहे थे, उस पार्टी में हेमा मालिनी, किरण खेर, रुपा गांगुली, स्मृति इरानी से लेकर कई फिल्मी कलाकारों का स्वागत-सत्कार टिकट और कुर्सी से होता रहा है. सो संबित पात्रा ने तुरंत माइक संभाला और अग्रवाल के बयान को रफू करते हुए अपने विचारों का पैबंद लगाते हुए बोले- ‘चाहे चलचित्र में हो चाहे जीवन के किसी भी क्षेत्र में हो, हम सबका सम्मान करते हैं.’ इस प्रकार पहले ही दिन मुंह खोलते ही नरेश अग्रवाल ने अपना नमूना पेश कर दिया है.
दूसरे दलों से पार्टी में शामिल होने वाले नेताओं के लिए कोई शिक्षा-दीक्षा का कार्यक्रम अगर होता होगा तो हो सकता है कि नरेश अग्रवाल को भी बताया जाए कि आपकी बेलगामी के दिन अब बीत गए. थोड़ा सोच समझकर बोला कीजिए. हो सकता है कि देशप्रेम, गौप्रेम, मोदी प्रेम, संघ प्रेम, पार्टी प्रेम की सारी क्लासेज अटेंड करने के बाद नरेश अग्रवाल थोड़े बदल जाएं लेकिन ये आसान नहीं है.
माइक के पास पहुंचते ही उनकी जुबान से कुछ न कुछ ऐसा निकलने का खतरा बना रहेगा जिसपर पैबंद लगाने के लिए किसी संबित पात्रा, सुधांशु त्रिवेदी या किसी प्रवक्ता को आकर कहना पड़ेगा कि ये उनके निजी विचार हैं, पार्टी का कोई लेना-देना नहीं.
बीजेपी में बीते चार सालों में एक से एक कलाकार और कालबाज नेता शामिल हुए हैं. स्वामी प्रसाद मौर्या से लेकर सुखराम और मुकुल रॉय तक लेकिन कभी पार्टी प्रवक्ता को ऐसे पैबंद नहीं लगाने पड़े, जैसे आज पात्रा साहब ने लगाए हैं. यहां तक सुषमा स्वराज जैसी विदेश मंत्री को, जो वीजा और विदेश मामलों के अलावा किसी मुद्दे पर शायद ही ट्वीट करती हैं, उन्होंने ने भी नरेश अग्रवाल के बयान की निंदा की है.
बीजेपी में अपनी इंट्री की वजह से नरेश अग्रवाल ट्विटर में टॉप ट्रेंड पर हैं. नरेश अग्रवाल के बारे में बीजेपी नेताओं और संघ के विचारकों के पुराने बयान ट्विटर पर तैर रहे हैं, जिसमें उनपर कई तरह के संगीन आरोप हैं. राकेश सिन्हा जैसे संघ विचारकों ने तो पाक से उनके रिश्तों की एनआईए से जांच की मांग तक कर दी थी.
गूगल पर सर्च के दौरान उनके कुछ और ऐसे बयान दिखे, जो उनके बेअंदाज होने के सबूत हैं. दिसंबर, 2017 में नरेश अग्रवाल ने पाकिस्तानी जेल में बंद कुलभूषण जाधव मामले में विवादास्पद बयान दिया. उन्होंने कहा था, ‘किसी देश की क्या नीति है, वह देश जानता है. अगर उन्होंने कुलभूषण जाधव को अपने देश में आतंकवादी माना है तो वे उस हिसाब से व्यवहार करेंगे. हमारे देश में भी आतंकवादियों के साथ कड़ा व्यवहार करना चाहिए.’
इस बयान पर देश भर में नरेश अग्रवाल का तीखा विरोध किया गया था. जिस कुलभूषण जाधव को बचाने के लिए भारत जी जान से जुटा था उसे देश के ही एक सांसद ने ऐसा तमगा दे दिया था. देशप्रेम पर लहालोट होने के दौर में ऐसा बयान नरेश अग्रवाल ही दे सकते थे. कोई खेद भी नहीं था उन्हें क्योंकि वो नरेश अग्रवाल हैं, कैमरों पर कम बोलते हैं लेकिन बोलते हैं को कुछ ऐसा ही बोलते हैं.
यही नहीं इस साल 6 फरवरी, 2018 को श्रीनगर के अस्पताल से आतंकी को छुड़ा ले जाने की घटना पर नरेश अग्रवाल ने देश की सेना को लेकर विवादित बयान दिया था. नरेश अग्रवाल ने कहा कि जब हम आतंकवादियों से नहीं निपट पा रहे हैं तो पाकिस्तानी सेना आ जायेगी तो क्या हाल होगा. ये बयान उन्होंने तब दिया था, जब श्रीनगर के महाराजा हरि सिंह अस्पताल से आतंकियों ने पुलिस पर फायरिंग कर दो पुलिस वालों को घायल कर दिया और अपने साथी को भगाकर ले गए.
इस हमले में घायल दोनों पुलिसवाले शहीद हो गए. ‘भयंकर किस्म’ के राष्ट्रवादियों और देशप्रेमियों वाली पार्टी को कानपुर की भाषा में कहें तो ‘उड़ता तीर’ मिल गया है.
नरेश अग्रवाल हैं भी उसी इलाके के. हरदोई के. इसमें कोई शक नहीं कि उनका स्वजातीय जनाधार है. इसी बूते वो जीतते, पाला बदलते और ऊपर उठते रहे हैं. अब जब उनका टिकट काटकर सपा में उनके उठान को विराम लगा तो उन्होंने उठती हुई देशव्यापी पार्टी में अपने लिए ठीहा खोज लिया है. तभी तो उन्होंने कहा भी कि ‘जब तक राष्ट्रीय पार्टी में नहीं रहेंगे तो पूरे राष्ट्र की सेवा नहीं कर सकते. मैं पीएम मोदी और सीएम योगी से भी प्रभावित हूं. सरकार जिस तरह से काम कर रही है उससे यह तय है कि पीएम के नेतृत्व में उनके साथ होना चाहिए.’
तो नरेश अग्रवाल अब देश की सेवा करना चाहते हैं. जाहिर है इसके लिए उन्हें प्रधानसेवक के सेवादारों में शामिल होना ही बेहतर लगा होगा. इसी साल के शुरुआती महीनों तक उनके बेटे नितिन अग्रवाल अखिलेश यादव की सरकार में मंत्री थे. अभी तक खुद अखिलेश की पार्टी से राज्यसभा में थे. अब उनका कायांतरण हो गया है. अब वो कह सकते हैं जय श्रीराम, हो गया काम.
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