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चीन: ‘शी जिनपिंग विचार’ और तानाशाही समाजवाद की आहट

ब्रिटिश पत्रकार एवं राजनीति विज्ञानी सीईएम ज़ोड का एक प्रसिद्ध कथन है- ‘समाजवाद एक ऐसी टोपी है जिसे लोग अपने-अपने अनुसार पहन लेते हैं, इसलिए इसका कोई निश्चित स्वरूप नहीं है. चीनी राष्ट्रपति ने समाजवाद की सबसे नई परिभाषा दी है जो कि अपने स्वरूप से एक राष्ट्रवादी समाजवाद प्रतीत होता है.’

एनपीसी चेयरमैन झांग देजियांग ने ग्रेट हॉल में मौजूद लगभग 3000 प्रतिनिधियों के मतदान के बाद संबोधित करते हुए कहा- “राष्ट्र के उत्साह और उमंग को कायम रखने का हमारा स्वप्न ही हमें निरंतर गतिमान रखता है. शी जिनपिंग के विचारों को संपूर्ण तरीके से अध्ययन करें और व्यवहार में लाएं ताकी महान चीनी स्वप्न को साकार किया जा सके.”

यह चीन के इतिहास का महत्वपूर्ण पल था. इसके साथ ही चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग के राष्ट्रपति बने रहने के लिए निर्धारित 10 वर्ष यानी दो कार्यकाल की समय सीमा को खत्म कर दिया. अब राष्ट्रपति जिनपिंग जीवनपर्यंत अपनी इच्छानुरूप राष्ट्रपति बने रह सकते हैं.

चीन की राष्ट्रीय संसद में कल हुयी वोटिंग के दौरान 2964 सदस्यों में केवल दो सदस्यों ने इस प्रस्ताव के विरोध में वोट दिया जबकि तीन सदस्यों ने खुद को वोटिंग से दूर रखा. वोटिंग के आधार पर संविधान संसोधन करते हुए निवर्तमान महासचिव के राजनैतिक सिद्धांत जिसे ‘शी जिनपिंग के विचार’ कहा जा रहा है, को चीनी गणराज्य का आधिकारिक राजनैतिक सिद्धांत घोषित कर दिया है.

चीन सरकार की प्रचार मशीनरी द्वारा इस नए राजनीतिक सिद्धांत का जम कर प्रचार किया जा रहा है. राज्य की नयी समाजवादी वैचारिक अवधारणा चीन की सरकारी मीडिया से लेकर स्कूल, कॉलेज, इंटरनेट, टीवी का अधिग्रहण कर चुकी है.

शी जिनपिंग का नया राजनैतिक सिद्धांत 5000 वर्षों के चीनी अस्तित्व का गौरवगान और उसके पुनरुत्थान की बात करता है. यह बताता है कि 5000 वर्ष पूर्व चीन दुनिया की सबसे अग्रणी एवं विकसित सभ्यताओं में एक था. शी जिनपिंग खुद को चीन के कम्युनिस्ट नेता माओ के साथ महान चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस के साथ जोड़कर देखते हैं एवं दोनों के राजनीतिक दर्शन के साथ बढ़ते हुए एक ताकतवर तथा महान चीनी साम्राज्य के निर्माण की बात करते हैं.

‘राष्ट्रीय गौरव के पुनरुत्थान’ की बात करने वाला यह नवीन प्रतिपादित समाजवादी सिद्धांत अपने स्वरूप में राष्ट्रवादी विचारधारा की नकल जान पड़ता है.

शी जिनपिंग का राजनैतिक सिद्धांत मुख्यतः तीन चीजों को मजबूत बनाने की बात करता है. पहला, राष्ट्र. दूसरा, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी. तीसरा, खुद शी जिनपिंग.

लेकिन ताकतवर सत्ता, पार्टी और नेता अंतत: माओ जेदॉन्ग के दौर की अंधेरी, भयावह स्मृतियों को ताजा करने वाली है, जब उनकी तेजी से आगे बढ़ने और सांस्कृतिक क्रांति लाने की उल-जुलूल नीति ने लाखों लोगों की जान ले ली थी. जिनपिंग के सर्वशक्तिमान होने की स्थिति में किसी तरह के विचारों की भिन्नता के लिए जगह शेष नहीं रहेगी.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है. चीन की महत्वाकांक्षा राजनैतिक रूप से समृद्धि हासिल करके ‘सुपरपावर’ बनने की भी है. राजनैतिक वर्चस्व के लिए चीन लगातार दूसरे देशों में निवेश कर रहा है. ‘वन बेल्ट, वन रूट’ चीन की ऐसी ही एक महत्वाकांक्षी परियोजना है. इसके अलावा चीन लगातार कई अन्य देशों में नागरिक सुरक्षा के लिए निवेश कर रहा है.

‘सुपरपॉवर’ बनने की चीनी महत्वकांक्षाओं के बीच ‘शी जिनपिंग’ राष्ट्र की मजबूती की बात को अपनी ‘तानाशाही’ को गर्भ में पलते देख रहे हैं. राष्ट्र की संप्रभुता और गौरव को हासिल करने के नाम पर शी जिनपिंग ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी एवं स्वयं की एकीकृत सत्ता स्थापित कर दी है.

सामंतवादी चीन अपने स्वरुप से अन्य साम्यवादी एवं सत्तावादी तानाशाह देशों से अलग रहा है. लीबिया, अंगोला, मिस्र, जिम्बाब्वे जैसे सभी आधुनिक तानाशाह या सत्तावादी देशों के विपरीत 1976 में माओ की मृत्यु के बाद 1978 से चीन नये-नए नेतृत्व के जरिए लगातार खुद को बदल रहा था. नीतियों से लेकर विचारों के आदान-प्रदान में इससे विविधता आई थी.

नियमतः प्रत्येक दस साल में चीन में सत्ता परिवर्तन होता रहा है लेकिन एकल पार्टी व्यवस्था होने के चलते सत्ता सदैव कम्युनिस्ट पार्टी के पास ही रही है.

शी जिनपिंग की नयी अवधारणा ने चीन में सत्तावाद के चरम और माओ राज की एक तरह से वापसी कर दी है. माओ राज में चीन ने आर्थिक अवनति तथा सांस्कृतिक आन्दोलन के दंश को झेला. उनकी मृत्यु के पश्चात चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने माओ को 70 फीसदी सही तथा 30 फीसदी गलत बताया. माओ के गौरव को बरकरार रखा लेकिन शासक की शासन की सीमा को समयबद्ध कर दिया.

आजीवन सत्ता की बागडोर पाने की स्थिति में कोई भी शासक बेलगाम हो सकता है. स्वविवेक पर ही अगर सबकुछ निर्भर होगा तो संभव है कि अलोकप्रिय एवं अतार्किक फैसले भी हों. बिना चर्चा और भिन्न-भिन्न विचारों के समावेश के दूरदर्शी निर्णय करने की भी सीमाएं हैं. ऐसा ही माओ ने भी किया था. ऐसा ही कुछ शी जिनपिंग भी कर सकते हैं.

स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के सीनियर फेलो एवं प्रसिद्ध चीनी अमेरिकी राजनैतिक विज्ञानी फ्रांसिस फुकुयामा का मानना है कि ये चीन में ‘बुरे राज’ की पुर्नबहाली है. यह चीन के लिए पतनकारी भी हो सकता है.

वैश्विक स्तर साम्यवादी शासन की विफलता और लोकतंत्र के लगातार आगे बढ़ते प्रचलन के बीच चीन में लंबे समय से चीनी प्रवासी छात्रों द्वारा लगातार चीन में सेंसरशिप मुक्त, लोकतांत्रिक पद्धति की मांग विश्व स्तर पर होती रही है. 1991 में सोवियत संघ के ढहने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने अपने आत्मकथाकार से कहा था कि 20 सालों के भीतर चीन में लोकतंत्र स्थापित हो जायेगा.

1989 को थ्येनआनमन चौराहे पर चीनी छात्रों के लोकतंत्र की स्थापना के लिए लगातार प्रदर्शन के बाद सशस्त्र चीनी सेना ने आंदोलनकारी छात्रों के सामूहिक नरसंहार को अंजाम दिया था. चीन के लिए लोकतंत्र दूर की कौड़ी साबित हो रहा है. प्रवासी चीनी छात्र जब तब लोकतंत्र की मांग और तानाशाही का विरोध करते रहते हैं.

शी जिनपिंग का विचार दुनिया के लिए नया है. जिसमें एक ताकतवर राष्ट्रवादी समाजवाद की बात हो रही है. यह नए किस्म का समाजवाद है. अपने आर्थिक स्वरुप में उदारवादी हो चुका चीन अब राष्ट्रवादी भी होने को तत्पर है. यही खतरे की बात है.

चीनी राष्ट्रपति माओ और कन्फ्यूशियस को एक साथ वैचारिक रूप से साथ लेकर चलना चाह रहे हैं जो स्वयं में ही अन्तरविरोधी है. माओ ने सार्वजनिक रूप से कन्फ्यूशियस की आलोचना की है. एक ही प्रयास में जिनपिंग सीधे माओ के समकक्ष खड़े हो गये है. विश्व के अनेक राजनैतिक चिंतकों का मानना है कि शी जिनपिंग की तानाशाही साम्यवादी चीन के लिए बहुत बड़ी गलती हो सकती है. बहरहाल किसी भी राजनैतिक प्रतिद्वंदिता के अभाव में शी जिनपिंग के तानाशाह बनने या फिर एक गौरवशाली चीन के निर्माण, दोनों ही संभावनाएं हैं.